दो हजार
उन्नीस के शुरुवाती दिनों में मेरा वजन नब्बे किलो से कुछ ज्यादा था । आज यानी
उन्नीस की बिदाई के समय चार किलो कम है । मामला काबिले गौर है । सरकार गलत बयानी
और आंकड़ों की बाजीगिरी में माहिर है । कृपया नोट कर लें कि यहाँ सरकार से आशय घर
की सरकार है । वजन में चार किलो की गिरावट को उन्होने स्वास्थ्य के लिए अच्छा
संकेत बताया । साथ ही दाहिने हाथ पर बाएँ हाथ की ताली मारते हुए कहा कि सरकार की
कोशिशों के अच्छे परिणाम अब दिखने लगे हैं । उन्होने डपटते हुए बधाई भी दी ।
“लेकिन
मैडम जी ! मैंने तो ऐसी कोई कोशिश नहीं की जिससे वजन कम हो जाए !” हम चौंके ।
“कोशिश !!
... आम आदमी यानी जनता कब कोशिश करती है !?
... सारा कुछ तो सरकार को ही करना पड़ता है । सरकार की मांग में तुम्हारे नाम का
सिंदूर जो भरा पड़ा है । तुम्हारा खाना-पीना, कपड़े-लत्ते, सोना-जगना किसके जिम्मे है ?! तुम्हें चाहे पता न
चले पर दिन रात वह खटती तुम्हारे लिए ही है । तुम्हारा घी-तैल कम किया, मीठा-मैदा कम किया , महंगा पेट्रोल बचाने के लिए
पैदल चलने की आदत डलवाई । याद करो धर्म का
ध्यान करवा कर सप्ताह में दो उपवास किसने करवाए तुमसे ? साल
भर शरीर मंदी का शिकार रहा और तुम्हें पता भी नहीं चला ।“ सरकार ने प्रेसनोट सा उत्तर जारी किया ।
याद आया कि
यह सब हुआ तो है । वजन में चार किलो की कटौती इनका लक्ष्य था जो पूरा हुआ । सरकार
की योजनाएँ इतनी चमत्कारी होती हैं पता नहीं था । लेकिन माताजी और दोनों बहनें
इससे खुश नहीं थी । उन्होने चार किलो वजन कम होने को चिंता की बात बताया । साथ ही
यह भी संकेत किया कि सरकार की जनविरोधी नीतियों का गंभीर परिणाम है जो आगे जा कर
जानलेवा साबित होगा । जब माँ का राज था तो चन्द्र कलाओं सा बढ़ता गया था शरीर । जिस
दिन पता चला था कि मेरा वजन सौ किलो पार हो गया है तो बादाम का हलवा बना कर खिलाया
था मम्मी जी ने ।
“क्या सोच
रहे हो ? ... तुम खुश नहीं हो !?” अचानक सरकार ने पॉइंट ऑफ ऑर्डर का पत्थर मारा ।
“वो क्या
है ... मम्मी जी और बहनजियों ....”
पूरी बात
सुने बगैर वे बोलीं –“विपक्षी गठबंधन का काम ही है कि सरकार की अच्छी योजनाओं में
खोट निकाले और तुम्हें भ्रमित करे । जानते हो चार किलो वजन कम होने से तुम सेमी
सलमान लगाने लगे हो । इस वक्त जरूरत है
सिक्स पैक जनता की । उम्मीद तो यह थी कि तुम आभार मानोगे, या फिर कम से कम धन्यवाद तो कहोगे
लेकिन ... गठबंधन की राजनीति ने तुम्हारी सोच का हरण कर लिया है ।“
“ऐसा नहीं
है सरकार । मम्मी जी कह रही थीं कि इसी तरह वजन कम होता रहा तो पहचान का संकट पैदा हो जाएगा । क्या भरोसा तुम
ही पहचानने से इंकार कर दो और घर से बाहर निकाल दो । अभी किसी भी पहचान-पत्र में
वजन का उल्लेख तो है नहीं !!”
“कैसी
बातें करते हो जी !! पहचान-पत्रों में नाम और चेहरा तो होता ही है । कैसे पैदा हो
जाएगा पहचान का संकट !?”
“मम्मी
कहती है कि अच्छी सरकार वो होती है जिसमें लोगो का वजन बढ़े । अगर चार किलो प्रति
वर्ष की दर से वजन कम होता गया तो सोच लो
दो हजार उनतीस तक कितने से रह जाओगे ! सरकार तुम्हें तीन कंधों के लायक बना रही है
।“
“तो क्या
चाहते हो तुम ?”
“आज़ादी ।“
“आज़ादी
किससे ? ... क्या मुझसे ?”
“ठहरो, मम्मी जी से पूछ कर बताता हूँ ।“
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