बुधवार, 27 दिसंबर 2023

वो आधा काम करता है आधा भूल जाता है ।



 



“देखो साहब ऐसा है कि समय जो है एक सरीखा पड़ा नहीं रहता है । वह करवट ले रहा है । करवट करवट होती है, इसमें आगे पीछे नहीं देखा जाता है । करवट हमेशा आगे नहीं ले जाती है, पीछे भी लाती है । हमें समय के साथ चलना होता है । रख सको तो उसकी चाल पर नजर रखो । कब किसकी उड़ कर लग जाए कहा नहीं जा सकता है । जब हवाएं चलती हैं, तूफान सा उठता है तो प्रायः जमीन की धूल उड़ कर गुम्बद पर बैठ जाती है । व्यवस्था है प्रकृति की, सिस्टम भी कह सकते हैं इसे । गहरा सोचने वाले विद्वान् लोग लोकतंत्र भी कह देते हैं कभी कभी । बोध कथा में कहा गया है कि जब तक झाड़ पोंछ नहीं होती वो धूल वहीं  बैठी रहेगी । और सिस्टम में झाड़ पोंछ कोई रोज का काम थोड़ी है, कोई निमित्त हो, कोई मुहीम चले तभी साफ सफाई की जाती है । लेकिन सफाई होती जरुर है । जैसे दीवाली के समय हर आदमी सफाई कर्मी हो जाता है तब कहीं जा कर उजाला एक पर्व बनता है ।  तब तक इंतजार करो, आयेंगे अच्छे दिन भी । “ जगतराम बोले ।

भगतराम जरा व्यावहारिक हैं, वे समझाते हैं -  “भाई साहब खांमखां चिंता का टोकरा सर पर उठाए रहते हैं आप ! आपका क्या लेना देना सरकार से या लोकतंत्र से ! हवाओं से या तूफ़ान से !! वोट देना था दे दिया, समझो हेडेक ख़तम, आराम से बैठो । अब ब्लड प्रेशर की गोली लो और लगो अपने काम धंधे से । इसके आलावा कोई चारा नहीं  है समझदार आदमी के पास । आपको राजधानी की तरफ देखने की जरुरत ही क्या है । जिन्हें चुना गया है वो अपना का करेंगे आप अपना करो मजे में । राजनीति है भाई कोई मामूली चीज नहीं । समझो कि इन्सान के बस की तो बात ही नहीं है , देवताओं का काम है ये । पढ़े सुने नहीं हो क्या कि कितनी राजनीति करना पड़ती थी उन्हें देवता बने रहने के लिए । कितना गिरना उठना पड़ता है हम आप क्या जानें । आम आदमी इसमें मगजमारी करने लगेगा तो अपनी रोजी रोटी ख़राब कर लेगा । लोग कमाते तो खूब हैं  लेकिन जाता किधर है ये नहीं पता पड़ता हैं । सोचना है तो इस पर सोचो । कमाई का पचास साठ परसेंट तो टेक्स में देना पड़ता है । विश्वास न हो तो जोड़ लेना किसी दिन । माचिस की डिबिया जैसी मामूली चीज खरीदते हो उस तक में टेक्स देना होता है । पिछले साल आपने स्कूटर खरीदा है तो अच्छा ख़ासा टेक्स दिया है । अब उसे चलाने का, मतलब ड्राइविंग लायसेंस, सड़क पर चलने का रोड़ टेक्स, पेट्रोल का टेक्स, टूटफूट यानी पुर्जों पर टेक्स, पार्किंग शुल्क, दायें बाएं मुड़ गए तो तरह तरह के फ़ाईन ! तनखा पर इनकम टेक्स, रोटी, कपड़ा, दवाई, मिठाई कुछ भी लिया तो सब पर खासा टेक्स है । लेने वाला श्री भगवान । बड़ी जिम्मेदारी और महंगा काम है एक ईमानदार नागरिक होना । पहले जिल्लेसुभानी को चुनों, फिर डायरेक्ट इनडायरेक्ट उनके गाड़ी घोड़े, सूट शेरवानी, जेकेट जूते सबकी व्यवस्था करो । देखा जाये तो इतना सब देने वाला नागरिक किसी शहंशाह से कम नहीं है । किन्तु वोट समर्पण के बाद कौन मानता है उसे  ! मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई ; जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई । खुद ही मान लो, कोई खुशफहमी तो जरुरी है जीने के लिए । “

“ठीक है जी, मान लेते हैं । कहने वाले कहते हैं कि भगवान सब देखता है । उसकी मर्जी से ही पत्ता खड़कता है । वो चाहे तो रंक को राजा बना दे या राजा को रंक ।  देखिये ना वो आधा काम करता है आधा भूल जाता है ।  चलिए कोई बात नहीं, यही मान लेते हैं कि भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं । ... किस किस को याद कीजिये, किस किस को रोइए, आराम बड़ी चीज है, मुंह ढंक कर सोइये । मुंह ढँक कर सोने का मौसम है ।  “

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हम इन्सल्ट न्यू इयर मना लेंगे



“देखो यार राम परसाद अभी हमने सोचा नहीं है कि नया साल कैसे मनावें । पिछली बार जो तुम्हारे साथ मनाया था उसे आज तक हम भूले नहीं हैं । हालाँकि हमने कोशिश बहुत की कि भूल जाएँ पर सफल नहीं हुए । गलत मत समझ लेना, हमारा मतलब है कि तुमने खूब इंज्वॉय किया यह हम नहीं भूल पाते हैं । इंज्वॉय तो हमने भी किया था, जब तक कि बिल नहीं देना पड़ा था जीएसटी के साथ । नए साल की ख़ुशी में तुम पर्स घर पर ही भूल आये थे ... याद है ना ? उस दिन लगा कि कमबख्त हमारी यादाश्त अच्छी क्यों है । हम मूरख हैं बैठे बिठाये हेप्पी न्यू ईयर हो गया हमारा । वो तो अच्छा हुआ घर में किसी को पता नहीं चला वरना किस किस को बताते कि हम पर क्या गुजरी नए साल में । ... चलो वो बात तो आई गयी हुई । वो क्या है ना अपने यहाँ रिवाज है कि नया साल आता है तो सब लोग अपना भविष्यफल पढ़ते हैं ।  कल हमने भी पढ़ लिया । हमारे लिए साफ लिखा था कि पिछली गलतियाँ नहीं दोहराएँ । पीने-खाने के मामले में सावधान रहें और मुफ्तखोर यार दोस्तों से बच कर रहें । सो इस बार मजबूरी है राम परसाद । अव्वल तो हम मना ही कर रहे हैं सबको, लेकिन नहीं माने तो इस बार पूरी याद से हम पर्स भूलने वाले हैं । क्या कहते हो ?”

“हम पर्स भूल आये थे क्या !? अच्छा !!” राम परसाद बोले ।

“वैसे देख लो इस बार चौतरफा माहौल ये है कि एक जनवरी हमारा नया साल नहीं है । दुनिया का हो तो हो उससे हमको क्या है । दुनिया से हमें क्या लेना देना, मेड इन चाइना, मेड इन जापान अलग बात है । ये इकोनामिक्स का मामला है संस्कृति का नहीं । हम दुनिया के साथ नहीं देस के साथ रहेंगे, संस्कृति बड़ी चीज है भाई । तो राम परसाद जान लेओ कि इस बार नया साल सेलिब्रेट नहीं करने वाले हैं । हमारा तो तुम्हारे लिए भी यही सुझाव है कि नए साल के नाम पर कुछ मत मनाओ । पीयो-खाओ मजे में और लोगों बताओ कि ये जो आ रहा है ना नया साल वो हमारा नहीं है । हम इसे नहीं मानते हैं, और इसकी बेइज्जती के लिए पी-खा रहे हैं । लोग भले ही हेप्पी न्यू इयर मना रहे हों पर हम इन्सल्ट न्यू इयर मना लेंगे । दूसरो की इन्सल्ट करने में कितना आनंद आता है यह टीवी के लोकप्रिय सीरियलों से सबको पता है । तो राम परसाद, करो यार तुम भी नए साल की इन्सल्ट का जश्न । तो बताओ किधर आ जाएँ ? आखिर तुम्हारी बात तो रखना ही पड़ेगी, लंगोटिया हो ना हमारे ।  और फिर लिए दिए का हिसाब यहीं होता है संसार में । अपने दिए को ले लेना तो व्यवहार है समाज का ।  तुम तो जानते हो कोई प्रेम से बुलाये तो हम मना नहीं कर पाते हैं ।“

 राम परसाद बोले – “ अरे यार हम तो वैसे ही पूछ रहे थे । दरअसल इस बार हम भी राष्ट्रवादी बन गए हैं । नया साल नहीं मनाने वाले हैं । चिकन अलग चीज है, अंडे वाला केक खा कर हेप्पी न्यू इयर बोल कर अपने को भ्रष्ट थोड़ी करेंगे । किसी को पता पड़ गया तो कैसे शुद्धिकरण हो जाएगा पता नहीं । हमारे मोहल्ले में भजन संध्या रखी है और भंडारा भी है । इधर ही आ जाओ, भजन-भंडारा हो जायेगा और तुम्हारा लेन देन भी बराबर हो जाएगा ।“ ­                                    ----X ----- 

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

तुम बस चलते रहो छोटू जी


 


छोटू जी छोटे हैं और बड़कू जी बड़े । बड़कू जी आगे चल रहे हैं और छोटू जी पीछे पीछे । दोनों में मित्रभाव कभी कभी सर उठा लेता है लेकिन जल्दी ही वे भूल सुधार लेते हैं । वे  एक साथ भी चल सकते हैं लेकिन अनुशासन से बंधे हुए हैं । दोनों दिल्ली जाने के लिए निकले हुए हैं ।  “तुम्हें पता है दिल्ली कहाँ है ?” अचानक छोटूजी ने बड़कूजी से पूछा ।

“ इसमें पता करने की क्या बात है । दिल्ली दिल्ली में ही होगी और कहाँ जाएगी !!” बड़कू ने अपने बड़प्पन के साथ कहा ।

“मेरा मतलब है बड़कूजी कि हम लोग दिल्ली जा रहे हैं तो हमें ठीक से पता होना चाहिए कि दिल्ली कहाँ है । इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारी दिशा गलत तो नहीं है । “

“दिशा विशा की चिंता छोड़ो छोटू जी । बस इतना याद रखो कि हमारी दिशा सुनिश्चित है । ... मात्र दिल्ली के लिए हम अपनी दिशा नहीं बदल सकते हैं ।“

“मैंने तो समान्य सी बात पूछी है ।  दिल्ली पहुँचने के लिए हमें दिल्ली की दिशा में ही तो चलना होगा ! वरना पहुंचेंगे कैसे ?!”

“नेतृत्व बड़ी चीज होती है छोटू जी । नेतृत्व पर भरोसा रखो । जरूरत पड़ी तो वे हमारी दिशा में कई दिल्लियां बनाते चलेंगे । हमें केवल चलने और चलते रहने के निर्देश हैं । इसलिए चलते चलो, चलते चलो ।“ बड़कूजी ने अपना अनुभव रखा ।

“फिर भी मैं सोचता हूँ कि एक बार किसी से दिल्ली का पता पूछ लेने में कोई हर्ज नहीं है ।“ छोटू को समाधान चाहिए था ।

“छोटू जी तुम सोचते हो ! ... अभी तक !! ... इसका मतलब यह है कि तुम्हारा संस्कार नहीं  हुआ ठीक से । सोचना बंद करो तुरंत ...  वरना थर्ड डिग्री संस्कार के लिए तैयार रहो ... और हाँ एक बात साफ समझ लो, हमारी दिल्ली इतिहास में है । हमें इतिहास में जाना पड़ेगा । मानो कि इतिहास ही हमारी दिशा है ।“

“कुछ समझा नहीं ! हमें इतिहास में क्यों जाना पड़ेगा बड़कूजी !!?”

“क्योंकि हम इतिहास में नहीं हैं और लोग बार बार हमें इतिहास में ढूंढते हैं । आधुनिक शिक्षा ने लोगों की समझ और सोच को विकृत कर रखा है । जो इतिहास में नहीं हैं उन्हें वर्तमान में भी नकार रहे हैं । ऐसे लोगों को गोली मार कर हे-राम कर देना चाहिए । “

“लेकिन जब हम इतिहास में हैं ही नहीं तो इतिहास में जाएंगे कैसे ?!!”

“इतिहास में सेंध मार कर । हमें इतिहास बदलना होगा और अपने लिए जगह बनानी होगी । याद रखो, जगह बनाने से ही बनती है । नेतृत्व पर विश्वास रखो और तुम बस चलते रहो ।“

“मैं चल तो रहा हूँ बड़कू जी । लेकिन पथ समझ में नहीं आ रहा है ..।“

“समझने की कोशिश करोगे तो चलोगे कैसे छोटू जी !! ... लक्ष्य चलने से मिलता है, समझने के प्रयास से केवल भ्रम पैदा होता है । ... चलो कि जैसे बिना गाड़ीवान के बैल चलते रहते हैं गाड़ी में ।“

“बड़कू जी तुम्हें विश्वास है दिल्ली आ जाएगी ?”

“दिल्ली नहीं आएगी छोटू जी ... हमें दिल्ली चल कर जाना होगा । तुम बस चलते रहो ।“

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चिड़ियाघर में भालू से एक मिडिया बाईट


 



जिसके हाथ में चैनल का माइक हो उसके पास किसी के भी मुंह में घुस जाने का नेशनल परमिट होता है । माइक आगे करके वे इतना बोल दें कि खुल जा सिम सिम ... बस काफी है । बंद मुंह खुल जाता है । प्रिंस सीनियर बेरोजगार है, अभी अभी उसने माइक पकड़ा है और चैनल ने प्रेक्टिस के लिए उसे राष्ट्रीय चिड़ियाघर में भेजा है । उसे कुछ सीखना हैं, जानवरों से बात करना है ।

सबसे पहले भालू का मुंह सामने आया । खुलते ही उसने आपत्ति जताई कि ये चिड़ियाघर क्यों है ! इसमें ज्यादातर जानवर उड़ने वाले नहीं हैं । चाहे तो जन्तुवार-गणना करवा ले सरकार । थोड़े से तोते कबूतरों के कारण पूरा इलाका चिड़ियाघर कैसे हो गया ।  इसका नाम बदलना चाहिए । लोगों के सामने चलेफिरें, उनका मनोरंजन करें हम और नाम चिड़ियाघर !! सरकार को इस मामले को संवेदनशील मुद्दों में शामिल करना चाहिए ताकि सख्ती के साथ कदम उठाया जा सके ।

“अगर नाम नहीं बदला तो आप लोग आन्दोलन करोगे क्या ?” प्रिंस ने पूछा ।

“लगता है तुम नए नए माइक पकड़े हो । जानवर आन्दोलन नहीं करते हैं , वे सिर्फ मांग रखते हैं । सिस्टम में मांग रखने का अधिकार सबको है, जानवरों को भी । तुम देख लो यहाँ नब्बे प्रतिशत बिना पंख वाले हैं ।“

“अगर आपकी मांग नहीं मानी गयी तो ?”

“दरअसल हमारी मांग मांग नहीं एक आइडिया है विकास का । सरकार का ध्यान खींचना चाहते हैं । आखिर पशु संग्रहालय का भी योगदान होना चाहिए इतिहास के नए संस्करण में ।  हमें ख़ुशी होगी ।“

“आपको ख़ुशी होती है !? यहाँ कैद हो, पिंजरों में रहते हो, पता नहीं खाने को ठीक से मिलता है या नहीं !”

“हम खुश हैं । कैद हुए तो क्या हुआ मुफ्त का राशन मिल रहा है । काम का कोई बर्डन नहीं है । मजे में खाते रहो और पड़े रहो । बस जिन्दा रहो ताकि वक्त जरुरत देने वालों के काम आ सको ।“

“और ये पिंजरे ? इसमें बंद कर देते होंगे आप लोगों को ?”

“पिंजरे नहीं ये व्यवस्था है, घर हैं हमारे । मुफ्त मिले तो पिंजरे भी सुख देते हैं । मजा ही मजा है । “

“ऐसा पता चला है कि ये पिंजरे नहीं विचारधारा है कोई । जिसमें आपको कैद किया जा रहा है । धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी आप लोगों को । फिर इसके बिना रह नहीं सकोगे ?” प्रिंस ने गहरा सवाल किया ।

“जानवरों की कोई विचारधारा नहीं सिर्फ भूख होती है । दिन में पेट भरने की व्यवस्था हो जाए तो और कुछ नहीं चाहिए । रात में मस्त सो जाओ मजे में । “

“और देश ?”

“गरीबों के लिए क्या देश और क्या दुनिया । क्या जाति और क्या धरम । जो भी है बस राशन है । गेट खोल भी दो तो भी हम बाहर नहीं जाने वाले हैं । हम अमीरों, बड़े लोगों के लिए हैं । वे माई बाप, प्रभु, भगवान हमारे । वे आते हैं हमें देखते हैं, कुछ खाने को देते हैं । और हमें क्या चाहिए देश से या सरकार से । हमारा भी फर्ज बनता है कि जब जब भी मौका मिले उनके काम आ जाएँ । वो हमारे लिए हों न हों हम उनके लिए हैं ।“

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