मंगलवार, 9 जुलाई 2019

ईमानदारी के पक्षधर



कुर्सी पर ठीक से काबिज होने के बाद वे ईमानदारी के पक्षधर हो गए । राजनीति भी कहती है कि  पक्षधर होना ईमानदार होने से ज्यादा फायदे की बात है । सफल आदमी फ्रूट मर्चेन्ट की तरह पेड़ का पक्षधर होता है  लेकिन पेड़ लगाना उसके लिए जरूरी नहीं है । जब भी मन हुआ वह किसी भी हरे में जा कर अपनी पक्षधरता का जश्न मना सकता है । जैसे पक्षधर यहाँ वहाँ धर्म पताकाएँ तान आते हैं और जब अपने निजी में प्रवेश करते हैं तो हरी पीली लुंगियों में घूमते हैं । लड़ाई झगड़ों, युद्ध या दंगे- फ़सादों के पक्षधर अकसर सुरक्षित स्थानों  पर चौपड़ और पाँसे लिए बैठे होते हैं । ईमानदारी का पक्षधर मन, वचन और कर्म से दृढ़ता पूर्वक दूसरों को ईमानदार देखना चाहता है । यही उसका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण काम है । वह जानता है कि ईमानदार आदमी को कुछ नहीं मिलता है । देश के करोड़ो गरीब दरअसल ईमानदारी का ही प्रतीक हैं । वो यह भी जानता है कि गरीब के कंधों पर लोकतन्त्र एक लदान है । इसलिए लोकतन्त्र को बनाए रखने के लिए गरीबों की रक्षा जरूरी है और गरीबी बनाए रखने के लिए मजबूत ईमानदारी की । गरीब लोकतंत्र का हल खींचने वाले बैल हैं जिनके मुंह पर जाली बंधी होती है । वे गर्व से अपने को लोकतन्त्र का सिपाही घोषित करते हैं ।
बिजली की तरह अगर ईमानदारी की भी मीटर रीडिंग हो सकती तो पता चलता कि जो जितना ईमानदार वो उतना गरीब है । यदि ऐसा हो सकता तो हम किसी को गरीबी के आंकड़े बताते हुए शर्मिंदा नहीं होते बल्कि ताल ठोंक कर ईमानदारी के लिए गिनिस वर्ल्ड रेकर्ड वालों की नींद उड़ा देते । दुनिया वाले भी गरीबों के आधार कार्ड देख कर हमारे दावे को सहज स्वीकारना पड़ता । हालांकि शेष रहे कुछ उलटापंथी विचारक यहाँ भी पाकेट साइज़ लाल झण्डा ले कर हाय हाय करने से बाज़ नहीं आते । उनके चिंतन का यह विषय हो सकता है कि लोग ईमानदारी के कारण गरीब हैं या गरीबी के कारण ईमानदार । लेकिन लोकतन्त्र में हाय हाय को भी रामलीला मैदान दिया जाता है । सब अपना काम करें इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है । जल्द ही सबको स्मार्ट फोन दिए जाएंगे । जिनके पास काम नहीं होगा वह भी व्यस्त हो जाएगा । व्यस्तता विकास का प्रमाण है । फेसबुक में आम राय है कि जो व्यस्त है वही मस्त है । जन्म-मरण, हानि-लाभ तो ऊपर वाले के हाथ में है । भाग्य का लिखा टलता नहीं और समय से पहले व भाग्य से ज्यादा मिलता नहीं । सो भाई सबके दाता राम ।  वाट्सेप से फेक न्यूज के जरिए सिस्टम के हाथ मजबूत कर देश सेवा करना छोटा काम नहीं है । हर नौजवान को डेढ़ जीबी डाटा में लगाए रखने की मंशा पक्षधर पार्टी की है ।
एक दिन पक्षधर पार्टी ने आदेश निकाला कि सब लोग हर हाल में सफाई रखें । यानी जो आधा पेट खा रहे हैं वे भी सफाई पूरी रखें । दुनिया भर के लोग अभी भी हमारे यहाँ की गरीबी देखने में रुचि रखते हैं । पर्यटकों को पुरातन गरीबी होना लेकिन स्वच्छता के साथ । देश तेजी से विकसित हो रहा है और गरीब अगर साफ सुथरे होंगे तो पर्यटन उद्योग में बूम आएगा । इसलिए खुले में शौच नहीं जाएँ क्योंकि खुले के नाम पर अब सड़कें, गार्डन, स्कूल और धार्मिक स्थलों के परिसर ही बचे हैं । बच्चे ज्यादा पैदा करें ताकि देश गरीबी तथा  ईमानदारी के मामले में आत्मनिर्भर बना रहे और लोकतन्त्र को भी लंबी उम्र मिल सके । सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएँ और राष्ट्रभाषा का गौरव बढ़ाएँ । अंग्रेजी गुलामी की भाषा है लेकिन हमारे गरीब गुलामी के लिए इसके मोहताज नहीं हैं । दुनिया जानती है कि हमारी आदर्श व्यवस्था हमेशा गरीबों के साथ बैठी है । बावजूद इसके यह भी याद रखें जिसका कोई नहीं होता है उसका भगवान होता है, इसलिए मंदिर भी बनाएँगे । एक बड़ा कदम उठाते हुए बिना किसी पैसे के बैंकों में खाता भी खुलवा दिया गया  है । अमीरों की तरह अब गरीब भी सेम टू सेम पासबुक वाले हो गए हैं । इसे आप लोग ईमानदारी कि पासबुक कह सकते हैं । बेलेन्स ज़ीरो के बावजूद आपको अभूतपूर्व गर्व की अनुभूति होगी । किसी जमाने में हवेलियों के आगे बंधे हाथी से उतना गर्व नहीं होता था जितना गर्व गरीब के घर पिंजरे में बंद दूध रोटी बोलने वाले तोते से हो सकता है । पासबुक यही तोता है ।
बहुत से राजनीति प्रेरित लोग शराब के पीछे पड़े हैं । जिन्होंने शराब बंदी की है उन्हें पछताना पड़ेगा । सामाजिक समरसता के लिए यह एक बहुत जरूरी चीज है । कहते हैं शराब पैसे वाले को ऊपर उठती है और गरीब को नीचे ले जाती है । तो साफ है कि दोनों के बीच पर्याप्त दूरी बढ़ती है और वर्ग संघर्ष की संभावना समाप्त हो जाती है । आपको याद होगा कि मार्क्स ने वर्ग संघर्ष को अनिवार्य कहा है लेकिन हमारे पक्षधर उनसे बड़े विचारक हैं । आगे बढ़ाने के लिए आपसी संघर्ष नहीं शांति चाहिए । लोग क्रिकेट देखें और शराब पीएं, शराब पीएं और क्रिकेट देखें यही शांति का सर्वोच्च है ।
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उत्तरगीता



युद्ध में भारी पराजय के बाद राजा को वैराग्य हो गया । उसे लगा कि संसार मिथ्या है । उसके मन में तरह तरह के सवाल आ रहे थे । जैसे कि मैं लड़ा ही क्यों !? अगर राजा की नियति लड़ना है तो राजा हुआ ही क्यों ! यदि राजकुल में पैदा होना इसका कारण है तो उफ़्फ़, इस वक्त मुझसे बड़ा अभागा कौन ! उसे दुख इस बात का है कि अभी भी शेष रह गए सूरमा अस्तबल में अपने घोड़ों कि खुर्रा मालिश में क्यों व्यस्त हैं ! राजा को अब समझ में आय कि वह अकेला युद्ध लड़ रहा था । पराजय के बाद पता नहीं क्यों उसे इस विचार से राहत मिली । किताबों में अकेले लड़ने वालों को बड़े सम्मान से याद किया जाता है, भले ही वो पराजित हुए हों । उसे दरबारी कवि की याद आ गई । काश कि इस मौके पर वह कुछ लिखता जिसे सुन सुना कर वे सहानुभूति जुटा पाते । जैसे – “लेकर कारवां चला था जनिबे मंजिल मगर, लोग छुटते चले गए, अकेला मैं रह गया । “  उसके मन ने कहा युद्ध से पहले अर्जुन को बहकने वाले की तरह काश कोई आ जाए ।
रात गहरा गई थी, टीवी का सारा ब्रेकिंग टूट कर बिखर चुका था । राजा दफ्तर में अपनी बहुत बड़ी सी पीएम नुमा कुर्सी पर निढाल पड़ा था । उसका मन हो रहा था कि काश वह कुछ देर के लिए अचेत हो जाए ताकि इसी बहाने कुछ सो ले । लेकिन जब ऊपर वाले ने मनोकामना पूरी नहीं करने की ठान रखी हो तो कोई क्या कर सकता है । अचानक राजा को लगा कि यह पराजय ईश्वर की है ! ईश्वर लोकतन्त्र का रक्षक भले ही न हो भक्तों का रक्षक तो है ही । जरा सा विवेक पैदा कर देते लोगों में तो बहत्तर हजार किसने बाप के थे ! लेकिन ईश्वर भी क्या करता । दूघ के जलों को छाछ पर भरोसा नहीं हुआ । सामने सोफ़े पर नब्बे बरस के स्पाइडर मेन ऊँघते ऊँघते अधलेटायमन हो चले थे । राजा की दादी ने इन्हें अपनी अलमारी में जगह दी थी, पापा ने पढ़ा और अब वही पुरानी कमिक्स उसके माथे पड़ी है । कई बार सोचा रद्दी में निकाल दें लेकिन कार्यालय पुराना और बड़ा है । जगह कि कोई कमी नहीं है इसलिए पटक रखा है कि कभी भांजा भांजी के काम आ सकते हैं ।
रौशनदान विहीन दफ्तर में आकाश दृश्यमान नहीं था इसलिए पाँच एसी में से किसी एक से आवाज आई – “राजन , पराजय एक भ्रम है , मूल बात है युद्ध लड़ना । लड़ना तुम्हारा कर्तव्य था जो तुमने पूरा किया । तुम इससे अधिक कुछ नहीं कर सकते थे । ....”
“अरे प्रभु तुम !! ... ये क्या सुना रहे हो मुझे ! “
“हे वीर, ये उत्तरगीता है । पराजय के बाद इसका श्रवण वैराग्य को सरल बनाता है । तुम पद छोड़ रहे हो ना ?”
“ हे मधुसूदन, पराजय की ज़िम्मेदारी मेरी है लेकिन नहीं भी है । मैं पद छोड़ रहा हूँ लेकिन नहीं भी छोड़ रहा हूँ । अब मुझे किसी पर विश्वास नहीं है पर रखना तो पड़ेगा । जो कर्मठ हैं उनकी जरूरत है लेकिन उन्हें बुलाऊँगा नहीं । मैं पद उसको देना चाहता हूँ जो सदा पद में शोभित रहे । “
“ हे बाहुबली, तुम राजनीति में पारंगत हो । शिखंडी की ओट से अर्जुन ने गंगापुत्र भीष्म को मारा था । तुम्हारा प्रयास अच्छा है । सफलता कितनी मिलेगी, यह समय बताएगा । “
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