सोमवार, 19 सितंबर 2022

गुड़ गोबर


 




“अजी सुनते हो ! ये क्या उठा लाये ! गुड़ लाने को कहा था ना ? कोई काम ध्यान से नहीं करते हैं !” सामान का झोला उलटते हुए शांतिदेवी ने पति पर पहली घुड़की मारी ।

“गुड़ ही तो है भागवान, ये देखो बिल, पचास रुपये किलो के दाम भी दिये हैं ।“ ददातादीन ने कागज आगे करते हुए सफाई दी ।

“बिल का कोई मतलब नहीं है, इतना समाचार सुनते हो लेकिन किसान आन्दोलन को भूल गए । कल को सुनार के यहाँ का बिल होगा तो क्या राई-जीरा सोने का हो जायेगा ? जब से रिटायर हुए हो एक काम ठीक से नहीं करते हो ।“ देवी ने कमर पर हाथ भी रख लिया ।

“काम ठीक से कर सकता तो सरकार रिटायर क्यों करती ? जैसा हूँ काम चलाओ, कुकर भी तो तुम ढीले हेंडल वाला वापर रही हो ।“ दातादीन बोले ।

“कुकर की बात अलग है, वो ठीक टाइम पर सिटी मारता है । तुम्हारी तरह नहीं कि गुड़ लाने को कहो तो गोबर उठा लाये और पचास रुपये फैंक आये सो अलग ।“

“गोबर !! गोबर है क्या ?! ठीक से देखा तुमने ?”

“हाँ गोबर है, ये देखो ।“

“गोबर तो पचहत्तर रुपये किलो है ! पच्चीस का फायदा हो गया ।“

“पच्चीस का फायदा हो गया है तो दिमाग में भर लो इसे । कम से कम खाली तो नहीं रहेगा । यों भी खाली दिमाग शैतान का घर होता है । दिनभर उल्टेसीधे काम करते रहते हो ।“

“भागवान, समय को पहचानो । गुड़ का नहीं ये गोबर का समय चल रहा है । गाय का गोबर अब मिलता कहाँ है । अरे जब गाय ही नहीं मिलती तो गोबर कहाँ से मिलेगा । नेट पर गाय सर्च करो तो बीफ दिखाता है । कमबख्त सेलिब्रिटी बीफ खाते हैं और विक्ट्री साईन के साथ मिडिया को भी बताते हैं । एक दिन सारी गाय खा जायेंगे ये लोग तब देखना म्यूजियम में रखा मिलेगा गोबर । मैं तो कहता हूँ अच्छी तरह सुखा कर पैक करके रख लो, हमारी अगली पीढ़ी जानेगी तो सही कि ये गाय का गोबर होता था ।“

“हे भगवान ... सरकार ने तो चलता करके छुट्टी पाई, लेकिन मैं क्या करूँ !”

“तुम करवा चौथ का व्रत रखती तो हो, अब और कुछ करने की जरुरत नहीं है । भगवान इतने में ही सुन लेगा ।“

“व्रत तब रखती थी जब नौकरी में थे और गुड़ कहो तो गुड़ ही लाते थे । मुझे क्या पता था कि अपना ही गुड़ एक दिन गोबर हो जायेगा ।“ देवी का गुस्सा कम नहीं हुआ ।

“देखो, गोबर को तुम बहुत हलके में ले रही हो । और ज्यादा चिल्लाचिल्ली मत करो, बाहर गोबर समर्थकों ने सुन लिया तो दिक्कत हो जाएगी ।“

“क्या दिक्कत हो जाएगी !! हद है अब औरते क्या अपने पति को हड़का भी नहीं सकती हैं ! अगर ऐसा है तो पति रखने मतलब क्या रह जायेगा ।“

“समय को पहचानो शांतिदेवी । सिस्टम बदल रहा है और हर तरह का पति परमेश्वर होने जा रहा है । अपने को श्रद्धा भक्ति के साथ तैयार करो और उसके लाये गोबर को गुड़ मानों । समय के साथ चलो, अभी हमें अगले छः जनम और साथ रहना है ।“

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शनिवार, 17 सितंबर 2022

करम ऊपर गये, फोटो नीचे रह गया


 


             इनदिनों अपनी फोटो पर मेरा ध्यान बार बार जाता है । हर किसी के हाथ में कैमरे वाला फोन है और फोटो ऐसे धड़धड़ खेंचे जाते हैं मानों पीछे डंडा ले कर पुलिस खड़ी हो कि खींच अपनी फोटो । इसी तुकतान में सेल्फियाए रहते हैं कि कोई फोटो ऐसी आ जाये जो उनकी हो लेकिन उनके जैसी न हो । रोज अख़बार में फोटो हो चुके लोगों की सूचना मिलती है । कुछ के यहाँ जाना भी पड़ता है । देखते हैं कि फोटो बढ़िया है । आजकल तकनिकी का जमाना है । आदमी से बेहतर उसकी फोटो होती है । पहले स्टूडियो और फोटो आर्टिस्ट होते थे । मेरे माथे पर चेचक और चोट के दो निशान हैं । गलों पर भी मुंहासों के छूटे हुए निशान हैं काफी सारे । जब भी फोटो खिंचवाई आर्टिस्ट ने तमाम निशान गायब कर दिए । इससे पहचान का संकट तो  बना पर अच्छा लगा । एक बार फोटो इतना साफ सुथरा बना कि मुझे जरुरी लगा कि नीचे अपना नाम भी लिख दूँ । लेकिन आज भी मेरी पसंदीदा फोटो वही है ।  

              कालेज के दिनों में फोटो को लेकर दिल कुछ ज्यादा ही हूम हूम करता है । एक ऐसी घटना हुई जो भूलती नहीं है । आइडेंटिटी-कार्ड यानी परिचय-पत्र पर फोटो लगता है । फोटो चिपका कर प्रिंसिपाल के पास हस्ताक्षर के लिए पहुंचे तो उनका सवाल था कि ये कौन है !? बताया कि मेरी ही है सर । वे बोले जैसी शकल है वैसी फोटो लाओ । इसमें तुम्हें कौन पहचानेगा, आई.एस. जौहर लग रहे हो । मजबूरन एक ख़राब फोटो लगाना पड़ी । इसके बाद जब भी परिचय-पत्र दिखाना पड़ा ऐसे दिखा कर तुरंत छुपाया जैसे आठवीं-फेल की मार्कशीट हो ।

             अब जरा उम्र हो गयी है और बीमार भी रहने लगे हैं तो बीमारी से ज्यादा फोटो को लेकर चिंता होती है । शक्ल खुद पहचान से मुकरने लगी है । आइने के सामने जाओ तो लगता है जाने कौन है ! खुद को जानते हैं लेकिन पहचानने का मन नहीं करता है । काश कि जवानी में शकल देख के बैंकें लोन देती, कुछ तो फायदा होता बदशक्ली का । आधार-कार्ड और वोटर-कार्ड पर भी ऐसी फोटो होती है जिसे कह सकते हैं रियल जानलेवा । कर सकता हो तो आदमी खुद अपने को रिजेक्ट कर दे । गलती से पहले आधार दिखा दो तो लड़का लड़की बेचारों की शादी ही न हो । आप समझ सकते हैं इस चिंता को । छुप छुप कर सेल्फी लेते हैं तमाम पुराने निशानों के साथ झुर्रियां ब्रेक डांस करती दिखाई देती हैं । ऐसी हालत में मर जाने का मन भी नहीं करता है । अगर अंतिम दर्शन ऐसे हैं तो लोग क्या सोचेंगे । कुछ दिनों बाद आखिर भगवान ने सुन ली । किसी दावा का रिएक्शन हुआ और चेहरे पर सूजन आ गयी । डाक्टर को थेंक्यू कहा तो मायूस हो गए, उन्हें लगा कि व्यंग्य कर रहा हूँ । बोले सूजन दो तीन दिन में अपने आप उतर जाएगी, या कहो तो इंजेक्शन दे दूँ । अन्दर की ख़ुशी का क्या कहें, सूजन नहीं थी सौगात थी । बूढ़े शरीर पर जवान चेहरा किसे अच्छा नहीं लगेगा । दनादन सेल्फी भरी फोन में । अच्छा किया, सूजन कमबख्त दो दिन में ही फ़ना हो गयी, लेकिन तमाम फोटो पीछे छोड़ा गयी । कुछ को फ्रेम करवा कर सामने दीवार पर टांग  दिया है । अब आगंतुकों की प्रतिक्रिया नयी जरुरत बन गयी है । आप कभी आयें ... कभी क्यों एक बार जरुर आयें, स्वागत है आपका ।

             एक ढंग की मन पसंद फोटो हो जो अख़बार में छपे तो लगे कि आदमी कितना अच्छा था । देखते ही लोगों के मन में अच्छी भावनाए आयें । कबीर के ज़माने में फोटो नहीं होते थे सो वे लिख गए कि ‘ऐसी करनी कर चलो कि हम हँसे जग रोये’ । अब करनी का क्या कहें ! सबकी एक जैसी है । लगता है ईश्वर ने सबको पाप करने के लिए ही भेजा है । करम तो अब छुपाने की चीज हो गए हैं । वो तो अच्छा है कि जाने वाले के बारे में बुरा नहीं बोलने की परंपरा है । हो भी क्यों नहीं,  किसी का बुरा देखो तो वह अपना ही लगने लगता है । अच्छी फोटो सामने हो, आदमी फूल चढ़ा दे बस । आदमी करम ऊपर ले जाता है, फोटो नीचे छोड़ जाता है ।

            अचानक उस फोटोग्राफर की याद आई जिसने कभी मुझे आई.एस. जौहर बना दिया था । देखा कि माला और फ्रेम के बीच फंसे मुस्करा रहे हैं । लडके से पूछा – “आखरी तक ऐसे ही दीखते थे क्या ?” लड़का बोला – “दिखने से क्या होता है, पासबुक में निल बटा सन्नाटा थे “। उसे समझाते हुए कहा - बेटा सिकंदर गया तब उसके दोनों हाथ खाली थे । उसने गौर से देखा, जिसे करीब करीब घूरना भी कहा जा सकता है । बोला – हाथ सबके खाली ही रहते हैं, लेकिन पासबुक (खजाना) में तो कुछ होना चाहिए ना । पीछे जो रह जाते हैं उनका काम सिर्फ फोटो से चलता है क्या ?

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शनिवार, 10 सितंबर 2022

पैदल आदमी का चालान


 

        “एई ... रुको ... इधर आओ ...किनारे की तरफ । हाँ ... बेल्ट क्यों नहीं पहना है ? “ ड्यूटी-पुलिस ने पूछा ।

        “पजामा पहना है साहब ... नाडा बंधा हुआ है ।“ पैदल आदमी बोला ।

         “पजामा हो या लुंगी बेल्ट लगाना अनिवार्य है । चालान बनेगा । “  ड्यूटी पुलिस ने डायरी निकलते हुए निर्णय सुनाया ।

        “लेकिन मैं तो पैदल हूँ ! मेरा चालान कैसे !?”

        “पैदल ही सही, सड़क पर तो हो । जो भी सड़क पर आता है यातायात कानून के दायरे में आता है । चलिए दो सौ रुपये निकालिए । “

        “दो सौ रुपये !! किस बात के साहब ? मैं पैदल हूँ, मेरी गलती क्या है ?”

         “बहुत सी गलतियाँ हैं ... पहली तो यही कि रांग साइड हो ।“

          “रंग साईड कैसे ! बाएं हाथ चल रहा हूँ, बाएं चलने का नियम है ।”

           “पैदल आदमी को दाएँ हाथ चलने का नियम है । उसके लिए बाएं चलना रंग सईड है ।“

           “दाहिने हाथ कौन चलता है सर ... सब बाएं से चलते हैं । और पैदल के लिए दायें-बाएं का क्या मतलब है !”

           “यातायात के नियमों की जानकारी नहीं होना दूसरी गलती है ... दो सौ पचास निकालिए ।“

           “आप टारगेट पूरा कर रहे हो और कुछ नहीं है । देखिये साहब यातायात पुलिस पैदल का चालान नहीं बना सकती इतना तो मैं भी जानता हूँ । “

           “एक और गलत जानकारी । सड़क पर जो भी आयेगा, नियमों का पालन नहीं करेगा तो उसका चालान बनेगा । ... अभी तुमने लाल बत्ती होने के बावजूद चौराहा पार किया । बताओ किया या नहीं किया ?  “ ड्यूटी पुलिस ने आवाज सख्त की ।

           “किया है सर ... लेकिन मैं तो पैदल हूँ ।“

           “तो क्या ट्रेफिक के नियमों से ऊपर है ! “

           “वोट देता हूँ, सरकार बनाता हूँ, मालिक हूँ देश का तो क्या लाल बत्ती भी क्रास नहीं कर सकता हूँ !?”

           “मालिक !! ... तीन सौ निकाल ।“

           “अरे बात को समझो सर ... मैं मुख्यमंत्री का जीजा हूँ ...”

           “तुम मुख्यमंत्री के जीजा कैसे हो !?”

           “मेरे बच्चे उनके भांजा-भांजी हैं तो मैं जीजा हुआ या नहीं ? अब जान गए तो रिश्तों की लाज रखो प्लीज । ”

          “अपना आधार कार्ड बताओ ।“

          “आधार कार्ड तो नहीं है इस वक्त, घर पर रखा है ।“

          “सड़क पर निकल आये और पेपर भी नहीं है ! तीन सौ पचास निकालिए ।“

          “पैदल चलने का भी लायसेंस बनता है क्या !? कमाल करते हो आप तो ! “

          “बीमा दिखाओ, बीमा तो होगा ?”

          “इतनी महंगाई में कौन बीमा करवाता है साहब । आप तो अपना प्रीमियम ‘रांग-साइड’ से भर देते होगे, हम कहाँ से लायें !”

          “उधर देखो ... वो साहब खड़े हैं कमर पर हाथ रखे । ... दिखे ?”

          “नहीं दिखे ... दूर की नजर कमजोर है ।“

           “तो चश्मा क्यों नहीं पहना ? जब साहब नहीं दिख रहे हैं तो सामने से आ रही गाड़ी कैसे देखोगे ! चलो टोटल चार सौ रुपये निकालो  ।“

            “अरे आप तो रकम बढ़ाते ही जा रहे हो !! मैं कम्प्लेन करूँगा आपकी ।“

            “कर देना । हार्न है ?”

            “पैदल आदमी में हार्न कहाँ होता है !?”

            “ब्रेक भी नहीं होंगे ?”

             “हाँ नहीं हैं ।“

             “हेड लाईट ?”

             “नहीं है ।“

              “ हूँ ... पांच सौ निकालो ।“

              “नहीं हैं ... और नहीं दूंगा । जब्त कर ले मुझे ।“

               “इतना टाइम ख़राब करा ... चल छोड़ ... पचास दे दे और भाग जा ।“

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शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

राजा का जन्मदिन


 



             बात बहुत पुरानी है । सच बात यह है जब आपको बहुत ताजा बात भी कहना हो तो उसे पुरानी बताते हुए कहना अच्छा होता है । जो समझते हैं वो समझ जाते हैं कि नयी है और जो नहीं समझते हैं वो समझते हैं कि पुरानी है । इस तरह नयी में पुरानी और पुरानी में नयी का आभास से संदेह अलंकर पैदा होता है । वो दोहा तो सुना ही होगा आपने – ‘सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ; नारी ही की सारी है कि सारी ही की नारी है ‘ । मतलब ये कि बात ... बहुत पुरानी है ।

               बात ये है कि राजा का जन्मदिन आ रहा था । यों तो जन्मदिन सबका आया करता है लेकिन उससे क्या ! खेत में फसल उतरती है उसी तरह जनता पैदा होती है । सुना है किसी देश में रोज एक लाख बच्चे पैदा होते हैं । हर सेकेण्ड में एक तो समझ ही लीजिये । ऐसे में आप बताइए इनका पैदा होना भी कुछ होना है ! असल पैदा होना राजा का होता है । बड़ी मुश्किल से, बड़ी मन्नतों और होम-हवन के बाद । यही वजह है कि दो हप्ते पहले से जन्मदिन की अग्रिम खुशियाँ मनाई जा रहीं हैं । आसपास लगे रहने वालों के पेट और जेब दोनों भर गए हैं लेकिन मन नहीं भर रहा है । मन तो राजा का भी नहीं भरा है किसी बात से । दिन में पांच वक्त बदलने के लिए तमाम शेरवानियाँ वस्त्रागार में टंगी हैं । जूतियों की नक्काशीदार जोड़ियों से जूताखाना भरा हुआ है । चिरागों की संख्या दुगनी कर दी गयी है । महल विशेष दमक रहा है । रनिवास से इत्र-फुलेल के भभके उठ रहे हैं । महल जैसे स्वर्ग का आउट हाउस है ।

               रात हुई राजा अपने कुछ मुँहलगे मंत्रियों के साथ खुले आकाश के नीचे एकांत का आनंद ले रहा था  । अचानक राजा ने कहा – मुझे ये चाँद उदास लग रहा है !!

              मंत्रियों ने एक स्वर में कहा – आप ठीक कह रहे हैं राजन, चाँद उदास लग रहा है ।

              “इसे प्रसन्न होना चाहिए । हमारा जन्मदिन आने वाला है ।“ कहते हुए उन्होंने पर्यावरण मंत्री की और देखा ।  

           “जी राजन, कल चाँद को खुश रहने के लिए कह दिया जायेगा ।“

            “महल के बाग में मोर और बत्तखें थीं ! वो कहाँ दुबकी हैं ?”  

              “राजन, मोरों को कल दरबार में नृत्य के आदेश दिए जा चुके हैं, बत्तखों को भी समूह नृत्य के लिए कहा जा चुका है । जो नहीं आयेंगी वो कल शाम को परोसी जाएँगी । “

               “हमें लगता है हमारी सेना भी अन्दर से प्रसन्न नहीं है । क्या सेना को हमारे जन्मदिन की ख़ुशी नहीं है ?” कुछ देर सोचते हुए राजा ने रक्षामंत्री से सवाल किया ।

               “राजन सेना में ऐसा कोई नहीं जिसे आपके जन्मदिन की ख़ुशी नहीं हो । लेकिन महंगाई के कारण उनकी ख़ुशी कमजोर पड़ रही है । किन्तु आप चिंता न करें कल से जन्मदिन तक सारे सैनिक बाकायदा प्रसन्न रहेंगे । यदि कोई उदास रहा तो बर्खास्त किया जायेगा ।“

                “रियाया में भी उत्साह नहीं है ! उसे भी प्रसन्न रहना चाहिए । नाचें-कूदें, गायें-बजाएं, अच्छे परिधान पहनें,तरह तरह के उपहार ले कर आयें और अपनी भावना व्यक्त करें । क्या उन्हें पता नहीं कि राजा का जन्मदिन है ! ... गृहमंत्री, आपका खुपिया विभाग क्या कर रहा है ?”

                 गृहमंत्री ने हाथ जोड़ कर कहा – “राजन बेहतर होगा कि जन्मोत्सव महल की सीमा में ही संपन्न किया जाये । जनता महंगाई, बेरोजगारी, संस्थाओं पर अपराधियों के कब्जे से बहुत दुखी और क्रोधित भी है । लोग न्याय व्यवस्था को भी संदेह से देखने लगे हैं  । आय कम और कर बहुत ज्यादा हो गए हैं ऐसे में उन्हें तीन दिनों तक खुश रहने का आदेश देना जोखिम भरा है ।“

                 “चुनौतियाँ और विपरीत परिस्थितियां तो हर समय आती रहती हैं । ... क्या अपने अब तक कुछ नहीं किया !? आपको गृहमंत्री इसलिए बनाया था कि अपने हो और पुराना रिकॉर्ड भी जोरदार है !” राजा ने ऑंखें चौड़ी करते हुए कहा ।

                  “सारे नौकरीपेशा खुश रहे आदेश जारी कर दिए हैं । हर कर्मचारी को अपने विभाग प्रमुख से अपनी प्रसन्नता प्रमाणित करवा कर गृह मंत्रालय को भेजने के लिए निर्देशित किया गया है । विभाग प्रमुख अपनी प्रसन्नता स्वयं सत्यापित कर मंत्रालय को भेजेंगे । दिक्कत व्यापारियों, छोटा मोटा धंधा करने वालों, पकौड़ा बनाने वालों, फेरी वालों से है । खादी पहनने वाले मानेंगे नहीं, उस दिन सुबह से उपवास रखने वाले हैं ।“ हाथ जोड़ते हुए गृह मंत्री ने निवेदन किया ।

                सामने खड़े धन मंत्री की और राजा ने देखा ... कहा कुछ नहीं । धन मंत्री ने राजा की आँखों में झाँका और समझ गया ... कहा कुछ नहीं । रात गहरा चुकी थी । आसपास से उल्लुओं की आवाजें आने लगी । सुनते ही राजा प्रसन्न हुआ । बोला – चलो तुम लोगों के आलावा कोई तो है जो खुश हो रहा है ।

               मंत्री एक स्वर में चहके – साक्षात् लक्ष्मी के वाहन हैं राजन ... शुभ है ... मंगल है ... मुबारक हो जन्मदिन ... हुजूर सलामत रहें और जन्म जन्मान्तर तक सिंहासन पर बने रहें ।

               दूसरे दिन पेट्रोल का दाम बीस पैसे कम कर दिया गया । जनता खुश हो गयी । सरकार को पता है कि बीस पैसे की ये ख़ुशी तीन दिन तो आराम से टिक जाएगी ।

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