शुक्रवार, 28 अगस्त 2020

ये रात अजब मतवारी है !

 



लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, उस घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है । कविता की पंक्तियाँ देखते ही शिक्षा मंत्री की त्योरियां  चढ़ गईं । इसलिए नहीं कि उन्हें कविता समझ में आ गई, बल्कि इसलिए कि इसमें हार्स ट्रेडिंग के खुलासे की बू आ रही है । राजनीति में सब कुछ उजागर नहीं होना चाहिए वरना धंधे की इमेज खराब होती है ।  कल को बच्चे इसे पढ़ेंगे तो बगावती होंगे और मांग करेंगे कि मीडिया घोड़ों से लोहे का स्वाद ही नहीं लोहे का भाव भी पूछे । सरकार को पाँच साल आगे देखते हुए चलना पड़ता है । घोड़ों से सिर्फ ट्रेडिंग के समय बात की जाती है वो भी बंद कमरों में । उन्हें पाँच सितारा में बैठा कर इतना पिलाया खिलाया जाता है कि लोकतंत्र के ये अश्व बारात के घोड़े हो जाते हैं । जनता की तरफ से कोई शिकायत नहीं है । जनता समझदार और सहिष्णु है, संत शिक्षा में  रची पगी हुई है उसे चाहे कितनी ही बार ठगो वो कुछ नहीं बोलती है । संत कह गए हैं “कबीरा आप ठगाइए और न ठगिए कोय, आप ठगाय सुख ऊपजे, और ठगै दुःख होय”। इससे सुंदर और क्या बात हो सकती है हमारे लोकतन्त्र में !!  सत्ता किसी की भी हो जनता के सुख में ही सरकार का सुख है । कबीर जन कवि थे तो ज़िम्मेदारी जनता की ही बनती  है कि वो श्रद्धा पूर्वक हर मौसम में सुखी रहे ।

आपको लग रहा होगा कि जनता भोलीभाली लल्लू टाइप है । तो जान लो कि लोग मूर्ख नहीं हैं जो अपने खच्चरों को युद्ध का घोड़ा बना कर भेजते रहे हैं । वे अच्छी तरह जानते हैं कि राजनीति एक युद्ध है और युद्ध में सब जायज होता है, यहाँ तक कि खच्चर भी । अब आगे वालों पर है कि वे वक्त जरूरत के हिसाब से बाजिब कीमत दे कर वे उन्हें गधा या बैल बनाते हैं । ढोने के मामले में गधों की अहमियत कम नहीं है । जब एक शाह ने दिल्ली से दौलतबाद राजधानी शिफ्ट की थी तो किसकी पीठ पर गई थी सरकार !! और दस साल बाद वापस दिल्ली भी उसी विश्वास के साथ किसकी पीठ पर लौटे थे !? इतिहास में बकायदा दर्ज हैं गधे भी, नाम भले ही बादशाह हो ।

        जिम्मेदारों ने शिक्षा मंत्री को पहले ठंडा पानी और बाद में बादाम शर्बत पिलाया । इरादा यह था कि गुस्सा ठंडा हो और बुद्धि को बल मिले यदि हो । कहा – सर इस कविता में सब कुछ सिंबोलीक है यानी प्रतिकात्मक । ये घोड़ा उस तरह का घोड़ा नहीं है जिस तरह का आप सोच रहे हैं । ये घोड़ा है पर नहीं है । जो नहीं है वो घोड़ा है । समझिए घोड़ा बिरादरी में यह पपुवा है । और लगाम भी लगाम नहीं है लोहे के चने हैं जो पपुआ बरसों से चबा रहा है । चबा क्या रहा है हुजूर, सच तो यह है कि आप ही लोग चबवा रहे हैं । कवि जब कह रहा है कि इससे लोहे का स्वाद पूछिए तो असल में आप लोगों की प्रशस्ति गा रहा है । कवि जो है इशारों में अपनी बात कह रहा है । वो एक भजन है ना .... समझने वाले समझ गए ना समझे वो अनाड़ी है ।

            “ये क्या बके जा रहे हो बे !!  हम क्या कोई दूसरे ग्रह से आए हैं !! ... एक तो वो भजन नहीं है । दूसरा उसमें तो वो चाँद खिला वो तारे हँसे, ये रात अजब मतवारी है  था ! उसमें घोड़ा कहाँ था ? याद है हमें अच्छी तरह से । ऐसे ही नहीं बन गए है प्रदेश के शिक्षा मंत्री !! मूरख समझते हो !” शिक्षा मंत्री भड़के ।

           जिम्मेदार हाथ जोड़ कर बोला – “सॉरी सर । हमारी कहाँ औकात समझने कहने की । आपकी कृपा बनी रहे बस, घोड़े को लोहे और स्वाद सहित अभी हाँक दिया जाएगा । आदेश करें हुजूर ।“

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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

हवा हवा हवेली

 

बड़े ठाकुर के पास कोई चारा नहीं था । लोगों को बुलवा कर साक्षी बनाने के लिए बहुत डरते डरते निर्णय लिया । अंत समय निकट आ चुका था और जैसा कि परंपरा है अपना सब कुछ पुत्र को सौंपना था । उनकी जान पुश्तैनी हवेली में बसी थी ।  हवेली में बहुत सी कीमती चीजें जड़ी और सजी पड़ीं थीं । बोले- “ सपूतसिंह अंत समय करीब है, मुझे जाना पड़ेगा । इन तमाम रिश्तेदारों, पंचों और गाँव वालों के सामने कसम खा कर कहो कि तुम हवेली की रक्षा करोगे और उसे कभी भी बिकने नहीं दोगे ।“

सपूतसिंह ने ऊंची आवाज में कहा –“ मैं कसम खाता हूँ की चाहे जो भी हो जाए हवेली नहीं बिकने दूंगा । अब आप निश्चिंत हो कर आंखे मूँद लें पिताजी । इस समय मुहूर्त बहुत अच्छा है, हम सब प्रार्थना करते हैं कि आपको स्वर्ग मिले ।“

सपूतसिंह ने अपने विश्वसनीय साथियों की ओर देखा । उन्होने सहमति में आँखें झपकाई । कुछ कागजों पर अंगूठा लगवाना शेष है । लेकिन शव से सहयोग मिल जाएगा इसमें उन्हें संदेह नहीं है ।

न चाहते हुए भी बड़े ठाकुर चल बसे । खबर फैली और लोग जमा होने लगे । पुराने आदमी, पुरानी परम्पराएँ । बैठने के लिए बड़े हाल से फर्नीचर हटाया गया और कुछ बड़ा सामान भी । जो बाद में कहाँ गया पता नहीं चला । ... दिन बीतने लगे और एक एक करके हवेली का समान भी बिकता गया । लोगों को लक्षण अच्छे नहीं लगे तो कुछ ने चिट्ठी लिख कर याद दिलाया कि ठाकुर साहब की इच्छा थी कि तुम हवेली को सम्हालोगे ... लेकिन ... खाली होती जा रही है हवेली !

“आप लोग निश्चिंत रहिए, मैं हवेली को बिकने नहीं दूंगा ।“ सपूतसिंह ने दृढ़ शब्दों में आँखें गोल करते हुए कहा ।

कुछ लोगों ने आपत्ति ली कि - “काफी सारा फर्नीचर दिख नहीं रहा है ! घोड़े-बग्घी बिक गए हैं ! फोन और बिजली भी कटवा दी हैं !!  गौशाला खाली पड़ी है ! .... आखिर माजरा क्या है ? तुमने तो कसम खाई थी .... “

“जो गिना रहे हैं आप लोग, उनके बारे में मैंने कोई कसम नहीं खाई थी । मैंने कहा था हवेली नहीं बिकने दूंगा । वो आज भी कहता हूँ, हवेली नहीं बिकने दूंगा चाहे एक एक चीज बिक जाए । आप बेफिक्र रहें, हवेली हमेशा रहेगी ।“

“अरे !! ... हवेली कैसे रहेगी ! सुना है आपने हवेली के कीमती दरवाजे और  खिड़कियों का भी सौदा कर दिया है ! “

“ हवेली में चोरी जाने जैसा कुछ भी नहीं है तो दरवाजों का क्या काम ?”

“ परदे और झडफानूस गए !?

“हाँ .... कालीन और फर्श भी । .... तो ?” सपूतसिंह गुर्राया ।

“तो ...  हवेली में बचेगा क्या ?! “

“हवेली में कुछ नहीं बचेगा तब भी क्या वो हवेली नहीं रहेगी । हवेली हमारा इतिहास है जो हमेशा रहेगा, हवेली हमारी संस्कृति,  हमारी भौगोलिक पहचान है । वो हमेशा कायम रहेगी । बाकी चीजें तो आनी जानी हैं, आती रहेंगी जाती रहेंगी ।“

स्वतन्त्रता दिवस के दिन लोगों ने देखा कि हर साल की तरह इस बार भी हवेली पर ध्वज फहरा रहा है ।  नीचे अपने लोगों में घिरे सपूतसिंह तमाम इंचों वाली छाती चौड़ी किए बता रहे हैं कि - लोग चाहे जो कहें कहते रहें, मैं हवेली नहीं बिकने दूंगा ।

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खुशी एक हवा


गुप्तचरों ने सूचना दी कि जनाधार घट रहा है । सुन कर धराधीश बोले – “लोकतन्त्र में जनाधार एक भ्रम है,  और उससे भी बड़ा भ्रम है दल । जिन्हें शासन करना आता है वे जनाधार और दलों की परवाह नहीं करते । फिर भी आत्मसंतोष के लिए जरूरी है कि राज्य का हर आदमी खुश हो ।“ 

उन्होने प्रचार माध्यमों से प्रजा को संदेश दिया कि “हम प्रजा को खुश देखना चाहते हैं इसलिए जिनके घर में कोई गमी हुई हो उनको छोड़ कर बाकी लोग आगामी आदेश तक खुश रहें ।“  इतना सुनते ही तमाम लोगों में खुश होने की होड लग गई ।  लड्डू बंटे , कुछ ढ़ोल पर नाचे, जुलूस निकले, नारे लगे । खुशी चरम पर पहुंची तो कुछ ने पत्थर फ़ेंके और कुछ ने आग लगाई । दिन गुजरा तो रात में सोते हुए भी खुश हुए । दो चार दिनों में ही उनका ध्यान इस बात पर गया कि कौन लोग खुश नहीं हुए । नाखुश लोग राज्य का माहौल बिगड़ सकते हैं । कार्यकर्ताओं ने मोहल्ला स्तर पर सूची बनाई । पता लगा कि ज़्यादातर लोग खुश नहीं हैं । पहले भी जो खुश नहीं थे उनके यहाँ छापे पड़े थे । लेकिन ये आम लोग हैं इनके यहाँ छापे पड़े भी तो छुपने छुपाने की जगह से छिपकली-काकरोच ही बरामद होंगे । इसलिए सिफ़ारिश हुई कि खुशी का कानून बनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है । हालांकि धराधीश ने कहा था कि विकास करेंगे ताकि लोग खुश हों । मीडिया वालों ने बात समझे बगैर इसको चला दिया । दरअसल उनका मतलब था कि लोग खुश हों ताकि वे विकास कर सकें । लेकिन कोई बात नहीं, भूलें होती ही हैं सुधार करने के लिए ।  

सख्ती हुई तो अब हर कोई खुश है । जिसने खुश न रहने की कसम खा रखी थी वो भी बकायदा खुश है । खुशी एक हवा है जो सबसे ऊपर चल रही है । उससे नीचे, यानी थोड़ा नीचे कोरोना चल रहा है । थोड़ा और नीचे चलें तो पता चलेगा कि मंदी भी चल रही है । उसी के साथ साथ बेरोजगारी भी चल रही है । और नीचे मत उतरियेगा, भुखमरी और आत्महत्याएँ वगैरह भी चल रही हैं, लेकिन वो आपसे देखी नहीं जाएंगी । आप तो ऊपर देखिए, ऊपर कि हवा देखिए, खुशी देखिए । तबीयत जो है हाथों हाथ मस्त हो जाएगी । हवा ही सब कुछ है । हवा को प्राण वायु कहा गया है । धराधीश भी यही मानते हैं, प्रजा को भी मानना चाहिये । अपने अंदर झाँकने की जरूरत नहीं है । कबीर कह गए हैं – बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ; जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोय । मतलब ये कि जितनी भी बुराई है, अपने अंदर है । बाहर हवा है खुशी की । उसके साथ चलो । खुशी के बिना जीवन मृत्यु के समान है । लोग गा-गा कर कह गए हैं कि अपने लिये जिये तो क्या जिये; तू जी ए दिल, जमाने के लिए । इसी तरह दूसरों के लिये खुश होना असली खुशी है । धराधीश के लिये खुश होना सच्ची देशभक्ति है । जो खुश नहीं हो सकते उनके जीने का कोई अर्थ नहीं है । समझ रहे हैं ना आप लोग । धरती माँ है और माँ के ऊपर जो भी बोझ हो उसे कम कर देना सुपुत्रों का कर्तव्य है । कोई दिक्कत हो तो अभी बताएं । खुश होना सीखना पड़ता है, सिखा देंगे । ये अपने आप खुश होने वाली खुशी से अलग है । इसमें खुश दिखने का महत्व है । हर समय रुदन का दास केपिटल लिए फलफूल रही खुशी में खलल डालना देशद्रोह है । जितनी जल्दी सीखोगे उतनी जल्दी देशभक्त बनोगे । जय हो ।

 

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