रविवार, 26 अप्रैल 2020

‘आमार शोनार आलू’

हमारे घर में रोज पूजा होती है .... मतलब भगवान की । आज गृह-देवी आलू पर जल चढ़ा रही थीं । लगा कोई चूक हो रही है, सुधार दें, वरना इन दिनों रामायण चल रही है और माहौल में शाप-वाप का मूड बना हुआ है । कब कौन कुपित हो जाए कहा नहीं जा सकता है । सो भागते हुए गए और उनका हाथ पकड़ लिया जिसमें जल का लोटा था । समझाइश की मुद्रा में कहा –“ये क्या कर रही हो भागवान !! आलू पर जल क्यों चढ़ा रही हो !”  
देवी बोलीं – “ये आलू नहीं है जी, आलू महादेव हैं । सवा महीना हो गया है, बताओ किसके सहारे हो ?... भगवान के या आलू के ? देख लेना जब नारे लगाने की छूट मिलेगी तो लोग यही बोलेंगे – हर हर आलू, घर घर आलू । “
वक्त वक्त की बात है ।  पूजा-पाठ के समय अगरबत्ती खोंसने के लिए कुछ नहीं मिलता था तो आलू कट कर स्टैंड बना लेते थे और उसमें अगरबत्ती खोंस कर भगवान के चरणों के पास रख देते थे । अब देखिए ! ईश्वर की सोहबत और ज़िम्मेदारी वाली भूमिका क्या मिली आलू खुद महादेव हो गए ! माना कि उनके कारण किचन आबाद है, सरकार चल रही है, तो भईया आलू महाराज कहो । महाराज भी कोई छोटी बात नहीं है आज की डेट में । ये नहीं कर सकते तो आलू का परसाद चढ़ा दो चिप्स बना कर । लेकिन ये आलू महादेव क्यों ! कल को भगवान माइंड कर गए तो !
असल बात ये है कि महीने भर से पति की सूरत नॉनस्टाप देख देख कर देश की आधी आबादी का मूड जो है धमाधम करने के लिए हुमक रहा है । समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस बार करवा चौथ के व्रत पर भारी उलटफेर की आशंका प्रबल है । जो मुए करोना से बच जाएंगे उन्हें करवा से निबटना होगा । अंदर घुमड़ रही आवाज बार बार लीक हो रही है कि काम के न काज के, दुश्मन अनाज के । ऐसे माहौल में किसी भी किस्म का हस्तक्षेप करना अपने हाथ में सुतली बम फोड़ना है । फिर भी इतना तो कह ही दिया कि – “लोग सुनेंगे कि आलू पर जल चढ़ाया तो क्या कहेंगे !!”
“जय जय आलू महादेव कहेंगे और क्या । पता है, हम लौह-लक्ष्मियों ने तय किया है कि मोहल्ले में एक मंदिर बनेगा आलू महादेव का ।“ वे बोलीं । 
आलू महादेव का मंदिर !! कोई नहीं आएगा ।“ हमने दावे से कहा । 
बोलीं- “समोसे का परसाद चढ़ेगा तब नहीं आएगा कोई ?”  
“ओह , फिर तो सोचना पड़ेगा ।“
एक बार फिर जोखिम लेते हुए कहा -  “देखो देवी, तुम आलू के बारे में नहीं जानती हो । आलू को भगवान बनाने से भक्तों की भावनाएँ आहात हो जाएंगी ।“ 
वे बोलीं – बिलकुल नहीं होंगी । कल अगर कांग्रेस अपना चुनाव चिन्ह आलू बना ले तो देख लेना दन्न से सरकार बना लेगी । वैज्ञानिक कह रहे हैं कि कोरोना लंबा चलेगा । अब कोरंटाइन तो बार बार होंगे इसलिए आने वाला समय को लोग लोकतन्त्र नहीं आलूतन्त्र कहेंगे । जिस देश में अस्सी प्रतिशत लोग गरीब हों और आलू पर निर्भर हों वहाँ आलू ही भगवान है ।“ वे अड़ गईं ।
“शांति शांति, ...  देवी अगर गरीबों का सहारा आलू है, तो आलू कामरेड हुआ । उसे अकेला उबाल के खा जाओ या टीवी की बहस में पका पका के । या किसी भी अल्पमत सब्जी में डाल दो बहुमत में आ जाए । सब करो पर इसे भगवान मत बनाओ प्लीज, ... भगवान बनते ही वो दक्षिण पंथी हो जाएगा । उसकी पहचान नष्ट हो जाएगी । ममता दीदी को पता  चला तो आमार शोनार आलू ... आमार शोनार आलू गा गा कर दिल्ली हिला देंगी ।“
“तुम चिंता मत करो, दिल्ली आलू से नहीं प्याज से हिलती है । इतना भी नहीं समझते क्या !!“  
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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

बस बैठे हैं भिया !


जिसे भी फोन कीजिए एक ही जवाब मिलता है बस बैठे हैं भिया । उधर से अगले को भी पूछना ही पड़ता है और ... आप क्या कर रहे हो ?’ , जवाब वही बस बैठे हैं भिया । सेना से लगा कर सेवक तक लगे हैं काम में और हम बस बैठे हैं भिया । लगता है पूरा देश बैठा है, जनवासे में । टीवी, रेडियो, अखबार के जरिए कोई न कोई दिन में दस बार अनुरोध करता है कि जजमान आप बैठिए, आराम कीजिए, बाहर मत निकालिए, कुछ जरूरत हो तो आदेश कीजिए । भूल जाइए कि किसी ने लाल किले से कभी कहा था आराम हराम है । अब तो आराम का फरमान है । इतना आराम करवाएँगे, इतना आराम करवाएँगे तुमसे, कि भूल जाओगे कि पाँव किधर है और हाथ किसे कहते हैं । पड़े पड़े जब पोटले हो जाओ तो एक सेल्फी जरूर डाल देना, गूगल के किसी क्लिक पर दर्ज रहोगे । किसी लोकल शायर ने कहा है कि गूगल की सर्च पर लगते रहेंगे हर दिन मेले, आराम कर कर के मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।   
फोन पर कज़िन पड़ौसी है, यानी पाँच मोहल्ला दूर रहने वाले । उनका फ्लेट है, किचन प्लस स्टोर विथ थ्री रूम्स अटैच टाइलेट । यह बताने के पहले कि उसने अभी मूंग के भजिए खाए हैं, वह खात्री करता है कि तुम्हारे पास आटा-दाल वगैरह की कमी तो नहीं है । आदमी पढ़ालिखा हो, व्यावहारिक हो तो शिष्टाचारवश सावधानी रखता ही है । अच्छा नहीं लगता है कि आप भजिए बखाने और अगले के पास खाने कि समस्या हो । मैं जानता हूँ उसकी गुफ्तगू का सबब, सो उसके मैनु के आतंक से बचाने के लिए कहता हूँ दिक्कत तो है यार, कुछ कर सकते हो ? वह सूझाता है कि नगर निगम की कचरा गाड़ी आती है ना उसी को बोल दो, दे जाएंगे । नहीं तो अपने पार्षद को खड़काओ, पता नहीं इस लोक में है या उस लोक में । या फिर अपने झारा पकड़ विधायक को बोलो, रोज फोटो छ्पवा रहे हैं पूड़ी तलते हुए । साफ हो जाएगा कि खा ही रहे हैं या खिला भी रहे हैं । वैसे यार तुमको पहले से कुछ इंतजाम कर लेना चाहिए था । आसपास किराने वाला है ना, उनको बोलो । हमारे इधर तो जाहिल बस्ती में खूब थैलियाँ बंटी, आटा, दाल, चाय-शकर मिर्च मसाला, आलू कांदा सब । एक एक घर में लोगों ने चार चार थैलियाँ ले ली । इतना माल मिल रहा है तो भला कोई करोना से क्यों डरे ! बैठने वाले बैठे हैं तस्सवुरे जाना किए हुए और जिन्हें फिक्र है खिदमतदारों की वो थैलियाँ बटोर रहे हैं दनादन । पुलिस को लागत है कि लोग बाहर फालतू घूम रहे हैं । उन्हे कौन बताए कि घर में रहने से बच्चों के अलावा कुछ मिलता है क्या ।“
बात बदलते हुए मैं पूछता हूँ, - “और आपके घर तो सब ठीक हैं ना ? बाहर मत निकलना, पुलिस न हो तब भी मत निकलना, सरकार ने कहा है तो हमारा फर्ज है कि अच्छे नागरिक की मिसाल बनें । हमारे इधर तो पूरा सन्नाटा रहता है रात को और दिन को भी । तुम्हारे तरफ कोई निकलता तो नहीं है ?”
वो पाज़ यानी बातचीत में एक ठहराव लेता है, फिर सोचते हुए बोलता है –“ हमारे इधर भी कोई नहीं निकलता है लेकिन सन्नाटा नहीं है ।  सूअर घूमते रहते हैं और झड़पें होती रहती है । खूब शोर होता है । मेडिकल साइंस क्या कहता है, सूअरों को करोना नहीं होता है क्या ?
“ पता नहीं, वेट्नरी डाक्टर ही बता सकते हैं कि करोना की नातेदारी किस किस से है । ... और क्या ?
“बस बैठे हैं भिया”।
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