“बाउजी
अपना तो मानना है कि आदमी को अपनी लड़ाई खुद लड़ना पड़ती है । और लड़ाई वही जीतता है जिसके
हौसले बुलंद होते हैं । वो कहते हैं ना ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । कल
अपन ने बंगला देखा एक । मार्केट में बिकने को आया है । पांच करोड़ मांग रहा है । दो
मंजिला है । आगे पोर्च भी है और पीछे वश एरिया है बड़ा सा । थोड़े पेड़ भी लगे हैं ।
अच्छा है ।“ मनसुख ने बताया ।
“पांच करोड़
का बंगला ! फिर !?”
“फिर क्या
! अभी तो दो तीन बार और देखेंगे । मिसेस को भी ले जाऊंगा । वो भी देख लेगी अच्छे
से, अन्दर बाहर सब । उसको भी बड़ा शौक है ।“
“मनसुख
पांच करोड़ का बंगला ले लोगे तुम ?!”
“पांच तो
बोल रहा है । टूटेगा अभी कुछ दिन बाद । प्रापर्टी में ऐसा ही होता बाउजी । लोग मूं
फाड़ते हैं पर मिलता थोड़ी है ।“
“फिर भी
कितना टूटेगा ? ढाई करोड़ से नीचे तो जायेगा नहीं । “
“वो कुछ भी
बोले अपन तो दो करोड़ लगायेंगे बस ।“
“दो करोड़
में कैसे दे देगा ?!”
“तो नहीं
दे । मेरे पास कहाँ हैं दो करोड़ । अपनी कोई लाटरी थोड़ी लगी है ।“
“जब रुपये
हैं नहीं तो क्यों जाते हो प्रापर्टी देखने !?”
“मंगाई
कित्ती है बाउजी । तनखा में कुछ पुरता थोड़ी है । महीने के आखरी चार पांच दिन तो
समझो बड़ी मुस्किल से कटते हैं । मन मर जाने को करता है ।“
“ऐसे में
करोड़ों का मकान देखने का क्या मतलब है मनसुख ! “
“अन्दर से
मजबूती बनी रहती है । बाउजी हौसला बुलंद होना चइये । गरीब आदमी के पास अगर हौसला
भी नहीं हो तो लडेगा कैसे । ड्रायवरी का ये मजा तो है कि सेठ जी कार ले के कहीं भी
जाने का मौका मिल जाता है और प्रापर्टी देख लेते है ठप्पे से । ... अभी तो एक जमीन
भी देखी अपन ने । तीस किलो मीटर पे है । सत्तर करोड़ मांग रहा है । अच्छी खातिरदारी
करी किसान ने । अपन ने तीस करोड़ लगा दिए हाथो हाथ ।“
“तीस करोड़
! !“
“अरे देगा
थोड़ी । पचास से नीचे नहीं आएगा वो । पर जमीन अच्छी है । खेती होती है । फलों के
पेड़ भी हैं , दो कुएं और तीन बोरवेल हैं । मोटर लगी हुई है । अपने को कुछ नहीं करना
है । चलती हुई प्रापर्टी है । रजिस्ट्री कराओ और हांको जोतो मजे में ।“
“किसी दिन
फंस मत जाना यार तुम । जिंदगी भर चक्की पिसिंग करते रह जाओगे ।“
“फंसे हुए
तो हैं ही बाउजी गले गले तक । दो महीने का मकान किराया चढ़ गया है । मकान मालिक
तगादे करता है । टालने के लिए अन्दर से दमदारी चइए । सोच में करोड़ों हों तो
कान्फिडेंस बना रहता है । महंगाई से तो आप भी कम परेशान नहीं हो । चलो किसी दिन
आपको भी कुछ प्रापर्टी दिखा देता हूँ । फिर देखना आप, सोच ही बदल जायेगी, लगेगा
अच्छे दिन आ गए ।“
“रहन दे
भिया । झोले में नहीं दाने और अपन चले भुनाने ।“
“ऐसा नहीं
हैं बाउजी । कार चलता हूँ लेकिन सोच ये रखता हूँ कि कार मेरी है, सेठ तो बस सवारी
है । वोट भी मैं प्रधानमंत्री को ही देता हूँ चाहे पार्षद का चुनाव हो रहा हो ।
बड़ा सोचने पर कोई जीएसटी नहीं लगता है । और ये भी हो सकता है कि किसी दिन भगवान
तथास्तु बोल दें । “
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