बुधवार, 11 जून 2014

बकवास

               राजनीति में बकवास एक रचनात्मक कार्य है। यदि कोई बकवास करने में की कला में दक्ष हैं और सपने में अक्सर दिल्ली दिखाई देती है तो समझिये कि सत्तासुख उसके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। दिल्ली की हवा में सत्ता की ऊष्णता है, सो वहां बकवास की हाजत सबसे ज्यादा होती है। मोहल्ला स्तर का ‘हृदय-सम्राट’ एक बार दिल्ली का पानी पी आए तो उसकी कंठी फूट पड़ती है। दूसरे राज्यों में भी जब कोई बकासा होता है तो वह दिल्ली की ओर मुंह करके ही बोलता है। बड़े लोग सपना पाले होते हैं कि मौका मिल जाए तो एक बार लालकिले से बकवास कर लें। लेकिन मौका सबको नहीं मिलता है, जिनके पास है वही इसका लाभ उठाते हैं। सरकारी बकवास अक्सर अध्यादेश  की तरह होती है, और ज्यादातर मामलों में अंग्रेजी में की गई होती है। इसे फाड़ कर फेंकने में भूलसुधार कम, देश प्रेम का दावा अधिक होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि बकवास करने का कोई समय नहीं होता है। राजनीति में हर समय बकवास का समय होता है। अपने यहां की जनता भी जोरदार है, उसे रोटी चाहे ना मिले, पर बकवास रोज होना। जब तक बकवास न हो उसका पेट नहीं भरता है। टीवी पर तीन सौ चैनल हैं और टीआरपी बकवास को मिलती है। खैर।
        चुनाव से पहले बकवास का खास मौसम शुरू हो जाता है। प्रदेश  के नए-पुराने मुखिया को बकवास करने का विशेष अधिकार प्राप्त होता है। खादीधारी दोपाया प्राणी जितनी बकवास करता है वो पार्टी में उतना सक्रिय माना जाता है। बिना किसी की सुने बकवासने वाले को पार्टियां प्रायः अपना प्रवक्ता नियुक्त कर देती हैं। अब उसकी बकवास कुछ हद तक पार्टी की बकवास मानी जाती है। बकवास अगर पकड़ी जाए तो प्रवक्ता कह सकता है कि मीडिया ने तोड़मरोड़ कर पेश  किया है। बकवास की विशेषता ये है कि उससे कभी भी मुकरा जा सकता है। या फिर खिसियानी हंसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि ‘यह तो मजाक था’। आदतन बकासुर बुलडोजर की तरह होता है और कहीं भी बकवास करने लगता है, जहां अपेक्षित नहीं हो, या जहां मना हो वहां भी। जैसे किसी के अंतिम संस्कार में पाए गए हैं तो आप देखेंगे कि वहां भी उनके मुंह की जिप खुली है और किए जा रहे हैं। दो मिनिट के मौन की आवाज आती है तो वे ‘नानसेंस’ कहते हुए बड़ी मुश्किल  से आधा मिनिट विश्राम करते हैं और ‘ओमशांति ’ के पहले ही पुनः करने लगते हैं। 
            टीवी मीडिया बकवास को ‘ब्रेकिंग-न्यूज’ बनाने का उद्योग करता है। उस पर दिनभर की बकवास को शाम तक महाबकवास सिद्ध करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। बड़े बकवासियों के आसपास चमचे होते हैं, वे उन्हें बताते हैं कि उनकी बकवास ने ‘हिला-के रख दिया’ है। सुनते ही चौड़े हो गए ‘युवा बकवास सम्राट’ को लगता है कि उसकी बकवास बम है, और ‘हिला-के रख देना’ बड़ी उपलब्धि। ऐसे में वह क श्मीर  समस्या पर बकवास करते हुए चीन की आधी जमीन पर भी कब्जा कर लेता है। ताली मारते चमचे मान जाते हैं कि लोकल लेबल पर अंतराष्ट्रीय  बकवास कोई छोटी सफलता नहीं है। बकासुर इससे बहुत उत्साहित हो जाता है जिसका असर उसकी अगली बकवास में साफ झलकता है और बहुत जल्दी अमेरिका पर उसकी बकवास के बादल छा जाते हैं। ऐसे में उसका हाथ अपने आप मूंछों पर चला जाता है, जिनके नहीं होती वे साफ मैदान पर हाथ मार कर जश्न  मना लेते हैं। कुछ लोग सेल्फमेड श्रेणी के होते हैं, वे एक आदमी को पकड़ कर भी बकवास कर लेते हैं। पीड़ित लोग ऐसे गुणीजनों को देखते ही हेलमेट की ओट हो जाते हैं, वे जानते हैं कि उनकी नजर पड़ी और दुर्घटना घटी। हालाॅकि सब इतना नहीं डरते हैं, कुछ लोगों की रोजी होती है बकवास बटोरना, जैसे हमारी अम्माएं कभी गोबर बटोर कर उससे चूल्हा जलाती थीं। पापी पेट न हो तो वे भी बकवास से खबरें नहीं बनाएं। 
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