शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

कह देना कि छेनू सबके घर आएगा



 


                किरण को बचपन की बात याद  आ आई जब पिता ने ऊँचे स्टूल खड़ा कर कहा था कूद जा बेटा . किरण तैयार नहीं था, उसे ऊंचाई का पता था . यह भी समझता था कि इतनी ऊपर से कूदा तो धुटने टूट जायेंगे . लेकिन सामने पिता थे तो कुछ भरोसा भी था . फिर भी डर था, कहा इतनी उपर से कूदने की हिम्मत नहीं हो रही है पापा, पैर टूट जायेंगे . पिताजी के कहा डर मत मैं हूँ ना, सम्हाल लूंगा . चल कूद, मेरा बेटा शेर है, हिम्मतवाला है, ... ओए शाब्बाश ... वन ... टू ... थ्री ... . और किरण कूद गया . उसके घुटने सचमुच फूट गए . उसने मम्मा को कहा कि पापा ने धोखा दिया और ऊँचे से कुदवा दिया . बचाना सम्हालना तो दूर वे फोटो खींचने में लगे रहे . पापा ने सफाई दी कि हाँ मैंने ऐसा किया लेकिन ये एक लेसन था . कभी किसी पर यकीन नहीं करना चाहे वो अपने को तुम्हारा बाप ही क्यों नहीं बता रहा हो . जितना खतरा तुम्हें लड़ने वाले से है उससे ज्यादा आश्वासन देने वाले से हो सकता है . दूसरे लोग तमाशा देखते हैं, ताली बजाते हैं, जोखिम नहीं उठाते हैं . 
                                 किरण बड़ा हुआ, उसने पंचतंत्र की कहानी पढ़ी . एक भूखा सियार खाने की तलाश में यहाँ वहाँ भटकता हुआ बस्ती में पहुँच गया. भौंकते कुत्ते पीछे पड़े तो एक रंगरेज के आंगन में घुसा . वहां टब में हरा रंग था वह उसमें कूद गया और हरा हो गया . किसी तरह बचता हुआ वह जंगल में आया तो जानवरों ने उसे पहचाना नहीं . सियार ने कहा मैं ईश्वर का खास हूँ, मुझमें अपार शक्ति है . मैं महाशक्ति हूँ . मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा . मेरी शरण में रहो और निर्भय जीवन जियो . कुछ समय बाद जंगल में दूसरे जानवरों ने हमला कर दिया . जानवरों ने सियार को पुकारा तो उसने कहा तुम लोग मोर्चा सम्हालो, लड़ो तुम्हारे साथ मैं हूँ , जीत तुम्हारी ही होगी . कह कर सियार अपनी गुफा में बने बंकर में घुस गया और फिर नहीं निकला . जानवर मरे गए .
                                 पिछले हप्ते फिर जिंदगी ने परीक्षा ली . कुछ लोग आये और घर वालों को बोल गए कि “ किरण आये तो कह देना छेनू आया था .” छेनू के बारे में कौन नहीं जानता है . कहा जाता है कि वह मोहल्ले का मोहल्ला उड़ा देता है . उससे पंगा लेना अपनी फजीहत करवाना है . लेकिन पास पडौसियों ने हूल दी कि डरो मत . तुम अकेले नहीं हो, सारा मोहल्ला साथ में है . छेदी पेलवान मोहल्ले के लीडर बने हुए थे . उनके पास लाठियाँ और तलवारें भी हैं ऐसा सब मानते हैं . उन्होंने खुद आ कर किरण की पीठ पर हाथ रख दिया . बोले छेनू आयेगा तो सब टूट पड़ेंगे और उसकी टाँगे तोड़ के हाथ में दे देंगे . मुगालते में किरण ने ताल ठोंक दी . एक दिन छेनू आ गया . किरण कमर कस कर मैदान में आ खड़ा हुआ, छेनू पर दहाड़ मारी, कुछ जुमले भी कसे . छेनू ने लपक कर उसकी गरदन पकड़ ली और टेंटुआ दबा लिया . उम्मीद के खिलाफ कोई बाहर नहीं आया, सब अपने सीसी कैमरों से लाइव देख रहे थे . छेदी पेलवान के घर पर ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी थी, वे जिम में व्यस्त थे . किरण एक बार फिर घुटने फुडवा चुका था . 

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

जब दो पाए हों मुकाबिल तो चौपाये निकालो




 

                                  लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि कोई कितना भी अमानुष हो इसमें सबको सामान अवसर मिलता है . फिलासफी यह है कि ‘जो बढ़ कर खुद उठा ले हाथ में, मीना उसी का है’ . शुरू शुरू में लोकतंत्र का गणित सबको समझ में नहीं आया था . धीरे धीरे रहस्यों की गुप्त गंगा नीचे उतारी और उसने पूरे जमीन को नम कर दिया . जो आवारा पशु अभी तक यहाँ वहाँ मुँह मारते घूमते थे अचानक राजनीति के पठार में प्रवेश करने लगे . शुरू में उन्होंने नंदी की भूमिका अदा की . उनकी पीठ पर बैठ कर कई ‘भोले’ भगवान होने लगे तो उनका माथा ठनका . उन्हें अपने सींग और पीठ का महत्त्व समझ में आया . उन्हें लगा कि षड्यंत्र हो रहा है . सोचने लगे कि जब असली भोले हम हैं तो भगवानियत के हक़दार हम क्यों नहीं हो सकते !! हमारे सींग, हमारी पीठ, हमारी टाँगें ! तो अपना हक़ हम क्यों नहीं मांगे !? किसी ने कहा है ‘मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे; एक खेत नहीं, एक देश नहीं, सारी दुनिया मांगेंगे . इसके साथ एक शुरुवात हुई . कुछ सांड जिनके सींग खून पिए हुए थे, बाकायदा विधायक और मंत्री बनने में सफल हो गए . उन्होंने ईश्वर के नाम पर शपथ ली कि वे जनता की सेवा करेंगे . कुर्सी उनकी जितनी सेवा करेगी उसे भी वे स्वीकार करेंगे . इसका असर हुआ और जनता में सांड को लेकर चली आ रही छबि में बदलाव हुआ . जो पुलिस डंडा-जूता ले कर पीछे पड़ी रहती थी अब वह गार्ड ऑफ़ ऑनर की ड्यूटी कर रही है . सांड जो आवारा थे अब कहीं सांड-साहब और कहीं सांड-जी हो गए हैं . वे फीते काट रहे हैं,  भाषण दे रहे हैं और वादे कर रहे हैं. देश भर के बेरोजगार, आवारा, मरकने सांडों को इससे प्रेरणा मिली . वे सब राजनीति के बाड़े में घुसने लगे . परिणाम यह हुआ कि इन्सान और इंसाननुमा लोगों ने बाड़े से बाहर हो कर अपनी इज्जत बचाई . मिडिया ने पूछा तो कहा कि राजनीति गन्दी हो गयी है और अब हर किसी के बस की बात नहीं है . सांड साहबों ने प्रेस को बताया कि राजनीति में पढेलिखे और शरीफ लोगों का अब कोई काम नहीं है . ऐसे लोगों को घर बैठा कर पेंशन दी जाएगी और वक्त जरुरत उनसे मार्गदर्शन भी लिया जा सकता है . पार्टी की ओर से उनके जन्मदिन पर एक छोटा सा केक भी भेंट किया जायेगा जिसकी फोटो समाचार पत्रों और टीवी पर दिखाई जाएगी . इस तरह इनके योगदान को याद रखा जायेगा .

                                 चुनाव के दौरान प्रचार के लिए तमाम सांड शहर शहर घूमने लगे . उनकी हुंकार से ध्वनि प्रदूषण हुआ तो चौपाये सांडों को बुरा लगा . गुस्सा आया तो कुछेक ने उनकी सभाओं में दौड़ लगा दी . भाईचारे को भुला कर इधर वालों ने डंडे फटकारे तो चौपायों ने सींग घुमा दिए . कुछ लोग मर भी गए . मजबूरियों का मौसम था . जो गाय को आगे करके वोट मांग रहे थे वो सांडों का विरोध  नहीं कर सकते थे . जल्द ही सन्देश फैला कि दुनिया के सांडों एक हो जाओ . लोकतंत्र के इस खेल में सांडों का मुकाबला सांड कर रहे हैं . सांड सांड की लड़ाई में बागड़ जनता को कहना पड़ रहा है –‘पीटो न सिर अपना, न आंसू निकालो ; जब दो पाए हों मुकाबिल तो चौपाये निकालो’ .

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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

पंचतत्व के झूमते जिन्दा पैकेट




 

             देश समृद्धि की और तेजी से बढ़ रहा है . जो कुछ भी सारा ब्लेक एंड व्हाइट था अब रंगीन हो चुका है . पुरानी सरकारों ने होली को गरीबों का त्योहार घोषित कर रखा था . जब दुनिया करोड़ों भारतियों को होली खेलते देखती है तो माना जाता है कि भारत में गरीबी बहुत है . अब नयी सरकार ने तय किया है कि इस वर्ष से होली अमीरों का त्योहार माना जायेगा . टीवी मिडिया को कह दिया गया है कि बड़े बड़े मिलनसार उधोगपतियों, बुद्धिमान व्यापारियों, राष्ट्रप्रेमी दलालों, चुने हुए फिल्म स्टारों, सम्मानित घूसखोरों वगैरह को होली खेलते दिखाए . बैंकों को भी निर्देश दे दिए हैं कि इस अवसर पर  वे करोड़ों के रंग-लोन इन्हें दें ताकि इस त्यागी तबके को यथोचित सम्मान मिले . मिडिया के जरिये विदेशों में हमारी छबि शानदार होना चाहिए . राजनीति में छायाचित्र ही छबि है .

होली के त्योहार में एक दूसरे पर कीचड़ डालने और गोबर में घसीटने की परंपरा है . इसे उचित                            गरिमा प्रदान की जाएगी. इस काम के लिए सरकार ने बिना किसी भेदभाव के देशभर की छोटी बड़ी पार्टियों को छबि निर्माण के लिए साथ आने को कहा है . इस मामले में पार्टियों का प्रदर्शन पूरे साल अच्छा रहता है . जगह जगह स्टेडियम खाली पड़े हैं . सप्ताह भर पहले वहां गाय भैंसें बांध दी जाएँगी ताकि शुद्ध, विश्वसनीय और ताजा गोबर सभी पार्टियों को उपलब्ध हो सके . गौ-मूत्र और भें-मूत्र के कारण आर्गेनिक कीचड़ भी वहां तैयार हो जायेगा . सारी पार्टियाँ जब गोबर कीचड़ में सन जाएँगी तो किसीकी अलग पहचान नहीं रहेगी . दुनिया लोकतंत्र की इस खूबसूरती को देखेगी . हम कह सकेंगे मतभेदों के बावजूद सारे दल एक हैं . यू नो, विभिन्नता में एकता .

                    ज्यादा सोचने से चिंता को अवसर मिलता है और चिंतित लोग अक्सर सरकार को घूरने लगते हैं . होली मस्ती और गले मिलने  का त्योहार है . नशे से आदमी की सोच-समझ, विचार व विचारधारा, चेतना वगैरह सब स्थगित हो जाते हैं . ज्ञानियों ने भांग को होली की जान बताया है . इसलिए मोहल्ला स्तर पर भांग मुफ्त उपलब्ध करवाई जाएगी . पिया हुआ आदमी हिन्दू मुसलमान नहीं केवल एक शरीर भर रह जाता है . किसी को न महंगाई की याद न बेरोजगारी का दर्द . पंचतत्व के इस झूमते हुए जिन्दा पैकेट से समाज में अमन, शांति और अध्यात्म का सन्देश जाता है . इसलिए नहीं पीने वालों टेक्स लगाया जा सकता है .  कुछ जगहों पर लट्ठमार होली का चलन है . महिलाएं लट्ठ से हुलियारों को पीटती हैं . आदमी भांग के या किसी भी नशे में हो तो उसे पिटने में आनंद आता है . यही काम समय असमय पुलिस भी करती है तो उसका मकसद भी प्रदर्शकारियों को आनंद से सराबोर करने का होता है .  मदिरा मन को रंगीन बनती है . होली पर बाहर जितनी रंगीनी होती है उतनी अन्दर भी होना चाहिए वरना त्योहार अधूरा है . सरकार की सोच गहरी और सूक्ष्म है .  कवि कह गए हैं – “दुनिया वालों किन्तु किसी दिन, आ मदिरालय में देखो ; दिन को होली, रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला”. मदिरा की बढ़ती दुकानों के इस मर्म को समझो लोगों . जिस राज्य में अमीर गरीब सब मस्त हों ; झोपड़ी, महल या गटर का भेद न हो ; सारे चरम आनंद को प्राप्त हों वहीं पर स्वर्ग है . और सरकार वादा है राज्य को स्वर्ग बना देने का .

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पुराना वोटर फूफा होता है.


  

                              पीए ने आते ही साहब के चरण छूने का उपक्रम करते हुए उनके घुटने छुए . साहब ने इस बात को नोट किया कि जैसे जैसे दिन-माह गुजर रहे हैं पीए के हाथ चरण से पिंडली होते हुए घुटनों तक पहुँच गए हैं ! लग रहा है आगे के दिन आशंकाओं से भरे हुए हैं . सम्मान देने वाले नौकर धीरे धीरे गले तक बढ़ सकते हैं . उन्होंने मन ही मन तय किया कि इस तरह के लोगों से सावधान रहना होगा . पीए अब कुछ कहेगा तो उस पर आँख मींच कर अमल करना जोखिम भरा है .

                         पीए ने कमर झुका कर अपने को साहब के कान के नजदीक किया और फुसफुसा कर कहा – “सर बाहर बहुत से लोग आये हुए हैं और आपसे रंग खेलना चाहते हैं . बुला लूँ एक एक करके ?”

                      “रंग गुलाल !! समझते नहीं हो क्या ! हमारे कपडे ख़राब हो जायेंगे . और चेहरा भी . फेयर कलर की स्कीन हो तो  उस पर रंग जल्दी और ज्यादा चढ़ता है . ... ना मना कर दो सबको . कह दो साहब गरीबों के लिए योजना बनाने में व्यस्त हैं .” साहब ने मुंह फेरते हुए कहा .

                       “आपको उनके साथ रंग खेलना चाहिए सर . वोटर हैं , हरेक के घर में पांच -सात वोट तो हैं ही . मना करना ठीक नहीं होगा .” पीए ने समझाया .

                        “अरे पीए .. पिये हो क्या ! वोट तो मैं जबान हिला कर ले लेता हूँ . इसमे रंग खेलने की क्या जरुरत है . वैसे बचपन में मैंने बहुत रंग खेला है . हम छोटी जगह में रहते थे . मैं फाटे कपड़े पहनता था. रंग-गुलाल के पैसे नहीं होते थे . लेकिन मन में अपनी संस्कृति और देश के प्रति प्रेम बहुत था . होली हमारा बड़ा त्योहार है . मेरे आठ दस साथी थे, मैं उनका लीडर था . लीडर बनने का शौक मुझे बचपन से ही रहा है . तो मैंने कहा कि होली तो प्यार और उमंग का त्योहार है . अगर हमारे पास रंग-गुलाल नहीं है तो हम कीचड़ और गोबर से खेलेंगे . तो कीचड़ और गोबर से होली खेलने का अविष्कार मैंने ही क्या है . उस टाइम पे पेटेंट के बारे में मुझे नालेज नहीं था . बाद में ये खेल धीरे धीरे सभी राज्यों में फ़ैल गया . क्योंकि गरीबी बहुत थी, पिछली सरकारों ने गरीबी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया था . तो बचपन की बात और थी अब बात दूसरी है .” साहब ने दिल की बात रखी .

                        “जी सर, ... आपकी यह होली-बाइट कुछ ताजा फोटो के साथ प्रेस को रिलीज कर देता हूँ . लेकिन सर बाहर लोग बढ़ते जा रहे हैं . बहुत से पार्टी के लोग हैं, दो-तीन मंत्री भी हैं . होली खेलने की जिद है सबकी . आप कहें तो कीचड़ गोबर लाने के लिए कह दूँ ?” पीए ने पूछा .

                       “कहा ना ... नहीं खेलेंगे ... अब नहीं खेलते हैं .” साहब ने रूखा सा उत्तर दिया .

                        “सर पुराना वोटर फूफा होता है . आज रूठेगा तो समझ लीजिये चुनाव के समय कसर निकालेगा . थोडा सा रंग डलवा लीजिये फिर चाहे गुलाबजल से नहा लीजियेगा .” पीए ने सुझाया .

                       “ठीक है, ऐसा करो मैं यहाँ ग्लास केबिन में बैठूँगा, तुम उधर खड़े हो जाओ . लोग तुम्हें रंग डालेंगे और मैं हाथ हिला कर  टाटा कर लूँगा . ... देखो ! होली भी नहीं खेली और वोट भी बचा लिया . कैसा रहेगा ?”

                       “अच्छा रहेगा, ... सर लोग अगर रंग लगा कर पैर भी छुएं तो मैं क्या करूँ ?”

                       “नहीं नहीं, पैर तुम नहीं छुआना . उनसे कहना कि पैर साहब के छुओ ... मैं टाटा के साथ आशीर्वाद भी देता रहूँगा .”

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सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

झूठ, सफ़ेद झूठ और राजनीतिक झूठ


 

            ए बी सी डी चार दोस्त, चारों के गले में अलग अलग पार्टी का पट्टा डला हुआ है . दोस्ती अपनी जगह, पट्टा अपनी जगह . आज भी चारों साथ में बैठे पी रहे हैं . चारों में एक एक विशेषता है . ए की आँख खुली है, बी का दिमाग खुला है, सी के हाथ खुले हैं और डी का मुंह खुला है . एक जमाना था जब पार्टियों के कार्यकर्त्ता एक दूसरे को फूटी आँख देखना पसंद नहीं करते थे . लेकिन अब कार्यकर्त्ता भी राजनीति खूब समझता और करता है . ऊपर वाले जब अपने फायदे नुकसान के हिसाब से एक पार्टी से दूसरी पार्टी में कूदते फांदते रहते हैं तो नीचे वाले अपने याराने से दूर क्यों हों . इन्होंने तय किया हुआ है कि पीते समय राजनीति की बातें नहीं करेंगे . अगर उनकी पार्टियों के प्रधान एक दूसरे को गधा या कुत्ता भी बोलेंगे तो उसका असर वे अपने पर नहीं लेंगे . इसी उदार सोच और दोस्ती को ध्यान में रखते हुए उनका तालमेल बना हुआ है .

अभी दूसरा पैग चल रहा था कि एक टीवी पत्रकार आ जुड़ा . अपना पैग शुरू करते हुए बोला – “और बताइए, क्या लगता है आपको, चुनाव में कौन जीतेगा ?”

ये एक खतरनाक वाक्य था . वे समझते थे कि ये दाने डाल कर लड़ने का काम करता है . चारों कुछ नहीं बोले, पापड़ तोड़ते रहे जैसे चुनाव के दौरान पार्टियाँ जाति और धर्म को लेकर समाज को तोड़ते रहे हैं . वह फिर बोला –“मुझे लगता है सरकार जा रही है . बहुमत नहीं मिल रहा है . लोग नाराज है जुमलों और धमकियों से .” 

“देखो यार, हम लोग पीने बैठते हैं तो राजनीति की बाते नहीं करते हैं . आप दूसरी कुछ अच्छी बात करो प्लीज .” ए बोला और बी ने इस बात का समर्थन किया .

“क्या आपका ये मतलब है कि राजनीति अच्छी बात नहीं है ! अगर ये बुरी बात है और आप लोग जानते हैं तो इसमें क्यों पड़े हुए हैं ?” पत्रकार ने स्वाभाविक प्रश्न किया .

“देखिये, हमारा मतलब यह था कि कोई मजेदार बात करो इस समय . नेताओं के चुनावी चूरन चाट चाट कर हर आदमी का पेट ख़राब हो चला है .” सी ने बात साफ की .

“ठीक है, मजेदार बात करते हैं ! अभी किसी ने कहा है कि जो बारहवीं के बाद इंटर में दाखिला लेगा उसे लेपटॉप देंगे .” 

“कैसे आदमी हो यार ! ये मजेदार बात नहीं है, मजेदार बात वो होती है जिसको सुनाने के बाद गुस्सा नहीं आये .” 

“तो ठीक है, ये सुनो . एक करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा . दिव्यांक और वरिष्ठ लोगों को पेंशन मिलेगी . भ्रष्टाचार समाप्त होगा और राज्य में विश्वस्तरीय सेंटर बनायेंगे, पेट्रोल सस्ता होगा, स्कूटी देंगे, गैस देंगे . .... मजा आया ?” 

“नहीं आया . ... यह झूठ है .”

“झूठ नहीं पार्टियों के वादे हैं . यहाँ से वहां तक सच की तरह दर्ज हैं .”

“अपने को अपडेट कीजिये .  झूठ तीन तरह के होते हैं . झूठ, सफ़ेद झूठ और राजनीतिक झूठ . राजनीतिक झूठ सबसे बुरा होता है . लेकिन कोई अदालत इसके खिलाफ सजा नहीं देती है . पार्टी कार्यकर्त्ता होने के नाते हमें इसका सबसे ज्यादा पता होता है .” ए बोला जिसकी ऑंखें  खुली हुई हैं . 

पत्रकार बोला –“ ऐसा है तो आप लोग क्यों नहीं बोलते राजनीतिक झूठ . कोई रोक है ?!”

“नहीं बोलेंगे, हम पार्टी के कार्यकर्त्ता हैं ... और अभी भी इन्सान हैं .” 


मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

टोपी के नीचे क्या है !


 

                      टोपी पहनते ही असर हुआ और उनके मुंह से जुमले झरने लगे . वे चौंक गए, ये क्या हो रहा है ! सोचा डाक्टर को दिखाएँ, लेकिन पहले सीनियर टोपीदार को बताया तो वे बोले –“तुम चिंता मत करो, बस सिस्टम के मजे लो . टोपी के ऊपर हाईकमान और विचारधारानुमा कुछ चीजें होती हैं लेकिन उनका लोड मत लो और भूल जाओ . राजनीति में भूलना जरुरी है और उससे ज्यादा जरूरी है भूलाने में लोगों की मदद करना . जनता अब श्यानी हो गयी है, उसे याद रखने की गन्दी आदत पड़ गयी है . लेकिन फ़िक्र नहीं क्योंकि टोपियों पर भरोसा करने का आलावा उसके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं है . तुम्हें लग सकता है कि टोपी के नीचे तुम हो ! लेकिन वोटर की नजर अलग है . उससे पूछो कभी तो कहेगा टोपी के नीचे लेपटॉप है, या गैस का सिलेंडर है, कोई कहेगा स्कूटी है, किसीको टोपी के नीचे से झांकती नौकरियां दिखती हैं तो किसीको मुफ्त राशन . बोतल-पौवा और नगदी तो हर टोपी के नीचे निकलता है, अब भेड़-बकरियां भी निकलने लगी हैं . धीरे धीरे टोपी का जादू तुम्हें समझ में आ जायेगा .”

                              उसने गौर किया कि बड़े टोपीदार लम्बी लम्बी छोड़ते हैं ! लम्बी छोड़ना राजनीति का नवाचार है . इसी के चलते उसने भी लम्बी छोड़ने की ठानी . वो किसान के सामने गया और बोला मुझसे बेहतर तुम्हें कोई नहीं जानता है . मैं पिछले जनम में बैल था और हल में लग कर खेत जोता करता था . धोबीघाट पर जा कर बोला कि मैं तुम्हारा सुख-दुःख समझता हूँ क्योंकि किसी समय मैं गधा था और एक धोबी के गठ्ठर ढोया करता था . वोटर जानता है कि लम्बी छोड़ रहा है फिर भी उसे अच्छा लगता कि वह गरीब किसान है तो क्या हुआ ये बैल था मेरा . धोबी सोचता कि फिर बोझ उठाएगा, कुछ तो काम आयेगा . लेकिन समाज में सारे गरीब गुरबे नहीं होते हैं . कुछ पढ़े लिखे समझदार भी होते हैं . उनको बत्ती देने में बड़े कौशल और अनुभव की जरुरत होती है . उन्हें विकास और सुनहरे भविष्य का झांसा दिया जाता है . उन्हें बैंक लोन और पासपोर्ट एकसाथ दिखाया जा सकता है . लेकिन घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या !? टोपी के नीचे सारा कुछ दूसरों के लिए ही होगा तो उसे क्या मिलेगा ! यह विचार आते ही उसने टोपी को खंगाला . देख उसके लिए गाड़ी, लाल बत्ती, बंगला और चंदा है . विदेशी बैंकों में खाते और संपत्तियां भी दिख रही हैं . घर परिवार और नाते रिश्तेदारों के गले में ओहदे और नौकरियां लटक रही हैं . वह खुद थाईलेंड और थाई मसाज के लिए ‘ता थाई ता थाई त त ता थाई’ करता दिखा !

                         चमत्कृत हो उसने आसमान की और देखा और कहा “भगवान लम्बी उमर देना, मैं दो सौ साल जीना चाहता हूँ .”

                        आकाशवाणी हुई – ‘तथास्तु’ .

                       उसे विश्वास नहीं हुआ, पूछा – क्या भगवान सचमुच ?! अपने तथास्तु कहा है !?

                      फिर आकाशवाणी हुई, भगवान बोले – “जुमले सिर्फ तुम्हारे ही पास हैं क्या ?”

 

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बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

कार्पोरेट्स के गोडाउन में विकास के भैंसे


 

यहाँ विकास का मतलब डिक्शनरी में दिए गए अर्थ से नहीं है . राजनीति में विकास यमराज के भैंसे की तरह है, जो अपनी पीठ पर किसी को लादे लोकतंत्र की जमीन पर घूमता रहता है . चुनाव के दौरान हर पार्टी अपना एक भैंसा ले कर उस पर सवार रहती है . लेकिन ‘तेरे भैंसे से मेरा भैंसा काला’ सिद्ध करने की शुरुवाती कोशिश अंत तक नहीं पहुँच पाती है . सारे भैंसें खूंटे से बांध कर पार्टियाँ जातिवाद, परिवारवाद, और चिथड़ा-चरित्र के पकौड़े तलने लगती हैं . परोसते हुए, देश का मतदाता समझदार है, मतदाता जागरुक है, मतदाता सब जानता है, मतदाता ही देश का मालिक है जैसे पचासों झूठ के चटपटे जीरावन के साथ अपनी दुकान जमा लेती हैं . उधर मौका मिलते ही विकास के सारे भैंसे कारपोरेट्स अपने गोडाउन में बांध लेते हैं . लोकतंत्र एक सीढी  और चढ़ जाता है .

इधर देश के मालिक यानी जनता जो है लोकतंत्र को लेकर विकसित नजरिया रखने लगी है . बाप दादे नेता का चरित्र और काम देखते थे क्योंकि उस समय होता भी था . उनकी नजर इस पर भी होती थी कि आदमी के बोल बचन कैसे हैं . उसने देश की आजादी के लिए क्या किया है, समाज के किसी काम आया है या नहीं, लोगों के लिए कुछ किया है या नहीं ! लेकिन अब समय बदला है . सोच में भी काफी विकास हो गया है . लोग छोटी छोटी बातों से ऊपर उठ गए हैं . डाकू डाके डाले, हत्याएं करे तो उसका ये काम कानून के खिलाफ हो सकता है . वह अगर गाँव में लड़कियों की शादी करवा दे, गरीब को खाने पहनने के लिए दे दे तो जनता के लिए वह डाकू नहीं भगवान हो जाता है . कानून को अपना काम करना है तो करता रहे, डाकूजी अपना काम करते हैं और गाँव वाले अपना . इसमें किसी को क्या दिक्कत हो सकती है ! देश तभी तरक्की करता है जब सब अपना अपना काम करते रहें . कानून के हाथ कितने लम्बे या छोटे होते हैं ये देखना जनता की जिम्मेदारी में नहीं आता है . गरीब पुराने ज़माने के डाकुओं के लिए भी उतने ही उपयोगी और सुविधाजनक होते थे जितने कि नए ज़माने वालों के लिए होते हैं . लोकतंत्र विशेषज्ञों को भी यह बात समझ में आ गयी है इसलिए गरीबी हटाने के नारे सब देते हैं हटाता कोई नहीं . नेतृत्व करने वाला कितना भी मूर्ख क्यों न हो  जिस डाल पर बैठता है उसी डाल को कभी काटना नहीं चाहेगा .

मिडिया मेन ने अपना माइक धन्ना के मुँह आगे किया तो उसे लगा कि इसमें से विकास निकलेगा . लेकिन सवाल अलग जगह से आया कि “इस बार आप किसको वोट देने वाले हैं ?”

धन्ना को कुछ सूझा नहीं कि क्या बोले . सो दूसरा सवाल आया –“ अच्छा, पिछली बार किसको दिया था ?”

“पिछली बार बोतल को दिया था .”

“अबकी बार भी बोतल को दोगे ?”

“थोड़ा सोचना पड़ेगा, धरवाली कह रही है गैस सिलेंडर को दें, छोरी स्कूटी को देना चाहती है और छोरा लेपटोप को .”

“पार्टी कौन सी पसंद है आपको ?”

“कोई सी भी नहीं . मतलब सभी पसंद हैं . सब एक जैसी हैं जी .”

“रैली में जाते हो ?”

“जाते हैं जी, पांच सौ रूपया और एक टैम का खाना मिलना चाइए .”

“नेता जो भाषण देता है वो नहीं सुनते क्या ?”

“जैसा फालतू भाषण नेता देता है, हम भी वैसा फालतू सुनते हैं .”

“नेता इसलिए भाषण देता है कि आप लोग वोट दें और वह देश की सेवा कर सके.”

“फोकटे भाषण सुन के कौन वोट देता है साहब !?  भाषण में ही दम होता तो फिरी का अनाज, तेल, गैस, पेट्रोल, दारू, नगदी, लेपटॉप, स्कूटी वगैरह की क्या जरुरत थी ?”

“आप लोग लेते हैं इसलिए उनको देना पड़ता है . अगर बुरा है, भ्रष्टाचार है तो आप लेना बंद कर दीजिये . सब ठीक हो जायेगा .”

“वो भी कहीं न कहीं से तो लेते हैं .  जो लेते हैं वही देते हैं . हमारे नहीं लेने से वो लेना बंद कर देंगे क्या !?”

“आप तो इसलिए मना करो कि इससे लोकतंत्र मजबूत होगा .”

“आप पहले ये तो पता करो कि मजबूत लोकतंत्र उन्हें पसंद आयेगा क्या !?”

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