रविवार, 26 फ़रवरी 2023

होली मूड ५ अहाते का नाम चौपाल


 





              “अरे होली का तो सोचो हुजूर । पीने काँ जाएँगे शरीफ लोग ! ठिया-ई ख़तम हो जाएँगे तो आपकी सरकार केसे चलेगी मालिक ! ये तो हद-ई हो री हे साहेब । आपको अपनी नेती का खियाल हे वोटर-होन का नी हे !! अहाते नी होंगे तो वोट काँ से आएँगे सरकार !!”  नीट वोटर मरियल मामा ने अपनी शिकायती रंग फैंका तो सरकार गामा सोच में पड़ गए ।  

               हुआ कुछ ख़ास नहीं । शराबखानों को  लेकर भड़कने वालों की कुछ आपत्ति थी और सरकार गामा ने बाले-बाले ले लिया फैसला कि अब जामनगर के अहाते बंद । कहते हैं कि लोकतंत्र है लेकिन न किसी पीने वाले से पूछा न पिलाने वाले से । यह प्राकृतिक न्याय नहीं है ।  बात को समझने की जरुरत है । होली आ रही है, हमारा सबसे बड़ा मनप्रिय त्यौहार । जिसमें छोटा-बड़ा, आमीर-गरीब, रजा-रंक, मरियल मामा-सरकार गामा सब एकरंग हो जाते हैं । नो डिवाइड एंड रूल । सब एक, यानी देश मस्त मजबूत । सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि नेते लोग सुनते नहीं हैं । माना कि बोलना-चीखना-चिल्लाना टीवी मिडिया और नेतों का काम है लेकिन सुनना समझना भी तो जरुरी है । एक कवि कह गए हैं “दिन को होली रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला” । जहाँ रोज होली हो वह तो हमारी संस्कृति और उत्सव का बड़ा केंद्र हुआ ना । इसे बंद करना सीधे सीधे संस्कृति पर हमला क्यों नहीं माना जाना चाहिए ?! व्यावहारिक रूप से देखें तो अब चार-यार अपनी होली को गुलजार करने कहाँ जायेंगे ?!  गामा सरकार जानती हैं और मानती भी है कि मयखाने राज्य की राजस्व सुविधा हैं । तो क्या ये आत्मघाती फैसला नहीं कहा जायेगा ! शराबी अपनी खून पसीने की कमाई का अधिकांश पैसा आपको देता है, अपने बच्चों के हिस्से का दूध-दवाई सरकार की  सेहत के लिए नजर कर देता है ...  और मौका आने पर वोट भी देता है अलग से । देखा जाये तो गामा सरकार का सगा पीने वालों से बढ़ कर कौन ! चुनाव के पहले कुत्ता छाप घटिया दारू बंटवाई जाती है ! लेकिन लोकतंत्र की खातिर सारे मरियल मामा कुर्सी-बटन दाब देते हैं । इस दरियादिली का ये सिला !!

                         गामा ने समझाया – “देखो मरियल जी, हम समझते हैं आपकी असुविधा । दारू भी उतनी ही बुरी है जितनी राजनीति ।  न तुम छोड़ सकते हो न हम । जितने गाली-जूते तुम्हें पड़ते हैं उतने ही हमें भी । तुम्हारा हमारा वोट और चोट वाला अटूट रिश्ता है, तुम मोटी चमड़ी हम भी सुपर मोटी चमड़ी । मेरे भाई, मेरे हमदम, मेरे दोस्त थोड़ा भगवान से भी डर यार । घर जा के पीने की आदत डाल बाकी कहीं बैठने की जगह नहीं मिलेगी ।“

                  “मतलब ये कि अपने घर को अहाता बना लें क्या !? कल को बीबी-बच्चे पीने लग जाएँगे  तो उसका खर्चा कौन देगा ? महंगाई इत्ती हो-री हे कि होली पे क्या खायेंगे ये-ई समझ में नी-आ-रिया हे ।”

                “मजबूरी को समझो, हमने तुम्हारे खाने का इंतजाम किया है पर पीने का नहीं हो सकेगा । आखिर हमें टेक्स पेयरों से भी वोट लेने पड़ते हैं । माफ़ करो मरियल मामा ।“ गामा बोले ।

              मरियल मामा को ताव आ गया । बोले – “तुम तो कमाल-ई करते हो गामा ! इत्ते सीधे मत बनो, तुमारे पास तो फार्मूला है । अगर अहाते को ले-के किसी को दिक्कत हो-री है, जबरन दनादन कर रिया है तो नाम बदल दो इस्का-बी  । केबिनेट में प्रस्ताव लाओ और अहातों का नाम बदल-के चौपाल कर दो । न तुम जीते, न हम हारे । तुम बी खुश हम बी खुश ।“

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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

होली मूड - ४ नहीं मिल रही गाइड लाइन


 





            “आदरणीय कहीं कोई गाइड लाइन नहीं दिख रही है ! समझ में नहीं आ रहा है कि किस रंग से खेलें होली ।“ प्रीतम जी ने हरिराम जी से पूछा जो उनसे वरिष्ठ हैं । इसके आलावा वे मानते हैं कि हरिराम जी को इंटरनेट वगैरह का अच्छा ज्ञान है । भले ही पढ़े-लिखे कम हैं लेकिन गजब वाट्स एप चलाते हैं । 

            स को श बोलने वाले हरिराम जी दूनी चिंता के साथ बोले -“रंग को लेकर इतना प्राब्लम नहीं होगा । होली किनशे खेलना हैं और किनशे कतई नहीं इशकी गाइड लाइन मिलना जरूरी है । ऊपर वालों का कुछ इशपष्ट नहीं है । कभी कहते हैं विरोध करो कभी कहते हैं मेलजोल करो । उनके रंग शमझ में नहीं आते हैं ।“

           “आपका मत क्या है इस मामले में ?”

          “मुझे लगता है गरीबों के शाथ खेलना चाहिए इश बार । होली का मजा गरीबों के शाथ खेलने में ही आता है । उनकी छाती भी चौड़ी हो जाएगी जब देखेंगे कि शरकार होली खेल रही है उनके शाथ ।“ हरिराम  जी ने अपनी गहरी समझ का परिचय दिया ।

         “आप राजनीति में बहुत आगे जाओगे हरिराम जी । बस आप दो बातों को ठीक कर लो । एक तो ‘स’ को ‘श’ मत बोला करो । जब आप शरकार कहते हो तो डायबिटीज वालों का मनोबल गिर जाता है । राष्ट्रप्रेम से फिसल कर वे सीधे इंसुलीन में उलझ जाते हैं । और दूसरा ‘माता’ को सही बोला करो । आप मात्ता बोलते हो । ‘मात्ताओं-भैनों’ सुनते ही सब मोबाईल खोलने लगते हैं । और जब ‘भारात मात्ता की जे’ बोलते हो तब भी ...”

             इतना सुनते हरिराम जी आहत हुए । उन्हें लगा कि प्रीतम जी लाठी घुमा रहे हैं । बोले- “हम शमझ रहे हैं कि आप क्या कहना चाहते हैं । इतना वाट्श-एप तो हम भी पढ़े हैं । होली के बारे में जरा ज्ञान क्या दिया आप हम पर ही कीचड़ उछलने लगे ! कान तक की लाठी है हमारे पाश । और आपके पाश अभी कंधे तक की ही है । पात्रता के हिशाब शे आपको हमारा अनुशरण करना चाहिए ।“

           “आपको गलत फहमी हो गयी हरिराम जी । हम तो शुभचिंतक हैं आपके । हम देश के उतने निकट नहीं हैं जितने कि आपके करीब हैं । अगर आप सत्ता में आ जाते हैं तो हमें ऐसी कौन सी ख़ुशी है जो नहीं मिलेगी । आपके रास्तों की बाधाओं को देखना और हटाना हमारा काम है । इसी भावना से कहा, बाकी आपकी मर्जी है । वरना हम तो रंग के बारे में पूछ रहे थे आपने ही दिशा बदल दी ।“ प्रितामजी ने सफाई दी ।

            “हाँ रंग ! ... लाल शे खेल लो, शब खेलते हैं । शशता भी मिलता है ।“

           “लाल से खेल लिए और माननीय लोगों ने कमरेड समझ के पतलून उतरवा ली तो !?”

             “बात ठीक है ... लाल शे मत खेलना ।“

             “हरा भी रहने देते हैं ... केसरिया ले लें ?”

            “नहीं ... उशशे  तो शिर्फ माननीय खेलेंगे । कलर प्रोटोकोल का मामला है ।“

            “फिर हमारे लिए क्या निर्देश हैं !?”

           “ गोबर ... गोबर से खेलो । पवित्र है, प्रेरक है , शुना है शेहत के लिए अच्छा है । इशमें जन शन्देश भी है और गाईड लाइन में तो पहले शे ही शामिल है ।“ हरिराम  जी बोले ।

           “किसका गोबर ?”

            “तुम्हारे दिमाग में क्या भरा हुआ है ... अरे गऊ का और किसका !”

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रविवार, 19 फ़रवरी 2023

होली मूड ३ सफ़ेद कपड़ों में आइयेगा जीजाजी




 

        आदरणीय नए नए आदरणीय हुए हैं, ओवन-फ्रेश । नयी नयी शादी के बाद ये फिलिंग आती ही है । अचानक मिले आदरणीयपन को लेकर वे बहुत गंभीर हैं । ससुराल के कुत्ते तक को ‘माय लव’ कहने में देर नहीं करते हैं । इन हालात में साली जी की ओर से होली खेलने का निमंत्रण मिलना निजी स्तर पर पद्मश्री मिलना है । पंख होते तो उड़ जाते फ़ौरन से पेश्तर । लेकिन दिक्कत ये कि होली खेली नहीं आज तक । डर लगता है, काला, नीला, सिल्वर, न जाने क्या क्या पोत देते हैं लोग । सर में ऐसा सूखा रंग डाल देते हैं जो हप्तों तक बालों में घुलता रहता है । इसलिए होली पर जल से, रंग से, यहाँ तक कि टीवी पर ‘भीगे चुनरवाली ...’ देखते हुए अन्दर तक डर वाली झुरझुरी दौड़ जाती है । अभी तक होली वाले दिन कमरे में बंद हो कर अपने को बचाए रखा है । अगर पता होता कि शादी के बाद साला-साली होली खेलेंगे तो शायद पुनर्विचार करते । ऐसा घर देखते जहाँ इकलौती लड़की होती । लेकिन अब क्या किया जा सकता है ! चिड़िया चुग गयी खेत ।

         दोस्तों से बात की तो एक ने मामले की नजाकत को समझा और सुझाया होम्योपैथी वाले डाक्टर से मिल लो । होम्योपेथी में दवा है जो होली का डर दूर कर देती है । हमारे लम्पट फूफाजी वही दवा खा कर आते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक घामड़ होली खेलते हैं । खेलने वालियों  के साथ वो इस कदर कलर-मैच हो जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि आदमी कौन है और कौन औरत । इसके बाद छः महीने होली के किस्सों में गुजरते हैं और अगले छः महीने होली के इंतजार में । तुम देर न करो, फ़ौरन जाओ वहां फूफओं की लाइन लगती है ।

         आदरणीय का डर दवा के बस का नहीं था । जाने का मन बनाते लेकिन हिम्मत कांग्रेस की सरकार की तरह गिर गिर जाती । एक और लंगोटिया हैं, बोले – “यार तू टेंशन मत ले और इस गुप्त ज्ञान पर ध्यान दे । होली पर रंगे यार पहचाने तो जाते नहीं । तेरी मेरी कद काठी एक है । तुझे ऐतराज न हो तो तू बन कर मैं खेल आऊँ ? बोल ?” बोलते क्या आदरणीय । उपाय तो अच्छा था पर हजम नहीं हो रहा था । आखिर मना कर दिया ।

           अभी वे निराश होने के लिए तत्पर थे कि श्रीमान’जी’ मिल गए ।  बोले – “ कोई कठिनाई नहीं है, मातृशक्ति से होली खेलना है तो केवल टीका लगा कर चरणस्पर्श कर लो, बस हो गया ।“

          अब संकट यह है कि साली जी के मामले में मातृशक्ति का दायरा कुछ जम नहीं रहा है । साली जी का निमंत्रण निमंत्रण कम चुनौती अधिक है । मन हो रहा है कि बहिष्कार ही कर दें लेकिन इज्जत का सवाल खड़ा हो जाता है । तभी फोन बजा –“ जीजाजी आ रहे हैं ना ? सफ़ेद कपड़े पहन कर आइयेगा, कलर वलर वाला पहना तो फिर देख लेना हाँ ।“

          “देखिये आप मातृशक्ति हैं और हमारा कर्तव्य है कि आपसे मात्र टीका-होली खेलें । इसमें कपड़ों का कोई रोल नहीं है ।“ आदरणीय बोले ।

           “अरे नहीं जीजाजी, कपड़े तो पहन कर आइये वरना लोग क्या कहेंगे ।“ बिना उई माँ के वे बोलीं ।

            “आप गलत समझ गयीं साली जी । हमारा कहने का मतलब था कि कपड़े चाहे कैसे भी पहनें टीका-होली में केवल टीका लगाया जाता है माथे पर ।“

           “टीका तो आप लगायेंगे ना, हम तो खेलेंगे अपने हिसाब से । पहले रंग डालेंगे फिर रंग में डालेंगे । ... डर तो नहीं रहे हैं ?!” खिलखिलाते हुए उन्होंने वैधानिक चेतावनी दी ।

           “नहीं, डरने की क्या बात है !”

           “पहले भांग पिलायेंगे आपको । अंगूर वाली ।“

           “अरे भांग नहीं पीते  हम ।“

           “तो पकौड़े खाइएगा भांग के ।“

           “आप तो ऐसा कीजिये देवीजी वाट्स एप पर होली का मेसेज भेज दीजिये । काफी होगा, हमें आराम से चल जायेगा ।“

          “लेकिन हमें नहीं चलेगा । आपको आना पड़ेगा या फिर सबके सामने ‘चीं’ बोलते हुए वीडिओ भेजो । हम मान लेंगे कि हमारी बहन चूहे से ब्याही है ।“  फोन कट गया ।

          आदरणीय बैठे सोच रहे हैं कि साली के सामने चीं बोल लें या खेल लें ।

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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

होली मूड - २ एक चिट्ठी रंग-धड़ंग


 





विद्रोही कवि प्रबल को दरवाजे पर एक चिट्ठी पड़ी मिली । चिट्ठी क्या थी पन्ना था कॉपी का । लिखा था “नौ दस ग्यारा बारा ... बारा को कर देंगे मडर तेरा, पुलिस को मत करना खबर वरना बिगाड़ देंगे खेल सारा” । वरना के बाद चाकू का चित्र बना हुआ था । प्रबलने चिट्ठी को तीन चार बार पढ़ा । बुदबुदाये कैसे मूर्ख हैं ! कम से कम ऊपर नाम तो लिखना था । कैसे पता चलेगा किसका मर्डर करने वाले हैं । वे सोचने लगे चिट्ठी यहाँ डाली है तो और कौन हो सकता है ! लेकिन उनका तो किसी से कोई झगड़ा नहीं है । दो तीन महीने से दूध का बिल नहीं दिया है । लेकिन वो मारेगा नहीं । मालिक मकान का भी बाकी है लेकिन वो आँख दिखने से आगे नहीं बढेगा । मन हुआ कि गंभीरता से लेने की जरुरत नहीं है । कल को कोई चिट्ठी छोड़ जाए कि तुम्हें जनकवि का सम्मान दिया जायेगा तो क्या सच मान लें ! जबकि वे इसके हक़दार भी हैं । उनकी कविता समाज में व्याप्त जितनी भी फूहड़तायें हैं उनके खिलाफ आवाज उठाती है । अंधभक्त हों या धर्म के नाम पर दुकान चला रहे बाबा हों या किस्म किस्म नागा हों, उन्होंने खूब लिखा है । अगर वे मनुष्यता के साथ खड़े हैं तो मार डाले जाने योग्य तो नहीं हो जाते । ईमानदारी और जनजागरण का रास्ता बड़ा जोखिम भरा है वे जानते हैं, लेकिन इतना भी नहीं होना चाहिए । चालाकियां कितनी भी सफाई से की जा रही हों कुछ लोगों को समझ में आ ही जाती हैं । जनभावना को कच्चे माल की तरह उपयोग कर लेना  आज की राजनीति है । चाँद दिखा कर बदन के कपड़े खींच रहा कोई, लेकिन किसको इतनी समझ ! एक कवि ही है जो चाँद को समझता है और दिखाने वालों को भी । अचानक प्रबल को याद आया कि आज पांच तारीख है । चिट्ठी में बारह तारीख लिखी है । हप्ता भर का समय दिया है । क्या पता उनके लिए ही हो चिट्ठी । आजकल हत्यारों की मौज है, टल्ला लग जाए तो भी मार देते हैं । पुलिस जनता की सेवक है, लेकिन वो शायद अपराधियों को ही जनता मानती है । न जाने क्यों प्रबलको चिट्ठी पर विश्वास होने लगा । और यह भी कि पुलिस कुछ नहीं करेगी । सारा तंत्र ‘न्यूनतम जिम्मेदारी अधिकतम अधिकार’ की नीति पर चलता है । कवि कोई वी.आइ.पी. तो है नहीं कि उसे सिक्युरिटी मिलेगी । जैसे गली गली में युवा ह्रदय सम्राट वैसे ही कवि भी । प्रबलको खतरा सामने खड़ा दिखाई देने लगा । वे जानते हैं कि पुलिस, अपराधी और नेताओं का चोली-दामन का साथ है । अलग अलग है लेकिन मिल कर काम करते हैं । मिलीजुली इस शक्ति को ही शासन कहते हैं । चिट्ठी में हप्ता भर दिया है तो जरुरी काम निबटा लेने में ही समझदारी  है । प्रबल  की निराशा बढ़ी । चिट्ठी जेब में रख कर सोचने लगे तो तमाम गलतियाँ दिखने लगीं । ख्याल आया कि जब लेखक बनना था तो परिवारिक जिम्मेदारी क्यों ली ! बच्चे छोटे हैं, मकान की किश्ते बाकी हैं । वह नहीं रहा तो परिवार को शोकसंदेशों के आलावा कुछ नहीं मिलेगा । काश बीमा ही करवा लिया होता । मूर्खता थी कि सोचते रहे अपन लिखने पढ़ने वाले, अपने को किसी से क्या डर । अब मिल गया मौत का फरमान तो नरक नजर आ रहा है ।

बावजूद तमाम नाउम्मीदी के प्रबल थाने पहुंचे और चिट्ठी दिखाई । साहब बोले – अभी तो सात दिन हैं आपके पास । लगता है भला आदमी है वरना फैसला करने में आजकल कोई देर थोड़ी करता है । आप जरुरी काम तो निबटा ही लो । बाकी हम देखते हैं ।

“क्या जरुरी काम निबटाऊँ साहब । देनदारियां हैं, कर्जे चुकाने हैं । ...”

“यही समय है ... और कर्जे ले लो जहाँ से भी मिले । संसार छूटा तो सब छूटा ।“

“तो ... क्या रिपोर्ट नहीं लिखेंगे ?”

“क्यों नहीं लिखेंगे ! लेकिन एक बार सोच लो, मरते आदमी को कोई कुछ नहीं देता है । उल्टा मांगने वाले चढ़ने लगेंगे । हमारा क्या है, बैठो अभी लिख लेते हैं । “

‘प्रबल’ बोले -  “ठहरो सोच लेता हूँ । क्या पता चिट्ठी गलती से मेरे घर फैक दी हो किसी ने ।“

“वो गलती क्यों करेंगे ! उनका ये रातदिन का काम है । जैसे आपका काम कविता लिखना है । सारे अपराधी मंजे हुए होते हैं आजकल ।“

 प्रबल  घर लौट आये । सोचने लगे कौन सहायक होगा । नेता और पुलिस से उम्मीद  नहीं । उन्हें याद आया कि ‘गब्बर के ताप से एकही आदमी बचा सकता है खुद गब्बर’ । आएगा सामने, वही बचाएगा । चिंता में दिन कटने लगे । ग्यारह की पूरी रात सो नहीं सके । सुबह सुबह आँख लगी थी कि आवाज से चौंके । लगा किसीने कुछ फैंका बाहर । देखा एक चिट्ठी थी पत्थर से बंधी हुई । प्रबल को लगा आज तो गए । आसपास कोई दिखा नहीं, डरते हुए चिट्ठी खोली । गुलाल से भरी हुई, और लिखा था “बुरा न मानों होली है” ।

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बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

होली मूड - १ रामगढ़ में गब्बर-गान


 



कुर्सी सम्हालते ही गब्बर ने साम्भा को साहित्य मंत्री बना दिया ।

साम्भा पहाड़ी पर बैठे बैठे चीलें गिना करता था, नहीं जनता था कि एक दिन उड़ के लग जाएगी । कुरता-जेकेट पहन कर अभी लौटा ही था कि सरदार ने पूछा – अरे ओ साम्भा, साहित्य में कितने पुरस्कार हैं कुल मिला के ?”

“पच्चीस हैं सरदार ।“ साम्भा ने आदत के अनुसार संक्षिप्त जवाब दिया । 

“पच्चीस !! पिछली सरकार वाले किसको दे रहे थे इतने पुरस्कार ?!”

“सुना है ठाकुर के आदमियों को दे रहे थे । ... वीरू और जयनुमा लोगों को ।“

“हूँ ... नहीं चलेगा अब । सब बदलेगा ... अरे ओ कालिया, कहाँ मर गया ?”

कालिया दौड़ता हुआ आया, -“ हुकुम सरदार ... मैंने आपकी नमक वाली चाय भी पी है सरदार ।“

“इसी वक्त रामगढ़ जा और चौक से चिल्ला कर सबको बता कि अब जो गब्बर-गान करेगा उसी को पुरस्कार मिलेगा । रामगढ़ में जब भी चौपाल लगेगी और लोग कविता कहानी पढेंगे, किताबों के विमोचन होंगे तो अध्यक्षता साहित्य मंत्री साम्भाजी करेंगे । तीज त्यौहार मनाएंगे, नाचेंगे, गायेंगे तो भी अध्यक्षता साम्भाजी ही करेंगे । और ये भी साफ बता देना कि जिसे साम्भाजी कह देंगे वही साहित्य माना जाएगा और जिसकी पीठ थपथपा देंगे वही साहित्यकार होगा । ... कुछ और कहना है साम्भा ?” गब्बर ने पूछा ।

“सरदार वो जय-वीरू खूब लिख रहे हैं इनदिनों । लोग छुपछुपा कर उनकी गोष्ठियों में जाते हैं । पिछली होली पर कविसम्मेलन में इन लोगों ने खूब तालियाँ बटोरी थी । सुना है इस बार भी ऐसा ही कुछ होने वाला है ।“

“होली कब है , कब है होली ?” गब्बर ने खैनी थूकते हुए पूछा ।

“अगली पूर्णिमा को है सरदार ।“

“हम खुद जायेंगे इस बार । कालिया ... रामगढ़ वालों को बता देना कि इस बार होली पर गब्बर-काका खुद आयेंगे कविसम्मेलन सुनने ।“

कालिया अपने दो साथियों के साथ रामगढ़ की चौपाल पर है, चिल्ला कर बोल रहा है – “गाँव वालों, खूब लिखो । सरदार को पसंद आया तो पुरस्कार मिलेंगे । जो जितना गान करेगा उतना बड़ा सम्मान मिलेगा । कीर्तन करो, भजन करो खूब मिलेगा ।“

तभी एक आदमी हाथ में कुछ लिए सामने आता है । “ये क्या है हरिया ?” कालिया ने पूछा ।

“पाण्डुलिपि लाया हूँ मालिक ।“

“इतनी छोटी पाण्डुलिपि !! और वो ढेर सारी कवितायें लिखी पड़ी है घर में ! वो क्या ठाकुर के लिए हैं ?”

“सारी ले आया मालिक, अब न घर में हैं न दिमाग में ।“

“दिमाग में कुछ नहीं है !! सरदार सुनेंगे तो खोपडिया उड़ा देंगे दन्न से । हर दिमाग में गब्बर-काका होना चाहिए । वरना दिमाग किस काम का, लिखना पढना किस काम का । चल भाग यहाँ से ।“

वापसी के लिए कलिया अपने घोड़े पर चढ़ा ही था कि जय और वीरू सामने आ गए । जय बोला - “कालिया अपने सरदार को बता देना कि हमारी कलम में अभी बहुत स्याही है । हम जो भी लिखेंगे धांय-धांय ठांय-ठांय लिखेंगे ।“ सुन कर कालिया लौट गया ।

गब्बर ने सुना तो तिलमिला गया । “अरे ओ साम्भा ... रामगढ़ में घर घर में लेखक तैयार करो फटाफट । बच्चा हो कच्चा हो, आदमी हो औरत हो, बुरा हो अच्छा हो, बस गब्बर साधक हो । इतने लेखक पैदा कर दो कि जय-वीरू की जान को इनसे ही खतरा हो जाये । .... और बसंती ? बसंती क्या कर रही है ?”

“अरे तुमको पता नहीं सरदार !! वो अभी भी नाच रही है ।“ साम्भा ने हरिया की पाण्डुलिपि देखते हुए बताया ।

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सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

मुर्दा भी हँसता दिखे


 



          सुपर साम्रट द्वारा युवा हृदय सम्राटों की ऑनलाइन मीटिंग ली जा रही थी । बोले – सारे सम्राट घर घर पहुंचें, एक एक व्यक्ति से संपर्क करें और लोगों को खुश रहने के स्पष्ट निर्देश दें । साफ साफ बता दें कि जो खुश नहीं होगा देशद्रोही माना जाएगा । हमारे यहाँ खुश होने की सुदीर्ध परंपरा है । लोग किसी के गिरने, उछलने-कूदने, उल्टा-सीधा होने पर मजे में खुश हो लेते हैं । वो पीढ़ी अभी भी जिन्दा है जो चवन्नी पड़ी मिल जाने पर तीन दिनों तक खुश हो लिया करती थी । इनसे प्रेरणा लेने की जरुरत है । समाज विकास की राह पर है, लेकिन कुछ सूमड़े मुंह उतार कर घूम रहे हैं । जिन्हें खुश होने में कठिनाई है उन्हें हास्य योग करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए । उन्हें कहें कि सुबह देर से उठें, दस ग्यारह बजे तक लम्बी तान के सोएं और सुख का अनुभव करें । नींद खुले तो सबसे पहले सीधे बैठ कर हंसें, हंसते जाएँ । एक व्यक्ति को हँसता देख कर दूसरे भी हंसने लगते हैं । इस तरह पूरा प्रदेश ख़ुशी के चार्ट में सबसे उप्पर आ जायेगा । न्यायपालिका सहमत हुई तो हंसने का कनून बना कर लागू कर दिया जायेगा ।

           महंगाई को लेकर विपक्ष वाले बहुत नाखुश हैं । ये छूत के बीमार दूसरों को भी नाखुश  करते हैं ।  सरकार जल्द ही महंगाई शब्द को प्रतिबंधित करने पर विचार करेगी । मिडिया महंगाई के बारे में मुंह नहीं खोलेगा, उसे संस्कारित किया जा चुका है । पुराना समय देखिये, लाल झंडे वाले महंगाई से ही जिन्दा थे, लेकिन अब गायब हैं । इसका मतलब महंगाई भी गायब है और यह ख़ुशी की सबसे बड़ी बात है । कुछ लेखकनुमा लोग महंगाई को रोते रहते हैं उन्हें संस्कारित करने की जरुरत है । महंगाई कहने की अपेक्षा ‘जीवन स्तर ऊंचा हुआ’ कहना अधिक साहित्यिक है । साहित्य वह होता है जिसमें जनता और उसके सेवकों का हित प्राथमिकता के साथ जुड़ा हो । कुछ मनहूस अफवाह फैला रहे हैं कि रुपये की कीमत गिरी है । उनकी आँखें खोली जाएंगी और दिखाया जायेगा कि कीमत वही है केवल रंग बदला है । रंग बिरंगी मुद्रा धारक को ख़ुशी प्रदान करती है । उसे लगता है कि जैसे उसकी मुट्ठी में इन्द्रधनुष है । रेडियो पर गाना बजता था  ‘तेरे लिए सात रंग के सपने चुने’ तो बेमतलब लगता था । अब मतलब निकल आया है, सात रंग के नोट सपने को साकार कर रहे हैं । सुनने-सुनाने वालों को कितनी ख़ुशी होती है इसे प्राइम न्यूज में दिखाने की जरुरत है ।

           लम्बे समय से चिल्लपों मची है कि लोगों में नफ़रत बढ़ गयी है । समाज को विभाजित किया जा रहा है । लेकिन ख़ुशी की बात है कि इस तरह शिकायतें निराधार साबित हुई हैं । जाँच एजेंसियों की रिपोर्ट से साफ हो गया है कि सब झूठ है । कुछ उदासीन फुरसती लोगों ने जबरन ‘जोड़ो यात्रा’ निकाल डाली । लेकिन आप देखिये उसमे शामिल हर आदमी खुश था । चप्पे चप्पे में अमन, शांति और खुशहाली कूट कूट कर भरी हुई है । इसलिए ध्यान रखें कि चाहे कोई नंगा-भूखा हो, बीमार हो, लुटा-पिटा हो, दीन-दरिद्र हो पर खुश दिखे । हमारा लक्ष्य वह ब्रेकिंग न्यूज है जिसमें मुर्दा भी हँसता हुआ दिखाई दे रहा हो ।

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