बड़े ठाकुर के पास कोई चारा नहीं था । लोगों को बुलवा कर साक्षी बनाने के लिए बहुत डरते डरते निर्णय लिया । अंत समय निकट आ चुका था और जैसा कि परंपरा है अपना सब कुछ पुत्र को सौंपना था । उनकी जान पुश्तैनी हवेली में बसी थी । हवेली में बहुत सी कीमती चीजें जड़ी और सजी पड़ीं थीं । बोले- “ सपूतसिंह अंत समय करीब है, मुझे जाना पड़ेगा । इन तमाम रिश्तेदारों, पंचों और गाँव वालों के सामने कसम खा कर कहो कि तुम हवेली की रक्षा करोगे और उसे कभी भी बिकने नहीं दोगे ।“
सपूतसिंह
ने ऊंची आवाज में कहा –“ मैं कसम खाता हूँ की चाहे जो भी हो जाए हवेली नहीं बिकने
दूंगा । अब आप निश्चिंत हो कर आंखे मूँद लें पिताजी । इस समय मुहूर्त बहुत अच्छा
है, हम सब प्रार्थना करते हैं कि आपको स्वर्ग मिले ।“
सपूतसिंह
ने अपने विश्वसनीय साथियों की ओर देखा । उन्होने सहमति में आँखें झपकाई । कुछ
कागजों पर अंगूठा लगवाना शेष है । लेकिन शव से सहयोग मिल जाएगा इसमें उन्हें संदेह
नहीं है ।
न
चाहते हुए भी बड़े ठाकुर चल बसे । खबर फैली और लोग जमा होने लगे । पुराने आदमी, पुरानी परम्पराएँ । बैठने के लिए बड़े हाल से फर्नीचर हटाया गया और कुछ बड़ा
सामान भी । जो बाद में कहाँ गया पता नहीं चला । ... दिन बीतने लगे और एक एक करके
हवेली का समान भी बिकता गया । लोगों को लक्षण अच्छे नहीं लगे तो कुछ ने चिट्ठी लिख
कर याद दिलाया कि ठाकुर साहब की इच्छा थी कि तुम हवेली को सम्हालोगे ... लेकिन ...
खाली होती जा रही है हवेली !
“आप
लोग निश्चिंत रहिए, मैं हवेली को बिकने
नहीं दूंगा ।“ सपूतसिंह ने दृढ़ शब्दों में आँखें गोल करते हुए कहा ।
कुछ
लोगों ने आपत्ति ली कि - “काफी सारा फर्नीचर दिख नहीं रहा है ! घोड़े-बग्घी बिक गए
हैं ! फोन और बिजली भी कटवा दी हैं !! गौशाला
खाली पड़ी है ! .... आखिर माजरा क्या है ?
तुमने तो कसम खाई थी .... “
“जो
गिना रहे हैं आप लोग, उनके बारे में
मैंने कोई कसम नहीं खाई थी । मैंने कहा था हवेली नहीं बिकने दूंगा । वो आज भी कहता
हूँ, हवेली नहीं बिकने दूंगा चाहे एक एक चीज बिक जाए । आप
बेफिक्र रहें, हवेली हमेशा रहेगी ।“
“अरे
!! ... हवेली कैसे रहेगी ! सुना है आपने हवेली के कीमती दरवाजे और खिड़कियों का भी सौदा कर दिया है ! “
“
हवेली में चोरी जाने जैसा कुछ भी नहीं है तो दरवाजों का क्या काम ?”
“
परदे और झडफानूस गए !? ”
“हाँ
.... कालीन और फर्श भी । .... तो ?” सपूतसिंह
गुर्राया ।
“तो
... हवेली में बचेगा क्या ?! “
“हवेली
में कुछ नहीं बचेगा तब भी क्या वो हवेली नहीं रहेगी । हवेली हमारा इतिहास है जो हमेशा
रहेगा, हवेली हमारी संस्कृति, हमारी भौगोलिक पहचान है । वो हमेशा कायम रहेगी ।
बाकी चीजें तो आनी जानी हैं, आती रहेंगी जाती रहेंगी ।“
स्वतन्त्रता
दिवस के दिन लोगों ने देखा कि हर साल की तरह इस बार भी हवेली पर ध्वज फहरा रहा है
। नीचे अपने लोगों में घिरे सपूतसिंह तमाम
इंचों वाली छाती चौड़ी किए बता रहे हैं कि - लोग चाहे जो कहें कहते रहें, मैं हवेली नहीं बिकने दूंगा ।
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