दुनिया जानती है कि आज की डेट में जितना त्याग पीने वालों ने किया है समाज के लिए उतना किसी ने नहीं । इस बात को नोट किया जाए सर, कि सरकार का खजाना भरने में वे भले ही खुद मामू हो गए लेकिन कभी उप्फ़ नहीं की । शाम को पी तो सुबह थकेला कलेजा ले कर फिर हाजिर । तुमने पुकारा और हम चले आये । पॉइंट टू बी नोटेड अगेन सर, जिम्मेदारी एक आदत होती है, जो सब में नहीं होती है । सेवाभाव खून में होना चाहिए और नसों में बहना चाहिए । एक जिद की तरह कि समाजसेवा करना है तो करना ही है । अब सर फूटे या माथा मैंने देशसेवा से यारी कर ली । लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । कहने वाले कहते रहते हैं कि देश के लिए जान हाजिर है, लेकिन देने की बात आती है तो फूटी कौड़ी नहीं निकलती । और इधर जिगरा देखो, प्रदेश के लिए आल टाईम टुन्न ! जितना कमाते हैं, चखना के लिए रख कर पूरा ख़ुशी ख़ुशी दे आते हैं- लेलो मुल्क के हकिमों तुम भी क्या याद रखोगे जिदारों से पाला पड़ा है । लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । पीने वालों का सोच इतना ऊँचा होता है कि अपने नीचे, अपने पीछे कौन कौन है यह तक नहीं देखते हैं । मधु-मानव मानते हैं कि कर्म किये जा, फल की आशा मत कर । हमारे कर्म की महानता देखिये, कर्म हम करते हैं फल सरकार को मिलता है । सरकार साकी है लेकिन बीच में कमबख्त खाकी है । पिलाने वाला दिलदार, पीने वाला जिगरदार बीच डंडा दीखता है थानेदार !! ये भी चलेगा, लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए ।
आज
ड्राय-डे था । कवि करुण ‘कमाल’ को कहीं
शराब नहीं मिली । पौउवा वियोग में उससे रोटी भी नहीं खायी गयी । ड्राय जिगर को
बहलाने के लिए वह न जाने क्या क्या सोच रहा है । ... विकास महंगा हो गया है । जनता
से विकास का वादा था इसलिए मजबूरी थी, शराब के दाम बीस प्रतिशत बढ़ाए कोई दिक्कत
नहीं है लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम बंद होना चाहिए । मजाक देखिये, नहीं पीने वालों
ने हायतौबा मचाई लेकिन पीने वालों ने चूं तक नहीं की । इसे कहते हैं जिद्दी देशप्रेम
। अगर कहीं पीने वालों ने हाथ ऊँचे कर दिए तो सोचो सरकार क्या होगा । हक़दार तो हम
बड़े बड़े सम्मानों के हैं लेकिन देखिये रजिस्टर उठा कर, किसी मधु-मानव को आज तक एक
मामूली पद्मश्री भी नहीं मिली ! लेकिन मन में दुर्भावना नहीं है हमारे । जब तक
जिगरे में है जान, छलकते रहेंगे जाम । ... सोचते सोचते उसकी नींद लग गयी ।
“प्यारे
जीजाओं ... आपको चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है । जब तक आपके बच्चों का ये मामा
जिन्दा है आपके लिए किसी बात की कमी नहीं रहेगी । सरकार जल्द ही “लाड़ले बेवड़े
योजना” ला रही है । आपके खातों में हर हप्ते हजार रूपये डाल दिए जायेंगे । पियो
मजे में, महुए की दे रहे हैं । मुझे मालूम है कि हजार रूपये में हप्ता नहीं कटेगा
लेकिन आप चिंता नहीं करें धीरे धीरे बढ़ा कर दो हजार कर देंगे । प्रदेश के लाड़ले
बेवडों को सरकार कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी । पहले आप लोग नादान थे । तब एक एक दो
दो पौउवे में सरकारें बनवा देते थे । अब महंगाई बहुत है एक दो पौउवे में सरकार
नहीं बनेगी हमें पता है । प्यारे लाड़ले बेवड़ों, छोटे बड़े का भेद हम मिटायेंगे । बार-त्यौहार
पर हम आपके खाते में पांच हज्जार रूपइया डालेंगे ताकि आप साल में एकाध बार ‘काला
कुत्ता’ भी पी सकें । काला कुत्ता सिर्फ बड़े लोग पियें और जीजा लोग टूंगते रह जाएँ
यह हमारे लिए शरम की बात है । सरकार आपकी है और आपके कीमती वोट के मर्म को समझती
है । राजनीति के प्रोफ़ेसर लोग लोकतंत्र की
नस बता गए हैं - “बाय द बोतल, फॉर द बोतल,
ऑफ़ द बोतल” । दरद कैसा भी हो, दारू एक कारगर दवा है । आप हम जानते हैं कि देवदास
को नहीं मिलती तो कभी का मर जाता और देश चार-पांच अच्छी फिल्मों से वंचित रह जाता
। तब अपना बालीवुड क्या मुंह दिखाता
दुनिया को ! ये ऐसी दवा है जिसमें अस्पताल, डाक्टर, केमिस्ट वगैरह का कोई चक्कर
नहीं है । मजे में एक क्वाटर दबाओ और लपक के सो जाओ । दूसरे दिन ओवन फ्रेश जीजा वोटिंग
लाईन में । .....”
अभी भाषण
चल ही रहा था कि बाहर पानी का टेंकर आ गया और हा-हुल्ल मच गयी । शोर ऐसा उठा कि
सरकारी जीजा की नींद टूट गयी । ड्राय-डे का दरद याद आ गया । नलों में पानी आने का
रिवाज ख़तम चल रहा है इधर । एक बार बोले थे कि जितवाओ, दारू की पाईप लाइन डलवा
देंगे, मजे में नल से पीना । अब कहते हैं जितवा दो दारू का टेंकर भेजा करेंगे ।
झूठे कहीं के, कभी पन्द्रा लाख कभी टेंकर भर दारू । हमको इतना बेवकूफ समझ रखा है
क्या कि झांसे में आ जायेंगे, “अरे धत्त” ! लेकिन ये ड्राय-डे सिस्टम ख़त्म होना चाहिए ।" कवि करुण बोला।
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