शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

सोते हुए जागता देश !



नए वर्ष में मैंने संकल्प लिया कि सुबह देर तक सोया करूंगा । इसके दो कारण हैं ,पहला तो यह कि मैं गैर राजनीतिक आदमी हूँ सो अपने लिए संकल्प वही करना चाहता हूँ जिसे पूरा कर पाऊँ । सुना है प्रधान मंत्री जी मात्र चार घंटे की नींद लेते हैं और बीस घंटे काम में लगे रहते हैं !! बताइये ! कौन समझदार आदमी इनसे प्रेरणा ले कर मुसीबत मोल लेगा ? सरकारी महकमों तक में अगर छापामारी की जाए तो पता चलेगा कि ज़्यादातर लोग चार घंटे से अधिक काम करना बड़े संघर्ष से प्राप्त हुई भारत की आज़ादी का अपमान समझते हैं । लोकतन्त्र है भई, वोट दिया है खनकता हुआ, क्या कहते हैं मंहगा वाला यानी मूल्यवान । ऐसे में मनमर्जी की नींद लेने का अधिकार तो बनता ही है । सरकारें जब कर्जा माफ कर रही हैं, मुफ्त इलाज करवा रही हैं, खाना-दाना दे रही हैं, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और ब्याह शादी तक करवा रही हैं, बैंके जबरिया लोन दे रहीं हैं पकड़ पकड़ के तो रोना किस बात का ! और भला कोई जागे भी तो क्यों !? जनता सोई रहे पालने में तो लोरियों का टोटा है क्या ?  प्रतिस्पर्धा सी लगी हुई है, एक कुंभकरण योजना देता है तो दूसरा महा कुंभकरण योजना का वादा करता है । पाठ्यक्रम में बच्चे पढ़ेंगे आलू से सोना बनाओ । अगर लोग सोएँगे नहीं तो सपने कैसे देखेंगे ? सपनों का ऐसा है कि देखने वालों का भविष्य तय करें न करें पर दिखने वालों का अवश्य तय करते हैं । मैं एक सच्चा नागरिक, हवा का रुख समझता हूँ तो बुरा क्या है अगर देर तक सोते रहने का संकल्प ले लूँ !
दूसरा कारण कबीर हैं, कह गए हैं  सुखिया सब संसार, खाबै और सोवै । दुखिया दास कबीर, जागै और रोवै । आप बताइये, रोने की शर्त पर जागना कौन चाहेगा । जागना जोखिम भरा है, जागने में डर बहुत है, माँ बच्चों को कहती है, सो जा नहीं तो गब्बरसिंग आ जाएगा  और समझदार बच्चा सो जाता है, माँ भी सो जाती है, दोनों को सोता देख मरद बेफिक्री से पड़ौस में कहीं निकाल जाता है । आज़ादी समझो कि मुकम्मल हो जाती है । मरदों की जिम्मेदारिया बड़ी होती हैं इसमें सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है । कर्मयोगी केवल कर्म करते हैं और प्रायः फल का संज्ञान नहीं लेते हैं । लेकिन दुनिया का क्या करोगे भाई ! दूसरे के गिरेबान में झाँकने का चलन जो है ।
चचा जल्दी उठ गए, सोचा सुबह की हवाखोरी कर लें । जाते हुये साल ने बताया कि चीन में बीते साल में पचपन लाख बच्चे पैदा हुए । चचा ने सुना तो मुंह में भरा पान मसाला जिसमें महकती बुड्ढा तंबाकू भी थी, फ़चाक  से थूक दी । बोले – इन चीनियों ने तो पूरा मार्केट कवर कर रखा है । पता नहीं बच्चे भी फेक्टरी प्रोडक्ट हैं या इंसानी !! पचपन लाख बच्चे !! शरम नहीं आई कमबख्तों को !! आबादी में नंबर वन हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि दुनिया पर रहम न करने की छूट है इनको । नामाकूल, नामुराद, जाहिल कहीं के । दुनिया कहाँ जा रही है और ये बेशऊर कहाँ जा रहे हैं !!
फटकार सुन जाता हुआ साल सहम गया । धीरे से बोला भारत में भी हुई है बच्चों की आमद । हकबकाए चचा जरा देर के लिए गफला गए, बोले– बको । जाता साल बोला– भारत में बीते साल एक करोड़ पैंतालीस लाख बच्चे पैदा हुए हैं ।
चचा के मुंह में थूकने के लिए कुछ नहीं था । वे समझ नहीं पा रहे थे कि देश सो रहा है या कि जाग रहा है !
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