बुधवार, 25 जून 2014

सेकुलरों के पाप नहीं धो रही गंगा



              पता ये चला है कि बहुत समय से नेताओं को स्वर्ग में प्रवेश  नहीं मिल रहा है। ना जाने कौन से पाप हुए कि गंगा स्नान के बावजूद पवित्र नहीं हो पाए। नेता तो नेता, धोने-नहाने से रह जाए पर बयान से बाज ना आएं। मीडिया में बकबका दिये कि गंगा जो है सेकुलर पापियों के पाप नहीं धो रही हैं। जब देशभर के कामरेड तक छुपछुपा कर यानी गुपचुप तरीके से गंगा स्नान करके पवित्र हो रहे हैं तो सेकुलर पापियों के साथ ये भेदभाव क्यों ? राजनीति किसी भी जगह हो पर आस्था तो अपनी जगह है। कल को स्वर्ग कामरेड़ों से भर गया तो भगवान अकेले पड़ जाएंगे उसका जवाबदार कौन होगा ?! और अगर सांप्रदायिक ताकतों को ही मौका मिला तो उनका बहुमत नहीं हो जाएगा !? लोकतंत्र में हर पापी को गंगा स्नान का बराबर अवसर मिलना चाहिए, चाहे वो किसी भी पार्टी या विचारधारा का क्यों न हो।
                 अब ये तो होता है भइया, एक ने कही तो दूसरा चुप कैसे बैठेगा। एक तो गंगा मइया, पाप धो रही सबके, उपर से नेता लोग आरोप ठोंक रए दनादन। गंगामांई को भी कहना पड़ा कि जो लोग अपने को ‘दूध का धुला’ और पाक-साफ, पवित्र मानते ही हैं उनको गंगाजल की आस क्यों करना चाहिए ! पहले वे अपने को पक्केतौर पापी मानें, गंगा को हाइकमान से ऊंचा दर्जा दें, तब उनके पाप धोने पर विचार किया जा सकेगा। ये लोग आस्था की झूटी बात करते हैं। इनके राज में ड्रेनेज  की बड़ी बड़ी लाइनें छोड़ दीं गंगा में !! गंगा मुर्दों को ढ़ो सकती है लेकिन मल को ढ़ोना उसका काम नहीं है। जब तक गंगा साफ नहीं होती कोई नेता पवित्र नहीं माना जाएगा।
                 तुमसे ये बात छुपी तो है नहीं कि संसार मृत्युलोक है और यहां सब पापी रहते हैं। पर  डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि देवभूमि में नियमानुसार गंगा स्नान कर लेने से पाप जो हैं एकदम से धुल जाते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि जो नहा लिए वो पवित्र और जो आलसी नाहाने से रह वो समझो पापी ही रह गए। कहते हैं कि भारत अनंतकाल से एक नहाऊ देश  है। जिधर देखो उधर हर आदमी नहाने के लिए कमर ढ़ीली किए बैठा है। कहने सुनने में बुरा लगेगा पर सच ये है कि पूरे देश  से जितनी भी ट्रेनें  उत्तर प्रदेश  जाती हैं उनमें अधिकांश  पापी होते हैं और वे नहाने जाते हैं। खास तिथियों, त्योहारों और अवसरों पर लाखों पापी स्नान करके नया सा महसूस करते हैं, जैसे फेफड़े-किडनी बदला लिए हों। गंगा स्नान के बाद नहालू के मन और इरादों में नई धार लग जाती है। पाप-धुला आदमी नए उत्साह और नए संकल्पों के साथ अपने गांव या शहर में लौटता है और ‘नए कामों’ में लग पड़ता है। बात हमारी तुमारी नहीं लाखों लोगों के भरोसे और विश्वास  की है, नहीं करोगे तो तुम भी हुए पक्के पापी। वरना तो सब मानते हैं कि गंगा नहाया कर्मवीर इतना पवित्र हो जाता है कि स्वयं भगवान को उसके लिए स्वर्ग का दरवाजा खोलना पड़ता है। कुछ बात तो होती होगी ना, वरना भगवान को क्या पड़ी कि चल के खुद आएं और दरवाजा खोल के ‘वेलकम’ बोलें और यह भी कि ‘बड़ी देर कर दी आने में !’ जानते हो ना  कि बड़े से बंद दरवाजे के भीतर का हिस्सा स्वर्ग होता है। और यह भी कि नरक में उल्टे दरवाजे होते हैं, घुस कोई भी सकता है पर निकलने की बनती नहीं है। इधर स्वर्ग की बात अलग है, सुरक्षाकर्मी विमानतल पर ही आने वाले को नंगा करके अच्छी तरां से जांच करते हैं कि शरीर का कोई हिस्सा पाप-पगा तो नहीं रह गया, इसने ठीक तरां से गंगा स्नान किया या नहीं। पूरी और पक्की खातरी होने के बाद, मेडिकल चेकअप कराके और जरूरी टीके-वीके लगाके उसको अंदर ठेला जाता है। जो इलाहाबादी दामाद होते हैं उन्हें इस तरह की झंझटों से दो-चार होने की जरूरत नहीं होती है। यों समझ लो कि संगम का इस्पेसल परमिट होता है, सीधे आए और घुस गए। सुरक्षाकर्मी मात्र तोरण मारने की रस्म करके अंदर छोड़ आते हैं। खैर, हम-आप ठहरे आमजन, लाइन में लगने में कोई ऐतराज थोड़ी है।
 अब देखो क्या होता है आगे ! हम तो पिछले साल के नहाए बैठे हैं अभी नंबर नहीं लगा। डर यही लगा है कि नेताओं की भीड़ लग पड़ी तो भगवान दरवाजा खोलें कि नहीं खोलें।
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