शनिवार, 30 मार्च 2024

2024 - एक लव स्टोरी


 




टायगर और गीदड़ी लिवइन में रह रहे थे । गीदड़ी ने कई बार कहा कि अब शादी कर लेते हैं । लेकिन टायगर नहीं माना । उसे डर था कि कहीं वह शादी के बाद गीदड़ न हो जाए । न हो वह गीदड़, अगर गीदड़ी टायगरन हो गयी तो भी दिक्कत हो जाएगी । जात पांत और विचारधारा भी अलग होने के बावजूद गीदड़ी से उसका प्यार परवान चढ़ा था । यों तो जंगल वाले किसी टायगर पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन गीदड़ी जिगरे वाली है । कहती है प्यार किया तो डरना क्या ! अब  सर फूटे या माथा ... मैंने तो हाँ कर ली । बस इसी बात पर वह फ़िदा था । वह शहर भी जाती थी । कहते हैं कि गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर जाता है । लेकिन वह नयी सोच वाली, अन्धविश्वास से दूर और जांबाज़ है ।

पिछले दिनों गीदड़ी जब जब भी शहर से लौटी तो अपने टायगर के लिए कुछ समोसे लेकर आई । यूनो, मादाएं कोई भी हों वे प्रायः अपनी भावनाएँ अलग और सुन्दर ढंग से व्यक्त करती हैं । टायगर को समोसों का ऐसा स्वाद लगा कि वह आएदिन गीदड़ी को शहर भेजने के बहाने ढूंढते रहता । ज्यादा समय नहीं लगा, टायगर चटोरेपन की चपेट में आ गया । शिकार की उसकी आदत जाती रही । गीदड़ी के कारण उसके दिन समोसानंद में गुजरने लगे ।

इस जंगल के लोग भी मानते हैं कि ‘समय कह कर नहीं आता है’ । एक बार गीदड़ी शहर गयी तो लौटी नहीं । टायगर जंगल-टीवी देखता इंतजार करता रहा । हत्या, बलात्कार, यातना की कैसी कैसी तो खबरें आती हैं, सुन ले तो जंगल वाले अपनी लेडिज को शहर भेजने से पहले दस बार सोचें । वह पछताया कि उसने अपनी गीदड़ी को समोसों के लिए शहर भेज दिया ! अगर वह किसी गीदड़ से प्यार करती तो शायद वे दोनों साथ साथ शहर जाते और गोलगप्पे खाते । इधर वह राजा होने का मुगालता पाले खुद जंगल में पड़ा रहा और उसे शहर की आग में झोंक दिया । इन विचारों के चलते उसे भूख भी लग रही थी । गीदड़ी से ज्यादा उसे समोसे याद आने लगे । ऐसा होता है सबके साथ । लोग कहते हैं कि वे डाकिये का इंतजार कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता ये है कि वे चिट्ठी का इंतजार करते हैं । तीन दिन हुए आखिर टायगर गीदड़ी को ढूँढने के लिए शहर आना पड़ गया ।

तीन दिन की भूख, प्यास और थकावट के कारण टायगर बेदम हो रहा था । बेबसी के इस आलम में एक टीवी पत्रकार ने उसे देख लिया और उस पर झपटा । माईक उसके मुंह में अड़ा कर पहला समसामयिक सवाल मारा, -  क्या किसी पार्टी से आपको सदस्यता का पक्का आश्वासन मिल चुका है ?

टायगर ने कहा – नहीं ।

दरअसल गीदड़ी ने एक बार बताया था कि जब वह प्रेस वालों के बीच फंस जाती है तो एक सवाल का जवाब “नहीं”  और दूसरे का “हाँ” में देती है । टायगर को उसकी सीख याद आ गयी ।

“तो क्या आपका मोहभंग हो गया है जंगल वालों से ?” दूसरा सवाल ।

“हाँ” ।

“क्या अब आप राजनीति से सन्यास ले रहे हैं ?”

“नहीं “ ।

“तो क्या यह मान लिया जाये कि किसी पार्टी के अध्यक्ष से आपकी बात चल रही है ?”

“हाँ” ।

“पार्टी का नाम आप नहीं बता रहे हैं तो ये बताइए कि आप गोमांस खाते हैं ?

“नहीं” ।

“झूठे वादे करना जानते हैं ? लम्बी लम्बी छोड़ लेते हैं ?”

“हाँ” ।

“कभी कोई लज्जा, शरम, अपराधबोध होता है ?”

“नहीं “ ।

“भ्रष्टाचार के बारे में सुना होगा ? कर लोगे ?”

“हाँ “ ।

“बेरोजगारी के बारे में कुछ पता है ?”

“ नहीं । “

“एक फोटो ले लूँ ?”

“हाँ हाँ “ ।

“कुछ कपड़े-वपड़े पहनना है ?

“नहीं” ।

“शीर्षक लगाऊंगा ‘राजनीति में नंगा टायगर’ । चलेगा ?”

“हाँ “ ।

टीवी पत्रकार फोटो ले कर चला गया । जाते जाते बोला कि मुझे पता चल गया है कि किधर से आये हो और किधर जा रहे हो । बधाई हो, कल कुर्सी मिल जाए तो याद रखना ।

टायगर को गीदड़ी का पता चाहिए था । सोच रहा है कि काश शहरों में टीवी पत्रकारों के साथ जटायु के वंशज भी होते । पता नहीं गीदड़ी कहाँ है, किस दुकान पर खड़ी होगी । ...... कुछ मिनिट ही हुए थे कि टीवी वाला फिर प्रकट हुआ । इस बार उसके साथ वन विभाग वाले जाल फैंकने की तैयारी में थे ।

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शनिवार, 23 मार्च 2024

प्लेट में दो काने बैंगन


 



देखिये कुंजी बाबू आप पडौसी हैं सो घर जैसे ही हुए । लेकिन आज की तारीख में देश हो या आमजन, लोगों को घर से ही ज्यादा खतरा होता है  । वो कहते हैं ना अपने ही गिरते हैं नशेमन पे बिजलियाँ । तो भईया  हम जैसे गऊ आदमी भरोसा करें तो किस पर करें । सरकार ससुरी हमारे वोट से बनती है पर कभी हमारी हो न सकी । पनेली तन्ख्वाह समझो फूटे कनस्तर में ले कर आते हैं,  टेक्स इतने तरह का हैं  कि आधी बह जाती है ! लेने वाले के हजार हाथ होते हैं । देना पड़ता है, सबको देना पड़ता है । सड़क पर चलो तो दो, कुछ खरीदो बेचो तो दो, पैदा होना मरना तो है ही खर्चीला, जीना भी बहुत महंगा है । आदमी संसार में देने के लिए ही आता है । दाता एक ‘आम’ भिखारी सारी दुनिया। 

कहने को पुलिस प्रशासन जनता के सेवक हैं और हम मालिक । लेकिन वक्त जरुरत जब इनके सामने जाना पड़ जाये तो कमर और घुठने अपने आप मुड़ जाते हैं ।  पीढ़ियों से अन्दर पता नहीं क्या भरा पड़ा है कि अपने ही कमर घुठनों पर भरोसा नहीं रहा । लेकिन सब बुरा बुरा नहीं है, कुछ अच्छा भी है । एक बेचारे गुंडे बदमाश ही हैं जिन पर भरोसा करता है हरकोई  । जो बोलते हैं वो कर देते हैं ईमानदारी से । भला करने की ठान लेते हैं तो कानून कायदे की परवाह भी नहीं करते हैं । हाँ थोडा पैसा लेते हैं, पर आज कौन नहीं लेता है ! सब कुछ बाज़ार है, कोई घोड़ा घास से यारी नहीं कर रहा है तो ये भी क्यों करें ! कायदे से आते हैं हफ्ता लेने, ये नहीं कि डाकू की तरह आये और छापा मार दिया । पिछले कुछ वर्षों में गुंडा उद्योग ने अच्छी तरक्की की है । कहते हैं पुराने समय में नेता गुंडों को पालते थे लेकिन अब जमाना नया है, स्थितियां पलट गयीं हैं । आने वाले समय में बच्चों को पढ़ाया जाएगा कि ‘लीडर एक पालतू जीव होता है ‘ । तब हो सकता है कि अगली पीढ़ी अपने लीडरों को प्यार करने लगे ।

तुम कहोगे कुंजी बाबू कि भगवान पर भरोसा रखो । तो भैया रखते हैं, एक यही भरोसा है जो थोड़ा  सस्ता पड़ता है । लेकिन जरा गौर करिये, इधर उनकी भगवानियत खुद दांव पर लगी पड़ी है । सृजनहार अहसानों तले दबे लग रहे हैं । दर्शन का टिकिट लागू है और वे बेबस दर्शक बने खड़े हैं । कल को हाथ जोड़ने, शीश झुकाने, मनोकामना, प्रार्थना, आरती वगैरह पर भी शुल्क लग जायेगा तो भगवान क्या कर लेंगे ! दुकान भले ही सरकारी हो चलाने वाले कार्पोरेटिये हैं । भगवान पहले पुजारियों के लिए कमाते थे अब व्यवसाइयों के लिए ।  दीवारों वाले मंदिर परिसरों में बदल गए । लोग तफरी के लिए आने लगे हैं । पहचान का संकट पांव पसार रहा है । पहले कभी कहा जाता था ‘मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान’ । अब मोल म्यान का ज्यादा हो रहा है । ऐसे माहौल में तुम ही बताओ हम क्या करें ! एक जमाना था जब हम आप पांच साल में अपनी पसंद के लोगों को चुन लेते थे । अब तो प्लेट में दो काने बैंगन हैं और कहा जा रहा है कि एक चुन लो ! ये चुनाव है क्या !? कुछ तो बोलो कुंजी बाबू ?

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मंगलवार, 19 मार्च 2024

ढक्कन, होली और घुइंयाराम

 




घुइंयाराम दफ्तर में डिप्टी हैं । बोलने वाले उन्हें डेपुटी साहेब बोलते हैं ।  जितने सावधान वे घुइंयाराम को लेकर हैं उतने ही डेपुटी साहेब को लेकर सचेत । लेकिन दुनिया सीधी थोड़ी है गाहे बगाहे घुइंयाराम साहेब कहने से चूकती कहाँ है । वे जलभुन के रह जाते हैं । कई बार मन होता है कि बहती गंगा में हाथ धोते हुआ अपना नाम भी बदल लें । एक बार तो नाम रख ही लिया प्रयागराज । सोचा जब लोग काशीनाथ, मथुरा प्रसाद हो सकते हैं तो अपने प्रयागराज होने से किसी को क्या !  लोग एक प्रयागराज से राजी हैं तो उसके साथ लगे लगे पार हो लेंगे अपन भी । लेकिन जिन्हें घुइंयाराम ही बोलना है वे बोलते रहे । अपने यहाँ कहते हैं मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है, बोलने वाले की जुबान नहीं पकड़ी जा सकती है ।

आज पूरा टोला आया है मोहल्ले का । सारे घुइंयाराम जी बोलते हैं, लेकिन आज बाकायदा डेपुटी साहेब से शुरुवात हो रही है ।

“क्या डेपुटी साहेब कैसा क्या ? कार अच्छी चल रही है ना आपकी ?” एक ने बात शुरू की ।

डेपुटी साहेब सुन कर घुइंयाराम को खुटका हुआ । दाल में कुछ काला है । शूर्पणखा भी बड़े सलीके से पेश आई थी राम के सामने । बोले - “ जी हाँ,  अच्छी चल रही है । दो बार राजधानी हो आया हूँ कोई दिक्कत नहीं हुई ।“

“अजी दिक्कत कैसे होगी ! नयी कार है कोई मजाक थोड़ी है । अभी लिए दिन ही कितने हुए हैं । चार पांच महीने पहले दशहरे पर ही तो ली थी ।“

“हाँ, अभी तो नयी ही है । पर पेट्रोल का बड़ा खर्चा लग गया है । आप भी देख रहे हैं महंगाई कितनी है । “

“अरे छोडिये डेपुटी साहेब आपके लिए क्या महंगाई ! वो क्या है , हम लोग आपको वादा याद दिलाने आये हैं । कार की ख़ुशी में आपकी तरफ से ढक्कन खुलना बाकी है ।“

“ढक्कन !! कैसा ढक्कन भई ? मैं कुछ समझा नहीं ।”

“आपने कहा था दीवाली के चलते अभी टाइम नहीं है तो कार की ख़ुशी में ढक्कन होली पे खोलेंगे । तो होली आ गयी , अब आपको ढक्कन खोलना है ।“

“अरे भाई लोगों गुप्ता जी यहाँ पोता हुआ है, पहले उनसे खुलवाइए ढक्कन । पोता होना बड़ी बात है । ज़माने की हवा देखो आजकल बेटा अपना नहीं होता पोता हो जाता है । “

“गुप्ता जी भी खोलेंगे । पर आपका ढक्कन पहले ड्यू है । सब लोग चाहते है कि डेपुटी साहेब का जलवा हो जाये इस बार । .... तो बताइए डेपुटी साहेब कब रखें ? कम से कम तीन ढक्कन तो लगेंगे ।”

“अरे यार आप लोग भी कहाँ बात को पकड़ के बैठ गए ! अब वादे हैं कहाँ, उपर से नीचे तक जुमले ही हैं । जहाँ रोज सुनते हो रोज भूलते हो तो मेरा एक और सही । भूल जाओ ना प्लीज । जो बातें शिष्टाचार में कही जाती हैं उसका कोई मूल्य थोड़ी होता है । ढक्कन खोलना कोई अच्छी बात थोड़ी है और फिर मैं ढक्कन का आदी नहीं हूँ आप जानते हैं ।“  उन्होंने साफ मना कर दिया ।

“देखिये झूठ मत बोलिए घुइंयाराम जी । आपकी ढक्कन-शामें रिस रिस कर मशहूर हो चुकी हैं मोहल्ले भर में । “

“आपको ढक्कन नहीं खोलना तो कहा क्यों घुइंया जी । आदमी की जुबान ढक्कन से बड़ी होती है उस पर कायम रहना चाहिए ।“

लोग डेपुटी साहेब के साथ आये थे और घुइंयाराम जी से होते हुए घुइंया जी पर आ गए । उन्हें डर लगा कि ये ‘जी’ भी पिघल न जाये वरना सूखे घुइंया रह जायेंगे । मन ही मन वो तीन ढक्कनों का हिसाब लगाने लगे ।

इधर सब ताडू थे । समझ गए कि हिसाब लगाया जा रहा है । बोले – कार महँगी है ढक्कन सस्ते नहीं होने चाहिए । कुत्ता काला या लेबल लाल हो, इससे नीचे नहीं चलेगा ।

“ठीक है .... मंजूर ।“ घुइंयाराम को बोलना पड़ा ।

“जय हो डेपुटी साहेब की .... आपका तो दिल बड़ा है ... आप मोहल्ले की शान हो जी ... मर्द की जुबान है पलटेगी थोड़ी ... अगले साल मोहल्ला कमिटी का अध्यक्ष आपको ही बनना पड़ेगा ... तो फिर ठीक है ....मिलते हैं होली की शाम को ।“

घुइंयाराम को लगा होली के पहले ही छींटे डाल गए लोग ।

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भाग गोडबोले भाग


 


होली के हप्ता भर पहले से गोडबोले साहेब पानी बचाओ अभियान में लग गए हैं । घर घर पहुँच कर पानी बचाने का महत्त्व समझने में सारा दिन खपा रहे हैं । पत्नी नयनतारा को पता है कि ये पानी से भी उतना ही डरते हैं जितना रंग से । उन्हें समझाया कि होली के दिन आप घर के पीछे वाले वाश एरिया में छुप जाना लेकिन मानते नहीं । होलियापे में एक लड़का हो तो उसे समझा लें । इधर तो झुण्ड होता है शिकारियों का । एक ने गोडबोले के घर का रुख किया तो बाकी भी चले उधर । फिर जिसके घर में ही भेदिये हों तो उसे कौन बचा सकता है । नयनतारा अपने पल्लू में आल टाइम खुन्नस खोंसे रहती है और बदला होली में ! पिछली बार अपनी अकल लगा कर संडास में छुपे थे गोडबोले । लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । गोडबोले की हालत देख कर नयनतारा की आत्मा को बड़ी शांति मिली । हालाँकि संडास इस बुरी तरह से भदरंग हुआ और महीनों तक रगड़ती रहीं पर साफ नहीं हुआ । इसका उन्हें गुस्सा था लेकिन बड़ा दुःख ये हो गया कि मल्टीकलर गोडबोले का रंग दस दिन में साफ हो गया । इस बार गोडबोले को लड़कों के आलावा नयनतारा के भगिनी मंडल से भी खतरा है । सूत्रों से पता चला है कि लट्ठमार होली होना है इस बार । भक्त अगर ठान लें तो अपना पराया नहीं देखते हैं । गोडबोले को अपनों से ज्यादा खतरा है । खैर ।

सबसे पहले वे लेले साहब के घर पहुंचे । उनके घर दो जवान होलीखोर लड़के हैं । पिछली बार ये दुष्ट ही सूखा रंग सिर में डाल गए थे । चार दिनों तक जब भी नहाने बैठे तो पहले से ज्यादा लाल हो कर उठे । सूखे दक्षिणपंथी गीले होते ही वामपंथी नजर आने लगते । मौका होली का नहीं होता तो लाल को मुद्दा बना कर ‘परिवार’ वाले बाहर का रास्ता दिखा देते । लड़के कमबख्त इतने कि बाहर सूख रही लाल चड्डी-बनियान के साथ सेल्फी ले कर वाट्सएप पर वायरल कर दी । गोडबोले को कई दिनों तक लगता रहा मानों उन्हें सरे आम ‘रंगा’ कर दिया हो । बड़े दिनों तक उन्हें लगता रहा कि चड्डी-बनियान नहीं वे खुद लटके हैं रस्सी पे । छोरों ने अपनी डीपी में उनकी चड्डी-बनियान लगा ली । इन्हीं दोनों लेले-लाड़लों के कारण इसबार उनका महीने भर से दिल बैठ रहा है । कई बार मन हुआ कि ससुराल ही चले जाएँ । लेकिन ये कुंवे से बचने के लिए खाई में कूदने जैसा है । डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कुछ गोलियां दे दीं । साथ ही यह भी कि पानी बचाने की मुहीम पूरे मोहल्ले में चला दो । अच्छा काम है, रंगों से बच जाओगे और कहीं सरकार ने नोटिस ले लिया तो कल को पद्मश्री वगैरह भी मिल सकती है । आजकल किसकी उड़ के लग जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है ।  

गोडबोले बोले - “वो क्या है लेले साहेब इस बार अपने को पानी बचाना है । बिलकुल पक्के में, सारे लोग मिल के शप्पत ले लें तो ये काम हो जायेगा । पानी से कोई होली नहीं खेलेगा ये सन्देश अपने को देना है । बोलो ।“

“अर्धा अर्धा कोप चा लेंगे क्या ?” लेले ने उनकी बात को अनसुना सा करते हुए पूछा ।

“चा ? .... हाओ । पत्ती थोड़ा ज्यादा और शकर थोड़ा कम बोलना । और हाँ ... पानी भी थोड़ा कम ... बूंद बूंद कीमती है, ऐसा सरकार भी बोल रही है विज्ञापनों में । इस बार पानी बिलकुल भी ख़राब नहीं करने का । अपने बच्चों को बोलना पुलिस पानी बचाने को बोल रही है । वो क्या है ना लोग पहले रंग डालते हैं फिर उसको साफ करने के लिए हप्ता भर तक पानी ख़राब करते हैं । अपने को ऐसा नहीं करने का । क्या । ...

“पुलिस ने कब बोला !? लेले चौंके ।

“बोला है । ऊपर से आदेश है उनको । सुना है जो पानी से खेलेगा उसके यहाँ छापा पड़ेगा । इस बार पुलिस टाईट है । ... अपने को लफड़ा नहीं मांगता, सीधे सरकार की बात मानने का । पानी बचाना मतलब पानी बचाना । बरोबर ? “

चाय आ गयी । गोडबोले ने सिप ले कर कहा अच्छी है । 

“ये पुलिस का आपको कैसे पता चला कि पानी को लेकर इस बार .....”

“वो अपने टीआई हैं ना भड़भड़े साहेब ...”

“अच्छा भड़भड़े साहेब ने खुद बोला !?”

“अरे नहीं, उनके नीचे है ना गनपत ... फ़ाइल वगैरह वही देखता है । उसने बताया है । तो अपन लोग भी तय कर लें कि इस बार पानी नहीं ।“

“अच्छा !! तभी लड़कों ने तो इस बार गार्डन में एक गड्ढा किया है होली के लिए ।“

“अरे नहीं ! रोको उन्हें । गड्ढे में कितना पानी बर्बाद होगा !! “

“पानी नहीं गोबर से भरेंगे गड्ढे को । और सुना है आपको ही मुख्य अतिथि बनाने वाले हैं ।“

सुनते ही गोडबोले भाग  खड़े हुए । लेले बोलते ही रह गए कि चा तो पी लेते इसमें पानी है ।

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मंगलवार, 12 मार्च 2024

स्वक्षेत्रे पूज्यते सांसद ; सर्वत्र पूज्यते डॉन


 



डॉन एक सामाजिक प्राणी होता है । आमतौर पर वह दयावान टाइप का दृष्टिकोण रखता है । आज जानते ही हैं कि गार्डन की सुन्दरता तभी बनी रहती है जब समय समय पर उसकी कटाई छटाई होती रहे । हमें  आभारी होना चाहिए कि डॉन समाज व्यवस्था में माली की भूमिका अदा करता है । वह सबको एक दृष्टि से देखता है और अपना काम जाति धर्म से ऊपर उठ कर करता है । वह हिंदी प्रेमी होता है और छोटा बड़ा कोई भी हो उसे हिंदी में ही समझाता है । डॉन की हिंदी इतनी अच्छी होती है कि अंग्रेजी मीडियम वालों को भी जल्दी समझ में आ जाती है ।

डॉन मौका आने पर धार्मिक व्यक्ति भी हो जाता है । वह धर्म का बड़ा सम्मान करता है । बदले में अछूत होने के बावजूद धर्म भी उसका बड़ा सम्मान करता है । डॉन की पूजा से पुजारी इतने प्रभावित रहते हैं कि उनमें भगवान से ज्यादा भक्तिभाव डॉन के प्रति हो जाता है । व्यावहारिक ज्ञानशास्त्र में कहा भी गया है – स्वक्षेत्रे पूज्यते सांसद ; सर्वत्र पूज्यते डॉन । अर्थात एक सांसद का सम्मान तो उसके क्षेत्र तक ही सीमित रहता है किन्तु डॉन का सम्मान सभी जगह होता है । डॉन सर्वव्यापी होता है । कवि कन्हैयालाल ‘कबूतर’ लिख गए हैं – ‘पाखी-पतंगे, डॉन और उसके पेटी-खोखे ; कोई सरहद इनको नहीं रोके । ‘कबूतर’ जी को उम्मीद है कि डॉन साहेब किसी दिन कृपालु हो गए तो कवि सम्मेलनों से लेकर अकादमियों तक कहीं भी फिट करवा सकते हैं ।

 डॉन केवल अपने भक्तों को ही दिखाई देता है । या फिर वह जिनको दर्शन देना चाहता है उनको दीखता है । वह कहाँ है ये सबको पता होता है । लेकिन उसे हमेशा सत्रह मुल्कों की पुलिस ढूंढती रहती है । सूई वहां नहीं ढूँढना चाहिए जहाँ गिरी हो, कमबख्त मिल जाती है और काम ख़त्म हो जाता है । पुलिस और डॉन दोनों जनता के सेवक होते हैं  और जैसा भी अवसर मिलता है सेवा करते रहते हैं । वैसे सच पूछो तो डॉन जनता का सेवक होता है । हम इसलिए कह रहे हैं क्योकि हम अच्छे से जानते हैं, उसके मोहल्ले में ही रहते हैं । विश्वास नहीं हो तो पूछ लो किसीसे भी, कोई इंकार करे तो बताना । एक बात और, डॉन मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं । सामने वाले का ह्रदय परिवर्तन कर देना उनके बाएं हाथ का काम है । कोई लाख ना-ना करता हुआ आये बाकायदा हाँ-हाँ करता हुआ लौटता है । हार्ट की फील्ड में आपने दो ही स्पेस्लिस्ट के नाम सुने होंगे ; एक आपके शहर वाले डाक्टर और दूसरे अपने डॉन साहेब ।

पिछले कई महीनों से डॉन साहेब को संस्कृति की रक्षा का भूत चढ़ा हुआ है । उन्हें पता चला कि समाज में प्रेम करने वाले बहुत बढ़ गए हैं । डॉन को प्रेमी पसंद नहीं हैं । शुरू शुरू में तो तमाम वोटर लिस्ट चेक कर डालीं लेकिन कोई संस्कृति नाम वाली नहीं मिली । तब कुछ जिम्मेदारों ने समझाया कि संस्कृति क्या है और  रक्षा के लिए उसके साथ कुछ करना नहीं है । जो गैर-संस्कृति वाले हैं उनको ठीक करने से संस्कृति की रक्षा का काम हो जाएगा । और यह काम न केवल शौर्य का है बल्कि सेवा और दिशादर्शन का भी है । काम बड़ा है, लेकिन बड़ा काम बड़े ही करते हैं ।

सुना है डॉन को टिकिट देना चाहती हैं पार्टियाँ ।  .... जय हो ।

 

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