कहा जाता है कि झूठ के पाँव नहीं
होते हैं । लेकिन इन्टरनेट के जमाने में अब पाँव से चलता कौन है ! झूठ मुआ स्मार्ट
हो गया है । डेढ़ जीबी डाटा में झूठ दिन भर ऐसे छाती ठोक के आता जाता है जैसे सच का
बाप हो । चुनाव का मौसम है और विशेषज्ञ बिना किसी झिझक के मानते हैं कि झूठ का
मौसम है । दिल्ली झूठ की राष्ट्रीय मंडी है । पुराने दिल्लीबाज़ कभी किसी पर
विश्वास नहीं करते हैं । उनका तजुरबा है कि जो जितनी लंबी लंबी छोड़ता होता है उसकी
पतंग उतनी ऊंची ऊंची उड़ती है । कहते हैं झूठ हजार बार बोला जाए तो उसका सिक्का सच
की तरह चलता है । तकनीकी विकास ने झूठ के बाज़ार को पंख लगा दिये हैं । इधर से झूठ का
आलू डालो और उधर से सच का सोना निकालो । हर हाथ में फेक्ट्री है और हुनर तो दे ही
रखा है उप्पर वाले ने । एक झूठ पंद्रह मिनिट में सच की फसल हो जाता है । आज की
जनता जिसके अंदर रियाया होने जींस अभी भी बल खा रहे हैं, मानती है कि महाराज पीढ़ी दर पीढ़ी ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । मतलब बावजूद
जनतंत्र के महाराज की ही जय हो । देने वाला श्री भगवान होता है, चाहे वो देने का वादा करे और न भी दे । संत कह गए हैं कि जगत मिथ्या है तो
राजपाठ भी मिथ्या है, वोट भी मिथ्या है । जीवन चार दिनों का, वह भी समझो भ्रम है । गालिब ने कहा है कि दो आरजू में कट गए दो इंतजार
में, हासिल कुछ भी नहीं हुआ । जब गालिब को नहीं हुआ तो
बाकियों को क्या होगा ।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ; मैं बपुरा बूरन डरा, रहा किनारे बैठ । तो फिर खोजें सत्य क्या है !? आवाज आई ‘बच्चा राम नाम सत्य है, बड़ा सत्य परलोक है’ । शरीर झूठा है आत्मा सच्ची, जब मौका मिले निकल्ले ।
सपनों से बड़ा कोई सुख नहीं और जो सुखदाई है वही सच है । सपना चाहे जन्नत में
बहत्तर हूरों का हो या बहत्तर हजार रुपए सालाना मुफ्त खाते में आने का हो, सुखदाई है । झूठ के व्यापार की जमीन हमेशा हरी होती है । गधे आँखें बंद
करके इस इरादे से चरते हैं कि सारी की सारी मैं ही चर लूँगा । और आश्चर्य की बात
यह कि बिना चारा वे मोटे भी होते रहते हैं । इधर तो सबकी आँखें बंद हैं । किसी का
ये खतरे में है तो किसी का वो खतरे में है । लेकिन खतरे का सच यह है कि कोई खतरे
में नहीं है । हर पार्टी डर और विश्वास के बीच अपना अपना इंसुलीन बेच रही है । वह माने
बैठी हैं कि उनके प्रति एक भरोसा है सबके दिमाग में । इस फर्जी भरोसे को उन्हें बस
जिंदा रखना है चुनाव तक । उसके बाद लोगों की आँखें खुलती हों तो खुल जाएँ कोई फर्क
नहीं पड़ने वाला ।
लोहे से लोहा कटता है । फर्जी सामग्री की काट
फर्जी सामग्री है । इधर फर्जी तो उधर भी फर्जी । वोटर को जब तक समझ में आएगा तब तक
लीडर चुग जाएगा खेत । बस आप खामोश रहिए । जनसंख्या एक सौ पैंतीस करोड़ है लेकिन यह
सच नहीं है । गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी सच नहीं है । हत्या और बलात्कार भी सच नहीं हैं । बेईमानी, भ्रष्टाचार तो कतई सच नहीं हैं । रेडियो पर कोई गा रहा है “कुछ ना कहो, कुछ
भी ना कहो । क्या कहना है, क्या सुनना है । मुझको पता है, तुमको पता है । समय
का ये पल, थम सा गया है और इस पल में कोई नहीं है । बस एक मैं हूँ । बस एक तुम हो ।
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