शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

चूल्हा जलई ले पिया, उदर मा बड़ी आग है

 




जब चूल्हा नहीं जलता है तो पेट जलता है. लेकिन जले तो दुनिया का जले, आपका क्यों जले. आइये आज आपको चूल्हे के मामले में आत्मनिर्भर बनने का उपाय बताते हैं. बिजली और गैस की चिंता से मुक्त हो जाइये और समय के साथ चलिए. संकोच मत कीजिये, जहाँ से चले थे वहीँ पहुंचना प्रकृति के साथ चलना है. खाली हाथ आना और खाली हाथ जाना यही ईश्वर की मर्जी है. विकास भी एक परिधि के रूप में गति करता है.

चूल्हा बनाने के लिए हमें सिर्फ छः ईंटों की जरुरत है . मज़बूरी ये है कि ईंट किराने की दुकान पर मिलती नहीं हैं. ऑनलाइन मिल सकती है लेकिन पक्का नहीं है . सबसे अच्छा यही है कि किसी बनते मकान से ले आयें . आसपास देखिये कहीं मकान बन रहा हो तो वहाँ से छः ईंटें लाइए . ईंट आजकल बहुत महँगी है, सस्ती के ज़माने में रूपए की पांच मिल जाया करती थीं . अब सात रूपए की एक मिलती है . बैंकें लोन देने लगें तो चीजें महँगी होने लगती हैं . घ्यान रहे बनते मकानों पर चौकीदार रहता है . लेकिन आप समझदार और  शहरी हैं, काम निकालना जानते हैं . उसे मुस्कराते हुए भईया कहें और दैन्य भाव से छः ईंटें मांगे. गरीब आदमी जल्दी पसीजता है, सम्भावना यही है कि वो दे देगा क्योंकि उसके बाप का क्या जाता है. किन्तु ये भी हो सकता है कि मना कर दे, लेकिन आप कोशिश जारी रखिये. देश और दुनिया के हों न हों अक्सर मकान के चौकीदार ईमानदार होते हैं . दरअसल ईमानदारी के आलावा उनके पास कुछ होता नहीं है . इसलिए लोग उनसे सबसे पहले ईमानदारी ही खरीदते हैं . आप पढ़े लिखे हैं और जानते हैं कि चूल्हा जलाने की समस्या उसके सामने भी है. किसी गरीब के साथ पहली बार डील थोड़ी कर रहे हैं. दस का नोट दीजिये और उसी के सर पर रखवा कर छः ईंटें घर लाइए. आपके मन में स्टार्ट-अप जैसी फिलिंग आएगी जो कि इस वक्त जरुरी है.

आप जानते ही होंगे कि गैस चूल्हा संसार में बहुत बाद में आया . पहले वो चूल्हा आया जो आप अब बनाने जा रहे हैं. ऐतिहासिक चीजों को जानना और अनुभव करना बहुत गौरवपूर्ण होता है. जब लगेगा कि आप संस्कृति की और लौट रहे हैं तो छाती अपने आप चौड़ी होने लगेगी. चौड़ी छाती बड़े काम की होती है . चौड़ी छाती वालों को दहेज़ तगड़ा मिलता है. बैंक वाले चौड़ी छाती देख के लोन फटाफट दे देते हैं . और तो और चौराहों पर लाल बत्ती में इनको रुकने की जरुरत नहीं पड़ती है. खैर, आपको क्या करना है इन सब बातों से, आप चौड़ी छाती से चूल्हा बनाइये. हाँ तो अच्छी समतल जगह देख कर यू शेप में तीन ईंटों को जमाइए, उसके ऊपर तीन और रख दीजिये. लीजिये फटाक से आपका चूल्हा तैयार है. गौर से देखिये, लगेगा जैसे पुलिस के बेरिकेट्स तीन तरफ से लगे हैं और आग चाहे जिसकी हो रोटी सेकने तक यहीं कैद कर ली जाएगी. आग जलाइये और मजे में रोटी सेकिये. चूल्हे की अवधारणा यही है, जलाओ और सेको. अब आपको कुछ सूखी लकड़ियाँ चाहिए जो लोकतंत्र में विरोधी दलों की तरह जल्दी आग पकड़ सकें. वाम लकड़ियाँ जल्दी आग पकडती हैं लेकिन उनके जंगल सूख गए हैं. आजकल देखने को भी मिलती नहीं हैं. कोई बात नहीं आप चिंता नहीं करें. शुक्र है ऊपर वाले का, अभी श्मशान में लकड़ियाँ मिल जाती हैं. वहीँ से ‘मेनेज’ कर लीजिये. मुर्दे को पांच किलो लकड़ी कम मिलेगी तो शिकायत करने नहीं आएगा. अपना चूल्हा जलाने के लिए जागरूक नागरिकों को कुछ तो नया करना ही पड़ता है. तो चूल्हा जलई ले पिया, उदर मा बड़ी आग है ... .

 

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बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

कचौरी परमिट

 



राजा पिता होता है प्रजा का . प्रजा को कितना चाहिए, क्या चाहिए, क्यों चाहिए ! विकास तभी होगा जब सारा कुछ बाप के नियंत्रण में होगा. वरना तो भेड़ के झुण्ड की तरह खाया कम उजड़ा ज्यादा. देश बूफे नहीं है समधी का कि ठूंसते चले गए. सबको अनुशासन में रहना होगा. कितना-क्या खाना है, क्या पहनना है, किसकी कितनी पूजा करना है, किसको लाइक, किस पर कमेन्ट करना है, कब सोना-जागना है, पडौसी को कब हाय-बाय बोलना है. सब .

नंबर आने पर  उन्होंने आवेदन लिया और पढ़ा . “माननीय महोदय, सेवा में विनम्र निवेदन है कि मुझे बहुत समय से बेचैनी जैसा फिलिंग हो रहा है . मन बहुत उदास रहता है . भूख लगती है परन्तु नहीं लगती है . रात को नींद खुल खुल जाती है और बड़ी बड़ी कचौरियां दिखाई देती हैं . थाली में पड़ी दाल-रोटी काटने को दौड़ती है . दिल हरी और लाल चटनी  के लिए हूम हूम करता है . बाबा ने भी कहा है कि कृपा वहीँ अटकी हुई है . इसलिए हुजूर से निवेदन है कि मुझे कचौरी खाने का परमिट देने की कृपा करें . आज्ञाकारी, आधार कार्डधारी, बालमुकुन्द गिरधारी . “

देश आत्मनिर्भरता की सड़क पर है जिसमें जगह जगह अनुशासन के स्पीड ब्रेकर भी हैं . क्षेत्रीय कचौरी-समोसा अधिकारी बड़ी सी टेबल लिए, बुलंद ब्रेकर बने बैठे हैं . दीवार पर सुनहरे रंग में लिखा है ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’. बावजूद इसके दफ्तर में लोग खा रहे हैं और खाने दे रहे हैं . कचौरी और समोसों की अनुमति के लिए बाहर अलग अलग लाइन थी .

साहब ने उपर से नीचे तक ताड़ने के बाद पूछा – “टेक्स देते हो ? ... रिटर्न की कॉपी नहीं लगाई !”

“टेक्स नहीं देते हैं सर ... हमारा मतलब है टेक्स नहीं बनता है . “

“क्यों नहीं बनता है ?”

“गरीब हैं सर ... मज़बूरी है .”

“फिर तो सरकार खिलाएगी तुम्हें  कचोरी-वचोरी सब. कार्ड बनवा लो बस .”

“कार्ड तो बना है साहब ... “

“फिर क्या दिक्कत है !?”

“कचौरी नीचे आते आते भजिया हो जाती है, वो भी ठंडा-बासी.   ... सुना है सब प्राइवेट हो रहा है, बड़े बड़े लोग बहुत बड़ा बड़ा और गरमागरम खा रहे हैं ... परमिट मिल जाए तो हम गरम कचौरी खा लेंगे” .

“कितनी कचौरी का परमिट चाहिए ?”

“तीन-चार बस .”

“पिछली दफा कब खाई थी ?”

“याद नहीं सर ...बहुत दिनों से नहीं खाई .”

“याद नहीं !! क्या मतलब है इसका ! कचौरी खाई और भूल गए ! सिस्टम को मजाक समझ रखा है ! टीवी वाला पूछेगा तो कह  दोगे कि सरकार कुछ करती नहीं है ! ... एफिड़ेविड लगेगा अब. चले आए मुंह उठा के ! जंगल समझ रखा है क्या ! नियम कानून कुछ है या नहीं ! देश ‘नहीं खाने से’ आगे बढ़ता है, कचौरी के लिए लार टपकाने से नहीं . ”

“करीब डेढ़ महिना हुआ सर ... तब खाई थी .”

“उसका सेंशन लेटर कहाँ है ? फोटो कॉपी लगाना पड़ेगी .”

“अगली बार लगा दूंगा सर, इस बार कुछ ‘मेनेज’ कर लीजिए प्लीज”.

थोड़ी यहाँ वहाँ के बाद पच्चीस रूपए का नोट जेब में डालते हुए बोले -“कितनी खाओगे ?”

“जी ... तीन-चार ... नहीं पांच-छह .“

“सिर्फ दो खाओ वरना कचौरीजीवी हो जाओगे ... वो देखो लिखा है ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ बावजूद इसके तुम्हें परमिट मिल रहा है.”

“सर ये कचौरी के लिए नहीं किसी और चीज के लिए लिखा है !”

“हाँ हाँ समझ रहे हैं . दूर कर लो गलतफहमी ... रिश्वत खाई नहीं जाती है ली जाती है . लेने-देने पर रोक होगी तो विकास कैसे होगा !“

 

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सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

गाँधीजी की लाठी में कोपलें

 


           


   सुबह अचानक खबर फैली कि चौक वाले गाँधीजी जिस लाठी को लिए खड़े हैं उसमें कोपलें फूट आई हैं ! सबसे पहले सेल्फी लेने वालों की भीड़ उमड़ी उसके बाद कमर कस के मिडिया वाले उतरे . चन्द मिनिटों में लाठी देश भर में ब्रेकिंग न्यूज के साथ लाइव हो गई . हर चैनल   का दावा था कि वो ही सबसे पहले ये खबर आप तक पहुंचा रहे हैं . स्टूडियो में बैठी सुंदरी मंथरा सिंह ने चरचराती आवाज में चीखते हुए बताया कि चैनल को उनके विश्वस्त खोजी सूत्रों से पता चला है कि गाँधीजी भी लाइव होने जा रहे हैं और कुछ कहने के लिए उन्होंने खादी पार्टी के ‘पीएम-इन-ड्रीम’ को बुलवाया है . हमारे प्रतिनिधि पत्रकार रवि जलजला मौके पर मौजूद हैं . “रवि, लाठी में कोपलें फूट चुकी हैं, आप प्रतिमा के पास जा कर यह पता लगाइए कि क्या गाँधी जी की धडकनें भी चालू हो रही हैं ? “

            रवि ने अपने तर गले से सूखी आवाज में बताया कि “आप ठीक कह रही हैं मंथरा, अभी अभी मैंने गाँधी जी धड़कन सुनी हैं . उनका दिल असामान्य धड़क रहा है . लग रहा है जैसे पास कहीं से ट्रेन गुजर रही हो .”   रवि का वाक्य समाप्त होने के पहले स्क्रीन पर ‘ब्रेकिंग न्यूज’ का ब्रेकिंग डांस होने लगा . साथ ही मंथरा स्थानीय प्रशासन को लापरवाह बताते हुए मांग कर रही थीं कि मेडिकल टीम द्वारा गाँधी जी का बीपी और ईसीजी चेक करवाया जाए. आखिर वे देश के बापू हैं और हर नोट पर उनकी तस्वीर छपी हुई है . दिल दिमाग में हों न हों पर हर नागरिक की जेब में वे अवश्य होते हैं.

          खादी पार्टी के प्रवक्ता का बयान आया कि गाँधी जी यह सन्देश दे रहे हैं कि जब उनकी लाठी में कोपलें फूट सकती हैं पार्टी में भी नई जान फूंकी जा सकती है . पार्टी ने फैसला किया है कि वो गाँधी जी की इस प्रतिमा को दिल्ली लाएगी और मार्गदर्शन लेगी. ब्रेकिंग न्यूज का कैबरे हुआ – गांधीजी को दिल्ली लाया जाएगा और पार्टी उनका इलाज बड़े अस्पताल में करवाएगी . दिल्ली की दूसरी सरकार वाले बोले – केंद्र सरकार बजट में कटौती कर रही है जिसकी वजह से हमारी सरकार को अपने हिस्से के पूरे गाँधी नहीं मिल रहे हैं . बावजूद इसके बापू दिल्ली लाए जाते हैं तो हम बिजली-पानी मुफ्त देंगे और उनका वोट लेंगे . इसमें कोई पार्टीवाद या जातिवाद नहीं चलने दिया जाएगा .                                        

               तत्काल प्रदेश के मुख्यमंत्री लाइव हुए और बोले कि गाँधी जी को कहीं ले जाने नहीं दिया जाएगा . कोपलें हमारे प्रदेश में फूटी हैं तो इसका मतलब साफ है कि यहाँ लाठी की जड़ें गहरी हैं . सरकार आभारी है कि बापू ने स्टार्ट-अप के लिए प्रदेश को चुना है . लाठी का यह पेड़ कल बड़ा होगा और उसमें लाठियों की फसल आएगी . प्रदेश में कानून और व्यवस्था के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं उसे गाँधी जी का समर्थन मिलने से सरकार को बल मिला है . रहा सवाल धडकनों का तो हम कोशिश करेंगे कि जो तीन गोलियां अन्दर फंसी पड़ी हैं अब उन्हें निकलवा लें . उनकी कमर में लटकी घड़ी में आज भी पांच बज कर सत्रह मिनिट हो रहे हैं ! एक बार धड़कन ठीक से चलने लगे तो गाँधी जी को एक डिजिटल वाच दी जाएगी कलाई वाली . इधर देर से चुप बैठी चौधरानी बोल पड़ी-- पीपल जब मुंडेर पर उग सकता है तो गांधीजी की लाठी पे क्यों नहीं ! चौधरी ने घुड़क दिया – ओए चुप कर ... तू चेनल वालों से ज्यादा अक्कल वाली हो गई है क्या !!

 

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