बुधवार, 19 मार्च 2025

सिस्टम बना रहना चाहिए







                    
सरकारों का क्या है! सरकारी आती हैं, सरकारी जाती हैं, पर यह सिस्टम बना रहना चाहिए । लोग देते रहें,  हम लेते रहें यही धरम हैं । इसी लेनदेन से समाज चलता है, सरकार चलती है, घर चलता है। कहने वाले इसे बुरा कहते हैं, लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। जब ये सिस्टम नहीं था तब भी कुछ बातें थी जिन्हें लोग बुरा कहते थे। हम तो कहते हैं कि समाज में कुछ चीज बुरी अवश्य होनी चाहिए ताकि बुरा कहने वाले निराश ना हों और रोजगार में लग रहें । हालांकि सिस्टम बुरा नहीं है यदि आप सिस्टम के अंदर हों । सच बात तो यह है कि इसे बुरा कहने वाले पहले सिस्टम के अंदर आने की कोशिश करते हैं। बहुत से सफल नहीं हो पाते हैं तो मजबूरन उन्हें सिस्टम के खिलाफ ईमानदार होने का दावा करना पड़ता है। ईमानदारी उनकी प्रथिकता नहीं मजबूरी है ।
                 सिस्टम से बाहर पड़े रह गए कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सिस्टम से आदमी की बुरी सोच बनती है और वह बेईमानी की तरफ चला जाता है। जबकि ऐसा नहीं है, सबके कल्याण की सोच से सिस्टम बनता है । देश में कानून है, पुलिस है, जेलें हैं, वामपंथी हैं और नैतिकता वादी भी हैं । इन सबके रहते हुए सिस्टम को विकसित कर लेना बहुत कठिन है । लेकिन कुछ दृढ़ संकल्पित समाज-प्रेमी मिल बैठकर रास्ता निकाल लेते हैं। धीरे-धीरे एक समानांतर व्यवस्था यानी सिस्टम खड़ा हो जाता है । ‘सब का साथ सब का विकास’ की भावना से सिस्टम मजबूत बनता है । कानून अपनी जगह है सिस्टम अपनी जगह । वे कानून का कानून-विशेषज्ञों के निर्देश में आदर करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि उसे धर्म-संकट में नहीं डालें । सहयोग की भावना से काम करो तो कानून भी सहयोग करने से पीछे नहीं हटता है। अच्छे नागरिकों को और क्या चाहिए । आदमी पैसा ले और काम कर दे आज यही सच्ची ईमानदारी है । हाँ, इस बात को नोट करें, सिस्टम लोकतंत्र को पसंद करता है । हर पाँच साल में पहले से बेहतर और सहयोग करने वाली सरकार चुनने का अवसर मिल जाता है जनता को । देखिए जूता काटता है तो कोई जूते को फेंक नहीं देता है । समझदार आदमी वह होता है जो धैर्य रखता है । कुछ दिनों में काटे जाने वाली जगह की चमड़ी धीरे-धीरे मोटी हो जाती है । कुछ ढीला जूता भी हो जाता है । इस सहयोगी पहल से पहनने वाले को जूता प्यारा लगने लगता है। ईमानदारी भी शुरू-शुरू में काटती है । बाद में परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालती जाती है । वही समाज और सभ्यताएं जिंदा रहती हैं जो समय के अनुसार अपने को बदलती रहती है। हमारे यहां ज्यादातर लोग धार्मिक हैं । पूजा स्थलों पर चढ़ाव  चढ़ना हमारी आदत में है । इससे सिस्टम को मजबूत आधार मिलता है । सरकारी महकमें भी एक तरह के देवस्थान होते हैं। चढ़ावा चढ़ाएंगे तभी देवता प्रसन्न होंगे और उनकी मनोकामना पूरी होगी । यह धारणा सिस्टम को मजबूत करती है।

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