शनिवार, 31 अगस्त 2019

हमारा बैंक, हमारे लोग



इन दिनों जबसे शून्य बेलेन्स वाले खातों की सुविधा हुई है बैंकों में ग्राहकों की आमद में तेजी से इजाफ़ा हुआ है । लेकिन उतनी ही तेजी से ग्राहकों के सम्मान में गिरावट भी दर्ज की जा रही है । किसी जमाने में पढ़ालिखा रसूखदार आदमी बैंक का ग्राहक होता था । बैंक वाले उसकी इज्जत वगैरह भी किया करते थे । इज्जत मतलब बैठने को कुर्सी, और वगैरह में पीने को पानी-चाय तक पूछ लिया करते थे । क्या दिन थे वो भी ! बैंक जाने वाला अपने को सेमी-वीआईपी समझता था । बावन इंची ग्राहक प्रायः छ्प्पन इंची हो कर निकलता था । लोग बैंकों को हमारी बैंक कहा करते थे । कुछ हमारी पर इतना ज़ोर देते थे कि बैंक न हुई पिताश्री की तिजोरी है । एक रिश्ता सा बन जाता था, इतना कि शादी ब्याह के अवसरों पर दूल्हे के साथ बैंक स्टाफ को भी जनवासा नसीब था । आज जमाना मशीनों का है । टाइलेट जितनी जगह में कुबेरचंद खड़े हैं उनके कान में कार्ड डालो और केशवान भव । पुराने सिस्टम से नगद निकालने या पासबुक में इंट्री करवाने जाओ तो स्टाफ की नई पीढ़ी ऐसे घूरती है कि लगता है जैसे बैंक नहीं किसी थाने में घुस आए हैं । वो तो अच्छा है कि जीरो बेलेन्स क्लास में बेइज्जती बर्दाश्त करने का पुश्तैनी धैर्य  होता है वरना एक फटकार में वो फट्ट से कटे पेड़ सा गिर जाता ।   
आज मुझे भी बैंक आना पड़ा है । वजह यह कि खाते को पेन और आधार से लिंक करवाना है । घर से चलते वक्त मन में एक तरह की खुशी थी कि अपने पुराने बैंककर्मी मिलेंगे, न भी मिलेंगे तो अपनी बैंक देखने को मिलेगी, बहुत दिन हो गए ।  इधर आ कर काउंटर पर खड़े दो तीन मिनिट हुए हैं । कुर्सी पर एक मैडम जी हैं जो फिलहाल मोबाइल पर शायद जीडीपी चेक कर रही हैं । अचानक उन्होने सिर उठाया और मोबाइल को कागज से छुपते हुए क्या बात है ! का भाटा मारा ।  मैंने सोचा कि बिना बात कोई क्यों नाराज होगा वो भी अपने सम्मानजनक ग्राहक से ! जरूर उन्हे गलतफहमी हुई है कि मैंने उनका मैसेज पढ़ लिया है । सो स्पष्ट करना जरूरी था, चश्मा दिखाते हुए कहा – मैंने मैसेज नहीं पढ़ा मैडम । इतनी दूर का मैं नहीं पढ़ सकता हूँ ।
“काम क्या है ये बोलो ।“  उन्होने आंखे अंतिम संभावना तक चौड़ी की । पहली नजर में वे लगभग डरावनी लगीं लेकिन दूसरी नजर में सुंदर । मैंने पहली नजर को शॉटअप कहा और दूसरी नजर को कैरिओन । कहा - “ जी , बैंक से मेसेज आया है कि पेन और आधार से खाता लिंक करवाइए । “
“ पासबुक लाये हो ?”
“ जी, ये रही ।“
“ इसमे फोटो नहीं है ! कैसे पता चलेगा कि खाता तुम्हारा है ?”
“ हस्ताक्षर देख लीजिये, आप हस्ताक्षर देख के चेक भी तो पास करती हैं ।“
“ऐसे नहीं चलेगा, घर की बैंक नहीं है । पासबुक में फोटो लगा कर सील लगवाओ । “
“हओ, फोटो लगा लूँगा अगली बार । आज ये पेन और आधार ......
“ ये पड़े हैं फार्म , उधर बैठ कर भरो ।“ मुझे सुनाई दिया उधर बैठ कर मरो । बावजूद इसके मुंह से निकला जी और फॉर्म के साथ किनारे हो लिए । तजुर्बे से कह सकता हूँ कि मैडम के पति कवि होंगे । पत्नी अगर क्रूर, क्रोधी और अंगार उगलने वाली हो तो कोई भी साहित्य में अपना करियर बना सकता है ।
फार्म भर कर दूसरे महोदय के पास गया, सोचा ये ले लें तो अच्छा हो मैडम से मधुर संवाद की सजा से बचेंगे । लेकिन उन्होने मना कर दिया । मजबूरन मैडम के पास जाना पड़ा ।
“ फार्म का क्या करूंगी मैं !! पेन और आधार की फोटोकोपी लगा के लाओ  । “
“ दोनों फोटो कॉपी लगी है । “ मैंने उन्हें दूसरी नजर से देखते हुए कहा ।
‘‘ ओरिजनल कहाँ हैं ! ओरिजनल बताओ  । “
“ ओरिजनल तो नहीं लाया हूँ ।  सब जगह फोटो कॉपी ही लगती है । मोबाइल पर इमेज दिखा दूँ क्या ?”
“ ओरिजनल के बिना नहीं होगा ।“ कह कर उन्होने फार्म लगभग फैक दिया । “
“ ठीक है कल ओरिजनल ले कर आता हूँ ...”
“कल नहीं परसों आना । “
“ठीक है परसों आ जाऊंगा …. कल बैंक बंद है क्या ?! “
 नहीं ..... परसों मैं छुट्टी पर हूँ । “
......

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

भ्रष्टाचार खत्म हो गया है



“देखिए जी, लेन देन की कोई बात नहीं करें । भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो गया है । आप निश्चिंत रहें, महकमें में आपसे कोई रिश्वत नहीं माँगेगा  मुस्कराते हुए गोवर्धन बाबू ने कुर्सी की ओर इशारा करते हुए बैठने की अनुमति प्रदान की । दो साल पहले इन्हीं से काम पड़ा था तो हजार रुपए लिए बगैर फाइल को छूआ तक नहीं था इन्होंने । और तेवर तो ऐसे थे मानो सरयू पार वाले समधी हों । खैर, बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई । आज बात कर रहे हैं तो अपने से लग रहे हैं । कहा – “लेकिन चपरासी ने अभी दो सौ रुपए लिए मुझसे, तब आई फाइल आपके टेबल पर !!”
“गोपाल ने लिए होंगे । दरअसल वो रिश्वत नहीं है । भ्रष्टाचार पूरी तरह से खत्म हो गया है ।  देखिए जगह जगह तख्ती भी लगी है कि रिश्वत देना और लेना मना है । उसने बताया नहीं कि दो सौ रुपए गऊ चारे के लिए हैं !?  .... यू नो, गाय हमारी माता है । निबंध तो लिखे होंगे आपने पाँचवी कक्षा में ? ... कहाँ तक पढ़े हैं ?”
“गऊ माता तक ... मतलब समझिए पाँचवी तक” ।
“फिर क्या दिक्कत है ! धरम का काम है । जहाँ भी मौका मिले पुण्य संचय करना चाहिए । पता नहीं कब बुलावा आ जाए । ऊपरवाला भी टेबल कुर्सी ले कर बैठा है । चलिए ... बताइये क्या काम है ?”
“छोटा सा काम है जी । एक आर्डर रुका हुआ है । पता चला कि फाइल आगे नहीं जा रही है । आपके यहाँ से ओके हो जाए तो ...”
“बिलकुल हो जाएगा । कागज पूरे हैं आपके ...मतलब फोर्मेलिटी कंप्लीट है । बस भगवान चाहेगा तो कोई दिक्कत नहीं है । ... भगवान ...” ।
“बड़ी मेहरबानी आपकी” । कह कर हाथ जोड़ दिए ।
“अरे हाथ मत जोड़िए, हाथ जोड़ने की जरूरत नहीं है । लोग देखेंगे तो समझेंगे कि रिश्वत मांग रहा हूँ । भ्रष्टाचार एकदम खत्म हो गया है । भगवान उधर हैं ( काली लकड़ी के छोटे से सुंदर मंदिर में गऊ सहित बांसुरी बजाते भगवान मौजूद थे ) वहाँ पाँच सौ के तीन नोट चढ़ा दीजिए । हमने भी पाँच गौएं पाल रखी हैं । समय की मांग है कि गौ पालन में सब योगदान करें । धरम का काम है, .... वैसे कोई जबर्दस्ती नहीं है । आपकी फाइल यहाँ सुरक्षित है जब गो-प्रेम जागृत हो तब चले आना, ... जल्दी नहीं है” । कह कर उन्होंने फाइल बंद की ।
“गो-प्रेम जागृत है जी, ... भला ऐसा कौन है जो गो-प्रेमी नहीं है आज के समय में” । उसने नोट चढ़ा दिए । गोवर्धन जी ने ड्राज से निकाल कर कुछ दाने शकर के हाथ पर धर दिए । बोले “प्रसाद है, लीजिए । मन प्रसन्न होना चाहिए, आस्था बड़ी चीज है, संसार तो आनी जानी है । ... गऊ का महत्व जानते हो ना । पुंछ पकड़ लो तो वैतरणी पार हो जाती है । फाइल की भला क्या औकात कि एक टेबल पर अटकी रहे ! .... लीजिए हो गया आपका काम । .... जय गऊ माता । ” ।
“धन्यवाद आपका । अब बड़े साहब को तो ... मेरा मतलब है कि पुण्य संचय उधर भी करना पड़ेगा ? कोई मंदिर है क्या उनके कक्ष में भी ?”
“है क्यों नहीं ! आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए धरम करम से मुक्त नहीं है । वे एक गोशाला के ट्रस्टी हैं ।” 
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