गुरुवार, 30 जनवरी 2020

दिल्ली कहाँ है ?




“तुम्हें पता है दिल्ली कहाँ है ?” अचानक छोटूजी ने बड़कूजी से पूछा ।
“ पता है । दिल्ली दिल्ली में ही होगी और कहाँ जाएगी !!”
“मेरा मतलब है कि हम लोग दिल्ली जा रहे हैं तो हमें ठीक से पता होना चाहिए कि दिल्ली कहाँ है । यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी दिशा गलत तो नहीं है । “
“दिशा विशा की चिंता छोड़ो । बस इतना याद रखो कि हमारी दिशा सुनिश्चित है । ... मात्र दिल्ली के लिए हम अपनी दिशा नहीं बदल सकते हैं ।“
“मैंने तो समान्य सी बात पूछी है ।  दिल्ली पहुँचने के लिए हमें दिल्ली की दिशा में ही तो चलना होगा ! वरना पहुंचेंगे कैसे ?!”
“नेतृत्व बड़ी चीज होती है । नेतृत्व पर भरोसा रखो । जरूरत पड़ी तो वे हमारी दिशा में कई दिल्लियां बनाते चलेंगे । हमें केवल चलने और चलते रहने के निर्देश हैं । इसलिए चलते चलो, चलते चलो ।“ बड़कूजी ने अपना अनुभव रखा ।
“फिर भी मैं सोचता हूँ कि एक बार किसी से दिल्ली का पता पूछ लेने में कोई हर्ज नहीं है ।“
“तुम सोचते हो ! ... अभी तक !! ... इसका मतलब यह है कि तुम्हारा संस्कार नहीं  हुआ ठीक से । सोचना बंद करो तुरंत ...  वरना थर्ड डिग्री संस्कार के लिए तैयार रहो ... और हाँ एक बात साफ समझ लो, हमारी दिल्ली इतिहास में है । हमें इतिहास में जाना पड़ेगा । मानो कि इतिहास ही हमारी दिशा है ।“
“कुछ समझा नहीं ! हमें इतिहास में क्यों जाना पड़ेगा बड़कूजी !!?”
“क्योंकि हम इतिहास में नहीं हैं और लोग बार बार हमें इतिहास में ढूंढते हैं । आधुनिक शिक्षा ने लोगों की समझ और सोच को विकृत कर रखा है । जो इतिहास में नहीं हैं उन्हें वर्तमान में भी नकार रहे हैं । ऐसे लोगों को गोली मार कर हे-राम कर देना चाहिए । “
“लेकिन जब हम इतिहास में हैं ही नहीं तो इतिहास में जाएंगे कैसे ?!!”
“इतिहास बदल कर । हमें इतिहास बदलना होगा और अपने लिए जगह बनानी होगी । याद रखो, जगह बनाने से ही बनती है । नेतृत्व पर विश्वास रखो और तुम बस चलते रहो ।“
“मैं चल तो रहा हूँ बड़कूजी । लेकिन पथ समझ में नहीं आ रहा है ..।“
“समझने की कोशिश करोगे तो चलोगे कैसे !! ... लक्ष्य चलने से मिलता है, समझने के प्रयास से केवल भ्रम पैदा होता है । ... चलो कि जैसे बैल चलते हैं गाड़ी में ।“
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बुधवार, 29 जनवरी 2020

हवा का मायका


हवा का मायका वह खास जगह होती है जहाँ से हवा बकायदा पैदा होती है । हवा हर कहीं या हर किसी से पैदा नहीं होती है । कुछ लोग हवा पैदा करने में पुश्तैनी दक्ष होते हैं । वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि हवा पैदा करने में मादा जाति की सक्रियता ऐतिहासिक तौर पर देखी जा सकती है । देश में एक बार बहुत पहले गरीबी हटाओ की हवा पैदा की गई थी जो बरसों चलती रही । लोगों को लगा था कि हवा चली है तो एक न एक दिन गरीबी भी हटेगी । लेकिन हवा थी, कहाँ चली गई किसी को पता नहीं चला, अलबत्ता गरीबी मौजूद है । किसी शायर ने कहा है कि मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा  ; दश्त मेरा  न ये चमन मेरा ‘ 
किन्तु एक फाइदा हुआ, तब बड़े बड़े राजनीतिज्ञों तक ने माना कि लोकतन्त्र हवा की बुनियाद पर है । तभी से जब भी चुनाव आते हैं पार्टियां हवा पैदा करने की कोशिश में जी जान से जुट जाती हैं । भारत की जनता भी समान्यतौर पर हवा प्रेमी होती है । वह सरकार के कामकाज या पार्टियों के घोषणा पत्र से नहीं हवा से तय करती है कि उसका वोट किसको जाएगा । एक समय था जब बिहार में लालू की हवा थी तो अंगूठे से राबड़ी राज कर गई पाँच साल तक । बाद में जब हवा निकल गई तो खबरों में सिर्फ सास, बहू और तकरार बची रह गई । अभी बंगाल में हवा के नाम पर धूल के गुबार उठ रहे हैं । जिन्हें हवा बनाना है वे तूफान उठाने के चक्कर में पड़े हैं । लोग कहते हैं कि दिल्ली की हवा में प्रदूषण बहुत है । जिस इलाके में दो दो राजधानियाँ होंगी वहाँ प्रदूषण ही हवा होती है ।
वैज्ञानिक बताते हैं कि दुगने हायड्रोजन और ऑक्सीज़न से मिल कर पानी बनता है । उसी तरह दुगने झूठ और आधे सच से राजनीति में हवा बनती है । जो इस फार्मूले को जानते हैं वो आसानी से हवा बना लेते हैं । जो नहीं जानते उन्हें पैत्रक अध्यक्षता से भी हाथ धोना पड़ता है । अपने यहाँ हवा बनाने के बहुत से तरीके प्रचलित हैं । आमतौर पर पार्टियां उल्टे सीधे बयान दे कर हवा बनाया करती हैं । बनाने वाले भोजन-भंडारे और कथा-कीर्तन से भी हवा बना लेते हैं । धर्म-मजहब वगैरह अपने आप में एक बनी बनाई हवा हैं ।  इसे महज  राजनीतिक हवा बनाने की जरूरत होती है । ये अपेक्षाकृत आसान किन्तु जोखिम भरा काम है । लेकिन जो जीता वो सिकंदर ।

हवा केवल राजनीति की गलियों में ही नहीं चलती है । हवा हर कहीं है, यानि हर घर में हर आदमी में । हवा का कुछ नहीं लेकिन हवा से सब कुछ है । बेईमान आदमी जरा से तिलक चोटी की बदौलत अपने पक्ष में ईमानदारी की हवा बना लेता है । इधर एक शायर हुए हैं जो अब बड़े हैं । शुरुवाती दिनों में जब भी वे मुशायरे पढ़ने जाते थे अपने साथ पौन दर्जन गुर्गे भी ले जाते थे । जिनका काम था उस्ताद की हवा बनाना । उस्ताद एक शेर पढ़ते और गुर्गे आसमान सिर पर ले लेते । उस जमाने में जो हवा बनी उसने उन्हें एक मुकाम दिलवा दिया और किसी को पता भी नहीं चला । हवा का ऐसा ही है, पता नहीं चलता और बन जाती है । वे हवादारों के आज भी अहसानमंद हैं । यही फार्मूला एक बापू नुमा संत ने अपनाया और बड़े बड़े नेताओं के सिर अपने चरणों पर रखवा लिए । घटिया आदमी भी हवा के दम पर सफल हो गया । हैदराबादी नेता ने किसी संदर्भ में कहा था कि जिनमें ताकत है वो पैदा कर सकते हैं । लोगो ने समझा कि वे बच्चे पैदा करने की बात कर रहे हैं । नहीं, वो हवा पैदा करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे । 
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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

जिंदगी का असली मजा कविता सुनने में है !


       
ऊपर वाला जब देता है तो आपकी रजा नहीं लेता है । जैसे कि बुढ़ापा । हालांकि जब  पैदा हुए थे तभी तय था कि एक दिन आएगा आने वाला । एक शायर ने लिखा है - “सफर पीछे की जानिब है, कदम आगे हैं मेरे। मैं बूढ़ा होता जाता हूँ जवां होने की खातिर” । लेकिन वो जवानी क्या जिसमें कुछ याद रहे और वो बुढ़ापा क्या जो कुछ भूल जाए । जी हाँ, बूढ़ा अक्सर टहलता हुआ अपनी पैदाइश तक पहुँच जाता है । लेकिन इस चक्कर में आदमी बर्तन से ठीकरा हो जाता है और उसे पता नहीं चलता ।
हमारे सिंह साहेब की गाड़ी अच्छी चल रही थी । लेकिन इन दिनों वे मुश्किल महसूस कर रहे हैं । बुढ़ापे के शुरुवाती दिनों में कवितायें लिखीं जिन्हें कुछ लोगों ने लिहाज में सुन भी ली । बुढ़ापे में साहित्य सेवा का जोशोजुनून था, रोज एक दर्जन कवितायें खेप सी उतारने लगीं । लेकिन धीरे धीरे सुनने वाले नदारद होने हुए । पड़ौसी दूर हुए, मोहल्ले वाले कतराने लगे, रिशतेदारों ने आना छोड़ दिया यहाँ तक की घर वाले दायें बाएँ होने लगे । अधूरा कवि वियोगी हो कर बीमार रहने लगा । किसी ने सुझाया कि कविगोष्ठियों में जाओ । गए भी । लेकिन पहले से सुनाने वालों की लंबी लाइन थी । भाँप गए कि नए कि दाल गलने की संभावना नहीं के बराबर है । पहली बार उन्होने निराशा के साथ प्रार्थना की –“ तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं वापस बुला ले.... मैं सजादे में पड़ा हूँ मुझको ऐ मालिक उठा ले “ ।
उधर कोने वाले वर्मा जी तीन दिन पहले अस्पताल में भर्ती हुए थे, खबर आई है कि आज फ्री हो गए और परसों उठवाना भी है । बेनर्जी बाबू का भी ऐसा ही हुआ था, सात  दिन भर्ती रह कर उन्हें मुक्ति मिली थी आराम से ।
बहुत सोच कर सिंह साहेब ने बेटे से कहा मुझे अस्पताल में भर्ती करवा दो । बेटे को अस्पताल के बिल का पता था, बोला – अभी नहीं । अभी आप ठीक हैं । लेकिन सिंह साहेब सोच रहे हैं कि अगले हफ्ते उठावना हो जाए तो अच्छा है, अभी मौसम साफ है, काफी लोग आ जाएंगे । बोले – “एक बार भर्ती करवा के देख लो बेटा । क्या पता प्रभु ने अपना एयर पोर्ट अस्पताल में बना रखा हो और उनका विमान वहीं से सवारी ले कर जाता हो ।“
 बेटे को मुद्दे पर आना पड़ा, - “पापा जी अस्पताल वाले इलाज से पहले कई तरह की जाँच करवाते है ।“
सिंह बोले - “करवाएँगे तो सही । उन्हें देखना तो पड़ेगा कि मुक्ति की नस कौन सी है । गला तो दबाएँगे नहीं । वो तो घर पर भी दबाया जा सकता है लेकिन पुलिस का चक्कर हो जाता है ।“
“ पापाजी आपको दिक्कत क्या है आखिर !?”  बेटे ने पूछा ।
“कोई सुनता नहीं है मेरी । मैं अकेले बैठा रहता हूँ । समझ में नहीं आता कि घर में रह रहा हूँ या संडास में !! “ सिंह साहेब ने दुखड़ा बताया ।
बेटा बोला – “परेशान तो होगे ही, कविता जो लिखने लगे हो । लिखने कि बजाए आपको सुनने का धंधा चालू करना था । लिखने वाले हर घर में दो-दो तीन-तीन हैं लेकिन  शहर में सुनने वाले कितने हैं ! उँगलियों पर गिने जा सकते हैं । लोग उन पर मक्खियों की तरह भिनभिनाते रहते हैं । पेट पूजा करवाते हैं सो अलग । जिंदगी का असली मजा कविता सुनने में है । सुनने वाला कवियों का समधी होता है । “
जल्द ही सिंह साहेब के मजे हो गए । निशुल्क बंद करके सशुल्क सुनने लगे हैं । हफ्ते भर की वेटिंग है । अब पीले पत्ते ब्रेक डांस कर रहे हैं ।
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मंगलवार, 14 जनवरी 2020

सम्राट जहाँ मुंशी है !




जैकी सर समृद्ध आदमी हैं । घरनुमा महल में इनके पास तीन ड्राइंग हाल हैं । दो प्रायवेट हैं, तीसरे हाल को कला और संस्कृति प्रेम के हिसाब से डेकोरेट किया गया है । सभ्य समाज की बहुत सी गैरज़रूरी जरूरतें होती हैं । व्यवहार में हिन्दी की उपेक्षा जारी रखते हुए अपने को हिन्दी प्रेमी दिखाना जैकी सर की ऐसी ही एक जरूरत है । इन दिनों माहौल बदल गया है । करने वाले राष्ट्रभक्ति का सेम्पल कहीं से भी चेक कर सकते हैं । इसलिए घर में हर वीकएंड हिन्दी-डे होता है । उस दिन सब लोग हिन्दी बोलने की पूरी कोशिश करते हैं । यहाँ तक कि अपने दोनों डॉगीज से भी । 
बड़े आदमी को हर पार्टी का सगा होना पड़ता है । सत्ताधारी पार्टी अपने को सूर्य मानती है सो इन्हें मित्र ग्रह के रूप में चंद्र, मंगल या ब्रहस्पति होना पड़ता है । ड्राइंग हाल के लिए पुस्तक मेले से बहुत सी किताबें मँगवाई थीं जो आ गईं हैं ।
“थैलों को यहाँ आराम से रखिए । किताबें खराब ना हों । सावधानी से निकालिए, हिन्दी किताबों की जिल्द कमजोर होती हैं । राष्ट्रवाद ने हिन्दी को मजबूत किया है जिल्द को नहीं ।“ जैकि सर ने हिदायत दी ।
कर्मचारियों ने किताबें निकाल कर टेबल पर रख दीं । वे फिर बोले – “देखिये प्रेमचंद को सबसे आगे रखना है । हर किताब टाइटल सहित मेहमानों को दिखना चाहिए ।“
मैडम ने आते ही पूछा – “इंगलिश बुक्स कहाँ रखी जाएंगी !?”
 “उन्हें प्राइवेट हाल में रखना है । और हाँ ... लोग पूछें कि प्रेमचंद क्या करते थे तो बताइये कि मुंशी थे इसलिए लिखते थे । बाद में सम्राट भी हो गए थे ।“
“प्रेमचंद मुंशी थे !! यू नो मुंशी ? अपने यहाँ भी चार पाँच काम कर रहे हैं ! हिन्दी वाले कल को इन्हें भी सम्राट बोलेंगे !?”
“इनका पता नहीं , पर वो थे ऐसा पता चला है । ... जो भी हो दूसरों के लिए जो भले ही सम्राट हों हमारे लिए उनका मुंशी होना सूट करता है । हमें दिखने के लिए सम्राट और दर्ज करने के लिए मुंशी मिला है तो बढ़िया है । अभी तक पता नहीं था वरना पहले ला कर सजा देते ।“
“और पता करवाइये कितने सम्राट हैं हिन्दी में । मुंशी तो सभी होंगे ही ।“ मैडम बोलीं ।
जैकि सर ने इसको उसको फोन किया । पता चला कि प्रेमचंद के बाद कोई सम्राट नहीं हुआ और न ही कोई मुंशी ।  यानी एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए खतम कहानी । ये तो यूनिक पीस हो गया !! वे अपने निर्णय पर खुश हुए । प्रायवेट हाल में भूसा भरा एक शेर रखा है । उसे भी लोग जंगल का राजा कहते हैं । बोले- “किताबों के साथ एक मुकुट भी रखो ताकि बिना बताए लगे कि सम्राट की हैं ।“
“और एक कलम भी रखो ताकि लगे कि वो मुंशी भी हैं ।“ मैडम बोली ।

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शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

हुजूर ने हाथ धोये


आप किसी गलत फहमी में न पड़ें इसलिए साफ कर दूँ कि हाथ धोने से यहाँ मतलब हाथ धोना ही है । आप हम सब लोग काम निबटा कर हाथ धोते हैं ना ? बस वोई । डाक्टर भी कहते हैं हाथ साफ रखना चाहिए । राजनीतिक पंडित भी सीखते हैं कि कुछ भी करो पर समय पर हाथ धो लो । हाथ धोने से हाथ पवित्र हो जाते हैं और सिर धोने से सिर । जो लोग नहीं धोते उन्हें समाज में उठाते बैठते सुनने को मिलता है । उस पर खतरा ये कि अंधे होने के बावजूद रंगे हाथों पर कानून की नजर रहती है । नजर से इतनी दिक्कत नहीं है, दिक्कत है कि कानून के हाथ भी लंबे होते हैं । राजनीति करने वाले ज़्यादातर लगभग इंसान होते हैं । बावजूद इसके साफ सुथरा आदमी राजनीति से दूर रहने में ही अपना भला समझता है । यहाँ बुरे काम करके उसे अच्छा सिद्ध करना पड़ता है । मंदी को तेजी और पिछड़ने को विकास बताना पड़ता है । अगर किसीने विलाप को आलाप प्रचारित कर दिया तो समझिए हाथ धुल गए ।  आम आदमी बेसिन में हाथ धोता है लेकिन हुजूर मीडिया में हाथ धोते हैं । विज्ञान की तरक्की है, मीडिया में हाथ क्या सब कुछ धोया जा सकता है । मीडिया बाथ टब है, इसमे हिन्दी अंग्रेजी का ठंडा गरम पानी है । मजे में स्नान कीजिए और बिना किसी अपराधबोध के नए काम पर निकालिए ।
कहते हैं कि देशसेवा एक लत है, जिसको लग जाती है वो करे बगैर मानता नहीं है । कइयों में इस रोग के जीवाणु वंशानुगत रूप से हस्तांतरित होते रहते हैं । प्रायः पिता का खाया पुत्र  को पुष्ट करता  है । देशसेवा मामूली काम नहीं है, जानकार इसे टीम वर्क कहते हैं । जब कुछ लोग मिल कर करते हैं तो देशसेवा में खतरे कम हो जाते हैं । सिंगल करने में जोखिम बहुत होता है । विद्वान कह गए हैं कि देशसेवा का आदर्श तरीका समाजवादी है । कई समाजवादी देशसेवक रिटायर हो गए पर उनके दमन पर एक भी दाग नहीं लगा । पुराने समय में लोग आस्थावान थे, देशसेवा में लगे लोगों को भगवान मान लेते थे । अब वक्त बादल गया है, जिन्हें देशसेवा का मौका मिलता है उन्हें वक्त जरूरत अपने हाथ धोते रहना पड़ता है । यह बात इतनी आम है कि जैसे ही कोई सार्वजनिक रूप से हाथ धोते दिखाई देता है लोग समझ जाते हैं कि इसने देशसेवा कर दी है ।
हुजूर शुरू शुरू में निखट्टू टाइप के थे । काम वाम कुछ आता नहीं था । आदतें ऐसी रहीं कि थाने चौकी से नाता बना । शायर कह गए हैं कि आते जाते रहो तो दरो दीवार से भी याराना हो जाता है । घर के लोगों को यही लगी रहती थी कि नामाकूल करेगा क्या ! लेकिन ईश्वर सबकी सुनता है, आजकल नामाकूलों की कुछ ज्यादा ही । होनहार बिरवान के होत चिकने पात । पुलिस को कुछ काम बेदिली से भी करना पड़ते हैं । हुजूर का जुलूस निकला तो अखबार के पहले पेज पर फोटो छ्प गई । समझने वाले समझ गए कि अब ये देशसेवा करेगा ।  एक सुबह लोगों ने देखा कि पोस्टर लगे हैं और उनके हृदय पर किसीके अतिक्रमण की घोषणा हो गई है । हुजूर हृदय सम्राट हो गए हैं और पहले दिन से लोकप्रिय भी । उन्होने खुद तय किया है कि वे देशसेवा करेंगे । देशसेवा एक बड़ा काम है बाकी काम छोटे हैं । उन्हे पता चला है कि अगर ढंग से देशसेवा की जाए तो सात पीढ़ियाँ बैठ कर खा सकती हैं ।  देश संभावनाओं से भरा हुआ है । खाने वाले में दम हो तो किसी को निराश नहीं होना पड़ा  है । बस खाने के बाद हाथ धोना आना चाहिए । समय तेजी से गुजरा, पहले वे महीने पंद्रह दिनों में हाथ धोते थे । लोगों ने देखा कि अब तो हुजूर रोज हाथ धो रहे हैं और जनता को स्वच्छता का संदेश दे रहे हैं ।

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बाप के पास पैसा


इंद्रबली आज बेहद जल्दी में हैं, उन्हें अपने लड़के को दिखाना है । डाक्टर को नहीं, आज लड़की वाले देखने आ रहे हैं । उनके जमाने की बात और थी जब उन्होने पंद्रह लड़कियों को बेरहमी से देखने के बाद सोलहवीं को फाइनल किया था । हर जगह ठाठ से गए, खाया-पिया, स्वागत सत्कार करवाया और ठेंगा दिखा कर चले आए ।  बेटा हुआ तो छाती सत्तवन इंच की हो गई । बड़े अरमान थे कि जवान होगा तो दो दर्जन देखने के बाद फाइनल करेंगे । मुफ्त का खाने और मुंह बना कर निकल लेने का मजा ही कुछ और है । लेकिन अब जमाना माडर्न है तो जो नहीं हुआ वो भी मुमकिन है । लड़कियां लड़कों को दनादन रिजेक्ट कर रहीं हैं !! लड़के नहीं हुए काने बैंगन हो गए ! इंद्रबली के बेटे को अब तक छ्ह लड़कियां रिजेक्ट कर चुकी हैं । बहुत बुरा लगता है जब लड़कियां रिजेक्ट कर अपनी हाई हिल चटकाते चली जाती हैं । बेटा डिप्रेशन में चला जाता है और उसकी माँ कोप भवन में । खुद इंद्रबली को खून का घूंट पिये बैठे रहना पड़ता है । सदियों से जो गऊ समान बनी रहती आयीं हैं आज सींग दिखाने लगें तो पचता नहीं है । पहले तो माँ बाप जिस भी खूँटे से बांध देते थे उसी के साथ चुपचाप बंधी चली जाती थीं । कई बार तो खूंटा बूढ़ा होता था लेकिन सिर भी नहीं हिलाती थीं । शास्त्रों तक में कहा गया  हैं कि स्त्रियों का भाग्य प्रधान होता है । जैसा भाग्य होगा वैसा पति सुख मिलता है । कुछ और सोचने विचारने की जरूरत ही नहीं होती थी । लेकिन ये घोर कलयुग की बेला है रे भाई !! लड़की को नहीं जंचा तो फिर खूंटा हो या ऊंटा, वह नहीं बंधेगी । अभी तक जोड़ी ऊपर वाला बनाता था, अब सॉरी बोल देता है ।
इंद्रबली को मलाल ये कि उनके बेटे के लिए कोई रिश्ता नहीं मिला अब तक । यानि बड़े आदमी के घर किसी ने रिश्ते की घास नहीं डाली । कई बार मन में आता है कि एक लाइन में खड़े करके गोली से उड़ा दें फूलनदेवी की तरह । लेकिन लड़के की जवानी फास्ट ट्रेन होती देख फोन उठाते और कहते जी भाई साब, एक बार देख तो लीजिए, आपको लड़का जरूर पसंद आएगा । उधर से प्रश्न होता कि लड़का करता क्या है ? ये सोचते कि बाप के पास पैसा है तो लड़के को कुछ करने कि जरूरत ही क्या है !  इन्द्रबली का ऑफ द रेकार्ड दावा है कि उनकी सात पीढ़ी खा सकती हैं आराम से । दिक्कत पैसे की नहीं पीढ़ी शुरू करने की है । कोई कहता है कि दसवीं फेल है ! आगे नहीं पढ़ा ! कुछ ने कहा कि गीत संगीत, पेंटिंग वगैरह कर लेता तो नाम होता । खैर, आज भी आई लड़की और उठाते हुए बोल गई कि जिम विम जाया करो, वरना सौ किलो के हो जाओगे तो अनाज तौलने वाले बाँट से ज्यादा कुछ नहीं बन पाओगे