गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

मुसीबत में नेकरिया दोस्त लल्लू बाबू


 


देखो भाई आगे कोई बातचीत करें उससे पहले एक बात साफ हो जाए, समझिये कि वैधानिक चेतावनी है । आजकल किसी के हाल भी पूछ लीजिये तो वह राजनीतिक माहौल बताने लगता है । कुछ दिन हुए डाक्टर राउंड  पर आये और मरीज से पूछा – कैसा लग रहा है आज ? मरीज दिनभर पड़े पड़े टीवी से खुरक ले रहा था, बोला अच्छा लग रहा है, आएगा तो मोदी ।  डाक्टर ने याद दिलाया कि – अपने हाल बताइए, आप बीमार हैं । वे बोले -  मैं नहीं विपक्ष बीमार है , मैं तो देशभक्त हूँ, वोटर हूँ और बड़े मजे में हूँ ।  बाज़ार में आटा-दाल महंगे होने की शिकायत कीजिये तो दुकान वाला बोलता है पाकिस्तान में दस गुना ज्यादा महंगाई है । वह अगले वाक्य में पाकिस्तान जाने का कहे इससे पहले ग्राहक आटा तुलवा लेने में ही भलाई समझता है ।  देश को जब मिलेगा तब मिलेगा, इधर घर में जो तानाशाह है उसका सात जन्मों तक कोई इलाज नहीं है । इनका एनआरसी हर समय लागू रहता है । महीनों तक पीछे पड़ी रहीं कि कसम खा कर बताओ पिछली बार किसको वोट दिया था ! बताता हूँ, कसम खाता हूँ लेकिन भरोसा कहाँ से लाऊं ये गंगाराम को समझ में न आये ! इस बार कह रहीं हैं कि गंगाजल हाथ में ले कर जाना और झूठ मत बोलना कि वोट किसको दे कर आये हो !  

खैर छोडिये, हम तिनके, हवा के विपरीत भला कैसे जा सकते हैं । बात लल्लू बाबू की बताना थी ।  लल्लू बाबू हमारे बचपन के दोस्त हैं, करीब करीब नेकरिया ।  करीब करीब इसलिए कि हम दो थे लेकिन हमारे बीच एक ही लाल नेकर थी । नदी में नहाते वक्त जो बाहर होता था वह पहन लेता था । पानी के अन्दर वैसे भी नेकर का क्या काम ! डुबकी मारते ही मछलियाँ शरम के मारे अपनी आम्मा की ओट हो जाती थीं । लल्लू केरेक्टर का लूज नहीं था लेकिन गृहदशा ऐसी थी कि जिंदगी भर मछलियां उसके पास नहीं आयीं, उससे डरती रहीं । एक दो बार ऐसा हुआ कि लगा जैसे हाथ लग गई  । लेकिन दूसरे ही पल फट्ट  से फिसल गयी । मछली के मामले में आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ है । धीरे धीरे हम बड़े होने लगे और लाल नेकर छोटी होती गयी । बाद में उसके पांयचों से दो सुन्दर थैलियाँ बनी जिसमें अम्मा पूजा सामग्री रखने लगीं । आज भी पूजाघर में उन्हें देख कर नदी याद आ जाती है ।

हम और बड़े हुए, कालेज के दिनों की बात है । लल्लू बाबू को किस्मत पर उतना ही भरोसा था जितना लोगों को सरकार पर होता है । सोचा कि शादी में जो भी मिल जाएगी उसके साथ निर्वाह कर लेंगे, वो पारो बने या चंद्रमुखी, बना लूँगा, अपने को क्या !  देवदास की तरह पी पी कर जिन्दगी बर्बाद नहीं करूँगा । उसे मालूम था कि मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है ; हाथ लगाओ डर जाएगी, बाहर निकालोगे मर जाएगी । कान घंटियों की तरह बजाते रहते – मैंने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन चुन ...  । शुरू शुरू में उसे लगा कि मछली ही तो है । सबको यही लगता है जो जो फंसते हैं, कोई नयी बात नहीं है । कुछ साल गुजरे, लल्लू की मछली मगरमच्छ होने लगी । लल्लू अंध-प्रेमी, उसने सोचा कि भाग्य में मगरमच्छ लिखी है तो वो भी चलेगी । अपने को क्या खतरा ! मगरमच्छ होने के बावजूद करवा चौथ का व्रत तो उसे ही रखना है  । बताने वाले बता गए लम्बी, मोटी, काली, नाटी के क्या क्या फायदे हैं । लेकिन मगरमच्छ हो कर भी बहुत सुन्दर लगती है यह वही बता सकता है जिसके नाम का सिन्दूर वह मांग में भरती है । खासकर जब वह अपने असंख्य दांतों के जरिये मुस्कराती हैं तो वातावरण में मानो कैमरों की तमाम लाईट चमक उठती है । एक चुटकी सिन्दूर की कीमत किसी ऐरे गैरे रमेश बाबू को भला कैसे पता चल सकती है !! उसके नाम का मंगलसूत्र भी मगरमच्छ ने गले में डाल रखा है । लल्लू बाबू की आँखें खुल रही हैं और अब वह छूटना चाहता है । लेकिन आजकल वह बोल रही है – ‘तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी गैर को चाहोगे तो मुश्किल होगी’ ।

मशविरे के लिए लल्लू बाबू बैठे हैं । बताइए इस मामले में हम क्या मदद कर सकते हैं ! किसी ज़माने में नेकर देकर उनकी इज्जत बचाई , लेकिन तब की बात अलग थी । अब नदी में पानी नहीं है और न वो नेकर है लाल वाली ।

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