बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

बड़ा सोचने पर कोई जीएसटी नहीं लगता


 


“बाउजी अपना तो मानना है कि आदमी को अपनी लड़ाई खुद लड़ना पड़ती है । और लड़ाई वही जीतता है जिसके हौसले बुलंद होते हैं । वो कहते हैं ना ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ । कल अपन ने बंगला देखा एक । मार्केट में बिकने को आया है । पांच करोड़ मांग रहा है । दो मंजिला है । आगे पोर्च भी है और पीछे वश एरिया है बड़ा सा । थोड़े पेड़ भी लगे हैं । अच्छा है ।“ मनसुख ने बताया ।

“पांच करोड़ का बंगला ! फिर !?”

“फिर क्या ! अभी तो दो तीन बार और देखेंगे । मिसेस को भी ले जाऊंगा । वो भी देख लेगी अच्छे से, अन्दर बाहर सब । उसको भी बड़ा शौक है ।“

“मनसुख पांच करोड़ का बंगला ले लोगे तुम ?!”

“पांच तो बोल रहा है । टूटेगा अभी कुछ दिन बाद । प्रापर्टी में ऐसा ही होता बाउजी । लोग मूं फाड़ते हैं पर मिलता थोड़ी है ।“

“फिर भी कितना टूटेगा ? ढाई करोड़ से नीचे तो जायेगा नहीं । “

“वो कुछ भी बोले अपन तो दो करोड़ लगायेंगे बस ।“

“दो करोड़ में कैसे दे देगा ?!”

“तो नहीं दे । मेरे पास कहाँ हैं दो करोड़ । अपनी कोई लाटरी थोड़ी लगी है ।“

“जब रुपये हैं नहीं तो क्यों जाते हो प्रापर्टी देखने !?”

“मंगाई कित्ती है बाउजी । तनखा में कुछ पुरता थोड़ी है । महीने के आखरी चार पांच दिन तो समझो बड़ी मुस्किल से कटते हैं । मन मर जाने को करता है ।“

“ऐसे में करोड़ों का मकान देखने का क्या मतलब है मनसुख ! “

“अन्दर से मजबूती बनी रहती है । बाउजी हौसला बुलंद होना चइये । गरीब आदमी के पास अगर हौसला भी नहीं हो तो लडेगा कैसे । ड्रायवरी का ये मजा तो है कि सेठ जी कार ले के कहीं भी जाने का मौका मिल जाता है और प्रापर्टी देख लेते है ठप्पे से । ... अभी तो एक जमीन भी देखी अपन ने । तीस किलो मीटर पे है । सत्तर करोड़ मांग रहा है । अच्छी खातिरदारी करी किसान ने । अपन ने तीस करोड़ लगा दिए हाथो हाथ ।“

“तीस करोड़ ! !“

“अरे देगा थोड़ी । पचास से नीचे नहीं आएगा वो । पर जमीन अच्छी है । खेती होती है । फलों के पेड़ भी हैं , दो कुएं और तीन बोरवेल हैं । मोटर लगी हुई है । अपने को कुछ नहीं करना है । चलती हुई प्रापर्टी है । रजिस्ट्री कराओ और हांको जोतो मजे में ।“

“किसी दिन फंस मत जाना यार तुम । जिंदगी भर चक्की पिसिंग करते रह जाओगे  ।“

“फंसे हुए तो हैं ही बाउजी गले गले तक । दो महीने का मकान किराया चढ़ गया है । मकान मालिक तगादे करता है । टालने के लिए अन्दर से दमदारी चइए । सोच में करोड़ों हों तो कान्फिडेंस बना रहता है । महंगाई से तो आप भी कम परेशान नहीं हो । चलो किसी दिन आपको भी कुछ प्रापर्टी दिखा देता हूँ । फिर देखना आप, सोच ही बदल जायेगी, लगेगा अच्छे दिन आ गए ।“

“रहन दे भिया । झोले में नहीं दाने और अपन चले भुनाने ।“

“ऐसा नहीं हैं बाउजी । कार चलता हूँ लेकिन सोच ये रखता हूँ कि कार मेरी है, सेठ तो बस सवारी है । वोट भी मैं प्रधानमंत्री को ही देता हूँ चाहे पार्षद का चुनाव हो रहा हो । बड़ा सोचने पर कोई जीएसटी नहीं लगता है । और ये भी हो सकता है कि किसी दिन भगवान तथास्तु बोल दें । “

 

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