सोमवार, 29 मई 2023

नारद ने वाट्स एप खोला


 



            सुबह आँखे खोलते ही नारद ने वाट्स एप खोला और दनादन मेसेज फॉरवर्ड करना शुरू किये । इधर का उधर, उधर का इधर । मेसेज उछालने में वो मजा आ रहा था जो सतयुग में भी कभी नहीं आया । मन ही मन वे बोले कि ईश्वर ने संसार बनाया पर वाट्स एप नहीं बनाया । काश उन्होंने बनाया होता तो आज एक गुणगान इसी बात पर करने का अवसर मिल जाता ।

अभी वे सोच ही रहे थे कि वाट्स एप की एक पोस्ट में से प्रभु निकल आये । नारद को इस चमत्कार की उम्मीद नहीं थी  । पहले चौंके, फिर लज्जित हुए, बोले - भगवन आप !!

“ये क्या नारद ! किस काम में लगे हुए हो इन दिनों !! कितनी गन्दी गन्दी पोस्ट भेजते हो ! और नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्टों पर इतने मेहरबान क्यों रहते हो !? देवभूमि में उत्पात करवाओगे क्या ?” प्रभु ने अपनी नाराजी व्यक्त की ।

“मैं कुछ नहीं करता भगवन, मैंने एक भी पोस्ट खुद नहीं लिखी है । न गन्दी और न ही नफरत वाली ।“

“तो फिर इधर की उधर क्यों करते हो ? रिटायर आदमी के पास यही काम बचा है क्या ?”

“ये तो मेरा पूर्णकालिक काम है प्रभु । पहले भी तो आपको इधर उधर के समाचार देता था भगवन । उस समय तो आपको भी आनंद आता था । यही सोच कर कि अगले को आनंद आएगा, मैं अब भी इधर उधर करता रहता हूँ । इसमें मेरी कोई दुर्भावना नहीं है ।“

“भोजन करते समय निवाला मुंह में डालते हो ना । बिना देखे खा लेते हो ? जो सामने आया, अच्छा-बुरा, खाद्य-अखाद्य सब खा लेते हो क्या ?”

“नहीं भगवन, ऐसा कैसे हो सकता है ! आपने हर मनुष्य को बुद्धि दी है, विवेक दिया है, आँखें दी हैं तो देखभाल कर ही खायेगा ।“

“तुम्हारे रास्ते में कीचड़ हो, मल हो, कांटे हों तो क्या करोगे ?”

“अपने पैर गंदे नहीं करूँगा प्रभु, किसी भी स्थिति में नहीं । बच के निकलूँगा ।“

“फिर गन्दी और नफ़रत फ़ैलाने वाली पोस्ट को लेकर सावधानी क्यों नहीं बरतते ? जानते हो नारद, इस तरह की पोस्ट फ़ैलाने पर चाहे सरकार तुम्हें मौन समर्थन देती रहे लेकिन तुम्हारी छबि इससे बिगड़ती है । तुम एक शिक्षित और बुजुर्ग जीव हो इस तरह की छोटी छोटी गलतियों से तुम्हारा अपरिपक्व होना, अविवेकी होना सिद्ध होता है । मुनि हो, ज्ञानी हो किन्तु अधिकतर लोग तुम्हें मूर्ख समझने लगते हैं । जो तुमने अभी तक हासिल किया उस पर कालिख पुत जाती है । कोई चाहे न बोले लेकिन चार लोगों के बीच तुम आदरणीय नहीं रह जाते हो ।“

“सारी गलती तो उनकी है जो ऐसी पोस्ट बनाते हैं । वो आपके भक्त हैं इसलिए उन्हें आप कुछ नहीं कह रहे हैं !!” नारद को अपने बचाव के लिए कुछ नहीं सूझा ।

“मेरे भक्त निष्कपट और निर्मल-मन होते हैं । वो मेरे अंधभक्त नहीं होते हैं । उन्हें जो विवेक मैंने दिया था उसे उन्होंने किसी के पास रेहान रख दिया है । ये दुष्कर्म जो करते हैं उन्हें अच्छे-बुरे की समझ नहीं है । किन्तु हे नारद ... तुम जैसे वरिष्ठ जीवों से ये अपेक्षित नहीं है । कहा जाता है कि वृद्ध और बालक एक सामान होते हैं किन्तु इसके सही अर्थ को जानों मुनिवर । बालक का मन शुद्ध और निष्कपट होता है उसी तरह वृद्ध का भी होना चाहिए ।“

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मंगलवार, 16 मई 2023

जीवन संध्या भोज


 

 

 

“अब क्या बतावें भाई साहब, रोने बैठते हैं तो समझ में नहीं आता कि सुरु किससे करें । कोई एक बात हो तो सलीके और संस्कार के साथ रो लेवें इन्सान । यहाँ तो बरात लगी पड़ी है ससुरी । लोग जिस तरह औंधी खोपड़ी से नाच रहे हैं ना वैसा तो आज तक देखा नहीं हमने । कहने को कह रहे हैं आगे बढ़ो,  दुनिया आगे बढ़ रही है, विकास हो रहा है ! फिर कहते हैं पीछे चलो बाप-दादा पुकार रहे हैं, पीछे सब अच्छा है !! अरे समझ में नहीं आता है कि आगा अच्छा है या पीछा !! जिसे देखो पगला रहा है  ... ना ना हम राजनीति की बात नहीं कर रहे है और न ही करेंगे । हमें क्या करना है, इस बुढ़ापे में तो सर पे जो भी खड़ा होता है यमराज ही दीखता है  । कुर्सी पे कोई सच्चा-साधु बैठे या लुच्चा –लबार हमें क्या । आज जिन्दा हैं तो यहाँ आपके लिए रम्मू काका हैं कल मर कर फिर पैदा हुए तो कौन जाने रहीम चाचा हो जाएँ । लोग तो कहते हैं लाखों योनियाँ हैं, आदमी कुत्ता बिल्ली भी हो सकता है । आदमी ही बनेंगे इसकी कोई गैरंटी है क्या ! इसलिए राजनीति की बातें करके हम काहे अपना और आपका कीमती समय बरबाद करें ! ... अब देखिये,  आप इतनी गौर से बात सुन रहे हैं तो किसलिए ! कोई डर है हमारा ? या कोई कर्जा लिए हो हमसे ? ... अरे भाई इंसानियत लिए हो इसलिए दुःख बाँट रहे हो हमारा । वरना ढूंढ लीजिये यहाँ से वहां तक कोई अपनी इच्छा से किसी की मन की बात सुनता है क्या ? बकवास सुनाने का समय ही नहीं है किसी के पास । घर में बूढ़े अपना पसेरी भर समय लिये बैठे हैं सारा सारा दिन कोई चुटकी भर बाँटने वाला नहीं मिलता । एक जमाना था जब मिलने वाले फूल लिए खड़े रहते थे । ... लेकिन छोड़िये पुरानी बातें ।  ... हाँ तो हम कह रहे थे आत्मा जो है सूखी जाती है । बच्चों को पढ़ाये लिखाये इसलिए थे कि इनकी जिंदगी बन जाएगी । ये इन्सान बन जायेंगे, कुछ हमारी भी सदगति हो जाएगी । अब जब धरम करम का समय आया तो फुग्गे उड़ गए आकाश में । दो लाइन का फादर्स-डे वेक्सिन ठोंक देते हैं, सोचते हैं साल भर बाप को औलादी बुखार नहीं चढ़ेगा । ... बताइए हम क्या करें ! ताली थाली बजा बजा कर बुढ़ापा-गो बुढ़ापा-गो करें  !? सब हो जायेगा इससे ! पिछले महीने बिसेसर बाबू गुजरे । बच्चे विदेश में, मजबूरी बनी रही, कोई नहीं आया । बूढ़े कन्धों ने उठाया, महरी के लडके ने आग दी ... पता नहीं ऊपर के लोक में किसी ने द्वार खोला या नहीं । न पूजा-पाठ, न तेरहवीं न नुक्ता-घाटा । सफल आदमी थे, लेकिन बड़े बेआबरू हो के तेरे कूचे से निकले । कोई इस तरह जाता है क्या !? ये कैसी दुनिया बना ली है हम लोगों ने ! ... देखो भाई, अगली पूरण मासी को हमारी कविता की किताब का जलसा रखा है । क्या कहते हैं लोकार्पण कार्यक्रम और ‘जीवन संध्या भोज’ भी है । भोजन प्रसादी का आयोजन है,  तो आना जरुर । ... सोच रहे होगे कि हमने कब लिखीं कवितायें ... तो ऐसा है कि कोई तो बहाना चाहिए बुलाने का । कहते कि अपना नुक्ता कर रहे हैं तो कौन आता । कभी कुछ पन्ने काले किये थे सो उन्हीं को छपा लिया । जरूर आइयेगा, नमस्कार ।“

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