मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

लाल आँखों वाला कुत्ता

     
 बूथ से बाहर निकलने के तत्काल बाद देवीशरण को लगा कि वे जिसे वोट दे आए हैं उसे नहीं देना चाहिए था। हर बार जब भी वे वोट दे कर निकलते हैं उन्हें लगता है कि गलत आदमी को चुन आए हैं। साठ साल में कई चुनाव उन्होंने देखे हैं लेकिन आज तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि वोट देने के तुरंत बाद वे पछताए ना हों। उन्हें लगता है कि वे पछताने के लिए ही मतदान करते हैं। इस बार बहुत सोच कर उन्होंने मन बनाया था, लेकिन अपने पर खीझते हुए बाहर आए हैं। ऐसा नहीं है कि वे हमेशा  ही ईमानदार आदमी को चुनना चाहते हैं। जानते हैं कि ईमानदार आदमी अब पैदा होना बंद हो गए हैं। यहां वहां कहीं दो चार सेंपल के हुए भी तो ऐसे बिदकते हैं मानो राजनीति नहीं सिर पर मैला उठाने की प्रथा हो! देवीशरण मानते हैं कि वे खुद भी ईमानदार नहीं हैं। मौका मिलने पर अनेक बार उन्होंने दो-चार दिनों के लिए ईमानदारी-नैतिकता जैसी चीजों को लाल कपड़े में बांध कर टांड पर सरका दिया है। मौके और मजबूरियां किसके जीवन में नहीं आते। समझदार आदमी वही है जो सावधानी से इन्हें बरत ले। राजनीति में ईमानदार आदमी ढूंढ़ना खुद अपनी जगहंसाई करवाना है। फिर किसी और की ईमानदारी से हमे क्या, होगा तो अपने घर का। काम करने वाला हो तो बेईमान भी चलेगा। ठेकेदार से कमीशन खा ले पर सड़क बनवा दे, चंदा वसूलता हो तो वसूले पर भोजन-भंडारे बराबर करवाता रहे, अतिक्रमण तोड़ने वाले आएं तो प्रशासन से लड़ ले, शादी-ब्याह, मरे-जिये में आ-के खड़ा हो जाए, ओर क्या चिये आमआदमी को!! इतना काफी है।
गरीब आमआदमी वैसे भी किस्मत का मारा होता है। कभी भूल से थाली में काने बैंगन की सब्जी दिख गई तो दिल्ली से आवाजें आने लगती हैं कि गरीब ने सब्जी खाई इसलिए मंहगाई बढ़ गई। गरीब यूपी-एमपी से पहुँच  जाए तो राजधानी में गंदगी पैदा हो जाती है। कहते हैं कामवाम कुछ करते नहीं बस सड़क किनारे बैठे स्कोडा और ऑडी  कारों को अश्लील  आंखों से घूरते रहते हैं। अगर गरीब दो सब्जी खाएंगे तो स्टेटस मेंटेन करने के लिए अमीर को कम से कम बारह सब्जी खाना पड़ेगी। और इन-टो-टो मंहगाई बढ़ जाएगी गरीबों के कारण!! देवीशरण ने जब सुना फौरन पोस्ट कार्ड लिख दिया दिल्ली, और अपना विरोध दर्ज करा दिया। जब जब गबन घोटाले हुए, गलत निर्णय हुए देवीशरण ने कार्ड लिखा। लेकिन गांधीजी होते तो पढ़ते, उन्हें हिन्दी आती थी। इधर दिक्कत ये है कि जो खलिस रिआया है वो हिन्दी वाली है और हुजूर-सरकार अंग्रेजी के अलावा कुछ समझती नहीं है। देवीशरण का विरोध, कार्ड के जरिए चवन्नी होता रहा।
खैर, बात इस चुनाव की थी। चुनाव के दो दिन पहले गली के अंधेरे में हजूर से सामना हो गया। उन्होंने इतने प्यार से देवीशरण को बांहों में भरा कि घर आ कर सबसे पहले अम्मा से पता किया कि उनका कोई भाई कुम्भ के मेले में गुम तो नहीं हुआ था!
हुजूर ने कहा कि भाई ध्यान रखना, इस बार आपके वोट से ही सरकार बनेगी। देवीशरण लावे की तरह फूटते इससे पहले हुजूर ने उनके कंधे पर हाथ रख दिया और उनका ज्वालामुखी आटोमेटिक शांत हो गया। हौले से उनके हाथ में पांच सौ का एक कड़क नोट पकड़ा कर हुजूर बोले ‘बच्चों के लिए ..... मिठाई ले लेना और कहना काका ने प्यार दिया है’। वो कुछ सोच पाते इसके पहले पता नहीं चला कब नोट उनके जेब में सरक गया। अब क्या हो सकता था !, सरक गया तो सरक गया, पांच सौ का था। शिष्टाचारवश  ‘आटोमेटिक’ वे मुस्करा भी दिए, अंदर एक हाजत सी महसूस हुई और रोकते रोकते मुंह से ‘थैंक्यू’ भी निकल गया। जो घटित हो रहा था उस पर वे यकीन करने के लिए संघर्षरत थे कि हुजूर ने एक अंगूठा उंचा करके पूछा ‘चलती है क्या?’। देवीशरण कुछ समझे, माना करने या स्वीकारने के लिए तैयार हो रहे थे इससे पहले हुजूर ने चश्मे में से किसी को आँख  मार दी। वह आदमी आगे बढ़ा और एक बोतल, जिसमें शहद के रंग जैसा कुछ था, पकड़ा गया। घर में पांच वोट हैं यह जान कर एक कंबल उनके हाथ में प्रकट हुआ, बोले - ‘अम्माजी के लिए, ठंड में काम आएगा’। इसके बाद अपने हुजूम के साथ हुजूर अगले अंधेरे में गायब हो गए।
                        अम्मा ने कंबल देखा तो चहक उठीं, बोली ‘फ्री’ में तो बहुत अच्छा है। पांच सौ का नोट घर की थानेदार ने जब्त कर लिया। देवीशरण के हाथ में बोतल अकेली रह गई। देखा, उस पर लिखा था ‘रेड डाग’, और एक कुत्ता मुंह फाड़े बना हुआ था जिसकी आंखें लाल थीं। देवीशरण बारबार उसे देखते रहे, जबतक खुद उनकी आंखें लाल नहीं हो गई।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. इतना जोरदार व्यंग्य आज तक नहीं पढ़ने को मिला , जवाहर भाई वाह ---फूलो फलो

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  2. Aabhar Javahar Bhai .. Abhi tak pet mein hansi ke maare Bal pade hain .. :)

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