मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

ठेंक्यू सर !!

             
         असुरद्वीप के राजा दरबार लगाए, अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं से समस्याओं की जानकारी लेने में व्यस्त थे।
कानिया पेलवान, जिन्हें कई द्वीपों की पुलिस ढूंढ़ रही है, बोले- ‘‘राजन, द्वीप में लड़कियों की भारी कमी हे। अगर ये-ई हाल रिया तो आने वाले टेम-में ‘हमारे लोग’ मूं-काला कन्ने को तरस जाएंगे।  हमारा द्वीप पिछड़े राज के नाम से बदनाम हे इसलिए दूसरे द्वीप वाले हमारे लोगों को घुसने-नी देते हें। घुस-बी जाएं तो पीट-पीट-के भगा देते हें। इसलिए भोत जरूरी हे कि द्वीप को मूं-काला कन्ने के उद्योग में आत्मनिरभर बनाया जाए।’’
              राजा तुरंत निर्णय लेने के लिए ख्यात हैं, बोले- ‘‘ठीक है हम जनता में एक अभियान चलवा देते हैं- ‘लड़कियां उपलब्ध कराओ आंदोलन’। ठीक है ? ... आदेश  होगा कि दंपत्ती ज्यादा से ज्यादा लड़कियां पैदा करें और ईनाम पाएं।’’
राजा के सेक्रेटरी ने हस्तक्षेप किया- ‘‘नाम बदल दें हुजूर, जनता गलत अर्थ जल्दी समझ जाती है आजकल।’’
कानिया पेलवान उखड़ गए- ‘‘इस्में कोन-सा गलत अर्थ निकल-रा हे !? ... हद्द कर-रे हो आप्तो ! सरकार जब्बी कोई सई काम करती हे ये पेले फच्चर मारते हें .... ’’
‘‘कानियाजी, कानियाजी ...., आप नाराज ना हों। आप हमारे पुराने कार्यकर्ता हैं, सरकार आपकी ही है। हां भई सेक्रेटरी , ..... क्या दिक्कत है ... समझाओ इनको। ’’ राजा ने बीचबचाव किया।
‘‘मेरा सोचना है कि यदि नाम हो कि ‘लड़कियों की रक्षा करो’ तो जनता में सही संदेश  जाता।’’
‘‘मेरा ख्याल है कि बात ठीक है। क्या कहते हो कानियाजी ? ’’ राजा ने पूछा।
‘‘ये तो मर्वा देंगे ‘हमारे लोगों’ को। राजन अगर आप्की तरफ से नारा जाएगा कि ‘लड़कियों की रक्सा करो’ तो पुलिस कन्फ्यूज हो जाएगी। न खुद कुछ करेगी न हमारे लोगों को कन्ने देगी। जनता अलग आप्की जान खाएगी कि बलात्कारियों को फांसी दो। येसा हुआ तो फिर फायदा क्या हे ‘हमारे लोगों’ को ? सोच लो जनता की दाढ में एक बार रक्सा का खून लगा तो रुकेगी क्या ? मूं फाडे़गी कि चोरों से रक्सा करो, चेन खींचने वालों से रक्सा करो, हत्यारों से रक्सा करो, जुआघरों से रक्सा करो, दारू की दुकानों से रक्सा करो, सबसे रक्सा करो। अगर ‘हमारे लोगों’ की रक्सा नईं हुई तो आप्की रक्सा कोन करेगा? लड़ लेना चुनाव ‘हमारे लोगों’ के बिना, पतई पड़ जाएगा।’’ कानिया पेलवान पिन्ना गए।
‘‘अरे भई कानियाजी, नाराज मत हों। सेके्रेटरी महोदय ने अपनी बात रखी है। बात रखने की नौकरी है इनकी और मानना नहीं मानना सरकार का काम है। असुरद्वीप का लोकतंत्र साफ है- बाई द असुर, ऑफ  द असुर, फॉर  द असुर।’’ राजा मुस्कराए।
‘‘इंगलिस मत झाड़ो राजन, फायनल बताओ क्या नाम होएगा -लड़कियों की रक्सा करो या लड़कियां उपलब्ध करो ? ’’
‘‘नाम में कुछ नहीं रखा है कानियाजी, आप जानते हैं कि बेटियों की रक्षा करो कह कर भी हम कौन सी रक्षा कर पाते हैं। आप लोग कर्मठ हैं, अनुभवी हैं, सरकार के हाथ मजबूत करते रहे हैं तो असुरद्वीप की सरकार का भी कर्तव्य है कि आपके हाथ भी मजबूत करे।’’
सुन कर कानिया खुश  हुआ और मुस्काते हुए बोला- ‘‘ठेंक्यू सर’’।
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