मंगलवार, 30 जनवरी 2024

आ जाये कोई शायद, दरवाजा खुला रखना.


 


          राजनीति करने वाले आजकल खेला करने लगे हैं । खेल भावना के अनेक आयाम होते हैं । जिसे खेलना आता है वो कहीं भी मैदान मार लेता है । इधर कुछेक साल से मंजे हुए खिलाड़ियों का दौर चल रहा है  । मंजे हुए को शुरू शुरू में लोग लोटा समझते हैं लेकिन बाद में वह कलश हो जाता है । खिलाड़ी इतना मंजा होता है कि हाकी खेलता दिखाई देता है लेकिन स्कोर कार्ड में रन दर्ज होते हैं । वह अपने नीबू और सिरके से पहले दूध को फाड़ता है फिर फटा दूध ले आता है । दूसरे के घर का फटा दूध उसके घर आ कर पनीर का दर्जा पा जाता है । गाय दिखा कर बकरे मार लेने का ये खेल शतरंज से भी ऊपर का है । बकरे मारना उसके लिए गोलगप्पे खाने जैसा है । राजनीति के तबेले में चिंता व्याप्त है । ‘बकरे की माँ’ कब तक खैर मनाएगी !

              राजनीति करने वालों को विरासत में तमाम छोटी बड़ी दीवारें मिलीं । इसलिए राजनीति दीवारों का खेल भी है । संविधान से तय तो यह था कि दीवारें गिराई जाएँगी । लेकिन उन्होंने दीवारें गिराने का काम नहीं किया । दरवाजों में उन्हें राजनीतिक सम्भावना अधिक दिखी । इसलिए दरवाजे बनाने का काम हाथ में लिया गया । दरवाजों में खोलने और बंद करने की सुविधा थी जो राजनीति के लिए बहुत जरुरी है । नगर नगर गाँव गाँव में दरवाजों की सफल राजनीति होने लगी । घोषणा-पत्र में छोटे बड़े नए नए दरवाजों का वादा किया गया । दरवाजे हवा में नहीं बन सकते थे । सो दरवाजों के लिए नयी नयी दीवारों की जरुरत पड़ी । लोग दरवाजों की उम्मीद में रहे और दीवारें खड़ी  होती गयीं । धीरे धीरे समय आया कि दीवारें पहली जरुरत समझी जाने लगीं । जहाँ दीवारें नहीं थी वहां भी लोग बनाने लगे । दरवाजे हैं तो विकास है, दरवाजे हैं तो लोक कल्याण है, दरवाजे हैं तो सुरक्षा और सुविधा है । कुछ लोग इसे इनडोर गेम / आउटडोर गेम के रूप में भी देखते हैं । लोग अपनी अपनी दीवारों में कैद हो कर गर्व महसूस करने लगें तो इसे उच्चकोटि की राजनीतिक सफलता कहा गया । दरवाजों ने उन्हें अवसर दिया कि मज़बूरी या जरुरत के हिसाब से कुण्डी खोल लेंगे, बंद कर लेंगे । समुद्र में दीवारें नहीं होतीं हैं, पता नहीं बड़ी मछलियाँ राजनीति कैसे कर पाती होंगी । कैसे उनका कारोबार चलता होगा । उनके बच्चों का क्या हाल होता होगा ।

              अभी की बात है मज़बूरी में कुछ लोगों को समझ में आया कि संगठन में शक्ति है । लेकिन सारे घटकों की  दीवारें बुलंद हैं और दरवाजे छोटे । सबको पता हैं कि थोड़ी थोड़ी दीवार गिराना पड़ेगी । हालाँकि सबने दरवाजे खोले, लेकिन थोड़े थोड़े । एक दूसरे को देखा, मुस्कराये, ‘दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ कहा । लेकिन दीवारें गिराने पर कोई सहमत नहीं हुआ । सबने अपनी अपनी दीवारों पर गठबंधन के इश्तहार अवश्य चिपका लिए पर दरवाजा पूरा नहीं खोला । ‘पहले आप पहले आप’ में भरोसे की भैंस पाड़ा दे कर चली गयी । इधर एक बड़ी दीवार के पीछ जोर जोर से डीजे बजता रहता है – “कुण्डी न खड़काओ राजा, सीधे अन्दर आ जाओ राजा” ।  दरवाजे के पीछे से निमंत्रण मिले तो कौन संत कौन साधु !! कान में ‘राजा’ शब्द पड़ता है शहनाई बजने लगती है , मन डोले तन डोले ! प्रेम में जब सरहदे नाकाम हो जाती हैं तो फिर दीवारों का क्या है । तुमने पुकारा और हम चले आये रे, जान हथेली पे ले आये रे ।  मानने वाले ने मान लिया कि छोटी दीवारों से निकल कर बड़ी दीवार में कैद हो जाना राजनितिक विकास है । और वो चला गया ! उसे लगता है कि बिल्ली जिस छेद से अन्दर आती है उसी छेद से बाहर भी निकल सकती है । मलाई खा कर निकल आयेगी किसी दिन ।

इधर डीजे पर अब भूपेंद्र और मिताली की गजल बज रही है –

                    राहों पे नजर रखना, होठों पे दुआ रखना ;

                    आ जाये कोई शायद, दरवाजा खुला रखना.

 

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रविवार, 21 जनवरी 2024

एक यात्रा प्राणप्रतिष्ठा के लिए



किसी ज़माने में पार्टी के प्राण शेरवानी पर खुंसे लाल गुलाब में हुआ करते थे । सोचा था देश  उन्हें  भी  प्राणनाथ मान लेगा, नहीं माना । जाहिर है प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम चलाना पड़ रहा है । मूर्ति को स्थापित करना है लेकिन प्राण की दिक्कत है । प्राण कहाँ हैं यही पता नहीं चल रहा है । सोचा था सारे प्राण मिल कर एक प्राणबंधन कर लेंगे, लेकिन नहीं हो पा रहा है । चाटुकार कान में कह जाते हैं कि अपनी पार्टी के प्राण वंशवाद में हैं । किन्तु वंश में वो वाले प्राण बचे नहीं जो इस वक्त जरुरी हैं । काले कपड़ों वाले जानकारों ने बताया है कि पार्टी के प्राण किसी तोते में हैं । औत तोता पिंजरे में बंद है । पिंजरा काली गुफा में है और गुफा लाल पहाड़ी के पीछे है । एक काफिला लगेगा उसे खोजने में ।

एक समय था जब लाल पहाड़ी दूर से दिखाई दे जाती थी । अब उसने अपना मुंह छुपा लिया है । जो लोग कभी लाल पहाड़ी पर खड़े हो कर चाँद देखा करते थे वे अब गुम गलियों में उसे खोज रहे हैं । ऐसे मौके पर कोई पत्रकार सवाल न पूछे यह हो सकता है क्या ! माइक दन्न से आगे आया – “क्या आप लाल पहाड़ी खोजने के लिए यात्रा पर निकले हैं ?”

“नहीं मैं काली गुफा खोजने के लिए निकला हूँ । लोगों को काली गुफा के बारे में जागरूक करने के लिए निकला हूँ । बस लोग एक बार काली गुफा की हकीकत ठीक से जान जाएँ तो समझो हमारी प्राणप्रतिष्ठा हो जाएगी ।“ उन्होने जवाब दिया ।

“अभी तो आपने कहा कि जागरूकता के लिए निकले हैं ! फिर ये प्राणप्रतिष्ठा का सवाल कैसा ?!”

“एक ही बात है, लोग जागरुक हो जायेंगे तभी हमारी प्राणप्रतिष्ठा होगी । “

“ तो ये कहिये ना कि जनजागरण में ही आपके प्राण बसे हुए हैं ।“

“मेरे नहीं, पार्टी के प्राण हैं जागरण में ।“

“विश्वस्त सूत्रों के ज्ञात हुआ है कि किसी तोते की तलाश में यात्रा पर निकले हैं आप ?”

“तोता !! हाँ, वो तोता काली गुफा में । हर काली गुफा में एक तोता होता है ।“

“तो इस यात्रा को न्याय यात्रा क्यों कहा जा रहा है ! तोता तलाश यात्रा कहना ज्यादा ठीक होगा ।“

“देखिये भईया ... तोते का मिल जाना ही न्याय मिल जाना है । बल्कि यों कहना ज्यादा ठीक होगा कि तोता ही न्याय है । न्याय में ही प्राण हैं । तोते को पिंजरे से मुक्त कर देना ही प्राण को प्रतिष्ठित कर देना है ।“

“कुछ लोग कह रहे हैं तोता असल में evm है । क्या यह सही है ?”

“evm सही नहीं है, हम उसका विरोध करते हैं ।“

“और तोता ?”

“तोता तो पिंजरे में है । “

“आपकी सरकार बनी तो आप इस तोते का क्या करेंगे ?”

“मारेंगें नहीं । हम इसे अपने पिंजरे में बंद करके प्रधान मंत्री आवास के आंगन में लटका देंगे । अभी यह सीताराम सीताराम बोलता है । हम इसे गुड मार्निंग, गुड इविनिंग और यस सर बोलना सिखायेंगे । “

“तो फिर बदलाव कहाँ हुआ !?”

“तोते में बदलाव नहीं होता है, न ही पिंजरे में । बदलाव होता है आँगन में । ... अब जरा ध्यान से सुनिए । सीताराम सीताराम की आवाज किधर से आ रही है । लग रहा है हर जगह तोते पिंजरे में बैठे हैं । “

“इतनी बड़ी संख्या में तोतों को मुक्त करा पाओगे आप ? समय तो बहुत कम है ।“

“तोतों में प्राण होंगे तो वे स्वयं मुक्त हो जायेंगे । मैं तो सिर्फ पुकारने निकला हूँ ।“

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रविवार, 14 जनवरी 2024

भजन आरती का क्रेश कोर्स


 


इस समय भक्ति-काल चल रहा है । लोगों को भक्ति और काल में से एक को चुनना है । जो समझदार हैं वे भक्ति ही चुन रहे हैं । भक्ति मात्र एक भावना नहीं है । भक्त को बहुत कुछ करना पड़ता है । लोग चंदा दे देते हैं और समझते हैं कि वे भक्त हो गए, ऐसा नहीं है । भक्त को स्वयं भजन आरती वगैरह करना जरुरी है । इंग्लिश मीडियम वाली पीढ़ी भजन आरती के मामले में डबल जीरो है । इसीलिए माहौल में गति धीमी बनी हुई है । भक्तों की टोली के आगे मुंह खोलना उन्हें भारी पड़ता है । आज की पीढ़ी सहभागिता के संकट से गुजर रही है । इसलिए मार्किट में हम उनकी सहायता के लिए नया कोर्स ले कर आए हैं ।

अभी लोग भजन विज्ञान को नहीं समझे हैं । सत्तर साल से जो भजन गए जा रहे हैं वो अब नहीं चलेंगे । नये ‘भगवान’ नये भजन, यही रिवाज है । ऊपर वाला कोई भी क्यों न हो, उसे भजन आरती अपने हिसाब से ही होना मांगता है । इसलिए हमारा इंस्टिट्यूशन भजन आरती का क्रेश कोर्स लाया है । मात्र सात दिनों में आप बहुत अच्छी तरह से भजन आरती गा सकेंगे । फीस जमा करने के बाद रोजाना दो घंटे क्लास अटेंड करना होगी । मंजीरे आपको अपने लाना होंगे । नहीं हों तो हमारे काउंटर से खरीद सकते हैं । अभी पचास प्रतिशत फीस के साथ एडमिशन फार्म भरेंगे तो मंजीरा वादन फ्री सिखाया जायेगा । पूरी फीस एडवांस देंगे तो एक और भगवान का भजन फ्री सिखाया जायेगा । ये हमारी एक के साथ एक फ्री स्कीम है । आप सोच रहे होंगे कि भगवान तो एक ही होते हैं ! सही है ना ? हम देखते ही समझ गए थे कि प्रगतिशील हो तो ज्यादा नालेज नहीं होगा । जानकारी के लिए बता दें कि करोड़ों भगवान हैं अपने यहाँ । हर भगवान ले लिए अलग भजन होता है । अभी कहा ना कि भजन विज्ञान बहुत गहरा और जटिल है । हमारे यहाँ सैकड़ों भजन सिखाने की व्यवस्था है । ढपली वाले, ढोलक वाले, मृदंग वाले, हारमोनियम वाले, सितार वाले ... कई हैं । भजन में वेरायटी बहुत है । सब सीखेंगे तो साल भर लग जायेगा । अभी सीजन है तो क्रेश कोर्स में एक भगवान का परफेक्ट भजन सिखा रहे हैं ।

यहाँ भजन के आलावा आरती भी सिखाई जाती है । आरती सिंगल होती है और डायरेक्ट भगवान को सुनाई जाती है  । आरती में कुछ भी ऊपर नीचे नहीं कर सकते हैं । उसका हर शब्द अपनी जगह फिक्स होता है । भजन को थोडा इधर उधर करके भी गाया तो चल जाता है, आरती को नहीं । इसलिए आरती का आनर्स कोर्स चलता है । पूरा साल आरती की जरुरत पड़ती है । कोर्स थोडा कठिन है लेकिन महत्वपूर्ण है । बहुत ध्यान रखना पड़ता है । भक्त फल की उम्मीद में आरती का गान करते हैं । इसलिए उनकी संतुष्टि का ख्याल रखना जरुरी होता है ।

अगर कुछ हट के कोर्स करना हो तो हमारे पास वो भी है । दफ्तरों में कोई काम पड़ जाये तो बिना नोटामायसिन के पत्ता भी नहीं खड़कता है । लेकिन अगर अधिकारी की उचित आरती उतारो तो दस हजार का काम सात हजार में हो सकता है । प्रेक्टिकल आरती और भजन का ये कोर्स परसनल ट्यूशन में करवाया जाता है । इसकी फीस भी ज्यादा है, लेकिन सफलता इसी में है  । ... आपको पूरा सिलेबस बता दिया है । बताइए कौन सा कोर्स करेंगे ?

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शनिवार, 13 जनवरी 2024

दर्शन नहीं करने का दर्शन


 


“ तो आप जा रहे हैं मंदिर ?” वरिष्ठ किस्म के पुरातन नेता से रिपोर्टर ने पूछा ।

“नहीं ।“ उन्होंने टका सा जवाब दिया ।

“निमंत्रण तो मिल गया है !”

“तब भी नहीं जायेंगे ।“ वे बोले ।

“क्यों !?”

“भगवान हमारी पार्टी के नहीं हैं ।“

“भगवान का पार्टी से क्या लेना देना ! वो तो सबके हैं ।“

“सब कहने की बातें हैं । ताला हमने खुलवाया और वे दूसरी पार्टी के साथ चले गए !”

“चलिए ये क्या कम है कि आप मानते हैं भगवान को । हमें लगा कि कम्युनिस्टों के साथ रहते रहते आप धर्म से दूर हो गए हैं ।“

“ऐसा नहीं है हम एक नहीं सभी धर्मों को मानते हैं । सबका समान आदर करते हैं । “

“लोग कहते हैं जो सबका होता है वो किसी का नहीं होता है !!”

“गलत है, हम सभी धरमों को मानते हैं । हमारी पूरी पार्टी मानती हैं । “

“क्या मानते हैं धरम को ? और क्या करते हैं ?”

“जैसा समय और परिस्थिति के अनुसार जरुरी हो । फूल, घंटी, आरती, माला, चादर सब कर देते हैं ।“

“चुनाव नहीं हो तब धरम को क्या मानते हो ?”

“वैसे तो धर्म एक तरह की अफीम है । ये हमने कहा नहीं हैं, हम सिर्फ मानते हैं ।“

“गाँधी जी तो धर्म को, राम को मानते थे !”

“उनकी बात अलग है । वो बड़े नेता थे । कुछ भी मान लेते थे । उनकी गलतियों के लिए हम दोषी थोड़ी हैं । “

“ऐसा नहीं हैं, सब जानते हैं उनकी आस्था भी थी भगवान में ।“

“आस्था अलग चीज है । राजनीति में आस्था नहीं चलती है । विवेक चलता है, चालाकी चलती है, मौकापरस्ती चलती है, झूठ बिंदास चलता है ... सब चलता है आस्था नहीं ।“

“ लेकिन ‘वे’ तो आस्था से ही बढ़िया राजनीति कर रहे हैं ! ... आपको नहीं लगता कि मंदिर जा कर आपकी पार्टी आस्था की फसल में से अपना हिस्सा ले सकती है ? खुद आपकी पार्टी वालों को लग रहा है कि इस मामले में आप गलती कर रहे हैं ।“

“ गलतियों से हमें कोई दिक्कत नहीं है । गलतियों की हमारी लम्बी परंपरा है । होती रहती है, किसी से भी हो सकती हैं । हम ही क्यों, जो मार्गदर्शक मंडल में पड़े हुए हैं उनसे पूछिये । क्या वे अपनी गलती पर दिन रात नहीं रो रहे हैं ?”

“चाहें तो सुधार कर लें अपने निर्णय में । साफ्ट हिंदुत्व का समर्थन तो किया था आपकी पार्टी ने । इसी नाते साफ्ट दर्शन कर आते और जनभावना से जुड़ लेते । इसमें क्या प्रॉब्लम थी ?”

“जनता से जुड़ने के लिए ‘भारत जोड़ो’ यात्रा निकाल रहे हैं ना ।“

“ठीक है, लेकिन यात्रा से समर्थन मिल सकता है जुडाव तो धर्म से ही होगा ।“

“नाम पर मत जाइये । पोल्टिक्स में जुड़ाव का मतलब जुड़ाव नहीं है । जैसे सद्भावना का मतलब कभी भी सद्भावना नहीं होता है । राजनीति में जो होता दीखता है वो नहीं होता और होता वही है जो नहीं दीखता है । गहरी बात है इसके मर्म को समझो ।“

“हमें तो कुछ भी नहीं समझ में आया, आप ही समझाईये प्लीज ।“

“जो भक्त दिख रहे हैं वो भक्त नहीं हैं और जिन्हें भक्त नहीं समझा जा रहा है वही असली भक्त हैं ।“

“क्या मैं इसे ऐसे समझूं कि झूठ ही सच है और सच झूठ है ।“

“तुम्हें राजनीति की समझ नहीं है । मर्म को समझो ... हम कह रहे नहीं जायेंगे, इसका मतलब है हम जायेंगे । 

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मुफ्त मंजीरे, मन बाजे छनन छन छन


 


चुप रहने के लिए नहीं कह रहे हैं, बस जरा मौन रखिये । मौन एक साधना है । साधना से मनुष्य का विकास होता है । उसकी सहनशक्ति जो है काफी बढ़ जाती हैं । अभी जो आप बात बात में ततैया की भांति डंक ले कर उचका करते हो ना, ये बीमारी ख़त्म हो जाएगी । बीमार आदमी समाज के लिए अच्छा नहीं होता है । इसलिए आँख कान बंद रखिये और मुंह भी । न देखिये, न सुनिए और न ही बकिये । गाँधी को पढ़ा है ना ? क्या कह गए थे ? बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो । वो लम्बी सोचते थे, जानते थे कि तुम्हारे जैसे लोग रहेंगे खोपड़ी में सफ़ेद बाल की तरह और पूरे सर को बदनाम करेंगे । आप लोग रात में लिखने बैठते हैं, यही समय उल्लुओं का काम पर निकलने का होता है । विकास जैसे अच्छे काम दिन में होते हैं और दिन में आप सो जाते हो ! रात तो बनी ही है बुरे कामों के लिए चाहे लेखन ही क्यों न हो । भ्रष्टाचार अगर दिन में हो तो बताओ क्या उसकी गरिमा रह पायेगी ? दिन में सेवा की जाती है, राजनीति के लिए रात होती है । समझदार वो होता है जो जानता सब है लेकिन मौन रहता है । मंदिर जाते हो न ? भगवान को सब पता होता है, किन्तु कुछ बोलते हैं क्या ? छोटी बड़ी कैसी भी सजा देना होती है तो देते हैं चुपचाप । बगल में बैठा आदमी जेकेट से निकाल कर चोरी से काजू खा लेता है और देखने वाला देख लेता है । जैसे मछली केंचुवा लपकती है और काँटे में फंस जाती है । इसलिए राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर लोग कहते हैं कि आप नेता हों या अधिकारी, दिन में काजू के लिए भी मुंह नहीं खोलना चाहिए । रात है न आजू, बाजू, काजू के लिए ।

और लाख रुपये की बात, तुम्हारे लिखे से किसी का कुछ बदल रहा है क्या ? तुमने कवियों पर कितना व्यंग्य कसा लेकिन क्या असर हुआ ! उल्टा उनकी फसल झूम के आ रही है । देख लेना वह दिन जल्दी आएगा जब फेसबुक का नाम पोएटबुक रखना पड़ेगा । दुनिया की चाल निराली है, वो अपने हिसाब से चलती है । आम जन को दुनिया के हिसाब से चलना होता है । अगर आप बदल सकते तो शुरुवात अपने घर से करते । सुधारक होने का बड़ा भ्रम पाले हो और अपने घर में दो रोटी के लिए मौन साधे रहते हो या नहीं ! बीवी बच्चे आपको देखते सुनते हैं क्या ? वो समझदार है, ज़माने के साथ चल रहे हैं । न बुराई को देखेंगे न बुरे को ।

ठीक है आप बोलते नहीं लिखते हो । और लिखने को लेकर गाँधी जी ने कुछ नहीं कहा है । तो भईया जान लेओ कि गाँधी के ज़माने की बात और थी । लोग पढ़ नहीं सकते थे, सिर्फ सुनते थे । इसलिए तरह तरह की कथा बांची जाती थी । अब लोग शिक्षित हैं, पढ़ते हैं और समझते भी हैं । बांचा बंचायी बंद हो गयी । तुम्हारा लिखा कंकर की तरह आँखों में किरकिरी करता है । ध्यान रखो अब लोककल्याण की राह पर है देश । जब सारे लोग पुष्प वर्षा करने में लगे हैं तुम कंकर फैंक रहे हो !! ना भईया ना, दिल बड़ा करो और जुबान छोटी । लेखकों की सूचि बन रही है, कहो तो नाम लिखवा दें तुम्हारा भी । ले लेना ... मुफ्त मंजीरे मिलेंगे ।  मन बाजे छनन छन छन ... मजे में रहोगे ।

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बुधवार, 3 जनवरी 2024

मन मांगे किस्से परियों वाले


 


 

       सोने के लिए जो बदनाम थे कभी, जाने क्या डर है या चिंता कोई कि इनदिनों आँखों से नींद उड़ी हुई है । कभी कुम्भकर्ण नाम दे दिया था लोगों ने । अब पता नहीं किसके घोड़े बांध लिए हैं सिरहाने । जैसे जैसे रात काली होती है नींद रॉकेट की तरह ऐसी उड़ती है कि सीधे चाँद के ऑर्बिट में नजर आती है । मच्छर महाराज सर पर मंडराते रहते हैं, कहते हैं न सोऊंगा और न सोने दूंगा । इधर जितने बेरोजगार हैं सब चौकीदार हो गए हैं और जागते रहो जागते रहो चिल्लाते रहते हैं । आँख लगे तो कैसे । चैन की नींद सो लिया करते थे लोग, जिसके लिए पता नहीं कौन दोषी हैं । ख्याल आता है कि सुबह होगी तब सो जायेंगे । लेकिन वो सुबह भी नहीं आ रही है ।

          “रात गहरी है चलो मन, तुम्हें बहलाने के लिए एक किस्सा सुनाते हैं । दरअसल तुम्हीं हो जो बार बार बहकते रहते हो । जबसे रेडिओ पर आने लगे हो तुम बहुत वीआइपी हो गए हो । तुम्हारी अदाओं और उछल कूद से हम परेशान होते हैं । मन तुम एक जगह स्थिर और शांत बैठो तो हम नींद ले पायें जरा । खैर, सुनो कहानी । एक समय की बात है एक राज्य था शांतिपुरम । जैसा नाम वैसा गुण, राज्य में शांति और सौहाद्र बहुत था । लोग मिलजुल कर रहते थे और जो मिल जाता था उसमें खुश थे । रातें गहरी नींद वाली और सुबह ऊर्जा से भरी होती थी । एक सांझी जीवनशैली में जी रहे थे लोग । इस बात से राजा वीरचन्द्र को बहुत संतोष था । यही बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही थी । उन्होंने हितैषी बन कर प्रजा के बीच पैठ बनाई । पहले विश्वास जीता उसके बाद विवेक भी और मौका मिलते ही इतिहास की ओर रुख मोड़ दिया । धीरे धीरे लोग वर्तमान को भूलने लगे और राजा वीरचन्द्र के शासन को भी । जिस भविष्य को लेकर आमजन सपने बुना करते थे कभी, उससे डरने लगे ।  नतीजा यह हुआ कि जो पीढ़ी भविष्य के निर्माण में लगी थी वह अतीत के खनन में लग गयी । ‘बीत गयी सो बात गयी’ कहने वालों को जनाक्रोश झेलना पड़ा । लोग कालखंडों, मान्यताओं और किताबों में बाँटते गए । पडौसी जो पहले एकदूसरे के सहारे थे अब संदेह करने और डरने लगे । सबसे पहले विश्वास घटा फिर प्रेम और परस्पर आदर भी । जो पहले एक दूसरे को देख कर सुरक्षित मानते थे अब खतरा महसूस करने लगे । समय बीता, जिन्होंने सुरक्षा की गारंटी दी थी वही डर का सबसे बड़ा कारण हो गए । ...”

         “रुको जरा !” अचानक मन बोला । “ये कैसा किस्सा सुना रहे हो ! इसमें नींद कहाँ है ! ? इस तरह की कहानी से किसी को नींद कैसे आयेगी भला ! ... मुझे परियों वाली कहानी सुनाओ ताकि सुकून मिले और कुछ सपने भी देख सकूँ ।“

          “ किस्सों वाली परियां अब कहाँ हैं मन । वे अब बाज़ार में हैं, मॉल में हैं, पोस्टर और विज्ञापनों में हैं । परियां अब प्रोफेशनल हैं, आँखे बंद करने से नहीं कांट्रेक्ट साइन करने के बाद ही आती जाती हैं कहीं भी । किसीने कभी कहा था कि बड़े सपने देखो । हम लम्बे सपने देखने लगे हैं, कलयुग से सतयुग तक । जल्द ही युवक भूल जायेंगे कि रोजगार किसे कहते है ! जीवन का आधार मुफ्त का राशन होगा और जीवन किसका होगा पता नहीं । ... यही चिंता है और यही डर ।“

         ‘कोई उम्मीद बर नहीं आती ; कोई सूरत नजर नहीं आती ।

         मौत का एक दिन मुअय्यन है ; नींद क्यों रात भर नहीं आती ।“

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