रविवार, 31 मई 2020

ड्रिंक एंड ड्राइव इकनामिक्स



शुरुवात में कुछ बड़े लोग पॉज़िटिव थे । दूसरे उनके संपर्क में आते गए और संक्रमित होते गए । धीरे धीरे कार-पॉज़िटिव लोगों की संख्या बढ़ती गई । जी हाँ मैं कार की बात कार रहा हूँ । सरकार ने चौराहों पर हरी लाल बत्ती लगाई । कुछ नियम बनवा दिए, जरूरत पड़ने पर ऑड़-इवन भी किया । लोग ठुकने-ठोकने लगे तो सीट बेल्ट बांधने और धीरे चलाने के निर्देश दिए । हार्न बजाने और ब्रेक लगाने को भी कहा । तमाम कोशिश करके थक गई तो सरकार ने ट्वीट किया कि लोगों को अब कार के साथ ही जीना सीखना होगा । कार अब हमारे जीवन का हिस्सा है ।

इधर लॉक डाउन खुला और उधर चौथी बार के संक्रमित कार बहादुर जी शो रूम में पहुँच गए । सेफ़्टी के लिए उनका ज़ोर जरूरत से ज्यादा देख शोरूम वाला बोला –“देखिए साहब ये कार है । कंपनी ने सारे जरूरी पुर्जे लगा दिए हैं । रोड टेस्ट ले लिया है । सब ओके है हमारी तरफ से । अब आप इसे खरीद रहे हैं तो कैसे चलना / चलाना  है इसकी ज़िम्मेदारी आपकी है । कहाँ आपको हार्न बजाना है, कहाँ ब्रेक लगाना है, यह सब आपको तय करना है । सावधानी हटी, दुर्घटना घटी के बोर्ड सब जगह लगे हुए हैं हिन्दी अँग्रेजी में । पढ़ना और समझना आपको है, सरकार ... यानी कंपनी की ड्यूटी खत्म । सावधानी रखोगे तो गाड़ी चलती रहेगी ।“

“बीमा भी तो होता है ना ?” कार बहादुर ने पूछा ।

“देखिए साहब बीमा की बात अलग है । जिसको मिल गया उसको मिल गया । वरना शर्ते लागू हैं ही । बीमा राशि लेना हो तो बीमा कंपनी के हिसाब से मरना जरूरी है । कोरोना वाले को भी बीमा नहीं मिलता है ।“

“भाई साहब मैं कोरोना की नहीं कार कि बात कार रहा हूँ ।“ कार बहादुर ने टोका ।

एक ही बात है जी । कार और कोरोना साहबों की बीमारी है और छूत से फैलती हैं । देख नहीं रहे हर घर के सामने बिना बात एक एक दो दो कार खड़ी हैं ।“

“ठीक है लेकिन बीमा से सुरक्षा तो मिलती है ।“

“सुरक्षा बीमा कंपनी को मिलती है । बाकी को भय और भ्रम मिलता है ।“

“टीवी पर भीख मांगता हुआ विज्ञापन तो आ रहा है कि कब करवाओगे .... अब तो करवा लीजिए .....”

“विज्ञापन तो कोरोना के भी आ रहे हैं कि डिस्टेन्स रखिए मास्क लगाइये । लेकिन कोई ध्यान देता है !!”

“ फिर ? लूँ या नहीं  लूँ  ? ..... सोचता हूँ क्या करूंगा ले कर !”

“ले लो साहब । महीने में पाँच को भी संक्रमित कर दोगे तो कंपनी को लाभ होगा और सरकार को भी । अर्थ व्यवस्था का तो पता ही है आपको । मदिरा और कार पर तो देश चल रहा है । यानी ड्रिंक एंड ड्राइव इकनामिक्स ।

 


बुधवार, 27 मई 2020

धराधीश के कर कमलों से


धरम का काम था । धरम के काम बहुत कठिन होते हैं लेकिन करना पड़ते हैं । धराधीश की धरम करम में कोई आस्था नहीं है, लेकिन राजनीति में है । वैसे राजनीति में रोजना कौन किसी की पीठ खुजाता है । सच पूछो तो राजनीति कुर्सी के पाए से बंधी कुतिया है । जिसे बैठना हो उसे कुतिया की पीठ सहलाना ही पड़ती है । धंधे के लिए आदमी को क्या कुछ नहीं करना पड़ता है । इसी के चलते धराधीश धर्म आयोजन में मगज़मारी करना पड़ी । एक तो लोकतन्त्र में मीडिया वालों की बड़ी दिक्कत है । जरा जूता पहन कर दीपक जला दो तो फोटो खींच लेते हैं । मन मसोस कर रह जाना पड़ता है । वैसे देखा जाए तो खुद उनकी चरण पादुकाएँ लोकतन्त्र का मंदिर हैं और उनको अपवित्र कहना या समझना राजद्रोह हो सकता है । लेकिन कुछ चीजें होती हैं जिन पर धराधीश का भी वश नहीं चलता है ।
अभी तक साधू संतों के पैर धुलवाने का चलन था । इससे महात्माओं का मनोबल बढ़ता है और वे धराधीश के पक्ष में प्रवचन करते हैं । इधर सलाहकारों को नई सूझ पड़ी कि धराधीश श्रमिकों के पैर धोएँ तो नया संदेश जाएगा प्रजा में । यह ऐतिहासिक घटना होगी क्योंकि श्रमिकों के पैर आज तक कमरेडों ने भी नहीं धोए हैं । छोटे मोटे मामलों में घराधीश बहुत सोच विचार के बाद निर्णय लेते हैं । अंदर से उनका मन नहीं हो रहा था । वे बोले – “ पैर नहीं, अगर मुँह धुलवाएँ तो कैसा रहे ? सलाहकार बोले – राजन, मुँह के साथ पेट जुड़ा होता है । राजनीति के लिए प्रजा का पेट सबसे खतरनाक चीज होती है । पैर धोना सेफ है । धोया और फारिग हुए । बहुत हुआ तो एक जोड़ी हवाई चप्पल दे कर बाहर निकला जा सकता है । लेकिन पेट !! आज तक किसी का भरा है हुजूर । और ये भी देखिए कि मजदूरों के पैर धोने से अर्थव्यवस्था और बैंकों की कर्जनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा । जो लोग दशकों तक गरीबी हटाओ का नारा लगाते रहे हैं उन पर पाँच मजदूरों के पैरों की धुलाई भारी पड़ेगी । हर वर्ष अगर पैर धुलाई का आयोजन रख लेंगे तो प्रजा में गरीब होने की होड मच जाएगी । ऐसे में गरीबी हटाओ का नारा लगाने वाली पार्टियों पर लोग पत्थर ले कर दौड़ेंगे । असल राजनीति गरीबी बनाए रखने में है ।
“तो ठीक है, हम मजदूरों के पैर धोएँगे ।“ धराधीश बोले ।
स्थानीय प्रशासन ने पाँच मजदूर पकड़े और उन्हें दूसरे मजदूरों से नहलवाया धुलाया और सेनेटाइज करवाया । सबसे पहले कवर करने के लिए मीडिया जमा हुआ । ठीक समय पर धराधीश ने लक़दक़ इंट्री ली । पांचों मजदूर डर के मारे काँप रहे थे । उन्हें लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि उनके पैर अब म्यूजियम में रखने के लिए ले लिए जाएँ । धुलाई के बाद धराधीश आराम से टाटा करते निकल लिए ।
मीडिया मजदूरों की ओर लपका । पूछा – “आप लोगों को कैसा लग रहा है धराधीश जी के हाथों पैर धुलवा कर ?”
“बहुत अच्छा साहब । हम बहुत खुश हैं । पैर बच गए हमारे, हमें और कुछ नहीं चाहिए ।“ वे बोले ।
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गुरुवार, 14 मई 2020

लोगों बात मत करो


“ये क्या, तुम दिन भर फोन पर लगे रहते हो ! कुछ आगे-पीछे का, आज-कल का ध्यान तो रखा करो कि उठाया फोन और लगे खयाली खेत जोतने ।“ सुनीला से आखिर रहा नहीं गया । उन्हें असल में गुस्सा इस बात का है कि उनके घरेलू काम बढ़ गए हैं इन दिनों और ये जनाब पड़े पड़े हांक रहे हैं । तोंद कोरोना के आंकड़ों की तरह हर दिन बढ़े जा रही है और ये सरकार कुछ करने की बजाए सहलाए जा रहे हैं बस ! जैसे तोंद न हो मटका हो खजाने का ।
“लॉकडाउन है भई ! किसी से बात भी नहीं करूँ क्या ! हर आदमी घर में खाली खोपड़ी ले कर खाली बैठा है । जानती हो अगर लोग बात नहीं करेंगे तो सरकार के बारे में उल्टा सीधा सोचने लगेंगे । यह कोई अच्छी बात थोड़ी है हमारे लोकतन्त्र के लिए ।“ अरुण बोले ।
“ढ़ोल पीट पीट कर बताया जा रहा है कि मोबाइल फोन से वायरस फैलता है । पता हैं कोरोना कान से घुसता है ! दिन भर कान और मुँह से सटाए रखोगे तो किसी दिन चपेट में आ जाओगे फिर मुझे कुछ मत कहना हाँ ।“ सुनीला देवी ने अपनी ज़िम्मेदारी का खुलासा किया ।
“मेरे फोन में वायरस नहीं है । कल ही विस्की से साफ किया है मैंने ।“
“हर कोई फोन में विस्की बर्बाद नहीं करता है । ... और वायरस अगर सामने वाले के फोन में हुआ तो ? जो चीन से पूरी दुनिया में जा सकता है वो एक से दूसरे फोन में नहीं आ सकता है क्या ? वो वायरस है शांताबाई नहीं जो पूरे कोरोना सीजन नहीं आएगी । देवी का दर्द ।
“शांताबाई की तरह वायरस भी फोन से आता या जाता नहीं है । समझी ?”
“पैसा आ सकता है जा सकता है, फोटो-वीडीओ आ-जा सकते हैं तो वायरस को अलग से सिम की जरूरत पड़ेगी क्या !? सारे लोग सावधानी रख रहे हैं एक तुम्हारे पास ही हैं अकल के बीज । .... कभी आईने के सामने भी खड़े हो कर अपनी कमाई को भी देख लिया करो ।
“देवी, कोरोना का वायरस छूने से फैलता है । और मैं मूरख नहीं हूँ, जानकारी रखता हूँ । बोलने बात करने से इसका कोई संबंध नहीं है ।“ अरुण ने सूक्ष्म बाणों पर ध्यान न देने की नीति अपनाई ।
“ये तो मानते हो ना कि हमारे नेता, वो चाहे किसी भी पार्टी के हों, सब जनता की सेवा के लिए काम करते हैं ?”
“इसमें भला किसी को क्या शक है । हमारे देश में हर कोई जानता है कि हमारे नेता सेवा के लिए ही राजनीति करते हैं ।“
“तो बताओ लॉकडाउन के बाद कोई बोल रहा है पहले जैसा ! वो हैदराबाद वाले दोनों शांतिदूत कहाँ गए जो बोल बोल के बिरियानी पकाते थे । कोरोना के कारण स्मृति लोप हो गई, लोग माया-ममता तक सब भूल गए । पार्टी प्रवक्ता को टीवी की भट्टी में झोंक कर सारे नेता क्वारंटाइन हैं तो ऐसे ही नहीं । सब जानते हैं कि बोलने से वायरस फैलता है ।“ नीलीपीली होते हुए वे बोली ।
“दूसरे कोई बोलें न बोलें, टीवी वाले तो खूब बोल रहे हैं ना । अब कहोगी कि टीवी समाचारों से भी कोरोना फ़ैल सकता है !“
“फ़ैल क्यों नहीं सकता है ! जब टीवी से आलस्य, मोटापा और चटोरापन फ़ैल सकता है कोरोना क्यों नहीं ?
अरुण को हथियार डालने में समझदारी लगी, बोले – “चलो ठीक है फोन रख देता हूँ, अब तो खुश ।“
“सिर्फ फोन रखने से क्या होगा !! अपनी तौंद भी रख कर आओ कहीं ।“
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सोमवार, 11 मई 2020

लोटी स्नान


“देखिए भाई साब, अब से आप लोग आधी बाल्टी पानी में नहाया करें । पानी बचना है ना अपने को ? जानते हैं ना कि धरती में पानी बहुत नीचे चला गया है ।“ आधी बाल्टी मुहीम के अगुआ भोला भाई जल बचाओ दल के साथ हर घर जा रहे हैं ।
“आप यह बात ध्यान रखिए कि आधी बाल्टी से नहाना एक तरह का कौशल है ।“
“इन्हें पानी से नहाने की क्या जरूरत  !! देखते नहीं पीएचडी हैं, ज्ञान की बाल्टी लबालब भरी हुई है । उसी में गोता लगाएँ, नहाएँ धोएँ किसी को दिक्कत है कोई ?  सिंग साब ने वर्मा जी को देखते ही चिकोटी काटी ।
“डाकसाब देश हित के लिए आधी बाल्टी से नहाना होगा आपको ।“ भोला भाई बोले ।
“आधी बाल्टी पानी बचाने से क्या होगा !?”  वर्मा जी बोले ।
“आप जानते हैं कि देश की जनसंख्या एक सौ छत्तीस करोड़ है । अगर सब लोग आधी बाल्टी से नहाएँ तो 68 करोड़ बाल्टी पानी बचेगा ।“
“नहाने की जरूरत ही क्या है । अगर नहीं नहाएँ तो पूरे एक सौ छत्तीस करोड़ बाल्टी पानी बचेगा । क्यो वर्मा जी ?“ सिंग साब ने फिर चिकोटी का इस्तेमाल किया ।
“नहाने पर पानी बर्बाद होता है या बचता है पहले इस बात को साफ कर लें ।“
“इसमें साफ क्या करना ! नहाने से पानी बर्बाद होता है और नहीं नहाने से बचता है । साधारण सी बात है ।“
“तो हम पानी बचाने की मुहिम पर हैं या बर्बाद करने की ?” सिंग साब ने गरदन पकड़ी ।
“बेशक पानी बचाने की मुहीम पर ।“
“ध्यान रहे कि आप लोगों को आधी बाल्टी पानी से नहाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ।“
तो इसमें गलत क्या है ! राष्ट्र हित में यह जरूरी है । मैं तो कहना चाहूँगा कि आधी बाल्टी स्नान का कानून बना कर सख्ती से लागू करना चाहिए ।“
“जो लोग सप्ताह में एक बार नहा कर देश को मजबूत बना रहे हैं उनके बारे में क्या योजना है ? ... क्या वे प्रति सप्ताह साढ़े तीन बाल्टी का उपयोग कर सकते हैं ?”
“मैं एक दिन छोड़ कर नहाता हूँ और दाढ़ी भी एक दिन छोड़ कर बनाता हूँ । ये एक कला है ... इस बात को समझिए ।“ गंगवानी बोले ।
“इसमें कला कि क्या बात है भाई साब !?”
“जिस दिन दाढ़ी बनाता हूँ उस दिन नहाता नहीं हूँ लेकिन नहाया हुआ लगता हूँ । ये कला नहीं है ?”
“लेकिन जिस दिन नहाते होंगे उस दिन तो पूरी बाल्टी पानी बर्बाद करते होंगे ।“
“तो इसमें गलत क्या है सांई ! एवरेज तो बराबर पंद्रह बाल्टी महीने का निकला ना ।“
“देखिए देश के बारे में सोचिए । जब भी नहाएँ यानी एक दिन छोड़ कर या सात दिनों में । हमें आधी बाल्टी से ही नहाना है । देश हित के काम में एवरेज कि चतुराई न करें ।“
“पांडे जी दिन में दो बार नहाते हैं उसका क्या !? पूछिए उनसे । बताइये पांडे जी, आप दिन में दो बार नहीं नहाते हैं ?”
“देखो भाई, बात को समझो । तांबे की एक लोटी में हम तैंतीस कोटी देवी देवताओं को नहला देते हैं तो हम कोई अलग थोड़ी हैं । दिन में दस बार भी नहाएँ नहलाएँ तो भी लोटी का पानी खत्म नहीं होता है ।“
“अरे इस बात पर तो ध्यान ही नहीं गया ! क्यों नहीं सब लोग लोटी स्नान कर देश मजबूत बनाएँ । “
यह नहीं हो सकता है ।“ पांडे जी बोले । “देवस्नान आमजन के लिए नहीं है ।“
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रविवार, 3 मई 2020

अगले जनम मोहे खंबानी कीजों


भारत में हर आदमी शादी करने के लिए पैदा होता है । दरअसल पैदा होना एक पैदाइशी कर्ज है जिसे उतरे बिना मोक्ष नहीं मिलता है । इस तरह बात साफ है कि शादी मोक्ष का द्वार है और पत्नी मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाली देवी । मोक्ष का मतलब तो आप जानते ही होंगे ? कोई बात नहीं, हम बता देते हैं । मोक्ष वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को दोबारा पैदा होने की जरूरत नहीं पड़ती है । आदमी पापमुक्त हो तो उसे जन्म मरण के चक्र से छुट्टी मिल जाती है । लेकिन पापी संसार में आ कर कोई पाप से अछूता कैसे रह सकता है । उसे बार बार जन्म लेना पड़ता है, लेकिन इसमें बड़ा जोखिम है । आज भारत में पैदा हुए, बहुत अच्छा । लेकिन कल चीन या अफ्रीका में पैदा होना पड़ गया तो !! वैसे ही अपने देसी आदमी को लेंगवेज प्राबलम कितना बड़ी होती है । आज हिन्दू हैं अच्छा, ब्राह्मण हैं और भी अच्छा लेकिन कल ऊपर वाला कौन सी जात में डाल के फेंक दे, कुछ कहा जा सकता है ! कहते हैं  कि करमों वरमों के हिसाब से जनम मिलता है । मिसिर जी सोच रहे हैं कि अब तक तो करम का अच्छा बुरा होना अपुन ही डिसाइड करते आ रहे हैं । लेकिन भैया लोकतन्त्र है, कुछ कहा नहीं जा सकता किसके सिर पगड़ी साज जाए । भाग्य गरीबों गुरबों का होता है और अमीरों का तो पुरुषार्थ होता है । लेकिन दिक्कत ये है कि पैदाइश के मामले में यह नियम लागू नहीं होता है । कुछ दिन पहले पान की दुकान पर यासीन मियां मिले, कह रहे थे कि मुझे सपने में घाट, मंदिर, घंटे, आरती दिखते हैं । ऐसा लगता है कि पिछले जनम में मैं पंडित था बनारस में । सुन कर मिसिर जी ऐसे बेचैन हुए कि अभी तक वैसे ही सिर खुजा रहे हैं । भगवान का भरोसा बस कहने भर को ही है, वरना दुनिया के ये हाल होते । सोच रहे हैं कि कहीं उन्हें भगवान ने गलती से दाढ़ी टोपी में डाल दिया तो क्या होगा !! मेंढक की तरह कूदते रहेंगे जैसे यासीन मियां कूद रहे हैं दिन में इधर रात में उधर ।
देखिए भाई, आत्मा को फिर फिर पैदा तो होना पड़ेगा । उससे बचने का कोई रास्ता नहीं है । सो समझदार आदमी तो यही चाहेगा कि अगले जनम में वो एशिया के सबसे अमीर आदमी के यहाँ पैदा हो । नहीं सबसे अमीर तो टॉप टेन वाले किसी बंदे के यहाँ जरूर । मिसराइन ने सुना तो बमक गई । बोलीं यहाँ कौन बात की कमी है !! हम चुटकी काटते है क्या तुम्हें !! कुंडली में मंगल दोष तुम्हारे, भुगतते रहे हम !
“ शांत देवी, हम तो तुम्हारे बारे में चिंतन कर रहे थे । सात जनम के लिए साथ लगी हुई हो ना । हम अगर टॉप टेन में पैदा हो गए तो असल सुखी तुम ही रहोगी । तुम वर्ष के साढ़े तीन सौ व्रत उपवास करने वाली, भगवान की सगी हो । उपाय बताओ कि कैसे मिसिर से खंबानी हो जाएँ अगले जनम में ।“
वे बोलीं – “हेअनाथ, यह तो संभव नहीं है । महाभारत के बाद एक दंपति के यहाँ सौ पुत्र पैदा होना बंद हो गए हैं । अमीर घराने कि स्त्रियाँ भी जान गई हैं कि एक सन्तान पैदा करने के बाद उनका फीगर बिगड़ सकता है ।“
“तो हे देवी, किसी दूसरे धर्म में, किसी दूसरे देश में, पशु पक्षी या जन्तु के रूप में पैदा हो कर मैं तुम्हारा अगला जन्म खराब नहीं कारना चाहता हूँ ।“
“हेअनाथ, तुम क्या चाहते हो ?”
“मेरी इच्छा है यही कुल, यही गोत्र, यही नगर, यही लोग ।“ मिसिर जी बोले ।
“तथास्तु, .... यही गोत्र, यही नगर, यही लोग मिलेंगे । .... किन्तु हेअनाथ, आप स्त्री बन कर पैदा होगे ।“
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