गुरुवार, 5 जून 2025

दिमाग को छोड़ो मन को रगड़ो



“भाई साहब एक बात नोट की होगी आपने;  लगता है इनदिनों हमारे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया है ! यूँ समझिए कि दिमाग चलता ही नहीं है । “

“टेंशन मत लो, दिमाग किसी का भी नहीं चलता है । पाँव चलते हैं। पाँव पर ध्यान दो, चप्पल पहना करो ।“

“आप समझे नहीं । मेरा कहने का मतलब था कि पिछले कुछ वर्षों से चिंता के ओवर लोड के चलते दिमाग के पुर्जे ढीले हो गए ।“

“पुर्जे दिमाग मे नहीं होते हैं, मशीन में होते हैं । ढीले हो गए हैं तो मेकेनिक से कसवा लो ।“

“आप बात को समझ नहीं रहे हैं !”

“ समय की माँग है कि लोग बात को नहीं समझने की आदत डाल लें । जो बात समझ जाते हैं वो कमबख्त सवाल पूछते हैं । गाँधी जी ने कहा है कि मन, वचन या कर्म से किसी को दुख पहुंचना हिंसा है । तो सवाल पूछना हिंसा है । धारा तीन सौ सात भी लग सकती है । सरकार देवता है, हमेशा पुष्प वर्षा करती है तो बटोरो, माला बनाओ पूजा पाठ में लगो मजे में । इसमे कुछ समझने या दिमाग चलाने की क्या जरूरत है ! ना समझे वो देशभक्त होता है । “

“आदरणीय आप क्या कह रहे हैं हमे कुछ समझ में नहीं आ रहा है । “

“यही रवैया होना चाहिए । कोई कुछ भी कहे मान लो कि हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा है । समझ लेने के खतरे बहुत है । ज्ञानी हो तो घर में बैठो, लूडो खेलो । समझ से खुद भी दूर रहो और अपने बच्चों को भी दूर रखो ।“

“ ऐसे कैसे मान लूँ दीनानाथ जी ! मूर्ख बने रहना क्या आसान काम है ! कुछ तो जानना समझना पड़ता ही है । “

“पढ़े लिखों के लिए कोई काम कठिन नहीं है । जमाने के साथ चलो । मन चांगा तो कठौती में गंगा । दिमाग को छोड़ो मन को रगड़ो ।“

“मन की ही तो दिक्कत है । मानता ही नहीं कमबख्त ।“

“खैनी चबाने वाले कैसे रगड़ते हैं हथेली पर । जितना रगड़ते हैं उतना मजा देती है । कबीर ने कहा है –‘मन मस्त हुआ तो क्यों बोले ‘ । यह एक तरह का योग है । अभ्यास से आएगा । जो लोग पहले मेंढक को देख कर मेंढक-मेंढक चिल्लाते थे अब साँप को देख कर भी चुप लगाये रहते हैं । कला है बाबू कला । ऊंचे लोग ऊंची पसंद । अंदर से बाहर तक केसरी ।“

“साँप दिखाई देते हैं क्या आजकल ?!”

“हाँ, सब देख रहे हैं । भगवान के गले में, भुजाओं में लिपटे दिखाई देते हैं । महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी, हत्या, बलात्कार वगैरह सब साँप ही तो हैं ।“

“साँप तो श्रंगार है भगवान का । अपन प्रभुजी की वंदना करते हैं तो इनकी भी हो जाती है । जानते हो ना, पृथ्वी जो है नाग के फन पर टिकी हुई है ।“

“ सही दिशा में बढ़ रहे हो । ऐसे ही सोचते रहोगे तो दिमागी समस्या खत्म हो जाएगी । वो भजन सुना होगा – ‘हवा के साथ साथ, घटा के संग संग ... ओ साथी चल ... यूँ ही दिन रात चल तू ।‘

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