बुधवार, 25 अगस्त 2021

आदमी हैं या वायरस कोई


 



इस वक्त सारी दुनिया अफगानिस्तान में चल रही लहरें गिन रही है . हम भी दुनिया से बाहर नहीं हैं और गिन रहे हैं . पहली लहर में वे कोरोना की तरह चुपके से नहीं, चीखते चिल्लाते आये और मुल्क में घुस गए .  एक एक कर राज्यों को चपेट में ले लिया . देखते ही देखते लोग घरों में कैद हो गए जैसे कि दुनिया भर में लाकडाउन के चलते लोग घरों में बंद थे . किस लेब में तैयार होते हैं वायरस और किस तरह एक स्वस्थ मुल्क को संक्रमित कर देते हैं इस पर चर्चा चल रही है . वायरस से जिन्हें लड़ना था वे अपनी जान बचा कर भाग गए . अब किसीको सूझ नहीं रहा है कि इस वायरस को कैसे निष्क्रिय किया जाये . मौंतें लगातार हो रही हैं . कौन कहाँ मर रहा है पता नहीं . परिजनों को लाश भी देखने को नहीं मिल रही है . मुल्क से भागने वालों को रास्ते नहीं मिल रहे हैं, जैसे महानगरों से हजारों लोग पैदल भागे थे अपने गाँव की तरफ और उन्हें बस, ट्रेन या गधा-घोड़ा कुछ भी नहीं मिला था . वक्त तारीख बदल कर दोहरा रहा है अपने को . कल तक जो लोग भरोसे में थे कि सरकार लड़ेगी, अमेरिका पूरी ताकत से वेक्सिन लिए दौड़ पड़ेगा और दुनिया वाले भी हैं ही . लेकिन एक सपना था, टूट गया . अब मैदान में जहाँ जहाँ भी देखो कन्धों पर बन्दूक लिए वायरस ही है . आम नागरिक मर रहे हैं और किसी को पता भी नहीं चल रहा है . अनपढ़ जाहिल वायरस मारते ज्यादा हैं और गिनते कम हैं . कम गिनने से मुल्क के दस्तावेजों पर दाग नहीं लगते हैं . कुछ देश बीमारी और वायरस के हिमायती बन कर उसके बचाव में कमर कसे खड़े हैं . वायरस से बचने के लिए वे वायरस से दोस्ती करना पसंद कर रहे हैं . उन्हें नहीं मालूम आस्तीन के सांप सबसे पहले किसका शिकार करते हैं .

दूसरी लहर में वायरस बदले हुए यानी नए वेरिएंट के साथ आया है . अब उसके कई मुंह हैं, और हर कुछ समय बाद वह अपने इरादे, अपने वादे, अपनी मुद्रा, यानी सब कुछ बदल लेता है . इस वेरिएंट ने   प्रेस कांफ्रेंस करके अपने को मुल्क का हिमायती और उदार दिल बताने की कोशिश की है . उसने टीवी पर खुले चेहरे वाली महिला से बातचीत करके दुनिया को बताने की कोशिश की कि औरतों से उन्हें कोई दुश्मनी  नहीं है, वे उन्हें कुछ पाबंदियों के साथ जीने देंगे . वायरस को शराफत के हिजाब में देख कर कुछ देर के लिए दुनिया को लगा कि दूसरी लहर उतनी खतरनाक नहीं है . लेकिन अगले ही दिन टीवी पर देखा कि एक मरियल सी औरत को हट्ठा कट्ठा आदमी कोड़ों से पीट रहा है . समाचार वाचक ने बताया की औरत आधे कोड़े खाने के बाद ही बेहोश हो गई और थोड़ी देर बाद मर गई . बचे हुए आधे कोड़ों के लिए अब उसे दूसरी औरत जरुरी है वरना न्याय नहीं हो पायेगा . इधर टीवी देखने वाली दुनिया भर की औरतें ‘इश इश’ कर रही हैं . वे कोड़ों की मार को महसूस कर रहीं हैं और जंगल राज के खौफ को भी . भगवान को शुक्रिया पर शुक्रिया भेजा जा रहा है कि हमारे देश में यह सब नहीं है . भले ही दाल, तेल, आटा महंगा हो गया हो, नौकरी चली गयी हो या धंधा बर्बाद हो गया हो पर हम सुखी हैं . अगर यहाँ भी कोड़े ले कर संसकृति रक्षक ब्लाउज की बैक नापने लगें और कोड़े फटकारने लगें तो जीना मुश्किल हो जायेगा . माना कि अफगानिस्तान दूर है, लेकिन खरबूजों का भरोसा नहीं , खरबूजों को देख कर कब रंग बदलने लगें .

कोविड  को तो एक न एक दिन काबू में कर लिया जायेगा लेकिन इन वायरस का क्या जो रोज खून से कुल्ला करते हैं !! दुनिया में हैं किसी के पास इनकी वेक्सिन ?!

-----

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें