शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

दाढ़ी राखिए, और न राखिए कुछ

               यों उनकी उम्र ‘बाऊजी’ लायक नहीं है लेकिन लोगों के बीच कहाते बाऊजी हैं। अभी भी कहीं कहीं ऐसे आदमी को लोग बाऊजी कहने लगते हैं जो जरा सा भी पढ़लिख गया हो, भले ही वो बेरोजगार हो। बाबूगिरी से बाऊजी का कोई संबंध नहीं है। आपके हमारे जैसे आदमी उस वक्त आहत हो सकते हैं जब कोई सुन्दरी भरी सभा में ‘बाऊजी’ का भाटा मार दे, लेकिन बाऊजी पक्के बाऊजी हैं, उन्हें कुछ नहीं होता। दिनभर में उन्हें जितना भी बाऊजी मिलता है सब झोले में भर कर ले आते हैं। जैसे कई लज्जाहीन और ढीठ किस्म के सुबह घुमने निकलते हैं और घर घर फूल चुराते थैली भर कर लौटते हैं। कोई मना कर दे, डांट दे या जूता ही उठा कर मार दे तो भी वे बुरा नहीं मानते हैं। हां, जवाबी कार्रवाई में वे अगले दिन आधा घंटा पहले सैर पर निकलते हैं और दुगनी फूलखोरी के साथ लौटते हैं। 
              बहरहाल, बात बाऊजी की चल रही थी। एक दिन हमने उनसे पूछा कि आपको अंदर से कैसा लगता है जब कालोनी के बाऊजीलोग भी आपको ‘बाऊजी’ बोलते हैं ! 
               वे बोले - ‘‘ साहस उनका है, यह सवाल आपको उनसे पूछना चाहिए। लेकिन आपकी जिज्ञासा सही है। हम भी सोच रहे हैं कि बाऊजी का मान रखने के लिए हमें कुछ करना चाहिए। ’’
                 ‘‘ चलिए देर आए दुरुस्त आए। क्या करने का विचार है ? ’’
               ‘‘ सोचते हैं कि दाढ़ी रख लें। रोज रोज शेविंग का झंझट भी मिटेगा और नहीं जानने वालों को सुविधा हो जाएगी, वे एक झटके में हमें वरिष्ठ साहित्यकार भी समझ लेंगे। क्या कहते हो ? आइडिया कैसा है ?’’
                  ‘‘ आइडिया तो जोरदार है पर आप लिखते तो हैं नहीं !’’
                 ‘‘ हैं तो हम बाऊजी भी नहीं, पर लोग कहते और मानते हैं। साहित्यकार-टाइप दिखने लगेंगे धीरे धीरे लोग अपने आप साहित्यकार समझने-कहने लगेंगे। असल बात टाइप होना है। जैसे पहले कोई नेता नहीं होता है लेकिन हरकतें नेता-टाइप करता है तो लोग  उसे नेता मानने लगते हैं। टीशर्ट-जींस पहनने की उम्र में किसीको  को कुर्ता-पजामा पहन कर बांह चढ़ाना पड़ती है तो किस गरज से ? अगर आप पंडित-पुजारी टाइप रहने लगो तो लोग अपने आप ‘पाय-लागी’ बोलने लगेंगे, कोई संस्कृत का एक श्लोक  नहीं पूछेगा।’’ जवाब में बाऊजी ने लंबा भाषण दे दिया।
                    ‘‘ फिर भी किसी ने पूछ लिया कि इन दिनों आप क्या लिख रहे हैं तो क्या जवाब देंगे !’’
                    कुछ देर का विराम ले कर वे बोले- ‘‘ देखो भाई, सारे सवालों का स्वाभाविक उत्तर दाढ़ी होती है। आज दुनिया कबीर या गालिब को किसी और चीज से नहीं, दाढ़ी से पहचानती है। आपने किसी दाढ़ी वाले से पूछा कि आप विद्वान हो, साधु-संत हो, नेता हो, मंत्री हो, या जो हो उसका कोई प्रमाण दोगे ? नहीं ना ? अब तो दाढ़ी देख कर जनता कुर्सी तक दे देती है। सदियों से प्रजा को दाढ़ी पर भरोसा है। .... फिर भी तुम्हारा प्रश्न  बेकार नहीं है। एक बार दाढ़ी ठीक से बढ़ जाएगी तो हम कुछ कविताएं भी बटोर लाएंगे। बहुत से हैं जो बिना दाढ़ी के कविताएं लिख रहे हैं और उन्हें कोई कवि नहीं मानता है। चलिए दो लाइन से हमारा लोहा भी मानिए -
                                          बाऊजी दाढ़ी राखिए, और न राखिए कुछ।
                                           बाढ़े दाढ़ी जग पूजे, और न देखे कुछ ।।  
                                                                 -------

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