रविवार, 29 अगस्त 2021

सब चंगा है जी !

 


                       


पचहत्तर वर्ष की आज़ादी ने भारत के लोगों को बोलना सिखा दिया था . जब तक लाल झंडे वाले सक्रिय थे लोग खूब चीख चिल्ला भी लेते थे . किसी ज़माने में महंगाई बढ़ते ही सरकार की नींद हराम हो जाया करती थी . लोग सडकों पर उतर आते थे और अख़बार भी दूसरे दिन हाय हाय करते दिखाई पड़ते थे .  यह सब स्कवाभाविक था, कहा जाता था लोगों को खाना कपड़ा नहीं मिलेगा तो चिल्लायेंगे ही . कामरेड उनकी पहली आवाज़ थे, लेकिन अब वक्त बदल गया है . कामरेड कचरे के ढेर में सूई की तरह खो गए हैं . अब सबके पास शांति और खुशहाली की पासबुक  है .  खाना कपड़ा सभी के पास है . लोग खुश हैं, कमाई खूब है, जो लोग साठ रुपये लीटर पेट्रोल नहीं भरवा पाते थे वे एक सौ दस का डलवा रहे हैं और 'चूं' भी नहीं कर रहे हैं ! सोचते हैं दफ्तर से घर और घर से दफ्तर ही तो जाना है इसमे 'चूं' क्या करना . एक किस्म की तसल्ली है दिल में . देश छोड़ कर तो जाना नहीं है . बन्दूक की गोली से मरने की अपेक्षा दवा, इंजेक्शन या आक्सीजन की कमी से मर जाना काफी हद तक गरिमापूर्ण है . उसके बाद अगर पता यह चले कि ये मौत मौत नहीं मुक्ति है तो दिल में सुकून और शीतलता ऐसी भर जाती है मानों शरीर डीप फ्रीजर हो . जो भी गुस्सा, असंतोष, आक्रोश अन्दर पैदा होता है वो तुरंत आइस क्यूब हो जाता है . शरीर से खून जलने या खौलने का सिस्टम तो जैसे ख़त्म ही हो गया है . लगता है जनता के जीन्स ही बदल गए हैं ! और कितना विकास चाहिए जनता को एक वोट के बदले !?

                     तमाम बाबाजी लोग तनाव दूर करने के राष्ट्रीय कार्यक्रम में लगे पड़े हैं लेकिन उन्हें कोई तनावग्रस्त मिल ही नहीं रहा है . सरकार आटा और सरकारी सेठ डाटा भर भर के दे रहे हैं . युवा बेरोजगार भले हों पर हाथ किसी का खाली नहीं है . सबको मुफ्त मिल जाये खाने को तो क्यों जाये कमाने को ! मेहनत से डरने वाली कौम सपनों के बल पर ठाठ से जिन्दा रह सकती है . उस पर मैसेजबाजी से दंगों का डर अगर दिमाग में भर दिया जाये तो इतिहास में यह राजनितिक कौशल के रूप में दर्ज हो सकता है . बड़ा बदलाव है समाज में . लोग देखना चाहते हैं लेकिन नहीं देख रहे हैं . लोग सोचना चाहते हैं लेकिन नहीं सोच रहे हैं . लोग बोलना चाहते हैं लेकिन नहीं बोल रहे हैं . शासन करने के लिए इससे बेहतर जनता और कहाँ मिलेगी ! चाशनी नहीं हैं इसलिए विरोधी दल आपस में जुड़ नहीं पा रहा है . जिन पर लोगों सम्हालने की जिम्मेदारी हैं वे खुद लड़खड़ा रहे हैं . एक दिन ऐसा आएगा जब सरकार और टीवी-रेडियो के आलावा कोई कुछ नहीं बोलेगा . देश मूक फिल्मों की तरह दिखाई देगा . खाने और पाखाने के आलावा किसी के पास कोई काम नहीं होगा . सुना है स्वर्ग में भी यही होता है . और मजे की बात है कि ये स्वर्ग लोगों को बिना मरे मिलेगा . तुस्सी जीउंदे रहो जी, मौज करो मौज . 

                   कुछ सिरफिरे कहते हैं कि तालिबानी हिंसा के खिलाफ तो बोल दो, अपना  विरोध तो  दर्ज करो, लेकिन बुद्धिजीवी चुप ! कौन बोले भाई !? यहाँ लोग अपने जख्म चुपचाप चाट रहे हैं वो दूसरों के लिए हाय हाय कैसे करेंगे ! जो कोई बोल भी रहे हैं तो गूंगों की साईन लेंग्वेज में, जिसे वे खुद समझ रहे हैं या फिर दूसरा गूंगा . खुल कर कोई नहीं बोल रहा . सफाई देने वाले कह रहे हैं कि मुसलमानों को बोलना चाहिए क्योंकि जो जुल्म का शिकार हो रहे हैं वो भी मुसलमान हैं ! दुनिया भर की मुस्लिम औरतों को बोलना चाहिए, क्योंकि तालिबान सबसे ज्यादा अत्याचार अफगानी औरतों पर ही कर रहे हैं .  तो यहाँ की औरतें बोल सकती हैं . मौका आने पर जो भीड़ पर प्यार से पत्थर चला सकती हैं, सरकार या पुलिस से छका सकती हैं तो इस समय उनकी चुप्पी क्यों आखिर !? ये  चुप्पी तालिबानों के पक्ष में जा रही है.  .....  जा रही है तो जाने दो . हमकौम दुश्मन थोड़ी होते हैं  !

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बुधवार, 25 अगस्त 2021

आदमी हैं या वायरस कोई


 



इस वक्त सारी दुनिया अफगानिस्तान में चल रही लहरें गिन रही है . हम भी दुनिया से बाहर नहीं हैं और गिन रहे हैं . पहली लहर में वे कोरोना की तरह चुपके से नहीं, चीखते चिल्लाते आये और मुल्क में घुस गए .  एक एक कर राज्यों को चपेट में ले लिया . देखते ही देखते लोग घरों में कैद हो गए जैसे कि दुनिया भर में लाकडाउन के चलते लोग घरों में बंद थे . किस लेब में तैयार होते हैं वायरस और किस तरह एक स्वस्थ मुल्क को संक्रमित कर देते हैं इस पर चर्चा चल रही है . वायरस से जिन्हें लड़ना था वे अपनी जान बचा कर भाग गए . अब किसीको सूझ नहीं रहा है कि इस वायरस को कैसे निष्क्रिय किया जाये . मौंतें लगातार हो रही हैं . कौन कहाँ मर रहा है पता नहीं . परिजनों को लाश भी देखने को नहीं मिल रही है . मुल्क से भागने वालों को रास्ते नहीं मिल रहे हैं, जैसे महानगरों से हजारों लोग पैदल भागे थे अपने गाँव की तरफ और उन्हें बस, ट्रेन या गधा-घोड़ा कुछ भी नहीं मिला था . वक्त तारीख बदल कर दोहरा रहा है अपने को . कल तक जो लोग भरोसे में थे कि सरकार लड़ेगी, अमेरिका पूरी ताकत से वेक्सिन लिए दौड़ पड़ेगा और दुनिया वाले भी हैं ही . लेकिन एक सपना था, टूट गया . अब मैदान में जहाँ जहाँ भी देखो कन्धों पर बन्दूक लिए वायरस ही है . आम नागरिक मर रहे हैं और किसी को पता भी नहीं चल रहा है . अनपढ़ जाहिल वायरस मारते ज्यादा हैं और गिनते कम हैं . कम गिनने से मुल्क के दस्तावेजों पर दाग नहीं लगते हैं . कुछ देश बीमारी और वायरस के हिमायती बन कर उसके बचाव में कमर कसे खड़े हैं . वायरस से बचने के लिए वे वायरस से दोस्ती करना पसंद कर रहे हैं . उन्हें नहीं मालूम आस्तीन के सांप सबसे पहले किसका शिकार करते हैं .

दूसरी लहर में वायरस बदले हुए यानी नए वेरिएंट के साथ आया है . अब उसके कई मुंह हैं, और हर कुछ समय बाद वह अपने इरादे, अपने वादे, अपनी मुद्रा, यानी सब कुछ बदल लेता है . इस वेरिएंट ने   प्रेस कांफ्रेंस करके अपने को मुल्क का हिमायती और उदार दिल बताने की कोशिश की है . उसने टीवी पर खुले चेहरे वाली महिला से बातचीत करके दुनिया को बताने की कोशिश की कि औरतों से उन्हें कोई दुश्मनी  नहीं है, वे उन्हें कुछ पाबंदियों के साथ जीने देंगे . वायरस को शराफत के हिजाब में देख कर कुछ देर के लिए दुनिया को लगा कि दूसरी लहर उतनी खतरनाक नहीं है . लेकिन अगले ही दिन टीवी पर देखा कि एक मरियल सी औरत को हट्ठा कट्ठा आदमी कोड़ों से पीट रहा है . समाचार वाचक ने बताया की औरत आधे कोड़े खाने के बाद ही बेहोश हो गई और थोड़ी देर बाद मर गई . बचे हुए आधे कोड़ों के लिए अब उसे दूसरी औरत जरुरी है वरना न्याय नहीं हो पायेगा . इधर टीवी देखने वाली दुनिया भर की औरतें ‘इश इश’ कर रही हैं . वे कोड़ों की मार को महसूस कर रहीं हैं और जंगल राज के खौफ को भी . भगवान को शुक्रिया पर शुक्रिया भेजा जा रहा है कि हमारे देश में यह सब नहीं है . भले ही दाल, तेल, आटा महंगा हो गया हो, नौकरी चली गयी हो या धंधा बर्बाद हो गया हो पर हम सुखी हैं . अगर यहाँ भी कोड़े ले कर संसकृति रक्षक ब्लाउज की बैक नापने लगें और कोड़े फटकारने लगें तो जीना मुश्किल हो जायेगा . माना कि अफगानिस्तान दूर है, लेकिन खरबूजों का भरोसा नहीं , खरबूजों को देख कर कब रंग बदलने लगें .

कोविड  को तो एक न एक दिन काबू में कर लिया जायेगा लेकिन इन वायरस का क्या जो रोज खून से कुल्ला करते हैं !! दुनिया में हैं किसी के पास इनकी वेक्सिन ?!

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शनिवार, 21 अगस्त 2021

चिड़ियों से खतरा


  

           पूरे मुल्क में मशीनगनें एक एक लड़ाके को लटकाए यहाँ से वहां भटक रही हैं . मशीनगनें जानती हैं  कि उसके कन्धों पर एक ऐसा शख्स सवार है जो चिड़ियों से डरता है . दरअसल उन्हें पता है चिड़ियों के हौसले और उड़ान . दुनिया भर में वे जमीन से आसमान तक नाप रही हैं . उनसे आँख मिलाते खौफ होता है और उससे ज्यादा शरम आती है . हाथ में अगर मशीनगन न हो तो सर उनके कदमों में रखना पड़ सकता है . इसलिए जरुरी है कि चिड़ियाएँ परदे में रहें या घरों में कैद, पिंजरों में बंद रखी जाएँ या बेड़ियों में जकड़ी जाएँ . चिड़ियों की न चोंच होनी चाहिए न ही पंख . चिड़ियों के लिए मुल्क पोल्ट्री फॉर्म से ज्यादा कुछ नहीं है . अंडे दें, चूजे निकालें यही उनका फर्ज है . अगर वे शिक्षित हुईं तो पंख फैला सकती हैं, उड़ सकती हैं, अपने अधिकारों को पहचान सकती हैं, उसके लिए लड़ भी सकती हैं . शिक्षा और समझ के मैदान में लड़ाके उनका मुकाबला नहीं कर सकते हैं .

                लड़ाकों की अपनी तरह की कोशिश ये रहती है कि किसी तरह बराबरी बनी रहे . जाहिलों के लिए खातूनों का भी जाहिल होना जरुरी है . इसी को प्रापर मैच कहा जाता है . उन्हें अपनी पसंद के मर्द से प्रेम नहीं करने दिया जायेगा . वे निजाम द्वरा तय किये आदमी से ही मोहब्बत करेंगी . किसी औरत को सार्वजानिक रूप से कोड़े खाने का शौक हो तो वे किसी और मर्द से ताल्लुख रखेंगी और अपनी ख्वाहिश पूरी करेंगी . समाज में बदचलनी नहीं फैले इसलिए उन्हें संगसार भी किया जा सकता है ताकि वे एक नेक काम में मिसाल बन सकें . अगर दुनिया भर में औरत को इन्सान समझा जाता है तो इसके लिए लड़ाके जिम्मेदार नहीं हैं . दूसरों को चाहिए कि हमसे सीखें और अपनी गलतियों को सुधारें . औरतों का स्कूल जाना सबसे पहले बंद किया जायेगा . एक मलाला सर दर्द बनी अगर पूरा मुल्क मलालाओं से भर गया तो !! यह सोच कर ही रूह कांप जाती है . दुनिया में जहाँ जहाँ भी औरतों को बराबरी का दर्जा देने की बेवकूफी की गयी है वहां मर्दों का हाल देखिये क्या है !! दाढ़ी तक नहीं रख पाते हैं ! तो क्या इज्जत है उनकी ! वो तो अच्छा है कि पुरखों ने औरतों को गुलाम बनाने की शानदार रवायत हमें बख्शी है . दीन ओ मजहब के साथ और सपोर्ट से बिरादरान के इरादे मजबूत रहते हैं . अगर मालिक ने ही औरतों को बराबरी का हक़ दिया होता तो उनके भी दाढ़ी होती . जिन्हें पैदा ही गैर बराबरी के साथ किया है तो उसे बनाये रखना कौन सा गुनाह है ! अब वे कहीं नौकरी नहीं करेंगी, घर से बहार निकलते वक्त किसी मर्द के साथ होंगीं, अकेले नहीं घूमेंगी फिरेंगी . लोग पूछते हैं कि लड़ाकों के रहते औरतों को किसका डर ?! तो जान लो कि लड़ाकों में भी भूखे प्यासे होते हैं . इनसे बचने का एक ही तरीका है कानून को मानों .

             लड़ाकों को जंगल में रहना पसंद है . किसी भी तरह की सभ्यता उनकी दुश्मन है . मालिक ने पूरी धरती को जंगल बनाया था . लोगों ने साइंस के जरिये तरक्की की, जो कि गलत है . पढ़े लिखे, समझदार और शांतिप्रिय लोग ही नहीं उनकी मूर्तियाँ भी लड़ाकों को बर्दाश्त नहीं हैं . मूर्तियाँ तोड़ी जाएँगी, लोग मारे जायेंगे और जंगल का रुतबा फिर कायम किया जायेगा . जंग, जंगल और जमीन ही लड़ाकों का सपना है . वे पूछना चाहते हैं कि दुनिया भर में लोग एक दूसरे से इंसानी रिश्ता रखते हैं तो मशीनगन और गोला बारूद किसलिए  बनाया है !! इनका क्या उपयोग हैं ? जो इस वक्त शांति और अमन की रट  लगाये हैं वो बताएं कि हमें हथियार किसने दिए ! तुमने अपना बिजनेस किया, हम अपना कर रहे हैं . जब तक जंगल में एक एक चिड़िया को नकाब नहीं पहना देते हमारा काम जरी रहेगा . और हाँ, एक अपील है दोस्त मुल्कों से, लड़ाकों के लिए खूब सारे हथियार और आर्थिक मदद तुरंत मुहय्या करवाएं, दवाएं और वेक्सिन वगैरह भी .

 

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बुधवार, 18 अगस्त 2021

सोते रहिये, कोई खतरा नहीं है !


 

खतरा जागने वाले को महसूस होता है . जो सोता रहता है वह भले ही मारा जाये पर उसके लिए न खतरा न डर किसीका . कहते हैं जो डर गया वो मर गया . जागने वाला डर के साथ मरता है, सोने वाला मजे में बिना डर के मर जाता है . मरते दोनों हैं पर फायदे में सोने वाला हुआ . कबीर ने कहा है कि “दुखिया दास कबीर, जागे और रोवे ; सुखिया सब संसार, खावे और सोवे”. अफगानिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है उससे हमें जरा भी चिंतित होने की जरुरत नहीं है . हमें क्या ! मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में . हमारे देश में कोई तालिबान थोड़ी है, न ही कोई तालिबानी हरकत . यहाँ सब प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं . एक दूसरे के धर्मों का आदर जी जान से करते हैं . न कोई किसी को धमकाता है डराता है . मौके बेमौके कुछ हो जाये तो एक दूसरे के सम्मान में जरा सा पत्थर वत्थर भले ही फैंक लें, पांच पचास घायल भी हो जाएँ लेकिन उसके बाद तुरंत स्थिति सामान्य होने में वक्त नहीं लगता है . सहिष्णुता और समझदारी से लबालब है देश की जनता . दुनिया हमें गाँधीवादी यूं ही नहीं कहती है . देश भर में एमजी रोड क्यों बनाये हैं बताइए ! शांति मार्च निकालने के लिए . हजारों की संख्या में चौराहे चौराहे पर गाँधी जी लाठी ले कर खड़े हैं . असली चौकीदार गाँधी जी हैं . चोर चौकीदार से डरते हैं इसलिए समय समय पर उनके गले में माला डाल कर उनकी गुडबुक में बने रहने की कोशिश करते रहते हैं .

यह ठीक है कि हम विश्व शांति के समर्थक रहे हैं . आज भी हैं, लेकिन देखिये अमेरिका को ! फटे में में पांव घुसाने का नतीजा क्या मिला ! माया मिली न राम, मुफ्त में हो गए बदनाम . कोई कबीलायी मानसिकता का है तो है, हमारे यहाँ तो कोई नहीं है . वो हजार साल पीछे ले जाना चाहते हैं मुल्क को, लेकिन हमारे यहाँ तो सब प्रगतिशील हैं . तालिबान जहाँ हैं वहां अपने लोगों को मार रहे हैं तो समझिये कि उनका घरेलू मामला है . वो आपस में भाई भाई हैं, उनकी वे जानें . राम की चिड़िया राम का खेत; खा ले चिड़िया भर भर पेट . वहां की औरतें रो रो कर बुरखा पहन रही हैं . वे जानती हैं कि जिन्हें देख लेना है वो बावजूद बुरखे के देख लेंगे . 15 से 45 वर्ष की औरतों को आगे के सफ़र के लिए सूचि में दर्ज कर लिया गया है . यह बहुत बुरी बात है, लेकिन हमें क्या ! हमारे यहाँ ऐसा कुछ नहीं है . यहाँ महिलाएं पसंद का कुछ तो भी पहनने के लिए स्वतंत्र हैं, कहीं भी बेफिक्र हो कर अकेले घूमफिर सकती हैं कोई दिक्कत नहीं है . लुच्चे लफंगे छेड़छाड़ तक नहीं करते हैं . लड़की चाहे गरीब ही क्यों न हो, उसकी मज़बूरी का कोई फायदा नहीं उठता है . रहा सवाल बलात्कारों का तो वो एक अलग बात है . एक सौ पैंतीस करोड़ की जनसँख्या में प्रतिदिन मात्र एक सौ बलात्कार होते हैं ! आप जरा सोचिये कितने कम हैं . इससे न देश की प्रतिष्ठा को धक्का लगता है और न ही व्यवस्था को लेकर चिंता करने की जरुरत है . कल का हमें नहीं पता लेकिन आज लड़कियों को कोई घर से जबरदस्ती उठा कर नहीं ले जाता है . और क्या चाहिए अच्छी नींद के लिए ! जब तक जागने की जरुरत नहीं हो, सोते रहिये . पानी नाक तक नहीं आ जाए तब तक कोई खतरा नहीं .

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शनिवार, 14 अगस्त 2021

एक अनुभव है आजादी

 




                            देखिये एक बात समझ लीजिये, आजादी व्यवहार में लाने की नहीं अनुभव करने की चीज है . ये डेवलपमेन्ट का एक नया कांसेप्ट है . इसलिए कुछ और अनुभव करने की न तो आपको जरुरत है और न ही इजात . आप आजाद हैं सिर्फ इस बात को अनुभव कीजिये . अनुभव करने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि मुँह बंद रखिये, बोलिए मत . बोले कि अनुभव ख़त्म . विक्रम-बेताल का पता है ना ? राजा ने मुँह खोला और अनुभव का बेताल उड़ा . जो बोलेगा वो अनुभव नहीं करेगा और जो अनुभव नहीं करेगा उसकी आजादी ख़त्म . मन एकदम शांत होना चाहिए . कोई कितना भी महंगाई को ले कर उकसाए, पेट्रोल के भाव बतलाये, कोरोना वाले मौत के आंकड़े गिनवाये आप विचलित नहीं होंगे, शांति से बैठेंगे . जिस समय आजादी का आनंद लेने की प्रक्रिया चल रही हो उस समय किसी भी प्रकार का विचलन देशद्रोह माना  जायेगा . सरकार चौकीदार है, जनता के लिए अनुभव की कठिन तपस्या में अगर कोई बाधक बनेगा तो उसे उठवा कर खाड़ी में फैंक दिया जायेगा . कुछ गुमराह नौजवान ‘आजादी-आजादी’ का नारा लगा रहे थे . सुना होगा आपने, हमारे टीवी वाले सहयोगियों ने इसका खूब प्रचार किया था . उन लोगों को गलतफहमी के आलावा कुछ नहीं मिला . उनके पास आजादी हैं पर वे अनुभव नहीं करते हैं .  ‘सरकार जनता की सेवक है’ यह सुनने में कितना अच्छा लगता है . अगर महसूस करेंगे तो और अच्छा लगेगा . आपको राजा वाली फीलिंग आ जाएगी . सरकार जिसकी सेवक हो उसे तो समझो स्वर्ग मिल गया, आप बैठिये और इसको अनुभव कीजिये .

                        लोग रोजगार को लेकर बकवास करते रहते हैं और जनता को कुछ भी अच्छा अनुभव नहीं करने देते हैं . अरे भाई, आप वोट देते हो और सरकार बनवाते हो . मालिक हो आप देश के, आपको न खाने की चिंता होनी चाहिए न ही दावा-दारू की . सबको मुफ्त राशन मिलेगा, दावा-दारू मिलेगी, घर में टीवी है ही, रेडियो भी होगा . मजे में खाइए और न्यूज चेनल देखिये, रेडियो में मन का गाना सुनिए . सोचिये जरा, अनुभव कीजिये, कैसा लग रहा है आपको !? मजा आ रहा है ना ? अनुभव कीजिये इस मजे को . दोष देने से, कूढने से, कोसने से सरकार का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है . फिर काहे के लिए मगजमारी ! हास्य क्लब देखे होंगे,  इसकी सदस्यता ले लो फटाफट . वे सारे लोग बिना किसी बात के खूब हँसते है ! कई बार तो ठहाके लगा लगा कर आकाश गूंजा देते हैं ! तो क्या ये समझदार लोग पागल हैं ? ये अन्दर से चाहे कितने भी परेशान और दुखी हों हँस हँस कर अपनी सोच बदल लेते हैं . आप भी हँसा करो, समाचार पढ़ो तो हँसो, समाचार देखो तो हँसो, पेट्रोल भरवाओ तो हँसो, दाल पतली हो तो हँसो, बिना डाक्टर-दावा या आक्सीजन के मर जाओ तो हँसो . फिल़ासफी की मदद लो, सोचो क्या ले कर आये थे और क्या ले कर जाओगे ! ये दुनिया एक सराय है, आपको हमको सबको एक न एक दिन जाना पड़ेगा . कोई अमर नहीं है . फिर जबरदस्ती की हाय तौबा क्यों ! सोच कर देखो कि आमिर को कितनी महँगी मौत मरना पड़ता है ! लेकिन गरीब आदमी मजे में और सस्ते में मर लेता है . कितनी अच्छी बात है ये ! अगर सरकार गरीबों की शुभचिंतक नहीं होती और अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रही होती तो लाल झंडे वाले क्या मजे में बैठे कहीं तीन पत्ती खेल पाते ! हाँ, कुछ लोगों को शिकायत हो सकती है कि अपराध बढ़ गए हैं . दरअसल चोरी करने वाले हमारे भाई लूट-बिजनेस में आ गए हैं . लेकिन किसीको इन छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान होने की जरुरत नहीं है . आपको घर में सुरक्षित रहने की आजादी है ही . अपने सुना होगा कि संतोषी सदा सुखी . जनता को हमेशा संतुष्ट रहना होगा . इसके लिए कड़े कानून बनाये जायेंगे . जनता का सुख संतोष सरकार की प्राथमिकता है . तो अपने को सख्ती से संतुष्ट अनुभव कीजिये, नमस्कार .

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