मंगलवार, 28 नवंबर 2023

फंस गए फजीयत में फूफाजी

 




बड़े दिनों के बाद डब्बू का फोन है, बड़े साले साहब का मंझला बेटा ।  बोला – “हेल्लो फूफाजी, कैसे हैं आप ? तबियत तो ठीक है न ?”

“हाँ डब्बू, छत पर धूप ले रहे हैं, और तबियत भी ठीक ही है । बस जोड़ों में दर्द रहता है । गठिया बताया है डाक्टर ने । लेकिन तुम्हारी बुआ को लगता है कि नौटंकी है । कहती हैं कुछ काम घाम नहीं करता हूँ इसलिए जोड़ों में सूजन चढ़ गयी है । अब बताओ कल जबरदस्ती छत की झाड़ू लगवाई । बुआ तो खुश है पर घुठने और कमर नाराज चल रहे हैं । समझ में नहीं आता किसकी सुनूँ, डाक्टर की या बुआ की । डाक्टर तो दस मिनिट देखता है, इनके पंजे में तो चौबीस घंटे रहना पड़ता है । आज बिलकुल चला नहीं जा रहा है और ये सामने झोला पटक गयी हैं कि बाज़ार जाओ और सब्जी भाजी ले आओ । समझ में नहीं आ रहा है कि इलाज किसका करावाऊँ । पड़ौस में अगरवाल साहब रहते हैं । बोलते हैं गठिया का ही करवा लो, ठीक हो जाने के चांस भी रहते हैं । अभी जाऊंगा सब्जी लेने लेकिन मुझे पता है कि मेरी लाई सब्जी इनको पसंद नहीं आएगी । बहाना चाहिए इन्हें । डांट डपट कर पूरी खर्च हो लें तब ही औरत से इन्सान बन पाती हैं । तुम तो जानते हो इनकी दिमागी ताकत । कहती है हमारी अम्मा ने बचपन में बादाम खूब खिलाई है । अब देखो भाई किया धरा अम्मा का भुगत हम रहे हैं । दिमाग इनका पजल गेम से ज्यादा जटिल है । एक तरफ से मिलाओ तो दूसरी तरफ से बिगड़ जाता है । हालत ये है कि न पूरे पूरे कमजोर हो पाते हैं न ही ताकतवर । न जीने में न मरने में, अनारकली बना के रखा है हमें । दूध से सारी मलाई खेंच कर घी बना लेती हैं । तीन बार एक चम्मच घी मांगों तो एक बार आधा चम्मच देती हैं । सारा घी भगवान के दीपक को जाता है । थोड़े से घी के चक्कर में भगवान भी तुम्हारी बुआ की तरफ हैं । कभी हिम्मत की भी कि आज जरा डपट दें उनको, तो बुखार पहले चढ़ जाता है । मामला उलट जाता है , दिन में तीन बार उनकी डांट के साथ पेरासेटामाल खाना पड़ जाती है । अब तुम तो जानते हो कि पांडव के साथ भगवान थे तो सौ भाई और बड़ी सेना भी हार गयी थी । इधर हम तो अकेले हैं । रोज गीता पढ़ते हैं लेकिन युद्ध के लिए जरुरी हिम्मत पैदा नहीं हो पाती है । अब सोच रहे हैं कि घी का दिया हम भी लगाया करें । लेकिन किचन में घी पता नहीं कहाँ रखा रहता है कि ढूंढते रहो मिलता ही नहीं । एक बार घी ढूंढते रंगे हाथ पकड़ लिया तो तीन दिनों तक जमानत नहीं मिली । थाने में होते तो तीन घंटे में मिल जाती । पिछले दिनों सरकार ने महिलाओं के पक्ष में बिल पास करके उन्हें और ताकतवर बना दिया । इधर राज्य सरकार रिश्तेदारी बना रही है सो अलग । अब स्थिति देखो, भगवान इनके  सरकारें भी इनकी ! ऐसे में एक बेचारा फूफा क्या कर सकता है सिवा गरल पीने के । ... तुम बताओ , तुमने कैसे फोन किया ?”

“कुछ नहीं फूफाजी । बस आपके हालचाल पूछना थे । “

“डब्बू एक तुम्हीं हो हमारी ससुराल में जो हाल पूछ लेते हो । बाकी तो सारे मजे लेने के लिए फोन करते हैं । जवाई हैं सो अपनी दुर्गति बताने में लाज आती है । इसी का फायदा उठाया जाता है । बोलें भी तो क्या फायदा, उधर से कोई सहायता तो मिलना नहीं है । उल्टा अगर तुम्हारी बुआ जान गयीं कि क्या कुछ बोला है तो उनके पास अपनी ईडी है पक्के बाँस की । तुम्हारे भाई चिंटू की शादी में जो हम रूठे थे तो आज बता दें तुमको, बुआ का ही आदेश था । बोली थीं ससुराल में शादी है थोडा मुंह फुला कर बैठना तो नेग एक सौ एक मिलेगा वरना ग्यारह में निबटा देंगे । बोलीं मैं खूब जानती हूँ अपनी भौजाइयों को, एक से एक छंटी हुई हैं । तीन चार साल हुए सावन में मैके गयीं थीं । बुलवा लिया था तुम्हारे पापा ने । इधर क्या तो वक्त गुजरा बिंदास । हमारे भी कोपलें फूट आयीं, रेगिस्तान में हरियाली छाई, कुछ फूल भी खिले । लेकिन बादाम खाया दिमाग हैं न बुआ का । अपनी भौजाइयों से रूठ आयीं किसी बात पर । अब भाइयों की हिम्मत नहीं कि दोबारा बुला लें । हरियाली फिर रेत रेत हो गयी और आज तक एक बीज अंकुरित नहीं हुआ । अब क्या कहें, हम तो किसी से कुछ कहते नहीं । तुम चिंता नहीं करना बेटा । गब्बर से हमें एक ही आदमी बचा सकता है खुद गब्बर । ... अब फोन रखें कि कुछ और सुनोगे ?”

“अब रख ही दो फूफाजी । हम नीचे कमरे से बोल रहे हैं, फोन स्पीकर पर है और बुआ पास ही बैठी हैं ।“

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मकई राम का भुट्टा हो जाना






मकई राम की कथा सुनाने से पहले आपको बता दूँ कि मैं ऊंच-नीच नहीं मानता हूँ । जात-पांत भी नहीं । यही बात मिठाई पर भी लागू होती है । जो मीठा है वो मिठाई है मेरे लिए । और जो मिठाई है उसका दिल से स्वागत है चाहे वो सोन पापड़ी ही क्यों न हो । हालाँकि इनदिनों सोन पापड़ी बड़ी बदनाम चल रही है । कोई घर में घुसने नहीं दे रहा बेचारी को ।  अगर किसी तरह घुस गयी तो जल्द से जल्द निकाल बाहर करने की जुगत में लग जाता है । कोई कितने ही प्यार से लेकर आये लेने वाले के कलेजे से धुंवा उठता ही है । दोस्त हो, रिश्तेदार हो या कोई प्रिय पात्र, सोन पापड़ी सभी के किये धरे पर पानी फेर देती है ।

बीस वर्षों से दफ्तर में त्रियुगी नारायण ‘हाजिर-सेवक’ लगे हुए हैं । हाजिर-सेवक वही जिसको चालू भाषा में लोग चपरासी कहते हैं । पहले तो दिक्कत थी, खुद उन्हें भी अच्छा नहीं लगता था । लेकिन वेतनमान बदले तो अच्छी तनख्वाह हाथ लगने लगी । तब समझ में आया कि जमाना पद को नहीं पैसे को देख कर इज्जत देता है । उनके पास भी बार त्यौहार सोन पापड़ी घर आने लगी । और वे भी मौका अवसर देख कर दूसरों को देने लगे ।

इसी बीच दफ्तर में मकई राम अफसर हो कर आए । हप्ता पंद्रह दिन नरम रहे लेकिन जैसे जैसे हवा लगी भुट्टा होने लगे । लोग चपेट में आये तो दफ्तर में सबको आश्चर्य हुआ । कुछ को गुस्सा भी आया । मरने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है , बोलने वाले की जुबान नहीं । आपसी बातचीत में साथी भरोसे का हो तो मकई राम के लिए गलियां भी चलने लगीं । लेकिन त्रियुगी नारायण इस मामले में अलग धारणा रखते थे । उनका कहना है कि मकई राम का कोई दोष नहीं है । दोष दफ्तर की हवा का है । किसी किसी को ये हवा सूट नहीं करती है । यहाँ की हवा की तासीर ऐसी है कि अच्छे भले आदमी का दिमाग खराब हो जाता है । त्रियुगी की इस धारणा का एक कारण यह भी है कि मकई राम उन्हें जब भी कोई काम कहते हैं ‘जी’ लगा कर कहते हैं । जैसे – “त्रियुगी नारायण जी, ये फ़ाइल गुप्ता को दे आओ और कह देना शाम तक कम्प्लीट कर दें ।“  त्रियुगी ने इस ‘जी’ को दिल से लगा किया है । गरीब का दिल हमेशा बड़ा होता है, मकई राम को भगवान का अवतार मानने में उन्हें अभी भी संकोच नहीं है ।

दिवाली आ गयी । दफ्तर ने तय किया कि कोई मकई राम को घास नहीं डालेगा । अगर मज़बूरी गले पड़ ही गयी हो तो एक ‘हेप्पी दिवाली’ फैंक कर आगे बढ़ जाया जाये । इस मोर्चे में त्रियुगी नारायण शामिल नहीं हुए । उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जमाना अब अच्छे लोगों की बात कान पर कहाँ रखता है । दफ्तात में जिसके भी सामने मौका आया ‘टच एंड गो’ फार्मूले के तहत हेप्पी दिवाली बोल कर रॉकेट हो लिया ।

जैसा कि बताया है त्रियुगी नारायण का दिल बड़ा है । उसने देखा कि मकई राम के लिए यह समय चुनौती पूर्ण है । बात को सम्हालने के लिए उसे ही कुछ करना चाहिए । अगली सुबह वह सोन पापड़ी का पेकेट ले कर मकई राम के घर पहुँच गए । मकई राम शायद दफ्तर वालों की बेरुखी को महसूस किये बैठे थे । ऐसे में सोन पापड़ी के पेकेट को देख कर सुतली बम की तरह फट गए । उन्होंने पेकेट हाथ में नहीं लिया उस पर थप्पड़ की तरह मार दिया । पेकेट टूट गया और सोन पापड़ी अपने बिखराव के साथ दूर जा गिरी । त्रियुगी नारायण इस घटना के लिए तैयार नहीं थे । तभी मकई राम कड़के – “ ये क्या त्रियुगी !! तुम सोन पापड़ी ले कर आ गए ! क्या तुम्हें पता नहीं कि बड़े अधिकारियों के यहाँ मातहतों को सोन पापड़ी ले कर नहीं जाना चाहिए ! अपमान करते हो !!” त्रियुगी नारायण के लिए खून का घूंट था । चुपचाप चले आए ।

दीवारों के कान होते ही हैं । दूसरे दिन बात दफ्तर में पहुँच गयी । आखिर साथियों ने त्रियुगी नारायण को घेरा । ये तुम्हारी बेइज्जती नहीं है हम सबका अपमान है । धूल में मिला आये सारी इज्जत कर्मचारियों की ! त्रियुगी भला आदमी तो है ही, बोला – “ हमारा या हम लोगों का कोई अपमान नहीं हुआ है । दरअसल अपमान तो सोन पापड़ी का हुआ है । हाँ यह बात जरुर है कि मकई राम जी को सोन पापड़ी के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए । वो तो अच्छा है कि सोन पापड़ी में जान नहीं होती है वरना आत्महत्या कर लेती ।“ सारे लोग उनका मुंह देखते रह गए । किस मिटटी का बना है यार ये आदमी !!  बोले – भईया त्रियुगी, मरने वरने की बात मत करो ... रुलाओगे क्या ।“

 

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