सोमवार, 8 अप्रैल 2019

कबीरा झूठा सब संसार, कोऊ न अपना मीत




कहा जाता है कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं । लेकिन इन्टरनेट के जमाने में अब पाँव से चलता कौन है ! झूठ मुआ स्मार्ट हो गया है । डेढ़ जीबी डाटा में झूठ दिन भर ऐसे छाती ठोक के आता जाता है जैसे सच का बाप हो । चुनाव का मौसम है और विशेषज्ञ बिना किसी झिझक के मानते हैं कि झूठ का मौसम है । दिल्ली झूठ की राष्ट्रीय मंडी है । पुराने दिल्लीबाज़ कभी किसी पर विश्वास नहीं करते हैं । उनका तजुरबा है कि जो जितनी लंबी लंबी छोड़ता होता है उसकी पतंग उतनी ऊंची ऊंची उड़ती है । कहते हैं झूठ हजार बार बोला जाए तो उसका सिक्का सच की तरह चलता है । तकनीकी विकास ने झूठ के बाज़ार को पंख लगा दिये हैं । इधर से झूठ का आलू डालो और उधर से सच का सोना निकालो । हर हाथ में फेक्ट्री है और हुनर तो दे ही रखा है उप्पर वाले ने । एक झूठ पंद्रह मिनिट में सच की फसल हो जाता है । आज की जनता जिसके अंदर रियाया होने जींस अभी भी बल खा रहे हैं, मानती है कि महाराज पीढ़ी दर पीढ़ी ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । मतलब बावजूद जनतंत्र के महाराज की ही जय हो । देने वाला श्री भगवान होता है, चाहे वो देने का वादा करे और न भी दे । संत कह गए हैं कि जगत मिथ्या है तो राजपाठ भी मिथ्या है, वोट भी मिथ्या है । जीवन चार दिनों का, वह भी समझो भ्रम है । गालिब ने कहा है कि दो आरजू में कट गए दो इंतजार में, हासिल कुछ भी नहीं हुआ । जब गालिब को नहीं हुआ तो बाकियों को क्या होगा ।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ; मैं बपुरा बूरन डरा, रहा किनारे बैठ । तो फिर खोजें  सत्य क्या है !? आवाज आई बच्चा राम नाम सत्य है, बड़ा सत्य परलोक है । शरीर झूठा है आत्मा सच्ची, जब मौका मिले निकल्ले । सपनों से बड़ा कोई सुख नहीं और जो सुखदाई है वही सच है । सपना चाहे जन्नत में बहत्तर हूरों का हो या बहत्तर हजार रुपए सालाना मुफ्त खाते में आने का हो, सुखदाई है । झूठ के व्यापार की जमीन हमेशा हरी होती है । गधे आँखें बंद करके इस इरादे से चरते हैं कि सारी की सारी मैं ही चर लूँगा । और आश्चर्य की बात यह कि बिना चारा वे मोटे भी होते रहते हैं । इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । किसी का ये खतरे में है तो किसी का वो खतरे में है । लेकिन खतरे का सच यह है कि कोई खतरे में नहीं है । हर पार्टी डर और विश्वास के बीच अपना अपना इंसुलीन बेच रही है । वह माने बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ।

 लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक लीडर चुग जाएगा खेत । बस आप खामोश रहिए । जनसंख्या एक सौ पैंतीस करोड़ है लेकिन यह सच नहीं है । गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी सच नहीं है । हत्या और बलात्कार भी सच नहीं हैं । बेईमानी, भ्रष्टाचार तो कतई सच नहीं हैं । रेडियो पर कोई गा रहा है  “कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो ।  क्या कहना है, क्या सुनना है । मुझको पता है, तुमको पता है । समय का ये पल, थम सा गया है और इस पल में कोई नहीं है बस एक मैं हूँ । बस एक तुम हो

------







कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें