शनिवार, 5 जून 2021

जिन्हें चिंता है हिंदी की



जिन लोगों को चिंता-डायन खाये जा रही है कि हिंदी और हिंदी साहित्य का आगे क्या होगा, उन्हें जान कर शायद अच्छा लगे कि हिंदी में अब लेखकगण गरम कढ़ाही में बूंदी की तरह ‘छन’ रहे हैं . एक घान खपता नहीं है कि दूसरा लाल-पिला हो कर झारे में झूलने लग जाता है . जिधर देखो उधर ज्ञान के लड्डुओं की लुड़कन है, इतनी कि साहित्य प्रेमियों को खिड़की खोलने से पहले इंसूलीन याद आ जाए . था कोई जमाना जब लेखक गूलर के पेड़ पर फूला करते थे . अब अभिमन्यु कविता का व्याकरण जान-समझ कर पैदा हो रहे हैं . पुराने समय की बात और थी साठ साल आदमी हिन्दी-सेवा का संकल्प लेने में खर्च कर देता था . सेवानिवृत के बाद वे इसलिए लिखने लग पड़ते थे कि उन्हें एक तो कलम घिसने की  आदत रही होती है, दूसरे दफ्तर से पार की गई स्टेशनरी का कुछ तो भी कर लेना उनकी जिम्मेदारी थी वरना अपराधबोध होता . साठ वर्ष का तपा-पगा आदमी दो चार साल में पांच-दस बोतल स्याही बर्बाद करके मुक्तिधाम गामी हो जाता है तो हिंदी प्रेमियों का चिंता होना स्वाभाविक है . लेकिन अब ऐसा नहीं है, बच्चा मानो शेर कहता हुआ पैदा होता है . अपने राजकुमार होते तो कहते – ‘आपके पैर बहुत सुन्दर हैं, इन्हें जमीन पर मत रखियेगा वरना दस बीस लड्डू पिचक जाएँगे .

चलिए एक बाबा-लड्डू की बात बताते हैं . वे सुबह पौने चार बजे उठ जाते हैं और फारिग हो कर बाकायदा लम्बी वाक पर निकल जाते हैं . उनकी साहित्य साधना में ‘सुबह का’ मार्निंग वाक बड़ा सीरियस मैटर है . इसलिए कि सुबह के अँधेरे में देसी कुत्ते और देसी गुंडे कब लपक लें पता नहीं . लेकिन बाबा अपनी पर्सनल सेहत के लिए नहीं लेखन की सेहत के लिए कुछ भी करेगा, मतलब करता है . मान लीजिये उन्हें सड़क के किनारे उच्चशिक्षा वाली प्रसिद्द कुतिया सोई पड़ी मिली तो उसे दन्न से पत्थर मार देंगे . पहले लात मारा करते थे लेकिन अब अपनी सरकार है, विकास फटाफट हो रहा है तो अब वे हर कहीं स्वदेशी पत्थर को प्राथमिकता देते हैं . बहरहाल, पत्थर लगते ही कुतिया ‘कविता...आ-कविता...आ’ चिल्लाती दुम दबा कर भाग जाती है . बस बाबा का मैटर तैयार सट्ट से, आज की साहित्य साधना बिंदास नक्की . घर पहुँचते ही कुतिया की आह से उनका गान निकल पड़ेगा जैसे बड़े बड़े वादों के पेट से सॉरी निकल पड़ता है . एक बार उनको मरी गाय दिखाई दे गई . बाबा को झटका लगा, मरी गाय को देखता सोचता खड़ा रहा . आधा घंटे में उनके साहित्यिक बाड़े में मरी गाय विचार बन कर जिन्दा हो गई . अब बाबा दिन भर इसको दुहते रहेंगे और शाम तक पनीर तैयार कर लेंगे . किसी की हो न हो गाय आज बाबा की माता है . बाबा आल सीजन कुछ भी करेगा, गोबर उठाना  पड़े तो उठाएगा . जय माता दी .

लड्डू गोल होता है, धरती गोल होती है, अमीरी गोल होती है, कानून गोल होता है, रूपया गोल होता है, लड्डू के चक्कर में बड़े बड़े गोल होते हैं .  .... तो ... सो जा राजकुमारी सो जा ... चांदी का बंगला ... सोने का जंगला ... सो जा राजकुमारी सो जा . ...

 

-----

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें