सोमवार, 30 दिसंबर 2019

अपनी सरकार के साथ उन्नीस बीस



दो हजार उन्नीस के शुरुवाती दिनों में मेरा वजन नब्बे किलो से कुछ ज्यादा था । आज यानी उन्नीस की बिदाई के समय चार किलो कम है । मामला काबिले गौर है । सरकार गलत बयानी और आंकड़ों की बाजीगिरी में माहिर है । कृपया नोट कर लें कि यहाँ सरकार से आशय घर की सरकार है । वजन में चार किलो की गिरावट को उन्होने स्वास्थ्य के लिए अच्छा संकेत बताया । साथ ही दाहिने हाथ पर बाएँ हाथ की ताली मारते हुए कहा कि सरकार की कोशिशों के अच्छे परिणाम अब दिखने लगे हैं । उन्होने डपटते हुए बधाई भी दी ।
“लेकिन मैडम जी ! मैंने तो ऐसी कोई कोशिश नहीं की जिससे वजन कम हो जाए !” हम चौंके ।
“कोशिश !! ... आम आदमी यानी जनता कब कोशिश करती है !? ... सारा कुछ तो सरकार को ही करना पड़ता है । सरकार की मांग में तुम्हारे नाम का सिंदूर जो भरा पड़ा है । तुम्हारा खाना-पीना, कपड़े-लत्ते, सोना-जगना किसके जिम्मे है ?! तुम्हें चाहे पता न चले पर दिन रात वह खटती तुम्हारे लिए ही है । तुम्हारा घी-तैल कम किया, मीठा-मैदा कम किया , महंगा पेट्रोल बचाने के लिए पैदल चलने की आदत डलवाई  । याद करो धर्म का ध्यान करवा कर सप्ताह में दो उपवास किसने करवाए तुमसे ? साल भर शरीर मंदी का शिकार रहा और तुम्हें पता भी नहीं चला ।“  सरकार ने प्रेसनोट सा उत्तर जारी किया ।
याद आया कि यह सब हुआ तो है । वजन में चार किलो की कटौती इनका लक्ष्य था जो पूरा हुआ । सरकार की योजनाएँ इतनी चमत्कारी होती हैं पता नहीं था । लेकिन माताजी और दोनों बहनें इससे खुश नहीं थी । उन्होने चार किलो वजन कम होने को चिंता की बात बताया । साथ ही यह भी संकेत किया कि सरकार की जनविरोधी नीतियों का गंभीर परिणाम है जो आगे जा कर जानलेवा साबित होगा । जब माँ का राज था तो चन्द्र कलाओं सा बढ़ता गया था शरीर । जिस दिन पता चला था कि मेरा वजन सौ किलो पार हो गया है तो बादाम का हलवा बना कर खिलाया था मम्मी जी ने ।
“क्या सोच रहे हो ? ... तुम खुश नहीं हो !?”  अचानक सरकार ने पॉइंट ऑफ ऑर्डर का पत्थर मारा ।
“वो क्या है ... मम्मी जी और बहनजियों ....”
पूरी बात सुने बगैर वे बोलीं –“विपक्षी गठबंधन का काम ही है कि सरकार की अच्छी योजनाओं में खोट निकाले और तुम्हें भ्रमित करे । जानते हो चार किलो वजन कम होने से तुम सेमी सलमान लगाने लगे हो ।  इस वक्त जरूरत है सिक्स पैक जनता की । उम्मीद तो यह थी कि तुम आभार मानोगे, या फिर कम से कम धन्यवाद तो कहोगे  लेकिन ... गठबंधन की राजनीति ने तुम्हारी सोच का हरण कर लिया है ।“
“ऐसा नहीं है सरकार । मम्मी जी कह रही थीं कि इसी तरह वजन कम होता रहा तो  पहचान का संकट पैदा हो जाएगा । क्या भरोसा तुम ही पहचानने से इंकार कर दो और घर से बाहर निकाल दो । अभी किसी भी पहचान-पत्र में वजन का उल्लेख तो है नहीं !!”
“कैसी बातें करते हो जी !! पहचान-पत्रों में नाम और चेहरा तो होता ही है । कैसे पैदा हो जाएगा पहचान का संकट !?”
“मम्मी कहती है कि अच्छी सरकार वो होती है जिसमें लोगो का वजन बढ़े । अगर चार किलो प्रति वर्ष की दर से वजन कम  होता गया तो सोच लो दो हजार उनतीस तक कितने से रह जाओगे ! सरकार तुम्हें तीन कंधों के लायक बना रही है ।“
“तो क्या चाहते हो तुम ?”
“आज़ादी ।“
“आज़ादी किससे ? ... क्या मुझसे ?”
“ठहरो,  मम्मी जी से पूछ कर बताता हूँ ।“
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गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

पीठ खुजाइए सरकार


अपने नए स्टाफ के साथ वे पहुंचे, -“आपके समर्थन की वजह से सरकार बन गई है । अब हमारी कोशिश है कि कामकाज अच्छे से हो । बताइये कि सबसे पहले सरकार क्या करे ?” उन्होने फूलों का गुच्छा हाथ में पकड़ाया और उतनी मुस्कान खेंची जितनी कि उनके खनदान में किसी ने नहीं खेंची थी ।
“जरा मेरी पीठ खुजाइए तो । बड़ी खुजली चल रही है । सुना है आपके नाखून बहुत तेज हैं ।“ पार्टी प्रमुख ने पीठ उनकी ओर करते हुए कहा ।
“पीठ तो आप अपने किसी चपरासी से खुजवा लीजिए ना । हमसे क्यों ! ... हम सरकार हैं !!”
“आप सरकार हैं ... क्योंकि हम हैं । ... इतना मत सोचिए सरकार, पीठ खुजाइए ।“
वे सोचने लगे कि राजनीति में सब करना पड़ता है यह तो सुना था लेकिन पीठ खुजाने के बारे में पहली बार पता चल रहा हैं ! डर मीडिया वालों का बहुत है ।  पता नहीं कहाँ कहाँ से देख लेते हैं ! कल अगर हेड लाइन बन गई कि सरकार ने समर्थन के बदले पीठ खुजाई तो प्रतिष्ठित नाखून बदनाम हो जाएंगे । बहुत सोच कर सरकार घिघियाए, -- “देखिए ... मैं अपने पीए को कह देता हूँ वो आपकी पीठ खुजा देगा । अगर हमने खुजाई तो एक समर्थक दल और है । उसको भी खुजली चलने में देर नहीं लगेगी । ... आखिर सरकार को दूसरे काम भी करना हैं ।“
“पीए तो हमारे पास भी हैं जी । उसी से पीठ खुजवाना होती तो आपको समर्थन क्यों देते !!”
“लेकिन जरा सोचिए, जनता के बीच मैसेज क्या जाएगा !”
“हम खुजवा रहे हैं तो मैसेज हमारे हक में जाएगा । लोगों को पता तो चले कि हमारी हैसियत क्या है, वरना सरकार तो आप हैं , जैकारे आपके लगते हैं । “
“तो ऐसा कराते हैं ... यहाँ नहीं ... अकेले में खुजवा लें ... दूसरी पार्टी को पता चलेगा तो वो भी ... “
“दूसरी पार्टी वाले पीठ नहीं खुजवाएंगे । उनका इरादा तो डायपर बदलवाने का है । ... उनके यहाँ गुड्डू, पप्पू, छोटू  वगैरह हैं ... राजनीति में आदमी को बहुत कुछ करना पड़ता है । खुजाने और डायपर बदलने पर सरकार चलती है तो सौदा सस्ता है ।“
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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

शेर के नाखूनों पर नेलपॉलिश


“आप ठीक कह रहे हैं ... आप जंगल के राजा हैं । सरकार आपकी ही होना चाहिए । इसके लिए पहले पाँव आगे कीजिए .... नेलपॉलिश लगा दें आपको । “ कहते हुए दादू ने पंजे पकड़ कर नाखून रंग दिए । फिर बोले – “देखिए शेर साहब, लाल लाल चमकते नाखून कितने सुंदर लगते हैं । अब चलते फिरते ध्यान रखिएगा कि पॉलिश खराब न हो । और हाँ , किसी पर हमला नहीं करना है । नाखूनो का ध्यान रखो न रखो पॉलिश का ध्यान रखना जरूरी है ।“
समय के साथ हरेक को बदलना पड़ता है । शेर समय से बड़ा नहीं होता है । आज मौका है, और मौका समय की देन है । कुछ देर नाखूनों को देखने के बाद शेर ने अपना सिर झटका और खुद को समझाया कि मान लो कि पॉलिश अच्छी लग रही है ।  इसके बाद मौन सहमति के संकेत दिए ।
दादू नाखून पकड़ कर दांत पकड़ने में माहिर है । उसने कहा – “हे राजन, लोकतन्त्र में शेर वही होता है जो दहाड़ते रहने के बजाए मुस्कराता रहता है और हमला करने के अवसरों पर हाथ जोड़ता है ।“
“ये मुझसे नहीं होगा .... आप कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहे हैं मुझसे ....” शेर नाराज हुआ ।
“सरकार बनानी है या नहीं ? ... जंगल आपके हाथ से निकाल जाएगा .... शेर के लिए सरकार होना जरूरी है वरना महकमों में आधार कार्ड दिखाने पर ही इंट्री मिलेगी ।“
शेर ने अपने को संयत किया । पूछ “क्या करना होगा !”
“कुछ नहीं ... आप मुसकराना सीखिए, हम लिपिस्टिक लगा देते हैं ।“ कहते हुए दादू ने शेर के होठ रंग दिए ।
लाल नाखून और लाल होठ देख कर शेर का दिमाग राउंड राउंड होने लगा, - “दादू !! कितना गलत मैसेज जाएगा जंगल में ! लोग कहेंगे कि शेर कामरेड हो रहा है ! क्या मुझे अपने ही खिलाफ धरने प्रदर्शन करने होंगे !?”
“राजन ... राजनीति में मैसेज का नहीं .... मैसेज में राजनीति का महत्व होता है । आप अगर शेर के अलावा कुछ समझे गए तो सीटें बढ़ेंगी । ... सीटों के चक्कर में ही हमें एक और पार्टी का समर्थन लेना पड़ रहा है .... उनकी भी कुछ मामूली शर्तें हैं ।“ दादू अगले मुद्दे पर आए ।
“सरकार बननी चाहिए ... शर्तें अगर मामूली हैं तो हमें दिक्कत नहीं है, बताइये ।“
“उनका कहना है कि आपको डायपर पहनना होगा और खादी भी ।“ दादू बोले ।
“ खादी पहनी नहीं हमने आजतक ... वैसे भी खादी पहनना हमारे उसूलों के खिलाफ है । और डायपर क्यों !?  हमारे अपना जंगल है ... हमारी अपनी मर्जी है ...
“नंगा शेर अच्छा नहीं लगता है ... विकास का प्रतीक है डायपर । और अभी भी करोड़ों लोग खादी को देख कर ही वोट देते हैं ।“
“लेकिन दादू, अगर खादी पहनेंगे तो हमारी पहचान खो जाएगी ।“
“शेर की पहचान सत्ता से होती है ... सूरत का इस्तेमाल तो सिर्फ बच्चों की पिक्चर बुक में होता है ।“
“चलो ठीक है, पहन लूँगा । ... अब सरकार बनवाइए फटाफट ।“
“अब तो बन ही जाएगी, कोई दिक्कत नहीं है । समझिए कि हाथी निकाल गया है बस पूंछ  बाकी है ।“
“अभी भी पूंछ बाकी है !! “ शेर चौंका ।
“ कभी कभी मैडम हाथ में रिंग ले कर दिखाएंगी । बस आपको उसमें से कूदते रहना है । ... कोई बहुत बड़ा काम नहीं है । एक दो बार कुछ लगेगा फिर आदत पड़ जाएगी । बाद में तो मजा भी आने लगेगा । ... सोचिए सरकार बनाने जा रहे हैं आप ।“
“ठीक है, यह भी कर लेंगे । ... अब तो सरकार बनाने में कोई बाधा नहीं है ?” शेर ने नेलपॉलिश देखते हुए पूछा ।
“अब भला क्या बाधा हो सकती है ! इतना कर लेंगे तो दुम अपने आप हिलने लगेगी । हो गया काम, बनेगी सरकार, ... बल्कि यों समझिए कि बन गई सरकार ।.... अपना सब कुछ को सरकार में और सरकार को सब कुछ में बदलने की कला का नाम ही राजनीति है । जय महाजंगल । “
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सोमवार, 2 दिसंबर 2019

बाज़ार ठंडा है !


                     
                    जब से बाज़ार ठंडा हुआ है आफ़रों के अलाव जल गए हैं । इधर दिन भर फोन आ रहे हैं, कार ले लो साहब । कीमत में छूट देंगे, सोने का असली सिक्का भी देंगे, एक्सेसरिज फ्री दे देंगे, नगद नहीं हो तो उधार देंगे, लोन फटाफट देंगे, ईएमआई बाटम से भी नीचे वाला लगा लेंगे । बैंक की पहली किश्त आप मत देना हम दे देंगे, पाँच लीटर पेट्रोल भर के देंगे । सरकार ने करोड़ों खर्च करके सीमेंट वाली सड़कें बनवाई हैं तो उससे चिपक के चलो । और क्या चइए आपको !? सोचो मत, हमने सोच लिया है । आप तो आधार आईडी लाओ और हथोहाथ कार ले जाओ । आज की देत में किराने वाला उधार  नहीं दे रहा किसीको, आपके लिए नई कार उधार है । जमाने के लिए मंदी है, आप साहब के लिए 
उपहार है ।

                  चारों तरफ चर्चा है कि बाज़ार ठंडा है । ठंडा होता है बाज़ार लेकिन गरमी कारोबारियों के अंदर बढ़ जाती है । वो पसीना पसीना  हो रहे थे । पूछा तो लाचारी से कहने लगे – बुरे हल हैं । क्या करें ! पूरा बाज़ार ठंडा हो गया है ।  कायदे से बाज़ार अगर ठंडा है तो स्वेटर पहनो । लेकिन नहीं, बाज़ार की ठंड स्वेटर से नहीं भागती है । और न ही एसी की ठंडक से दूकानदारों का पसीना सूखता है । उस पर टीवी का हँगामा कि पड़ौसियों को नानी याद दिला देंगे । मंदी के जलों पर पाकिस्तानी सेंधा नमक अलग से । कोई हाय हाय करना चाहे तो देशद्रोही कहा जाए । कहते हैं दूध देने वाली गाय की लात भी खाना पड़ती है । लेकिन इधर दूध-मलाई  देने वाले बाज़ार की कोई सुन ही नहीं रहा है । गइया मइया और देशभक्ति वगैरह के चलते बाज़ार की क्या औकात ! भैया, दादा, बाउजी बोलते चिल्लाते गला सूख जाता है ।  कल ही बाज़ार ने के. के. महाकाले से पूछा कि इस बार तो दीवारों पर रंग करवाओगे ना ? महाकाले ने साफ माना कर दिया - कोई गुंजाइश नहीं है भाई । हाथ तंग है , उम्मीद भंग है , जिम्मेदारियों का लश्कर संग है , चितकबरे के साथ दीवारें अभी मस्त है, बैंक अकाउंट पस्त है ।
लोग नरपति के पास पहुंचे तो सुन कर वे भी गरम हो गए । बाज़ार कमबख्त बाज़ार है वरना एकाध माबलिचिंग करवा देते तो सहम जाता । नरपति गरम हो तो पूरे दरबार को गरम होना जरूरी है । लेकिन दरबार की गरमी से भी बाज़ार की ठंड दूर नहीं हुई । मीडिया मुँह में घुसने लगा तो बोले मंदी हो या ठंडापन, सब नाटक है विपक्ष का । विकास को देखोगे तब दिखेगा ना । चप्पल वाले लोग भी अब हवाई सफर करने लगे हैं, डेढ़ जीबी डाटा खर्च करने वालों को अब दो जीबी भी कम पड़ने लगा है, हर हफ्ते दो नई फिल्में लग रहीं हैं और हाउसफुल हो रही हैं तो कहाँ है बाज़ार में ठंडापन !? इसी बाज़ार में अपने मुकेश भाई नहीं है क्या ? उसका तो बढ़िया चल रहा है । दुनिया के टॉप टेन में शामिल हुए हैं । जिनके भाग्य खोटे हैं उनके लिए दरबार कुछ नहीं कर सकता है । लोग धर्म से दूर होंगे और दोष बाज़ार को देंगे तो यह नहीं चलेगा ।
“सर, जनता कष्ट में है दुख का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है । इसका कुछ कीजिए । “
“ग्राफ बढ़ रहा है तो इसमे बुरी बात क्या है !!  बढ़ने दो, हम दुख का नाम बादल कर सुख कर देते हैं । .... सुख का ग्राफ बढ़ेगा तो किसी को दिक्कत होगी क्या ?
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