गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

दाम सरकारी, गोदाम सरकारी

‘‘ अरे ! तुम्हारा नाम भी नारायन !! पूरे गांव ने एक ही नाम रख लिया है क्या !? कोई रामनारायन, कोई सतनारायन, कोई हरनारायन ! तुम लोग आदमी हो या आरटीओ के नंबर ! सही बताओ तुम्हारा नाम क्या है ?’’ कोआपरेटिव सोसायटी में गेहूं खरीदी के तमाम रजिस्टरों के बीच सजे साहब बोले।
‘‘ जपनारायन लिख लो साहेब।’’
‘‘ जपनारयन , .... और ये क्या !! चालीस बोरी गेहूं लाए हो !? दद्दा ये कोआपरेटिव सोसायटी है बनिए की दुकान नहीं कि इत्ता-उत्ता जित्ता भी हो बटोर लाए। ’’
‘‘ जित्ता था सब लाया हूं मालिक। बढ़िया किसम का गेहूं है। एक बार देख लेते ....’’
‘‘ देखेंगे क्यों नहीं ! देखना तो पडै़गा ही। ऐसेई थोड़ी लै लेगी सरकार। बड़ी सख्त ड्यूटी है महाराज। सरकार मेहनत और ईमानदारी से काम करने का पैसा देती है, कोई मजाक नहीं है! इत्ती गरमी में यहां बैठे हम पसीना हेड़ रए हें तो किसके लिए ? सरकार की सेवा के लिए ..... और गेहूं क्यों नहीं लाए ? ’’
‘‘ इत्तई पैदा हुआ साहेब। सारा लै आए हैं। जमीन कम है। हम छोटे किसान हैं। ’’
‘‘ अरे महाराज ! कित्ते जनम तक छोटे किसान बने पैदा होते रहोगे ! कुछ पुन्न-उन्न किए होते तो तुम बड़े किसान के घर में पैदा होते और औलादें भी बड़े किसान की कहातीं। सारी गलती तुम्हारी है। हम पाण्डे हैं, ....... सब्जी-भाजी पैदा करते हो ? आलू-कांदा कुछ ?’’
‘‘ आप गेहूं देख लेते ..... एक एक दाना चमकदार है। ’’ किसान ने ना में सिर हिलाते हुए गुजारिश  की ।
‘‘ चमकदार होने से क्या होता है !? पीसने से आटा ही बनेगा, बिजली तो बनेगी नहीं ! एं ?  ………  भैंस पाली होगी ? घी-वी होता है ?’’
‘‘ पांच पानी का गेहूं है साहेब, देख तो लेते ।’’ किसान ने फिर सिर हिलाते हुए कहा।
‘‘ तो सेम्पल लाओ ना .... अब मैं जाऊँगा क्या तुम्हारे ट्रेक्टर  के पास, ..... सरकारी आदमी उपर से पाण्डे ?’’
किसान सेम्पल ले कर हाजिर होता है, साहब बोले-‘‘हूं ....गेहूं तो अच्छा है! पहले बताना था ना।’’
‘‘ कह तो रहे थे कि देख लेते एक बार।’’
‘‘ ठीक है दद्दा, ऐसे तो सब कहते रहते हैं। .... चालीस बोरे हैं ना ?’’
‘‘ हां पूरे चालीस हैं। ’’
‘‘ देखो एक आदमी साथ कर देते हैं। दस बोरी मेरे यहां पटका दो, दस-दस हमारे बड़े साहबों के यहां और दस बैंक वाले साहब के यहां ।’’
‘‘ पैसे कौन देगा !?’’ किसान चिंतित हो गया।
‘‘ पैसा !! ....... तुमको सरकार पर भरोसा नहीं है तो आए क्यों यहां ?’’
‘‘ हम तो इसलिए बोले साहब कि अनाज तो सरकारी गोदाम में जाता है !’’
‘‘ तो हम क्या सरकारी आदमी नहीं हैं !? ....... सरकार के गोदाम कोई एक जगह होते हैं !……  अब यहां तुम्हारे लिए एक लिस्ट टंगवाए क्या, कि ये-ये बंगले सरकारी गोदाम हैं। .... सुबह-शाम कपालभाती और अनुलोम-विलोम करते हो क्या ?’’ साहब ने घूरते हुए पूछा।
‘‘ गलती हो गई साहब ..... हम समझे सरकारी गोदाम एक ही होता है। ..... तो पैसा आप लोग ही देंगे ना दस-दस बोरी का ?’’ किसान की शंका अभी भी बनी हुई थी।
‘‘ अरे यार !! …… कहां से आ गए तुम !! ……  महाराज सरकारी गोदाम अलग अलग होते हैं पर सरकारी जेब एक ही होती है। पैसा यहीं से मिलेगा तुमको । ’’
‘‘ ठीक है साहेब, हमें क्या करना है, .... पैसा चाहिए बस ।’’
‘‘ साइन करोगे या अंगूठा लगाओगे ?’’
‘‘ दसखत करेंगे साहब, पुराने जमाने की चोथी पास हैं।’’ किसान थोड़ा तन कर बोला।
‘‘ चैथी पास !! अरे वाह .... चलो ठीक है, दस्तखत करो यहां .... यहां ...’’
‘‘ ये क्या साहब !! आपने तो 400 बोरी लिख दिया ! हम तो 40  ही लाए हैं !’’
‘‘ 400  लिखा है तो क्या 400  का पैसा लोगे !! बड़े भ्रष्ट हो तुम तो ! भगवान से तो डरो जरा !’’
‘‘ राम राम, हम कहां चार सौ का पैसा मांग रहे हैं!! …।   इतनी अंधेर कहीं मची है ! भगवान सब देख रहा है। ’’
‘‘ तो भगवान को देखने दो ना। तुम इधर उधर क्यों देख रहे हो। तुमको ईमानदारी से चालीस बोरी के पैसे मिलेंगे। इसमें कोई दिक्कत है क्या ?’’
‘‘ चालीस के मिल जाएं यही बहुत है, समझो गंगा नहा लिए साहब। ’’
‘‘ तो फिर आंख मींच के साइन करो फटाफट और गंगा नहाओ।’’
                                                                           ----

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें