टायगर और गीदड़ी लिवइन में रह रहे थे । गीदड़ी ने कई बार कहा कि अब शादी कर लेते हैं । लेकिन टायगर नहीं माना । उसे डर था कि कहीं वह शादी के बाद गीदड़ न हो जाए । न हो वह गीदड़, अगर गीदड़ी टायगरन हो गयी तो भी दिक्कत हो जाएगी । जात पांत और विचारधारा भी अलग होने के बावजूद गीदड़ी से उसका प्यार परवान चढ़ा था । यों तो जंगल वाले किसी टायगर पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन गीदड़ी जिगरे वाली है । कहती है प्यार किया तो डरना क्या ! अब सर फूटे या माथा ... मैंने तो हाँ कर ली । बस इसी बात पर वह फ़िदा था । वह शहर भी जाती थी । कहते हैं कि गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर जाता है । लेकिन वह नयी सोच वाली, अन्धविश्वास से दूर और जांबाज़ है ।
पिछले
दिनों गीदड़ी जब जब भी शहर से लौटी तो अपने टायगर के लिए कुछ समोसे लेकर आई । यूनो,
मादाएं कोई भी हों वे प्रायः अपनी भावनाएँ अलग और सुन्दर ढंग से व्यक्त करती हैं ।
टायगर को समोसों का ऐसा स्वाद लगा कि वह आएदिन गीदड़ी को शहर भेजने के बहाने ढूंढते
रहता । ज्यादा समय नहीं लगा, टायगर चटोरेपन की चपेट में आ गया । शिकार की उसकी आदत
जाती रही । गीदड़ी के कारण उसके दिन समोसानंद में गुजरने लगे ।
इस जंगल के
लोग भी मानते हैं कि ‘समय कह कर नहीं आता है’ । एक बार गीदड़ी शहर गयी तो लौटी नहीं
। टायगर जंगल-टीवी देखता इंतजार करता रहा । हत्या, बलात्कार, यातना की कैसी कैसी
तो खबरें आती हैं, सुन ले तो जंगल वाले अपनी लेडिज को शहर भेजने से पहले दस बार
सोचें । वह पछताया कि उसने अपनी गीदड़ी को समोसों के लिए शहर भेज दिया ! अगर वह
किसी गीदड़ से प्यार करती तो शायद वे दोनों साथ साथ शहर जाते और गोलगप्पे खाते ।
इधर वह राजा होने का मुगालता पाले खुद जंगल में पड़ा रहा और उसे शहर की आग में झोंक
दिया । इन विचारों के चलते उसे भूख भी लग रही थी । गीदड़ी से ज्यादा उसे समोसे याद
आने लगे । ऐसा होता है सबके साथ । लोग कहते हैं कि वे डाकिये का इंतजार कर रहे
हैं, जबकि वास्तविकता ये है कि वे चिट्ठी का इंतजार करते हैं । तीन दिन हुए आखिर टायगर
गीदड़ी को ढूँढने के लिए शहर आना पड़ गया ।
तीन दिन की
भूख, प्यास और थकावट के कारण टायगर बेदम हो रहा था । बेबसी के इस आलम में एक टीवी पत्रकार
ने उसे देख लिया और उस पर झपटा । माईक उसके मुंह में अड़ा कर पहला समसामयिक सवाल
मारा, - क्या किसी पार्टी से आपको सदस्यता
का पक्का आश्वासन मिल चुका है ?
टायगर ने
कहा – नहीं ।
दरअसल
गीदड़ी ने एक बार बताया था कि जब वह प्रेस वालों के बीच फंस जाती है तो एक सवाल का
जवाब “नहीं” और दूसरे का “हाँ” में देती
है । टायगर को उसकी सीख याद आ गयी ।
“तो क्या
आपका मोहभंग हो गया है जंगल वालों से ?” दूसरा सवाल ।
“हाँ” ।
“क्या अब आप
राजनीति से सन्यास ले रहे हैं ?”
“नहीं “ ।
“तो क्या
यह मान लिया जाये कि किसी पार्टी के अध्यक्ष से आपकी बात चल रही है ?”
“हाँ” ।
“पार्टी का
नाम आप नहीं बता रहे हैं तो ये बताइए कि आप गोमांस खाते हैं ?
“नहीं” ।
“झूठे वादे
करना जानते हैं ? लम्बी लम्बी छोड़ लेते हैं ?”
“हाँ” ।
“कभी कोई
लज्जा, शरम, अपराधबोध होता है ?”
“नहीं “ ।
“भ्रष्टाचार
के बारे में सुना होगा ? कर लोगे ?”
“हाँ “ ।
“बेरोजगारी
के बारे में कुछ पता है ?”
“ नहीं । “
“एक फोटो
ले लूँ ?”
“हाँ हाँ “
।
“कुछ
कपड़े-वपड़े पहनना है ?
“नहीं” ।
“शीर्षक
लगाऊंगा ‘राजनीति में नंगा टायगर’ । चलेगा ?”
“हाँ “ ।
टीवी पत्रकार
फोटो ले कर चला गया । जाते जाते बोला कि मुझे पता चल गया है कि किधर से आये हो और
किधर जा रहे हो । बधाई हो, कल कुर्सी मिल जाए तो याद रखना ।
टायगर को
गीदड़ी का पता चाहिए था । सोच रहा है कि काश शहरों में टीवी पत्रकारों के साथ जटायु
के वंशज भी होते । पता नहीं गीदड़ी कहाँ है, किस दुकान पर खड़ी होगी । ...... कुछ
मिनिट ही हुए थे कि टीवी वाला फिर प्रकट हुआ । इस बार उसके साथ वन विभाग वाले जाल फैंकने
की तैयारी में थे ।
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