रविवार, 17 अक्तूबर 2021

ऑफ़लाइन हिदायतें

 

             


                             


“कविता कैसी भी हो चलेगी, लेकिन कुरता साफ, स्तरी किया हुआ होना चाहिए . पिछली बार आपके कुरते पर पान की पीक गिरी दिख रही थी . दाढ़ी रखते हैं ! अच्छी बात हो सकती है, लोग कहते हैं कि कवियों को रखना चाहिए, लेकिन ठीक से सेट करवा लीजियेगा . वो क्या है स्क्रीन पर तो आदमी को जेंटल-मेन लगना चाहिए . परफ्यूम या डियो लगाने की कोई जरुरत नहीं है . नीचे आपने पायजामा पहना हो या पतलून, या फिर लुंगी या कुछ भी नहीं, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा . लेकिन ध्यान रहे कार्यक्रम ऑन लाइन होगा और आपको अपने चेहरे के आलावा कुछ भी दिखाने का प्रयास नहीं करना है . पीछे बैगराउंड आप अपनी पसंद का रख सकते हैं, किताबों की अलमारी हो तो आपके लिए अच्छा है . आपके पास डॉगी हो तो उसे पास में नहीं बैठाएं . पिछली दफा एक साहित्यकार लगातार अपने डॉगी से नोजी लड़ाते रहे और लोग समझ नहीं पाए कि कौन किसका मुंह चाट रहा है . बार बार उठता ये सवाल नेट का कीमती समय चाट गया . ऑनलाइन कार्यक्रम में जुड़े सारे लोग भी कवि होते हैं इसलिए दाद नहीं मिलने की जोखिम ज्यादा होती है . बावजूद इसके कठ्ठा-जी करके आपको मुस्कराते रहना है जैसा कि हमारी टीवी वाली एन्कर करती हैं . दुनिया लेन-देन  पर चलती है . आपको दाद तभी मिलेगी जब आप दूसरे को देंगे . अगर आपको किसी की कविता पसंद नहीं आये तो भी थोड़ी बहुत  दाद अवश्य दीजिये . जेब से क्या जाता है, इसे ऑनलाइन शिष्टाचार मानिये . जैसे कि लोग अपने मेहमान को दोबारा नहीं चाहते हैं लेकिन उसे ‘और आइयेगा’ अवश्य कहते हैं .

पिछली दफा आपने एक मंच पर कवियत्री देवी की साड़ी की तारीफ में दो गुलूगुलू गजलें ठोक दी थीं . साड़ी आपको पसंद आई, गजलें देवीजी को पसंद आईं लेकिन ये दोनों बाते कवियत्री के पतिदेव को पसंद नहीं आयीं . पति की इस नापसंदगी पर कुपित हो कर देवी ने अब तक पचास से ज्यादा कवितायें लिख मारी हैं . सिलसिला अभी थमा नहीं है . डर है कि कवियत्री का यह आन्दोलन किसान आन्दोलन की तरह लम्बा खिंच सकता है . पतिदेव डाक्टरों के संपर्क में हैं और सुना है किसी कारगर वेक्सिन की तलाश में लगे हुए हैं . अगर वे कहीं सफल हो गए तो लोग डीपीटी के साथ इस वेक्सिन को भी लगवाने लगेंगे और हो सकता है कि भविष्य में मंचों को मंजी हुई कवियत्रियाँ  मिलना ही बंद हो जाएँ . सो प्लीज ऑनलाइन कवियत्रियों को देख कर आगे से ऐसा खतरनाक कुछ न करें . इसे साहित्य में आपका बड़ा योगदान माना जायेगा .

आपको पूरे समय याद रखना है कि कार्यक्रम लाइव जाता है इसलिए चलते कार्यक्रम में यथासंभव पानी के आलावा कुछ न पियें . चाय-कॉफ़ी पीनी ही पड़े तो पूरा टी-सेट, क्रोकरी, बिस्किट-भजिया वगैरह कतई नहीं दिखाएँ . लोगों को लगता है कि हम आपको अच्छा पारिश्रमिक देते है और बाकी को सूखा निचोड़ लेते हैं . लेकिन सच्चाई का खुलासा करवाना आप भी नहीं चाहोगे . बंधी मुट्ठी ग्यारह सौ की और खुल गई तो ग्यारह की . पिछली बार आपने गले में सोने की दो तीन चेन और हाथों में कई लाल पीली अंगूठियाँ पहन रखीं थीं . यह सच है कि आजकल बच्चों के रिश्ते ऑनलाइन तलाशे जाते हैं लेकिन साहित्यिक कार्यक्रम को इसका जरिया बनाना ठीक नहीं है . इन्कमटेक्स के बहुत से अधिकारी भी इनदिनों कविता लिख रहे हैं और ऑनलाइन ताकझांक करते हैं, इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरुरत है . .... माना कि वो सारी ज्यूलरी नकली थी . लेकिन ये बात आप जानते हैं, हो सकता है ऑनलाइन संयोजक और संचालक भी जानते हैं कि नकली है ... लेकिन दर्शकों को नहीं पता होता है कि वो नकली हैं . इसी सिचुएशन में डॉन निकल भागा था और बारह मुल्कों की पुलिस हाथ मलती रह गयी थी . और एक अंतिम बात, कविताएँ अपनी ही सुनाएँ चाहे कितनी दोयम दर्जा हों . विदेशी भाषा से अनुदित कविताओं के कच्चे माल से बनी या कॉपी-पेस्ट कविताएँ फ़ौरन पकड़ ली जाती हैं . .... तो ठीक है कविराज, कल मिलते हैं .

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सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

बड़े आदमी, बड़ा काम



                         जो बड़े बड़े काम करता है वो बड़ा आदमी होता है . बड़े कामों की दुश्मनी प्रायः कानून से होती है . इसलिए बड़े आदमी को पहले कानून की नब्ज पकड़ना पड़ती है . नब्ज कानून के हकीमों के हाथ में होती है . कानून के हकीम वरिष्ठ, अनुभवी और प्रसिद्ध लोग होते हैं . कानून के बाज़ार में उन्हें कानून का जादूगर भी कहा जाता है . कानून का बाज़ार तफरी का स्थान नहीं है कि “दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ , बाज़ार से गुजरा हूँ खरीदार नहीं हूँ “ कह कर निकल जाये कोई .  सुना है कि इस बाज़ार में जो एक बार घुसा वो तभी चलन से बाहर होता है जब नोट की तरह जगह जगह से कटा-फटा और चिपकाया गया हो . आम आदमी के लिए जो कानून बर्बादी का कारण बनता है वही बड़े आदमी के लिए ‘जीपीएस’ का काम करता है . पीसी सरकार स्टेज से हाथी गायब कर देता था, बड़ा आदमी सरकार से बड़ा होता है और रेलें, हवाई जहाज वगैरह तक गायब कर देता है . बड़ा आदमी हार नहीं मानता है और लगा रहता है . सफलता उसे ही मिलती है जो लगा रहे . जादू लगातार रियाज यानी प्रेक्टिस मांगता है . कहते हैं बेवकूफों की कमी नहीं ज़माने में, एक ढूँढो हजार मिलते हैं . ये पंक्तियाँ जादू की जान हैं . कुछ लोग खुद पॉलिटिक्स नहीं करते, वो लोगों को पाल लेते हैं . पालना ज्यादा सुविधाजनक होता है . जब बोटियों से गोटियाँ चलती हों तो खुद मगजमारी करने की क्या जरुरत है ! आप कह सकते हैं कि असल बड़े आदमी यही होते हैं . 

                 कभी कभी बड़े आदमी को गिरफ़्तारी का सामना भी करना पड़ता है . थोड़ी बहुत काली भेड़ें हर सिस्टम में होती हैं ! होना भी चाहिए, इससे कानून, सिस्टम और सरकार को इज्जत मिलती है . राजनीति  कितनी ही बदचलन क्यों न हो ये काली भेड़ें उसकी मांग का लाल सिन्दूर होती हैं . इसीलिए उन्हें गिरफ्तार करने के समय सफ़ेद भेड़ों को अपनी बगलें झांकना पड़ती है . साहब का सर अगर शुरुर्मुर्ग हो रहा हो तो साहब की सूखे कुएँ सी बगल भी उन्हें ही झांकना पड़ती है .  साहब की बड़ी साइज़ की बगल झाँकने पर सिपाही को करीबी होने का सुख और गर्व का भाव हो सकता है . सिपाही रोबोट जैसा होता है, साहब का कुछ भी झांकते वक्त गर्व  महसूस करना उसकी ड्यूटी है . अभ्यास अच्छा हो तो बगलें झाँकने में पुलिस भी अच्छा परफोर्म करती है . ट्रेनिंग में उन्हें ‘दायें-बाएं-थम’ बार बार कराया जाता है तो इसके कुछ जरुरी कारण होते हैं लोकतंत्र में . कब कौन स्वयंसिद्ध कुर्सी पकड़ ले कोई भरोसा नहीं होता है . स्वयंसिद्धपन एक गॉड-गिफ्टेड प्रतिभा होती है जो शिखर पर भी पहुँच जाओ तो भी जाती नहीं है . जानकार जानते हैं कि स्वयंसिद्धपन उसके जींस में हैं . उसे वित्त मंत्रालय दे दो या शिक्षा मंत्रालय, वो काम नहीं करेगा, उसके जींस करेंगे... यानी गॉड करेंगे . गॉड सबका होता है . गॉड जो भी करता है अच्छा ही करता है . इसमे किसी को शक नहीं होना चाहिए . इसलिए बड़े आदमी को शक की निगाह से देखना पाप है . फिर भी रस्मी तौर पर बड़ा आदमी गिरफ्तार होता है तो प्रसिद्धि मिलती है . बड़े आदमी के लिए प्रसिद्धि पूँजी होती है, जिसे देख कर बैंकें अपना सब कुछ खोल कर चरणों में गिर जाती हैं . और बड़ा आदमी देश की प्रतिष्ठा के लिए, विकास के लिए, सहयोगी सरकार के लिए लगातार बड़े काम करते जाता है . जे-हिन .

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