इस बात को साफ कर देना उचित होगा कि पहले भी असुर सत्ता में आते रहे हैं । हमारी किताबें, कथाएं, ग्रन्थ वगैरह राक्षस राजाओं की कहानियों से भरे पड़े हैं । असुरों का कुशासन कोई नयी बात नहीं है । जब भी मौका मिलता है वे सत्ता में आ जाते हैं । लोकतंत्र की व्यवस्था असुरों को सत्ता से दूर रखने के लिए भी बनायी गयी थी । लेकिन सब जानते हैं कि चौकीदार और पुलिस रखने के बावजूद चोरियां होती रहती हैं । प्रायः सिस्टम का पेंदा पतला होता है । नहीं होता है तो भी उसमें सूराख बना लिए जाते हैं । चौकीदार तो चतरा होता है । ‘जागते रहो’ की आवाज मारते रहना ही उसका काम है । वह जानता है कि डर ही चौकीदारी को बनाये रखने की पहली शर्त है । डरे हुए लोग चौकीदार के हाथ में लाठियां और बन्दूक देख कर अपने को सुरक्षित समझते हैं । खैर, पुरानी बात करते हैं ।
बहुत
पहले एक असुर द्वीप था । वहां एक महात्माजी पधारे तो सीमा पर ही सिपाहियों ने उनके
चरण पखारे,
कहा- ‘महात्माजी, द्वीप में असुरों को नियंत्रित करना कठिन हो रहा है । उनकी
उद्दंडता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है । कृपया कोई तगड़ा सा आशीर्वाद दीजिए, हम दीन-हीन सरकारी चाकर,
करें तो डांटें जाएं, न करें तो फटकार पड़े । कोई जादू की
छड़ी दीजिए जिसको घुमाते ही असुर ठीक हो जाए ।‘
महात्मा जानते थे कि सिपाही जादू की छड़ी क्यों
मांग रहे हैं । इन आलसी मोटों को अपनी तौंद से प्रेम होता है । डंडे का वजन
सम्हालने में कठिनाई होती है । बोले- ‘तुम्हारा काम हो जाएगा सिपाहियों, परंतु पहले कुछ शंकाओं का समाधान करो । ये बताओ कि तुम असुरों से सांठ-गांठ
क्यों रखते हो । ’
सिपाही लगभग रोते हुए बोले- क्या करें
महात्माजी,
राज असुरों का है, उनकी नहीं सुनेंगे तो चलेगा कैसे ! बात बात में फटकार, धमकी,
तबादला या सस्पेंशन हो जाता है । हम भी बाल-बच्चेदार हैं, लाचार
हैं ।
महात्मा
बोले- सुना है असुरों से पैसा वगैरह भी लेते हो और बदले में छूट देते हो !
सिपाहियों
की नजरें झुक गई,
घिघियाते हुए बोले- विवशता है जी, छूट तो
वे ले ही लेते हैं । मंहगाई हम लोगों के लिए भी उतनी है जितनी औरों के लिए । द्वीप
वाले हमें सामान तक उधार नहीं देते हैं । हमें भी अपने बच्चों को पढ़ाना-लिखाना है, वेतन कम पड़ता है सो ले लेते हैं .... ।
‘‘’फिर
तो तुम्हें उनसे शिकायत नहीं होना चाहिए । ’ महात्मा बोले ।
सिपाही चरणों में गिर गए- ‘ महाराज,
हम असली चाकर, जो भी मांई-बाप होता है उसी की हजूरी करना पड़ती है । समझ
में नहीं आता कि हम सिपाही हैं या असुर द्वीप की नगरवधुएं ! आप तो जादू की छड़ी दे
दो महाराज,
वरना हम भी किसानों की तरह फंदा चूम लेंगे , फिर आप ही कहोगे कि ये क्या किया !’
आखिर
महात्माजी पिघले-
“सिपाही भक्तों , अपने पद और कार्य पर गर्व करो । तुम्हारे हाथ में जादू की
छड़ी नहीं डंडा है । इसका जादू तभी दिखाई देगा जब तुम दबंगों पर इसका प्रयोग करोगे ।
बेबस गरीबों पर प्रयोग करोगे तो डंडा बोझ हो जाएगा । उठो, डंडा
उठाओ और इसके जादू को महसूस करो । जाओ । “
बाहर
निकल कर सिपाहियों को लगा कि महात्मा जी ने दिया तो कुछ नहीं, उल्लू बना दिया ।
डंडे में जादू तभी हो सकता है जब उसका नियंत्रण भी हमारे पास हो । हाथ हमारे हैं,
डंडा हमारा नहीं है । चिढ और गुस्से में एक सिपाही ने सड़क किनारे बैठे कुत्ते को
डंडा मार दिया । दूसरा बोला – अरे इसे क्यों मार दिया ! अगर पशु अधिकार वालों को
पता चल गया तो तेरे बचे अधिकार ख़त्म होने में देर नहीं लगेगी । ... घबराया सिपाही
कुत्ते को सॉरी बोलने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ा ।
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