सोमवार, 23 अप्रैल 2018

वोटर बचाओ


देखिये भाई साब, बात को समझने की कोशिश कीजिये. लड़कियां जो शिकार हो रही हैं वो नाबालिक हैं. जाहिर है कि वे अभी वोटर नहीं हैं. लोकतंत्र में वोटर होने न होने का महत्त्व है और दिक्कत भी. जिन पर बलात्कार का आरोप है वे नागरिक बालिग हैं और वोटर भी. अब इसे संयोग ही कहिये कि सामने चुनाव भी सीना ताने खड़े हैं. चुनाव का तो आपको पता ही है, क्या से क्या हाल कर देते हैं सरकार का. जो कमर तनी तनी रहती थी मुई ऐसी फोल्ड हो जाती है कि पूछो मत. कभी कभी लगता है कि कोई तहा के पटक न दे किसी कोने में. पांच साल जो सूरजमुखी रहे चुनाव में हरसिंगार के फूल हुए जाते हैं. आत्मा ही जानती है जब ऐरों गैरों तक को जीजा फूफा कहना पड़ता है. ऐसे में किसी वोटर को नाराज करना खुद अपने गले में फंसी का फंदा डाल लेना है. किसानी छोड़ के तो इधर आये हैं, और यहाँ भी फांसी लटकना पड़े तो लानत है राजनीति पर. माहौल देखिये,  सारी पार्टियाँ कमर कस के मैदान में हैं. वो कहते हैं ना सावधानी हटी और दुर्घटना घटी. इसलिए वोटर कितना भी पापी क्यों ना हो चुनाव तक कनपुरिया गंगाजी की तरह पवित्र है. सच बात तो ये हैं कि चुनावी दिनों में खुद राजनीतिक दलों की स्थिति उन नाबालिक लड़कियों की तरह ही हो जाती है. जिस गली में जाओ इज्जत लुटने लगाती है, हाथ जोड़ते, पैर छूते, रोते गिड़गिगिडाते एक एक पल युग की तरह निकलता है. लोकतंत्र कमबख्त नगरवधु बना देता है. इसके बाद भी मजबूरी देखो कि उफ़ तक करना मना है. जब दिखो राजी दिखो. इसलिए यह कहना कि सरकार पीड़िता के दर्द को समझती नहीं है तो सरासर गलत है. लेकिन किसको कहने जाएँ, हमारी कौन सुनेगा !!  नेशनल पॉलिसी है कि सब सहना पड़ता है भईया. जो सह जाये समझो वो सुखी. जो न्याय मांगने निकलेगा उसे न्याय की भी कीमत चुकानी पड़ेगी. जानते ही होगे कि दुनिया बही खाते वाली है, यहाँ कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है. 
आपको लग रहा होगा कि बलात्कार के पक्ष में बात जा रही है. हम यह नहीं कह रहे कि ‘लडकों से गलती हो जाती है’. वो तो दूसरी पार्टी वाले कहे हैं. हमारा कहना तो ये हैं कि लड़कियों का पश्चिमी पहनावा, फ़ास्ट फ़ूड, चाउमिन, पित्जा, तिरछी नजर वगैरह से एक तरह का एयर होस्टेस  नुमा माहौल बनता है और ये हो जाता है. अगर लडकियों को पकड़ पकड़ के बाल विवाह कर दिया जाये हर घर गंगा नहा ले. अपनी ममता दीदी की भी बात सही है, लडकियों को आज़ादी बहुत मिली हुई है और यही रेप का कारण है. लेकिन मुद्दे की बात यह है कि ईश्वर की मर्जी के बगैर कुछ नहीं होता है. जब तक धरती है ये होते रहेंगे. इसमें सरकार या मंत्री वंत्री कुछ नहीं कर सकता है. इसलिए मनुष्य को बीच में पड़ कर प्रकृति में बाधक नहीं होना चाहिए. टीवी वाले लगातार बहस करवा रहे हैं, अच्छी बात है. सारे दल अपने प्रवक्ता भेजते हैं. बलात्कार चाहे रुकें न रुकें, लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए बहसें निरंतर होना चाहिए, चाहे बहसों की निरंतरता के लिए रेप ही क्यों न होते रहें.
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