रविवार, 16 जुलाई 2023

लोकतंत्र की दरियादिली में




 


एक बात हमेशा ध्यान रखो, देवताओं का मूत्र मूत्र नहीं होता है । कोर्ट कचहरी के इस ज़माने में मूत्र कह कर उसका अपमान नहीं करे कोई । यह विशिष्ट उत्पाद है । अगर दो विज्ञापन छपवा दें तो चीन इम्पोर्ट करने को उतावला हो जायेगा । वो तो हमारी नीति है कि चीन से कुछ खरीदेंगे नहीं, इसलिए मज़बूरी है कि बेचेंगे भी नहीं ।  बात को पहले ठीक से समझ लें सब लोग, उसके बाद कोई राय बनाएं । जल्दी न मचाएँ, पहले चुनाव हो जाने दें । लोकतंत्र संविधान की ही नहीं भगवान की भी देन है । पांच साल में एक बार गरीब भगवान से भी बड़ा होता है । उसे फल, फूल और नगद चढ़ाना होता है, आरती उतरना होता है । ये लोकतंत्र का पूजन काल चल रहा है । आज पूजा करोगे तभी न कल पूजन करवाओगे । देखा ना, एक का सिर गीला हुआ तो दूसरे के पांव धो दिए फटाफट । आदमी से क्या लेना देना, आदमी होता क्या है !  भावना बड़ी होती है । लेकिन बात सुदामा से आगे बढ़ने नहीं दी । इसीको पोल्टिक्स कहते हैं । असल भगवान कौन है यह राज्य और केंद्र के बीच विवाद का विषय हो सकता है । लेकिन चुनाव के समय सुदामा को लेकर कोई संदेह नहीं हैं । ईश्वर चाहेगा तो पर प्रदेश सुदमाओं से भर जाएगा ।

अब असल मुद्दे पर आ जाओ । कुछ चीजें ‘नेचुरल काल’ के अंतर्गत आती हैं । वो जब आती है तभी आती है । और जब आती है तो कोई रोक नहीं सकता है । कुत्तों के आलावा यह काम कोई सूंघ समझ के अपनी इच्छा से नहीं कर सकता है । मनुष्य को तो यह सुविधा कतई नहीं है । जब उसे आती है तो वह पहले मूत्रालय देखता है, कमोड देखता है तब फारिग होता है । नेचुरल काल पर सभ्यता हावी रहती है । पशु पक्षियों में सभ्यता वभ्यता का कोई चक्कर नहीं होता है । जगह मुकाम देखे बगैर वे कहीं भी फट्ट से कर देते हैं । मुझे अक्सर किताबों पर से छिपकली की लेंड़ियाँ और बालकनी से कबूतर की बीट साफ करना पड़ती है । पता नहीं कबूतर और छिपकलियाँ शराब पीती हैं या नहीं । एक बार मालूम पड़ जाए कि पीती हैं तो उनके किये को नशे के खाते में डाल कर भूल जाऊँ ।

 शराब का मामला ऐसा है कि वो आधुनिकता की पहचान है । देश तेजी से आधुनिक हो रहा है । प्रदेश का तो कहना ही क्या, यहाँ कोई कितना भी संस्कारी हो शाम को आधुनिकता से लबरेज हो जाता है । पीने के बाद उसे आदमी के सर और कमोड में फर्क करने की जरुरत नहीं होती है । इसमें गलती किसकी है ! पीने वाले  की नहीं है, शराब की भी नहीं है । गलती सड़क पर अपना कामोड जैसा खाली सिर लिए बैठे गरीब की है । सोचो अगर ओले गिर रहे होते तो !? या किसी उल्लू ने बीट कर दी होती तो  !? चुनाव का समय नहीं होता तो कानून भी अपना काम करता । लेकिन अभी तो मज़बूरी है । आपको पता है दुनिया भर के वैज्ञानिक कह रहे हैं कि पानी की एक एक बूंद कीमती है । बरबाद मत करो । लेकिन लोकतंत्र की दरियादिली देखो, पाँव धो दिए । अब किसीको शिकायत नहीं होना चाहिए ।  

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