सोमवार, 22 अप्रैल 2019

घोड़े घास से दोस्ती नहीं करते



रामदास चारघोड़े आते ही भड़के-  “भाऊ तुम तो कहते थे कि सबके वोट की कीमत बरोबर होती है ! पर देखो इधर क्या चल रहा है ! कोई पाँच सौ दे रहा है कोई हजार नगद । किसी को साड़ी कंबल किसी को दारू चिकन । ...लेकिन अपन को क्या समझते हैं ये लोग ! अपना वोट मंडी का फोकट माल है क्या ?! अपने सामने पार्टी के लोग आते हैं और हाथ हिला के चले जाते हैं । कभी अपन को भी देखना चाहिए कि इस टाटा में कितना घाटा है ।“
दरअसल हुआ यह कि रामदास चारघोड़े की महरी ने आज सुबह ही मिसेस शिखा चारघोड़े को कहा कि वो अब अक्खा दो दिन छुट्टी मारेगी । कायकू पूछने पर बोली - “पारटी वाले आके बोले कि दारू चिक्कन बाँटेंगे सबकू, घर पेई रेने का । मरद लोगू को बाटली बी दे के जाएंगे बोलते । बच्चों को मिठाई के वास्ते नोट बी देंगे बोले, करारे कड़क । गए चुनाव में कुक्कर मिला सबको, मईने चालीस नंबर वाली सुकला बाई को बेचा आदी किम्मत में । बाई सीजन का टेम है, करनाईच पड़ता है । चुनाव रोज रोज तो होते नई ना ... दो दिन तुम फटका बर्तन कर लोगी तो तुमरा बी हात पेर खुल जाएगा । वैसे बी बदन थोड़ा हल्का हो जाए तो बिलकुल करीना लगती तुम । ......  हय कि नई । “
जिस दिन महरी छुट्टी पर हो उस दिन हर मालकिन बारूद का चलता फिरता ढेर होती है । उस पर मामला दूसरे के वोट की कीमत का हो तो आग लगना ही है । पहले भभके में रामदास झुलस गए । नॉटकरणी ठंडा पानी लाएँ इसके पहले वे फिर बोले- “ सर्विस क्लास होना पाप हो गया भाऊ ! सारी जिंदगी इलेकशन ड्यूटी कर-कर के निकल गई । सोचा कि चलो देश सेवा है कर लो और नौकरी भी बचा लो । कलेक्टर लोग को पवार भी इतने होते हैं कि जान निकलती थी । .... चलो हो गया, पर पार्टियों को तो सोचना चाहिए कि नहीं । उधर सस्ता अनाज, सस्ता घासलेट, सस्ती बिजली, सस्ता इलाज, भोजन भंडारे । बेटी की पैदाइश और शादी का मुआवजा अलग से । अब वोट के लिए दारू चिकन और पाँच सौ का नोट भी ।      उधर लोकतंत्र उत्सव और इधर लोकतंत्र ड्यूटी । ये कैसे चलेगा !”
“तुमको सरकारी पक्की नौकरी भी तो थी भाऊ । तनखा और महंगाई-भत्ता अलग से मिला, बंगला-गाड़ी सब बनाया कि नहीं दस से पाँच में ? बैठो शांति से .... पहले ठंडा पानी पियो ।  नॉटकरणी  ने कहा ।
पानी पी कर बोले-  “चाय में शकर कम डलवाना और भाभी जी को कहना कि बिस्किट दो ही लूँगा । ज्यादा मत निकालना, सील जाते हैं ।“ चारघोड़े जी ने अपने चारे का इंतजाम किया ।  
“चुनाव के दौरान कुछ भी बाँटना गैरकानूनी है । तुम अफवाहों पर ध्यान मत दिया करो ।“ नॉटकरणी ने समझाया ।
“क्या बात करते हो !  हमारी रामरती बाई से पूछ लो । हर चुनाव में उन लोगों को रुपये मिलते हैं ।“
“ये देखना प्रशासन का काम है  ... और फिर हम लोग पार्टियों से पैसा मांगेंगे तो अच्छा लगेगा क्या ?”
“इसमें अच्छे बुरे का सवाल क्या  है ? चुनाव में ऊपर से नीचे तक कितना अच्छा बुरा हो रहा है यह किसी से छुपा है ? सुना है उम्मीदवार घसीटासिंग ने एक ट्रक बकरों का आर्डर दिया है !! हम बेवकूफ केटेगीरी वाले चुनावी बहस करते रहें और उधर बकरे-मुर्गे सरकार बनवा दें !! हम शिक्षित समझदार हैं तो क्या सिर्फ आयकर का फार्म नंबर सोला भरने और टीडीएस कटवाने के लिए ! ..... ये नहीं चलेगा, अपन को आवाज तो उठानी पड़ेगी । घोड़े घास से दोस्ती नहीं करते । “

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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

चुनावी चुल - बुल और गरीबी हटाओ -3



पिछले दिनों दबंग -3 की शूटिंग देखने के चक्कर में पचिसों धक्के और दो दो डंडे खा कर लौटे चुल और बुल उदास बैठे थे और सलमान को बीड़ी पीते हुए रिजेक्ट कर रहे थे ।  तभी कुछ पार्टीबाज़ हुजूम में आए और उन्हें पर्चे पकड़ा गए । लिखा था गरीबी हटाएँगे । किसी जमाने में दादी ने कहा था, पापा ने भी कहा था, अब ये कह रहे हैं ।

 पर्चा देखते हुए चुल बोला – “चल जाएगी ?” 

बुल ने पूछा- “क्या दबंग -3 ?”

“नहीं रे, गरीबी हटाओ -3 । “

“काठ की हांडी कितनी ही मजबूत क्यों न हो तीसरी बार नहीं चढ़ती है । “ बुल ने मुहावरा जड़ा जो चुल को समझ में नहीं आया, बोला – “किसको वोट दें समझ में नहीं आ रहा है ! “

“अरे इसमे दिक्कत क्या है !! जो चुनाव में खड़े हैं उनमें से किसी एक को दे मरो । “

“बहुत कंफूजन है यार ! जो खड़े हैं उनके लिए कोई वोट मांग नहीं रहा है । कहते हैं वोट भले ही इनको दो वो जाएगा ऊपर ही । “ चुल ने पर्चे को गौर से देखते हुये कहा ।

“तो जाने दे ऊपर । कितनी बार वोट दिये हैं कुछ पता चला उनका क्या हुआ ! अपने हाथ से एक बार निकला वोट किधर जाता है इससे अपने को क्या ?”

“ है क्यों नहीं !? गरीबी हटाने की कै रहे हैं । अगर हट गई तो हमारे भी सुख चैन के दिन आ सकते हैं कि नहीं । दद्दा मर गए सपना देखते देखते । पता नहीं अब भी सपना देख रहे हों कहीं पैदा हो के । हम सोचते हैं कि अबकी सही जगो पे वोट दे दें तो क्या पता गरीबी जो है दारी हट ही जाए । बहुत परेसान कर लिया । “ चुल उम्मीद से भरने लगा ।

“अबे पागल है क्या ! गरीबी कोई सब्जी मंडी का अतिक्रमण है जो कि सरकार के कहे से पुलिस डांडा ले के हाँक देगी और वो हट जाएगी !” बुल नहीं माना ।

“देख ले ! बहत्तर हजार देने का बोले हैं । सबको मिलेगा । सस्ता अनाज, सस्ता अस्पताल, सस्ता स्कूल, सस्ता घर सब देंगे तो कहाँ रहेगी गरीबी । मैं तो काम वाम छोड़ दूंगा । मजे में बैठ के खाऊँगा सुबे शाम पऊवा लगा के । और क्या चाहिए अपने को । नेता नहीं राजा महाराजा हैं ये लोग ।“ पर्चे में लिखी घोषणाएँ दिखा कर चुल बोला ।

“राजा महाराजा नहीं रे मूरख, राजनीति में भी चुलबुल पांडे होते हैं बड़े वाले । हाथ हिलाते निकल जाएंगे और आखरी में जब पिक्चर खतम होगी तो हमारे हाथ में आधा फटा हुआ टिकिट  रह जाएगा बस । उसी से मिटा लेना अपनी गरीबी । .... देख कचरा गाड़ी आ रही है, पूछ लेना इस पर्चे को गीले में डालना है या सूखे में । “
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बुधवार, 10 अप्रैल 2019

दोनों कान का इस्तेमाल सीखो



क्षेत्रीय दल के प्रधान थाने के सामने हुजूम के साथ मौजूद थे । उनकी शिकायत यह कि केंद्र सरकार ने पिछली बार तमाम वादे किए थे लेकिन उनमें से ज़्यादातर पूरे नहीं किए । इसलिए चार-बीस का केस दर्ज कीजिये फटाफट । थानेदार पुराना था और चोरी बलात्कार जैसी घटनाओं की शिकायत भी नहीं लिखने के लिए मशहूर था । उसका मानना था कि सरकार उसे रिपोर्ट नहीं लिखने का वेतन देती है । थानों पर रिपोर्ट लिखवाने की मंशा होती तो सरकार थानों में कागज-कार्बन, पेन और पढेलिखे स्टाफ की भी नियुक्ति करती । थानों की व्यवस्था और पैमाने अलग हैं । प्रथम श्रेणी थानेदार वही होता है जो एक मिनिट में कम से कम साठ गलियाँ दे सके । जब हाथ उठाए तो पहले कमर पर रखे और इससे काम नहीं चले तो डंडे का इस्तेमाल करने का उसे बाकायदा संवैधानिक अधिकार है । पुलिस पहले पुलिस होती है बाद में आदमी । थानेदार ने साफ माना कर दिया कि इस तरह का केस दर्ज नहीं हो सकता । चुनाव के बाज़ार में वादों के सिक्के उसी तरह चलते हैं जिस तरह वाट्सएप में बधाइयों के साथ केक और मिठाई की प्लेटें चलती हैं । कोई थाने में यह रिपोर्ट लिखने आ जाए कि मुझे आभासी मिठाई दे कर चीट किया गया है तो थानेदार बोलेगा भईया खा मत, डिलीट कर दे अगर पसंद नहीं आ रही है तो । लोकतन्त्र को पौन सदी हो रहा है और बच्चा बच्चा जानता है कि चुनावी वादा दरअसल वादा होता ही नहीं है । वादा अलग चीज है और चुनावी वादा अलग । जैसे लोग संत महात्माओं के प्रवचन सुनते हैं, ईमानदारी, सच्चाई, दया और प्रेम की तमाम बातें होती हैं, लेकिन भक्त एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से बाहर निकाल देते हैं । कोई गांठ बांध के घर ले आए तो गलती किसकी ? केस किसपे दर्ज करना चाहिए ? इसीलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में लोग अभी लोकतन्त्र के लिए परिपक्व नहीं हैं । ऐसे लोगों को क्या कहा जाए जो चुनावी वादों पर तो लपक पड़ते हैं लेकिन सरकार ने पाँच साल तक क्या किया इस पर ध्यान नहीं देते । जो मछली चारा देखा कर फंस जाए उसे समझदार मछली कौन कहेगा । अच्छे नागरिक बनाना है तो दोनों कान का इस्तेमाल सीखो ।
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सोमवार, 8 अप्रैल 2019

कबीरा झूठा सब संसार, कोऊ न अपना मीत




कहा जाता है कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं । लेकिन इन्टरनेट के जमाने में अब पाँव से चलता कौन है ! झूठ मुआ स्मार्ट हो गया है । डेढ़ जीबी डाटा में झूठ दिन भर ऐसे छाती ठोक के आता जाता है जैसे सच का बाप हो । चुनाव का मौसम है और विशेषज्ञ बिना किसी झिझक के मानते हैं कि झूठ का मौसम है । दिल्ली झूठ की राष्ट्रीय मंडी है । पुराने दिल्लीबाज़ कभी किसी पर विश्वास नहीं करते हैं । उनका तजुरबा है कि जो जितनी लंबी लंबी छोड़ता होता है उसकी पतंग उतनी ऊंची ऊंची उड़ती है । कहते हैं झूठ हजार बार बोला जाए तो उसका सिक्का सच की तरह चलता है । तकनीकी विकास ने झूठ के बाज़ार को पंख लगा दिये हैं । इधर से झूठ का आलू डालो और उधर से सच का सोना निकालो । हर हाथ में फेक्ट्री है और हुनर तो दे ही रखा है उप्पर वाले ने । एक झूठ पंद्रह मिनिट में सच की फसल हो जाता है । आज की जनता जिसके अंदर रियाया होने जींस अभी भी बल खा रहे हैं, मानती है कि महाराज पीढ़ी दर पीढ़ी ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । मतलब बावजूद जनतंत्र के महाराज की ही जय हो । देने वाला श्री भगवान होता है, चाहे वो देने का वादा करे और न भी दे । संत कह गए हैं कि जगत मिथ्या है तो राजपाठ भी मिथ्या है, वोट भी मिथ्या है । जीवन चार दिनों का, वह भी समझो भ्रम है । गालिब ने कहा है कि दो आरजू में कट गए दो इंतजार में, हासिल कुछ भी नहीं हुआ । जब गालिब को नहीं हुआ तो बाकियों को क्या होगा ।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ; मैं बपुरा बूरन डरा, रहा किनारे बैठ । तो फिर खोजें  सत्य क्या है !? आवाज आई बच्चा राम नाम सत्य है, बड़ा सत्य परलोक है । शरीर झूठा है आत्मा सच्ची, जब मौका मिले निकल्ले । सपनों से बड़ा कोई सुख नहीं और जो सुखदाई है वही सच है । सपना चाहे जन्नत में बहत्तर हूरों का हो या बहत्तर हजार रुपए सालाना मुफ्त खाते में आने का हो, सुखदाई है । झूठ के व्यापार की जमीन हमेशा हरी होती है । गधे आँखें बंद करके इस इरादे से चरते हैं कि सारी की सारी मैं ही चर लूँगा । और आश्चर्य की बात यह कि बिना चारा वे मोटे भी होते रहते हैं । इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । किसी का ये खतरे में है तो किसी का वो खतरे में है । लेकिन खतरे का सच यह है कि कोई खतरे में नहीं है । हर पार्टी डर और विश्वास के बीच अपना अपना इंसुलीन बेच रही है । वह माने बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ।

 लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक लीडर चुग जाएगा खेत । बस आप खामोश रहिए । जनसंख्या एक सौ पैंतीस करोड़ है लेकिन यह सच नहीं है । गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी सच नहीं है । हत्या और बलात्कार भी सच नहीं हैं । बेईमानी, भ्रष्टाचार तो कतई सच नहीं हैं । रेडियो पर कोई गा रहा है  “कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो ।  क्या कहना है, क्या सुनना है । मुझको पता है, तुमको पता है । समय का ये पल, थम सा गया है और इस पल में कोई नहीं है बस एक मैं हूँ । बस एक तुम हो

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

फर्जी सब संसार



तकनीकी रूप से जैसे जैसे समाज तरक्की कर रहा है वैसे वैसे फर्जी सूचनाओं का बाज़ार गर्म हो रहा है । चुनाव के इस माहौल में अनेक फर्जी चुनाव विशेषज्ञ मीडिया के कप में मक्खी की तरह तैर रहे हैं । आँख खुली हो तब प्रश्न पैदा हो कि आँखों देखी मक्खी कोई निगले या नहीं निगले । पर इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । पार्टियां माने बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । इसी चक्कर में सूचनाओं का फर्जीवाड़ा अपनी दुकान चलाने में कामयाब होता नजर आ रहा है । खबर है कि फेसबुक ने हाल ही में ग्यारह सौ से अधिक फर्जी सामग्री वाले पेज बंद किए जिसमें लगभग सात सौ पेज कांग्रेस के थे । इस तरह की फर्जी दुकान के लिए फर्जी अकाउंट बनाना पड़ते हैं । किसी ने कहा कि फर्जी अकाउंट बनाना और फर्जी सामग्री प्रसारित करना गैरकानूनी है । लेकिन जिम्मेदार मानते हैं कि चुनाव कानून से ऊपर होते हैं । जंग, मोहब्बत और चुनाव में सब जायज होता हैं । अगर ऐसा नहीं होता तो ट्रंफ आज अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता । जो चीज अमेरिका में जायज है वो यहाँ भी है । रहा सवाल दूसरी पार्टियों का तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है । लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक चिड़िया चुग जाएगी खेत ।

जो लोग बेरोजगारी जैसी समस्याओं को लेकर छाती कूटते हैं उन्हें देखना चाहिए कि फर्जी सूचनाओं के व्यवसाय में कितनी मांग है प्रतिभाशाली लोगों की । कुछ स्वच्छतावादी फर्जी सामग्री बनाने वाले कलाकारों को असामाजिक तत्व कहते हैं तो घ्यान न दें । सच्चा कलाकार वही होता है जो जमाने की कहा सुनी पर कान नहीं दे और अपने काम में लगा रहे । महात्माओं ने संसार को मिथ्या बहुत सोच समझ कर कहा है तो मन में किसी प्रकार का अपराधबोध रखने कि जरूरत नहीं है । घर बैठे फर्जी का फर्ज पूरा करो मजे में और दाम ले जाओ हाथों हाथ । जनता की चिंता करने कि जरूरत नहीं है । उसका ट्रेक रेकार्ड है कि वह फर्जी बातों पर हजारों साल से भरोसा करती आई है और आगे भी करती रहेगी । हमारे यहाँ कोई कानून भी नहीं है जो फर्जी सामग्री बनाने के मामले किसी को अपराधी बनाए । किसी की मानहानि पर जरूर कानूनी अड़चन आती है लेकिन देखिये कि लोकतन्त्र में चुनाव का समय कीचड़ उछलने का समय होता है । जो दो एक दूसरे की बेइज्जती में चूकते नहीं है वे चुनाव के बाद सब भूल कर गले मिल लेते हैं । ऐसे मौकों पर कानून थैंक्यू के अलावा और क्या कह सकता हैं !!
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