बुधवार, 10 अप्रैल 2019

दोनों कान का इस्तेमाल सीखो



क्षेत्रीय दल के प्रधान थाने के सामने हुजूम के साथ मौजूद थे । उनकी शिकायत यह कि केंद्र सरकार ने पिछली बार तमाम वादे किए थे लेकिन उनमें से ज़्यादातर पूरे नहीं किए । इसलिए चार-बीस का केस दर्ज कीजिये फटाफट । थानेदार पुराना था और चोरी बलात्कार जैसी घटनाओं की शिकायत भी नहीं लिखने के लिए मशहूर था । उसका मानना था कि सरकार उसे रिपोर्ट नहीं लिखने का वेतन देती है । थानों पर रिपोर्ट लिखवाने की मंशा होती तो सरकार थानों में कागज-कार्बन, पेन और पढेलिखे स्टाफ की भी नियुक्ति करती । थानों की व्यवस्था और पैमाने अलग हैं । प्रथम श्रेणी थानेदार वही होता है जो एक मिनिट में कम से कम साठ गलियाँ दे सके । जब हाथ उठाए तो पहले कमर पर रखे और इससे काम नहीं चले तो डंडे का इस्तेमाल करने का उसे बाकायदा संवैधानिक अधिकार है । पुलिस पहले पुलिस होती है बाद में आदमी । थानेदार ने साफ माना कर दिया कि इस तरह का केस दर्ज नहीं हो सकता । चुनाव के बाज़ार में वादों के सिक्के उसी तरह चलते हैं जिस तरह वाट्सएप में बधाइयों के साथ केक और मिठाई की प्लेटें चलती हैं । कोई थाने में यह रिपोर्ट लिखने आ जाए कि मुझे आभासी मिठाई दे कर चीट किया गया है तो थानेदार बोलेगा भईया खा मत, डिलीट कर दे अगर पसंद नहीं आ रही है तो । लोकतन्त्र को पौन सदी हो रहा है और बच्चा बच्चा जानता है कि चुनावी वादा दरअसल वादा होता ही नहीं है । वादा अलग चीज है और चुनावी वादा अलग । जैसे लोग संत महात्माओं के प्रवचन सुनते हैं, ईमानदारी, सच्चाई, दया और प्रेम की तमाम बातें होती हैं, लेकिन भक्त एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से बाहर निकाल देते हैं । कोई गांठ बांध के घर ले आए तो गलती किसकी ? केस किसपे दर्ज करना चाहिए ? इसीलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में लोग अभी लोकतन्त्र के लिए परिपक्व नहीं हैं । ऐसे लोगों को क्या कहा जाए जो चुनावी वादों पर तो लपक पड़ते हैं लेकिन सरकार ने पाँच साल तक क्या किया इस पर ध्यान नहीं देते । जो मछली चारा देखा कर फंस जाए उसे समझदार मछली कौन कहेगा । अच्छे नागरिक बनाना है तो दोनों कान का इस्तेमाल सीखो ।
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