बुधवार, 24 अप्रैल 2024

दद्दू की जेनरिक-पोलटिक्स



इधर हमारे एरिया में एक दद्दू बड़े पापुलर हैं । प्यार से लोग इन्हें खरबुज्जा दद्दू कहते हैं । आप सोच रहे होंगे मीठे होंगे, मीठा बोलते होंगे । हमसे या किसी से भी चुपके से पूछेंगे तो उत्तर होगा नहीं । लेकिन डाइरेक्ट उनसे पूछेंगे तो वे कहेंगे हाँ । गजब का कान्फ़िडेन्स है उनमें । सच बोलने में लोगों की जुबान लड़खड़ा सकती है लेकिन दद्दू का झूठ सच का बाप होता है । उनका कहना है कि सच तो अप्पू-टप्पू, दिन-हीन, कमजोर आदमी बोल लेता है , लेकिन झूठ के लिए सवा छप्पन इंच का सीना लगता है । लोकतंत्र में एक अकेला झूठ सैकड़ों सच पर भारी होता है । कृष्ण बिहारी नूर ने लिखा है –“सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे ;  झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं “ ।  खरबुज्जा दद्दू भी यही कहते हैं, झूठ की पतंग सातवें आसमान तक उड़ाई जा सकती है । उड़ाने वाला होना चाहिए । वे मानते हैं हमारा मोहल्ला टोला ही नहीं पूरा संसार मिथ्या-मलाई है । इधर जलवा है का, झूठ से सदियाँ फलती फूलती आ रही हैं, सच के भरोसे एक दिन निकल जाए किसीका तो बताओ । अब आप समझ गए होंगे कि हमारे दद्दू विद्वान टाईप भी है । सही बता  दें ? असल में दद्दू राजनीति का कीड़ा हैं, वो भी पेस्टिसाईड प्रूफ । हम उनके खास हैं, ऐसा हम मानते हैं और अब हमारी नालायकियत देख कर वो भी मान रहे हैं । हम अभी सीख रहे हैं राजनीति का पंचतंत्र । इन दिनों वे झूठ बोलने की कला सिखा रहे हैं । उनका कहना है कि झूठ हमेशा खम ठोक कर बोलना चाहिए । जो बढ़िया झूठ बोलेगा, जो बार बार झूठ बोलेगा, जो हर बार नया झूठ बोलेगा, जो किसम किसम का झूठ बोलेगा, जो दमदार झूठ बोलेगा, जो दावेदार झूठ बोलेगा, अपने हों या पराए एक जैसा झूठ बोलेगा, जब भी मुँह खोलेगा झूठ ही बोलेगा, झूठ को सच की तरह बोलेगा और सच को कभी भी सच नहीं मानेगा,  वही लोकतंत्र का सच्चा रक्षक होगा । दद्दू कहते हैं उनकी यह बात बेजोड़ है । अगर कोई आदमी ढंग से झूठ भी न बोल सके तो एक दुकान तक नहीं चला सकता है देश क्या चलाएगा । संविधान में भले ही लिखा हो ‘सत्यमेव जयते’ लेकिन असल राजनीति संविधान से परे होती है । जो संविधान ले कर राजनीति में कूदते हैं उन्हें जीवन भर सूखी-सेवा ही करना पड़ती है । राष्ट्रीय चिन्ह देखा होगा, वही चार शेर वाला । शेरों के पैरों के नीचे लिखा है ‘सत्यमेव जयते’ । यह इतना चुभता है कि चारों शेरों की चीख निकल रही है । महाभारत में ‘अश्वत्थामा हतौ’ वाला झूठ नहीं बोल गया होता तो  शायद भगवान जीतते नहीं । इसलिए राजनीति में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ झूठ बोलना चाहिए । कल वे बताएंगे कि कमीनापन कितना जरूरी गुण है ।

हमारे एरिया में लोकल लोकतंत्र भी है । इसमें कोई सवाल मत उठाइएगा । जब पूरे देश में लोकतंत्र है तो हमारा एरिया उससे बाहर थोड़ी है । तो ... यहाँ डबल इंजन लोकतंत्र है, मतलब लोकतंत्र के अंदर एक और लोकतंत्र है , दद्दू का लोकतंत्र ।  अपने लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए दद्दू कितना आलोकतांत्रिक होंगे यह समय और जरूरत के हिसाब से तय  होता है । आसपास के सभी केबल टीवी वालों को दद्दू ने गोद ले रखा है । पोलटिक्स में करना पड़ता है, अपुन सिख रहे है उनसे । आदमी सही हो और मेढकों को गोद ले ले तो वे सांप बन जाते हैं । बस जरूरत के हिसाब से तमाशा दिखवाओ और ताली बजवाओ । आसपास के टोलों-बस्तियों की नस नस पता है दद्दू को । दलित टोले में जाएं या बाभन टोले में , जिस टोले में जाते हैं उसके हिसाब से रंग बदल लेते हैं । हिजड़ा बस्ती में नाच लेते हैं और वृद्ध आश्रम में रो भी लेते हैं । लोग भले ही समझें कि दद्दू  सस्ती टुच्ची राजनीति करते हैं लेकिन दद्दू  का कहना है कि वे जेनरिक-पोलटिक्स करते हैं । मल्टीटेलेंट वाले आदमी हैं दद्दू । बहुरूपिया भी पंद्रह बीस दिन एक भेष में रहता  है, दद्दू एक दिन में आराम  से पंद्रह बीस भेष धर लेते हैं । गिनिस बुक वालों का ध्यान गया नहीं उन पर अभी तक, लेकिन गलती उनकी है । सारी दुनिया उनके कारनामे देख रही है लेकिन वो ही नहीं देख रहे हैं ।

तो लगे हैं भईया, कुछ सीख लें अच्छी अच्छी बातें । काबिल हो गए तो राजनीति के तालाब में हम भी मछलियाँ मार लेंगे । फिर दद्दू को भी तो चाहिए अपना उत्तराधिकारी ।

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