अंधे वे भी होते हैं जिनकी आंखे होती
हैं . जैसे खोपड़ी होने का यह मतलब नहीं कि आदमी में दिमाग भी होगा ही . कहते हैं
अनुभव से आदमी सीखता है . अंधे स्पर्श से अनुभव करते हैं . इस समय आपको अंधों का हाथी
याद आ रहा होगा . लेकिन अब हाथी देखने को नहीं मिलते हैं . बहुत पहले जंगल में हुआ
करते थे फिर सर्कस में सूंड उठाने लगे अब सुना है राजनीति में आ गए हैं . राजनीति
में सारे हाथी नहीं होते हैं, घोड़े, गधे, लोमड़, सियार ही नहीं मेंढक भी होते हैं.
राजनीति अगर ठीक से खेली जाए तो मेंढक ही आगे चल कर हाथी हो जाता है . ऐसे में दो
तरह की समझ वाले लोग हमें मिलते हैं . एक वे जो हाथी होने के बावजूद हाथी को मेंढक
ही मानते हैं . दूसरे वे जो राजनीति में टर्रा रहे मेंढकों को हाथी मान कर उस पर
अड़े रहते हैं . वे सम्भावना से भरे होते हैं और संगठित हो कर मेंढकीयत का अभ्यास
करते रहते हैं . आज विशेष दिन है जिसमें अंधों को अपने हाथी यानी लीडर को जानना है
. सबको बताना है कि आप अपने लीडर को कैसे और कितना जानते हैं .
पहला अँधा हाथी को दीवार की तरह
महसूस कर बोला – मेरा लीडर बड़े बड़े पोस्टर में होता है . कहीं वो दो उंगली दिखाता
है कहीं एक . मन का मार्केट एक का दो, एक का दो होने लगता है . पेट्रोल पम्प हो या
किराने की दुकान पोस्टर देखते ही दिल में टर्र-टर्र का संगीत गूंजने लगत है और
महंगाई का पता ही नहीं चलता है. आकाशवाणी होती है कि महंगाई एक तरह का वहम है . लीडर
का स्मरण करो तो वहम के सारे भूत भाग जाते हैं . मन उमंग की हुमक में फुदकता रहता
है तो समझ जाता हूँ कि यही मेरा लीडर है .
दूसरा अँधा हाथी के पाँव से टिका फोन
में घुसा था . हिलाया जगाया तो बोला – मेरा लीडर इंटरनेट मिडिया में चलने वाला खनकता
सिक्का है . इधर से आलू-मेसेज डालो तो उधर से समर्थन का सोना निकलता है . वाट्सएप
की हर पोस्ट उसके इरादों, कारनामों का बूस्टर डोज है . अगर दस मिनिट अपने लीडर की
नई पोस्ट नहीं देखूं तो बीमार पड़ने लगता हूँ . जब कोई पोस्ट कहती है ‘जागो जागो, देखो अंधों देखो’ तो मुझे
ऐसा लगता है जैसे सब दिख रहा है . कैसे लोग तरक्की कर रहे हैं दनादन . कैसे आक्सिजन
और दवा के बिना भी बहादुरी से जिन्दा बच रहे हैं. नौकरियां जाने के बाद भी कैसे सीना
चौड़ा किये आत्मनिर्भर बने खड़े हैं . यही मेरा लीडर हाथी का पैर है नहीं हिलेगा .
तीसरा अँधा सूंड पकड़े टीवी देख रहा
था . बोला - हर चैनल पर चौबीस घंटे जो खबरों में रहे वही मेरा लीडर है . उसका दृढ़
विश्वास है कि टीवी झूठ नहीं दिखाता है . मेरा लीडर तो देश में एक ही है बाकी सब दाढ़ी
के बाल हैं जो जरुरत के हिसाब से काटे-छांटे या ट्रिम किये जा सकते हैं . नागरिकों
को मनोरंजन का अधिकार है और सपने देखने का भी . मेरा लीडर जब बोलता है तो ये दोनों
काम हो जाते हैं . इसलिए मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई .
‘दुनिया चले अगाड़ी तो मैं चलूँ
पिछाड़ी’, चौथा अँधा हाथी के कान पर धिन ता-ता ता करने में मस्त है . उसे चार सौ
साल पीछे जाना है . अभी शुरुवात है . उसका लीडर कार की हेड लाईट जला कर रास्ता आगे
का दिखाता है और गाड़ी रिवर्स में चलता है . इस काम में उसे लीडर का विराट रूप
दिखाई देता है जैसा अर्जुन को दिखा था . अगर स्वर्ग पीछे है तो आगे बढ़ने का मतलब
पीछे जाना है . जिसने यह रहस्य जान लिया है वही मेरा लीडर है .
हाथी की पूंछ पकड़ उसे चाबुक समझ रहा पांचवा
अँधा डरने वाला और जरा भावुक किस्म का है . मानता है कि मेरा लीडर कभी झूठ नहीं
बोलता है . अगर बोलना ही पड़े तो सच की तरह बोलता है . जिसका झूठ भी सच लगे वही
सच्चा लीडर होता है . जब वह कहता है कि सब अच्छा है तो सबको मान लेना चाहिए कि सब
अच्छा है . जो शंका करके शगुन बिगाड़ेगा वह देशद्रोही माना जाएगा . लोग कहते हैं कि
लीडर निपूता ही अच्छा होता है . पांचवा बिना किसी सवाल के मान लेता है . वह बैल को
बाप भी मान लेता है और बन्दर को मामा . चाबुक से उसे डर लगता है .
शिक्षा – लोकतंत्र में अंधों का
बहुमत हो तो हाथी अपनी पहचान बदल बदल कर लम्बे समय तक राज कर सकता है .
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