दूसरे
अगर लग कर मेहनत करें तो मैं एक सफाई पसंद नागरिक हूं। अब आपसे क्या छुपाना, खुद मुझसे मेहनत होती नहीं, यदि होती तो भी मैं करता नहीं। कारण ये
हैं कि खुद काम करने की ना मेरी आदत है और ना ही संस्कार, लेकिन सफाई-पसंद हूं तो हूं। आदत और पसंद
में थोड़ा टकराव जरूर है पर उम्मीद है आप इसे माइंड नहीं करेंगे। रिक्वेस्ट के
बावजूद माइंड करो तो करो,
मुझ पर कोई असर होने वाला
नहीं है। मेरा काम सफाई को पसंद करना है वो मैं करता रहूंगा।
घर
में काम वाली बाई आती है। सफाई उसका काम है, मैं पैसे देता हूं काम के। इसलिए मेरे मन
में उसके काम के प्रति कोई आभार-वाभार नहीं है, पर मुझे सफाई पसंद है। साफ कपड़े पहनना
मेरी प्रथमिकता है,
अक्सर झक्क सफेद कपड़े
पहनता हूं। कपड़े धोबी धोता है, जाहिर है उसके काम को लेकर मेरे मन में कोई आदर भाव
नहीं होता है, उसका
काम है भई, काम
के मैं पूरे पैसे जो देता हूं। मेरा महत्वपूर्ण योगदान यह है कि मैं सफाई पसंद
हूं। मेरे वाहन को धोने के लिए रोज एक आदमी आता है, एक माली है जो बागीचा साफ करता
है। टायलेट मुझे एकदम साफ और चमकीला चाहिए। एक व्यक्ति बरसों से, बल्कि यों कहना
चाहिए कि पीढ़ियों से हमारे यहां यह काम करता आ रहा है। मैं उसे कुछ पैसों के अलावा
फटे-पुराने कपड़े भी देता हूं। आप पूछेंगे किसलिए, तो
साफ है कि मैं सफाई पसंद हूं।
आपकी
जानकारी के लिए बताउं, मैं
रोज सुबह साढ़े सात बजे स्नान कर लेता हूं और इसमें किसी की धेला-भर सहायता नहीं
लेता हूं सिवा इसके कि कोई पानी गरम कर दे, तौलिया
और चड्डी बाथरूम में लटका दे, साबुन-कंघा-तेल
रख दे, हर रविवार शेम्पू का पाउच काट कर सामने रख
दे और रिमाइंड करा दे कि शेम्पू रखा है। बस। इसके अलावा कुछ नहीं। पत्नी ये काम
बिना पैसा लिए, बिना
किसी दबाव के खुद ही कर देती है। संस्कारवश । वो बहुत सारे काम, यानी घर के करीब करीब सारे ही काम करती
है। सफाई से खाना बनाती है, सफाई
से परोसती है। अगर मैं सफाई पसंद नहीं होता तो वो क्यों करती ये सब। उसे पागल
कुत्ते ने तो काटा नहीं, न शास्त्रों
में कहीं लिखा है और ना ही मायके वालों ने कह कर भेजा है कि जा अपने पति को रोज
नहाने-खाने के लिए प्रेरित कर। मैं खुद देश का सफाई पसंद नागरिक हूं और अपनी आत्मप्रेरणा से
रोज नहाता हूं। बीच बीच में कभी नागा होता भी है तो उसका कारण सरकार का जल-बचाओ
अभियान होता है। अच्छे नागरिक का कर्तव्य है कि वो सरकार की हर योजना का यथाशक्ति
समर्थन करे।
अब
आइये घर के बाहर का भी कुछ बताते चलें आपको, वरना
कहोगे कि अधूरी जानकारी दी। घर से निकलते ही पेड़ के नीचे बैठे परंपरागत पादुका-सेवक
से मैं अपने जूते पालिश करवाता हूं। इतने
चमकवाता हूं कि कोई चाहे तो उसमें देख कर कंघी कर ले। दफ्तर में पहुंचता हूं और
सबसे पहले देखता हूं कि चपरासी ने सफाई ठीक से की है या नहीं । एक बात बता दूं कि
हमारा चपरासी सफाई तो बढ़िया ही करता है। लेकिन मैं खनदानी सफाई पसंद हूं, इसलिए
मेरी नजर वहीं पड़ती है जहां जरा सी भी सफाई छूट गई हो। ऐसे में एक क्लासिक हंगामा
तो बनता ही है। दफ्तर को सिर पर उठा लेता हूं, खूब चिल्ला लेता हूं। इससे मेरा एक्सरसाइज
का कोटा पूरा हो जाता है। साथ ही लोगों में मेरी यह धाक भी जम जाती है कि साहब बड़े
सफाई पसंद हैं। मेरा ख्याल है कि आप प्रभावित हो चुके होंगे मुझसे। प्रधानमंत्री
जी को बताइयेगा,
कि देश में एक नागरिक है सफाई-पसंद। उनके पास मौका है, चाहें तो इस बात पर एक पद्मश्री दे दें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें