जिसके हाथ
में चैनल का माइक हो उसके पास किसी के भी मुंह में घुस जाने का नेशनल परमिट होता है
। माइक आगे करके वे इतना बोल दें कि खुल जा सिम सिम ... बस काफी है । बंद मुंह खुल
जाता है । प्रिंस सीनियर बेरोजगार है, अभी अभी उसने माइक पकड़ा है और चैनल ने
प्रेक्टिस के लिए उसे राष्ट्रीय चिड़ियाघर में भेजा है । उसे कुछ सीखना हैं, जानवरों
से बात करना है ।
सबसे पहले भालू
का मुंह सामने आया । खुलते ही उसने आपत्ति जताई कि ये चिड़ियाघर क्यों है ! इसमें ज्यादातर
जानवर उड़ने वाले नहीं हैं । चाहे तो जन्तुवार-गणना करवा ले सरकार । थोड़े से तोते
कबूतरों के कारण पूरा इलाका चिड़ियाघर कैसे हो गया । इसका नाम बदलना चाहिए । लोगों के सामने
चलेफिरें, उनका मनोरंजन करें हम और नाम चिड़ियाघर !! सरकार को इस मामले को
संवेदनशील मुद्दों में शामिल करना चाहिए ताकि सख्ती के साथ कदम उठाया जा सके ।
“अगर नाम
नहीं बदला तो आप लोग आन्दोलन करोगे क्या ?” प्रिंस ने पूछा ।
“लगता है
तुम नए नए माइक पकड़े हो । जानवर आन्दोलन नहीं करते हैं , वे सिर्फ मांग रखते हैं ।
सिस्टम में मांग रखने का अधिकार सबको है, जानवरों को भी । तुम देख लो यहाँ नब्बे
प्रतिशत बिना पंख वाले हैं ।“
“अगर आपकी
मांग नहीं मानी गयी तो ?”
“दरअसल
हमारी मांग मांग नहीं एक आइडिया है विकास का । सरकार का ध्यान खींचना चाहते हैं । आखिर
पशु संग्रहालय का भी योगदान होना चाहिए इतिहास के नए संस्करण में । हमें ख़ुशी होगी ।“
“आपको ख़ुशी
होती है !? यहाँ कैद हो, पिंजरों में रहते हो, पता नहीं खाने को ठीक से मिलता है
या नहीं !”
“हम खुश
हैं । कैद हुए तो क्या हुआ मुफ्त का राशन मिल रहा है । काम का कोई बर्डन नहीं है ।
मजे में खाते रहो और पड़े रहो । बस जिन्दा रहो ताकि वक्त जरुरत देने वालों के काम आ
सको ।“
“और ये
पिंजरे ? इसमें बंद कर देते होंगे आप लोगों को ?”
“पिंजरे
नहीं ये व्यवस्था है, घर हैं हमारे । मुफ्त मिले तो पिंजरे भी सुख देते हैं । मजा
ही मजा है । “
“ऐसा पता
चला है कि ये पिंजरे नहीं विचारधारा है कोई । जिसमें आपको कैद किया जा रहा है ।
धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी आप लोगों को । फिर इसके बिना रह नहीं सकोगे ?” प्रिंस ने
गहरा सवाल किया ।
“जानवरों
की कोई विचारधारा नहीं सिर्फ भूख होती है । दिन में पेट भरने की व्यवस्था हो जाए
तो और कुछ नहीं चाहिए । रात में मस्त सो जाओ मजे में । “
“और देश ?”
“गरीबों के
लिए क्या देश और क्या दुनिया । क्या जाति और क्या धरम । जो भी है बस राशन है । गेट
खोल भी दो तो भी हम बाहर नहीं जाने वाले हैं । हम अमीरों, बड़े लोगों के लिए हैं ।
वे माई बाप, प्रभु, भगवान हमारे । वे आते हैं हमें देखते हैं, कुछ खाने को देते
हैं । और हमें क्या चाहिए देश से या सरकार से । हमारा भी फर्ज बनता है कि जब जब भी
मौका मिले उनके काम आ जाएँ । वो हमारे लिए हों न हों हम उनके लिए हैं ।“
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