सोमवार, 29 मार्च 2021

अश्वत्थामा हतौ ...

 




           किसी ज़माने में झूठ बोलने वाले को राजा दरबार में सबके सामने छड़ी से पिटवाया करता था . गुनाह यह होता था कि झूठ उसने क्यों बोला . झूठ ऐरे गैरों के बोलने की चीज नहीं है . मामूली मुँह झूठ के वजन से खुद ही पिचक जाता है . आम आदमी सीधा-सच्चा और चरित्रवान होना चाहिए . चरित्र एक तरह का बारकोड होता है, ऊपर से कुछ भी समझ में नहीं आए लेकिन अन्दर एक एक लेनदेन दर्ज होता है . लोग घरों में रहते दिखाई देते हैं लेकिन असल में वे बाज़ार में रहते हैं . बाज़ार की पहली शर्त सफलता है . चिंता की बात यह है कि हर कोई झूठ बोलने लगेगा तो झूठ की मार्केट वेल्यू क्या रह जाएगी . घार्मिक विद्वानों ने कहा है कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है और लोगों ने इस झूठ को श्रद्धा पूर्वक पचा लिया . इसी को राष्ट्रप्रेम कहते हैं . लोगों को पूरे विश्वास के साथ झूठ पर कान देना चाहिए. झूठ सुनना और उस पर सहमत रहना देशभक्ति है . जो झूठ को झूठ मानते हैं वे गलत तरीके से शिक्षित हैं और कम्युनिस्ट भी हैं . देशभक्ति को गरिमा प्रदान करने के लिए इनसे सख्ती से निपटने की जरुरत है . हाथों में लाल रुमाल ले कर, सच के नाम पर आदर्श सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ने की इजाजत इन्हें नहीं दी जा सकती है .

              कहते हैं कि झूठ के पैर नहीं होते हैं . जिस राज्य में झूठ विकलांग रह जाता है वहां की सरकार निकम्मी कहलाती है . झूठ को पैर लगाने का काम राजनीतिक कौशल से ही संभव होता है . जब चलते धर्मयुद्ध में कहा गया कि “अश्वत्थामा हतौ ...” तभी से राजनीति में झूठ को दौड़ने वाले पैर मिल गए . जिस झूठ में प्रभु का समर्थन हो वो संसार का नियम हो जाता है ... और नियमों से ही व्यवस्था बनती है . जो व्यवस्था में नहीं हैं वो कितने ही बड़े क्यों न हों डस्टबिन के लायक हैं . हरी नीली बास्केट में कितने सफ़ेद हाथी अपने पीले दांत बगल में दबाए पड़े हैं किसी को पता है !?

             समझदार कह गए हैं की शिखर पर पहुँच तो सकते हैं लेकिन शिखर पर बने रहना बहुत मुश्किल है . लोकतंत्र के चलते राजा बने रहना तो और भी कठिन है . हर दूसरी सभा में छाती ठोक के ‘अश्वत्थामा हतौ ...’ कहना पड़ता है . इसके लिए सवा किलो का कलेजा लगता है . वक्त जरुरत जब बयान देना हो, कोई वादा करना हो, कोई आंकड़ा बताना हो यानि विकास वगैरह का,  तो झूठ के बिना बड़ी दिक्कत हो जाती है .  हर मौके के लिए अलग रंग, अलग ढंग का, अलग वजन का झूठ चाहिए होता है ! कहीं सफ़ेद झूठ, कहीं ग्रे, कहीं काला, हरा, पीला, लाल झूठ . कभी इतिहास का, कभी वर्तमान का और कभी भविष्य का झूठ . कभी धर्म का, कभी विज्ञान का, कभी भूख, कभी गरीबी, कभी दान, अनुदान का . ज्ञानी कह गए हैं कि संसार मिथ्या है तो इसके मायने अब समझ में आ रहे हैं . राजनीति का बड़ा सच छोटे से राजनीतिक-झूठ में छुपा हुआ होता है . राजनीति में झूठ एक परफोर्मिंग आर्ट है . जनता भी वोट देने से पहले परफोर्मेंस देखती है . कोई चीख कर, चिंघाड़ कर, मटक मटका कर, अंडे को कबूतर में और आदमी को गधे में बदल देता है वही अव्वल आता है . झूठ का जादू मिडिया में चढ़ कर बोलता है . इसीलिए जनता को यानि हम लोगों को नेता नहीं जादूगर चाहिए . जी बोल दे ‘अश्वत्थामा हतौ ...’ और पूरी बाज़ी पलट जाए .

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सोमवार, 15 मार्च 2021

दुखी होने का क्या लोगे ?

 

         


                    

                 पुराने चावल कहाते रहे तो पन्नों में बासमती दर्ज हो गए . सम्हाल ठीक से नहीं हुई तो इल्लियाँ पड़ गयीं और कब बास मरने लगे पता ही नहीं चला . राष्ट्रीय पार्टी का ठप्पा होने के कारण उसकी जिम्मेदारी ज्यादा है . विपक्ष में हैं और उनके रहते  जनता दुखी न हो यह डूब मरने की बात है . इतिहासकार लिखेंगे पार्टी इसलिए डूब गई कि वो जनता को दुख का अहसास नहीं करा सकी ! हालाँकि उनके पास पीढ़ियों का अनुभव है कि दुःख में से सुख कैसे निकला जाता है . कहा जाता है कि डर के आगे जीत है . इसका राजनितिक मतलब है जो डराने में सफल हो जाता है वही जीतता है . विडम्बना ये है कि डरा वही सकता है जो खुद डरा हुआ नहीं हो . महापुरुष गब्बर सिंग प्रवचन दे गए हैं कि जो डर गया वो मर गया . लेकिन इससे डर ही बढ़ता है निडरता नहीं आती . उस पर एक एक करके जय और वीरू पाला बदलते जाएँ तो सीने का नाप बदल जाता है, इधर भी और उधर भी . दाढ़ी बढ़ाने से आत्मविश्वास बढ़ता है लेकिन सुना है कम्बख्त गर्लफ्रेंड नहीं मानती . जिन्हें पहाड़ जैसा कुछ चढ़ना है उन्हें किसी भी तरह की यानी पार्ट टाइम या फुल टाइम गर्लफ्रेंड से दूर ही रहना चाहिए . अनुभवी बताते हैं कि उसका रिचार्ज करवाते करवाते अच्छा भला आदमी पचास का हो जाता है . कोई शायर कह गए हैं कि “खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए न उधर के हुए;  रहा दिल में हमारे ये रंज-ओ–अमल, न इधर के हुए न उधर के हुए ” .  लेकिन अनुभव जलेबी है उज्जैनी मावे की, खाए बगैर कोई मानता भी नहीं है . गुरु कहते हैं कि राजनीति भरवाँ बैंगन नहीं हैं दादी के हाथ के, कि आए बैठे और मजे ले के डबल सटका  गये . इतना आसन भी नहीं है कि जनता से सीधे पूछ लें कि भईया दुखी होने का क्या लोगे !  आजकल लोग सयाने हो गए हैं, ज्यादा कुरेदो तो शेरवानी और लाल गुलाब दिखाने लगते हैं .

                  इधर जानता अपने को सुखी महसूस करने पर अमादा है . औंधा लटका के कोई खाल भी खिंच ले तो थेंक्यू कहने पर उतारू . पता चलता है हर आदमी जबरा फिलासफर है . मानता है सोचो तो संसार में दुःख ही दुःख है नहीं सोचो तो सुख ही सुख . सारी दिक्कत सोचने की वजह से है . सोचने का सम्बन्ध ज्ञान से है और ज्ञान दुकान पर मिलता है . दुकान का नाम टीवी और इंटरनेट है . ये सुख करता दुःख हरता हैं . राजनीतिशास्त्र में लिखा है कि  इन्हें नेवेद्य लगाओ तो प्रसन्न होते हैं या फिर इनकी नाक दबाओ तो मुंह खुलते हैं . राजनीति नकार को स्वीकार में बदलने की कला है . सो पूरी टीम को व्यवहारिक होना चाहिए . नाच मेरी टीवी-बुलबुल तुझे पैसा मिलेगा . जिसे लोग चैनल समझते हैं वो दरअसल चीयर गर्ल है . उधर बल्लेबाज झूम के शाट लगाते हैं इधर गर्ल्स चेयर से उछल उछल जाती हैं . दर्शकगणों  आप सोचो मत, कोई पूछे तो बताओ कि मजे में हो . यह समझ लो कि खुश रहना ही देशप्रेम है . टीवी वालों का क्या है ... रस्सी, डमरू और डंडा सरकारी; नाचे कूदे बंदरिया, खीर खाए मदारी . तो सब लोग बजाओ ताली, जो न बजाए उसको मारे घरवाली.

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बुधवार, 10 मार्च 2021

लाल कोबरा का डिस्को डांस

 


                         लाल कोबरा अपने बिल से बाहर निकला तो जंगल की बदली रंगत देख कर उसकी फूंक निकल गई . चारों ओर सरसों और टेसू फूले हुए थे . माहौल में ग़जब का उछाल था और जमीन से आसमान तक कहीं केसरिया तो कहीं पीला दमक रहा था . वह सोच में पड़ गया कि क्या गजब अनसोचा सीन है !! उसके मुंह में जितने डॉयलाग पड़े हुए थे सारे सकते में आ गए . अभी तक तो सब तरफ लाल था कहाँ चला गया ! वह लाल से ही होली खेलता आ रहा था . जब लोग लाल से होली खेलते थे तो लगता कि पार्टी का प्रमोशन हो रहा है. लाल उसका इतना प्रिय कि खुद अपने खून से उसे ‘कामरेड, कोई शक’ की आवाज सुनाई देती है .  उसने  गरीबों का मसीहा बनने के लिए डंडा पकड़ा था . स्कूल में जब परेड होती थी तो वह लेफ्ट-राइट को अनसुना कर देता था और उसकी जगह लेफ्ट-वन लेफ्ट-टू सुनता . लेफ्ट ही उसका राइट था और राइट हमेशा लेफ्ट . उसने लाठी को उठा कर उसका वजन कूता और हाईकमान को फोन लगाया, -“साहब  इधर तो सब मोसंबी-नारंगी है ! मेरा लाल किधर गया ? होली है सर होली ! सारा लाल साफ कर दोगे तो होली कैसे खेलेगी पब्लिक ! थोड़ा लाल जरुरी है कल्चर के वास्ते.”

                “नवजात ... भूल जाओ लाल को, याद रखो लाल को देखते ही भड़क जाना अब तुम्हारी ड्यूटी  है .” साहब ने याद  दिलाया .   

               “लेकिन साहब मैं लाल कोबरा हूँ .”

               उधर से आवाज आई - “कोबरा नहीं तुम डांसर थे और अब सांड हो . कोई डांसर अपने आपको कोबरा-फोबरा कुछ भी समझता रह सकता है लेकिन पार्टी का अपना आकलन होता है .  पार्टी अनुशासन को फ़ॉलो करो, लाल को देखते ही तुम्हें फ़ौरन भड़क पड़ना है . कोई शक ?”

                “नहीं साहब, ... जी साहब, जिधर भड़काओगे भड़क जाऊंगा साहब .  लेकिन होली का क्या ? वो तो लाल से ही ....”

                 “अनुशासन को प्राथमिकता दो डांसर, यहाँ डिस्को नहीं भारतनाट्यम सिखाया जाता है . सुबह जल्दी उठो, प्रार्थना करो और व्यायाम भी . वरिष्ठजनों  से ज्ञान  लो उसके बाद मुंह खोलो . और होली है तो टेसू के फूल चुनने जाओ.  कुछ दिन रहो हमारे साथ , अच्छा लगने लगेगा.  वैसे कोबरा जी, आप चिंता मत करो उचित समय आने पर आपको दूध भी पिलाया जाएगा.” साहब ने फोन बंद कर दिया .

                  कोबरा ने अपने को ऊपर से नीचे तक देखा, एक लहर सी उठी और लगा कि उसका अस्तित्व एक दुम में तब्दील हो गया लग रहा है . उसने ऊपर देखते हुए अपने आप से सवाल किया कि एक कोबरा दुम कैसे हो सकता है !! आकाशवाणी हुई, प्रभु बोले - ‘ वत्स, लेफ्ट से राइट हो चुके हो तुम . विकास के इस मायावी पथ पर अनेक रंगबिरंगी दुमें साथ चलीं जो अब ब्लेक कोबरा हैं .  तुम भी विकास पथ पर आगे बढ़ चुके हो तो दुम क्या चीज है, कुछ भी हो सकता है . वैसे सांड होना भी बुरा नहीं है. प्रमोशन समझो इसे. सोचो भगवान के गले में लिपटे पड़े होने से उन्हें पीठ पर ले कर चलना अधिक सम्मानजनक है. सो अब उठो, चाय-वाय पियो, केंचुली बदलो फटाफट और लाल रंग देख कर भड़को.  ...   क्या पता कल को सीएम ही बना दिये जाओ ...  नई  जिम्मेदारी है, इसमे कोई शक नहीं होना चाहिए ? ”

                  वह बुदबुदाया “भालो पोरभो ... आमि इक्ता कोबरा , इक चोबोल-ई छोबि .”