शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 9 ( पूरी-पटेटो )



आगे वाला यानी लल्लू कप्तान चिल्ला कर बोला “ देश का नेता कैसा हो ......”
पीछे से आवाज आई – “ आलू पूरी जैसा हो । “
“अबे ओ !!! ये क्या बोले रे !! ... पोपसिंग भिया जैसा हो बोलना चाइए था ना । ... ये आलू पूरी जैसा क्या होता है !!?”
“लल्लू भिया, आठ दिन से दोनों टेम आलू पूरी खा रहे हैं तो मुंह से यही निकलेगा ना । इसमे हम क्या करें ?” फिल्मी व्यक्तित्व सा राजा मिसरा बोला जो पिछले कई दिनों से चुनाव प्रचार में नाश्ते-खाने और एक पौवे के लिए लगा हुआ है । यहाँ इसलिए कि दूसरी जगह कहीं इसकी दाल नहीं गल पाई है ।
“ये कोई बात है बे !! अगर लड्डू-बाफले खाओगे तो क्या देश का नेता लड्डू-बाफले जैसा हो बोलोगे  !! ... खाने का नारे से से क्या लेना देना है ? जानते हो जब संघर्ष का मौका आया तो महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई थी । और यहाँ अपन मजे में पूरी-पटेटो खा रहे हैं । कितना विकास हो गया देश में, कुछ पता भी है  ?”
अभी घंटा भर के नारे हुए थे कि लंच का रिक्शा आ गया । इंचार्ज ने हाँका लगाया – चलो भिया लंच ले लो ।
राजा ने उम्मीद के साथ पूछा – आज क्या है ?
“ मंगलवार है । “ इंचार्ज ने आँख मारते हुये कहा ।
“ अरे भिया खाने में क्या है ये पूछ रहा हूँ । “
“ खाने में !! ....चिकन-मसाला, चिकन-कढ़ाई, चिकन-तंदूरी, वेज में मेथी-मटर-मलाई, पालक-पनीर,  शाही-मटर-पनीर , दाल-मखनी, दाल-फ्राई ....... “
“ चल बस कर यार ..... निकाल आलू-पूरी के पेकेट ।“
" आलू पूरी नहीं , पूरी पटेटो बोल भाई । देश तरक्की कर रहा है । "

  सारे कार्यकर्ता पेकेट ले कर बैठ गए खाने । लेकिन राजा का मन कूढ़ रहा था । साथ वाले से बोला “यार रोज रोज अपने से आलू-पूरी खाते नी बनती है । छे पूरी और आलू की सूखी भाजी ! साला कारकरता नी हुआ बाइक हो गया, रोज ढक्कन खोल के एक लीटर पेट्रोल कूड़ दो हो गया !!”
“सब दूर येई चल रा हे रे  । ... खा ले यार , आज तली हुई मिर्ची भी है । “
“ अरे गेस भोत होती हे , हजम नी होती  है आलू-पूरी । “
“ पुलिस वाले भी यही खाते हैं, और बेचारे कितनी लंबी ड्यूटी करते हैं । पंचायत चुनाव से ले कर प्रधान मंत्री चुनाव तक आलू पूरी ही चलती है । “
“नीचे के लेबल पे चलती होगी । “
“अरे तो यार अपन कब से ऊपर के लेबल में आ गए ?”
“ ऐसा नहीं है यार, अपने मोटभाई को टिकिट नी मिला इस बार नहीं तो देखते तुम । उनके यहाँ तो समझो कि शादी का रिसेपसन चलता रेता हे वोटिंग के दिन तक । गए साल तो महिना भर दोनों टाइम जम के सूता अपन ने । “
“ और क्वाटर  ?”
“ क्वाटर आखरी के सात दिन । वो भी ब्लेक डॉग इंडियन । “
“ पता है मोटा भाई कभी कोई चुनाव क्यों नहीं जीत पाया ? .... इसलिए कि उसके कारकरता खा खा के लद्दड हो जाते हैं । पर्ची तक नहीं बाँट पाता था कोई । “
“ पर आलू कोई चीज है !! कभी छोले पनीर भी  तो बन सकते हैं । “
“ आलू से तुमको न जाने क्या है !! वरना आजकल तो च्यवनप्राश में भी आलू पड़ता है । कोई महिना भर च्यवनप्राश खा ले तो गाल आलू जैसे निकल आते हैं । समोसे से ले कर डोसे तक पूरे देश में आलू का राज है । सही बात तो ये है कि आलू के दम पे प्रजातन्त्र है । इसलिए आलू खाओ देश को आगे बढ़ाओ । “
“किसी ने मेंगों-मेन कहा, किसी ने केटल-क्लास बोला, लेकिन असल में हम पूरे आलू भी नहीं हैं, आलू-चिप्स हैं । हर अवसर पर, हर प्लेट में एक जरूरी आइटम । “ राजा मिसरा ने पेकेट खोल कर आलू-पूरी  गाय को खिला दी । बोला – लो माते , चुनाव में तुम्हारा भी बड़ा योगदान चल रहा है, तुम भी खाओ और पोपसिंग भिया को जिताओ । “
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मंगलवार, 13 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 8 ..... ( चंदा मामा दूर के )



चुनाव में चंदा नहीं होना ऐसा है जैसे पूनम की रात में चाँद न हो । चाँद खिले, तारे हँसे तभी रात मतवारी है, समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है । पोपसिंग जादो भिया के पास अपनी एक चंदा केबिनेट है, जिसके ऑफिस इंचार्ज साले साब हैं । उन्हें सब  चंदा मामा कहते हैं । भाभी जी केबिनेट हेड हैं, वे  सागर की तरह गहरी और विशाल हैं  और अगर ठीक से बांधी जाएँ तो आठ मीटर साड़ी में वन पीस समेटी जा सकती हैं । सारा चंदा अंत में उन्हीं की खाड़ी में जा कर गिरता है । भाभी जी के बन्दरगाह पर सिर्फ पेटियाँ ही उतरती हैं । हिसाब भी केवल पेटियों का रखा जाता है । जो पेटीदार हैं वही सूची में दर्ज है । शहर में पच्चीस पचास पेटियों वाले भी हैं और दो चार पेटियों वाले भी । पच्चीस पचास पेटियों वाले मध्य रात्री में उड़ते हुए आते हैं और सीधे खड़ी के खाड़े में अपनी पेटियाँ डाल कर लौट जाते हैं । चंदा केबिनेट दिनरात धनसंपर्क में व्यस्त रहता है । जिस तरह बूंद बूंद से घड़ा भरता  है उसी तरह थैली थैली से पेटी भी भरती  है । थैली वाले निराश न हों इसलिए राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त दो तीन लोग चंदा मामा के नीचे इस काम में भी लगे हुए  हैं ।
तेरह चुनाव देख चुके तजुर्बेकार बाप ने समझाया कि बेटा जमाना लोकतंत्र का है । पानी में अगर इज्जत से बने रहना है तो बड़े मगरमच्छों को भी छोटे मगरमच्छों से बैर नहीं करना चाहिए । ये सारे छोटेलाल मौसमी होते हैं, आते हैं और जाते हैं । जैसे जिन्न चिराग में रहता है वैसे ही ये लोग पेटी में रहते हैं  । जब भी पेटी रगड़ो ये जो हुकम मेरे आका कहते सेवा में हाजिर हो जाते हैं । कहने को जनता के हैं लेकिन असल में होते हमारे हैं । और कुछ नहीं तो शादी ब्याह में खड़े कर दो तो शान बढ़ जाती है । दे दो, देने में घाटा नहीं है । इनके होने से अपन भी मनमर्जी से काम कर लेते हैं, वरना कानून किसी का सगा होता है !?”
बेटा समझा तो सही , लेकिन अभी भी उसके मन में सवाल थे –“ किस  किस को देंगे बाबूजी ! तमाम लोग खड़े हैं चुनाव में । “
“ हर पार्टी वाले को दो बेटा, कौन कैसे सरकार में आ जाए इसका भरोसा नहीं । हम वणिक बुद्धि के है, थैली दे कर पेटी बनाते हैं और पेटी दे कर खोखे । सिस्टम को समझो बेटा । किसान बीज फैकता है तो फसल मिलती है । तो पेटी फैको,  पेटी की फसल उगाओ । “
“ ठीक है, पेटी में हजार और पाँच सौ के पुराने नोट रख कर दे दूँ ? खप जाएंगे अभी । वो तो सिर्फ पेटियाँ गिनते होंगे ।... इसी बहाने पुराने नोट अगर सरकार फिर से चला दे । “
“ सब जगह बेईमानी कर लेना बेटा, लेकिन यहाँ नहीं । हमारा उनका परंपरागत संबंध है । सदियों से हम उनके काम आए हैं और वो हमारे । हमारा चोली दामन का साथ है , वे हमारी ढँकते हैं और हम उनकी । नए  नोट दो, गुलाबी । समझे ।  
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रविवार, 11 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 7 ( दारू कब बांटेगी )



“पता चला,कब बांटेगी ?”
“अभी तो कोई रमूज नी लगी हे । पर बांटेगी जरूर । “
“ अभी बांटना चिए यार । अपने को कोई दिक्कत नी हे पर कारकरता दिनभर टप्पे खाता रेता हे । थकान हो जाती हे तो दूसरे दिन उठ नी पाता हे ।“
“भिया भी क्या करें यार । अभी बांटना सुरू कर दें तो बजट बिगड़ जाएगा । अभी तो अठरा दिन बाकी हें ।“
“ कारकरता खिसक लेंगे पेलवान इस स्यानपत्ति में । सुना हे कि सामने वाले ने बांटना सुरू कर दी हे । “
“ कोन सी वाली बाँट रा हे ?!”
 वोई , कुत्ता छाप । क्वाटर मिल रा हे हरेक को  ।“
“ फिर तो लोग खिसक लेंगे जेसे जेसे पता चलेगा !! “
“ येई तो ! येई चार दिन होते हें कारकरता की जवाईं की तरे पूछ होती हे , वरना बाद में तो चूसी हड्डी भी नी डालता हे कोई । “
चुनाव में दारू बांटना पड़ती है । जैसे फसल लेने के लिए पौधों को सींचना पड़ता है । पुलिस को पता होता है, कुछ पेटियाँ पहले उनको भी पहुंचाई जाती हैं । आखिर पुलिस भी इंसान है, थकते वो भी हैं । गरीब के लिए तो दारू सम्मान है । मिल जाए तभी उसको लगता है कि इज्जत हुई । पिछली बार तो आखरी दो दिन मुर्गे भी बांटे गए थे ।  वो तो मोटा भाई को टिकिट नहीं मिला इस बार, वरना एक ट्रक बकरों का आर्डर दे रखा था । महीने भर से लोगों की हंडियाँ उम्मीद से हो गईं थीं ।  मोटा भाई दारू के साथ पाँच सौ का नोट भी बांटता है । लेकिन मेनेजमेंट सही नहीं था इसलिए पिछले दो चुनाव हार गया ।
पोपसिंग जादो का मेनेजमेंट बढ़िया है । सुबह का समय थोड़ा खाली रहता हैं । कार्यकर्ता लेट आते हैं । सबको जमा होने में नौ बजता है और प्रचार के लिए निकलते निकलते दस । इसबीच पोपसिंग भिया कुछ घरों में पर्सनली मिल आते हैं । आज भी वे सिविल लाइन की मनाकर फेमिली में पहुंचे हैं । सुरेश मनाकर गमलों में पानी दे रहे थे । और उनकी पत्नी जयश्री मनाकर किचन में थी ।
पोपसिंग भिया ने गाड़ी से उतरते ही हांक लगाई –“ और क्या सुरेश जी, क्या हो रहा है ?”
“ कुछ नहीं गमलों से जनसम्पर्क कर रहा हूँ , आइये । “
पोपसिंग उत्तर के विस्तार में जाते इसके पहले जयश्री दिख गईं । -“ नमस्कार भाभी जी, आज नास्ते में क्या बन रहा है ? सोचा आज आपके हाथ का ही खाऊँगा । “
“ अभी तो कुछ नहीं बन रहा है भाई साहब । दिवाली का पड़ा है बहुत सारा । मेरा इनका पेट खराब है , बनाने का कोई फायदा नहीं है । “ जयश्री मनाकर ने साफ मना कर दिया ।
“ तो आज सुरेश जी को नास्ता नहीं मिलेगा क्या ? चलो सुरेश भाई आज मैं आपको नास्ता करवा के  लाता हूँ । भाभी जी के लिए भी ले कर आते हैं बढ़िया जलेबी पोहा । “
 “ अरे ऐसा कैसे ! तुम कुछ बनाने वाली थीं ना  ? सुरेश जी ने अर्थपूर्ण संवाद किया ।
“ शाम की रोटियां बची हैं , उन्हीं को चूर के बघारना है बस । “
“ अरे वाह !! बासी बघारी चूरा-रोटी !! ये तो मुझे बहुत पसंद है । बनाओ बनाओ । “ पोपसिंग को पता है कि जयश्री मोहल्ला भगिनी मण्डल  की अध्यक्ष है । “
और क्या सुरेश जी ?”
“ वोट तो आपको ही देना है । सामने वाली पार्टी ब्लेक डॉग का आफ़र दे रही थी । मना कर दिया हमने तो । कहा कि अगर ब्लेक डॉग ही लेना होगी तो अपने भिया से ले लेंगे । घर की बात है ।“ सुरेश मनाकर ने अपनी मांग रखी ।
“ अरे इसमें क्या है ! आपको एक बोतल पहुंचा दूंगा । “
“ सामने वाली पार्टी दो दे रही थी पर मैंने मना कर दिया .....”
“ ठीक है, कोई दिक्कत नहीं है , दो भेज दूंगा ..... पर ....?”
“ आप बिलकुल चिंता मत करो । वाइफ भगिनी मण्डल सम्हाल लेगी और बाकी मैं देख लूँगा । “
जयश्री प्लेट मे बघारी रोटी-चूरा ले आई । "घर में दूध नहीं है वरना चाय भी बनती ।"
" कोई बात नहीं भाभी जी , आपके लिए भी वोड्का भिजवाता हूँ आज । "
" एक तो गले में ही अटक जाती है भाई साब । "
" आपके लिए दो भिजवाता हूँ भाभी जी । "

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शनिवार, 10 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 6 .... ( ढम ढम बाजे ढ़ोल )




पोपसिंग जादो भिया के पट्ठों ने शहर भर के ढोलियों को बयाना दे कर बुक कर लिया । इरादा ये कि अगर टिकिट नहीं मिला तो किसी और को भी बजवाने नहीं देंगे । सारे ढोलियों को अखाड़े के आंगन में बैठे रहने का पैसा देंगे । और अगर मिल गया तो हमारा ही बजेगा किसी और का नहीं बजने देंगे । गनीमत यह रही कि पोपसिंग जादो भिया को टिकिट  मिल गया और जैसा कि तय था खबर के साथ ढोलियों को जोत दिया गया है । ढोलियों की खास मांग पर सबको एक एक अंटा भांग का भी दिया गया है, साथ में यह हिदायत भी कि पहले दौर में सब बजाएँगे और एक घंटे तक हाथ रुकना नहीं चाहिए । पल झपकते ही माहौल जानलेवा बन गया । लगा जैसे आसमान फट पड़ा हो शोर का । सबसे पहले कुत्ते बिल्लियाँ भाग कर दुबक लिए कहीं । माताओं से छोटे बच्चे चिपक लिये । बूढ़े बीमार जो आलरेडी भगवान को याद कर रहे थे, उन्हें लगा कि प्रभु विराट रूप के साथ प्रकट हो रहे हैं । जैसे स्टेशन पर ट्रेन आते ही लोग अपना लगेज थामने लगते हैं, कइयों ने गंगा जल मुंह में डाल लिया है । अभी गगन भेदी माहौल बना ही था कि पोपसिंग जादो भिया की माँ घबरा कर अचेत होने की ओर कूच कर गईं । तत्काल ढ़ोल बंद कराये गए । हवा में सवाल तैर गया “गईं क्या ?!” उछल कूद रही पोप पलटन गियर बदल कर छती कूटने और विलापने को तत्पर होने लगी । लेकिन किसी ने आ कर कहा कि अभी इसकी जरूरत नहीं है । खैर ।
ढ़ोल आज की राजनीति में नेता का घोषणा पत्र है । ढ़ोल में जितनी पोल होती है उतना ज़ोर से बजता है । चुनाव में सुर की नहीं शोर की जरूरत होती है । इसलिए उम्मीदवार जब जनसम्पर्क पर निकलते हैं तो विशेष सावधानी रखते हैं कि कहीं जनसम्पर्क हो न जाए । जनता को संपर्क में नहीं शिकायतों में रुचि होती है । नेता दो मिनिट को भी हाथ लग जाए तो पाँच साल का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं कंबखत । पकड़म पाटी के इस खेल में नौसिखिये नेता अक्सर फंस जाते देखे गए हैं । पोपसिंग भिया के साथ भी इस समय ढोलियों का जरूरी इंतजाम है । खुद उनके कार्यकर्ता लोग आपस में सुन नहीं पा रहे हैं, लेकिन मान रहे हैं कि मजा आ रिया हे । वोटर अलग प्रजाति का नहीं है, उसने कान बंद कर लिए हैं और इस चक्कर में मुंह भी बंद ही है ।  यही ढ़ोल वोटर ने पाँच साल पहले भी सुने थे । पहले पाँच ढोली थे आज बीस हैं । तरक्की तो हुई है । नेता जो कहते हैं वो करते भी हैं । लेकिन लोग समझे तब ना । वो तो अच्छा है कि सामने वाली पार्टी भी ढ़ोल ले कर निकलती है और जनता को कुछ अल्लम गल्लम समझा नहीं पाती है । वरना लोगों को महंगाई, बेरोजगारी, अपराध जैसी रूटीन की और फालतू बातें याद दिलाने में देर लगे क्या !! सरकार ने समझाया है कि चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है । और उत्सव में कुछ सोचा नहीं जाता है, सिर्फ मनाया जाता है ।
जनसम्पर्क में एक भीड़ साथ चल रही है जिनमें से अधिकांश मौका मिलते ही खिसकाना चाहते हैं लेकिन अपने अपने कारणों से फंसे हुए हैं । कुछ लोग कल सामने वाले के जनसम्पर्क में शामिल थे और पोहा जलेबी के साथ एक एक लीटर पेट्रोल को भी याद कर रहे थे । कुछ माने हुए हैं कि मिलेगा । पोपसिंग भिया की जेब उनके कुर्ते में नहीं होती है, उनकी जेबें शहर भर में फैली हुई हैं । यह समय जादू-समय है, बड़ा आदमी इस समय थैली या जेब हो जाता है । आज एक खाली करेगा तो कल दो भरेगा । उम्मीद पर दुनिया के अलावा सिस्टम भी टिका हुआ है ।
काफिला एक जगह थमा तो सारे ढोली सुस्ताने बैठ गए । अंदर नाश्ता बाँट रहा था । कार्यकर्ता एक प्लेट ले कर खाते हुए दूसरी के लिए वितरण स्थल की ओर लक्ष किए थे । कुछ को चाय का प्लास्टिक कप भी हाथ लग गया था । ढोलियों ने मांगा तो उन्हें पानी मिल गया, बाकी के लिए वे संभावना शेष थी ।
“भिया, थोड़ा  नाश्ता  देओ ना हमको भी ।“ एक ढोली ने कहा ।  
“ पहले पार्टी वाले खा लें यार ..... फिर देखता हूँ .... । “
“ नाश्ता मांग रहे हैं भिया वोट नहीं । “
“ हाँ हाँ , देखता हूँ । रुको तो । “  कह कर वो गया तो केलेण्डर का पन्ना हो गया ।
अचानक जनसम्पर्क फिर शुरू हो गया । ढोलियों को लगाना पड़ा । सारे एक सुर में ढ़ोल पीटने लगे, धुक्कड़  धेइई  ... धेइईधान धेइई ,  धुक्कड़ धेइई... धेइईधान धेइई  जनसम्पर्क चल रहा था , ढोली मुस्करा रहे थे । उनके ढ़ोल चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे “भुक्कड़ हैं, बेईमान हैं , भुक्कड़ हैं, बेईमान हैं” । मानो गूंगे का गुड़ था जिसका मजा वे ढोली ही ले रहे थे ।
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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 5 ( असिस्टेंट भीड़ मेनेजर )


पार्टी कार्यालय के पास जय भवानी टी स्टाल पर इन दिनों राजनीति का क्रेश कोर्स सा चल रहा है । कोई गुरु है कोई उस्ताद और कोई फ्रेंड, फ़िलासफ़र, गाइड है । नए पुरानों से और पुराने नयों से सीख रहे हैं । इसी चक्कर में पुराने टी शर्ट  में और नये आधी बांह के कुर्ते में नजर आ रहे हैं । पचहत्तर पार वाले टी शर्ट, हेयर डाइ और काले चश्में के सहारे अपने को युवा हृदय सम्राट की पटरी पर घसीट रहे हैं । छोटों का दावा ये कि वे बड़ों के रेले जानते हैं और बड़े छोटों कि नस नस से वाकिफ हैं । वोटरों के पैर छू छू के जिनकी आत्मा पर छाले पड़ गए हैं वे अब नयों से घुटने छुलवा कर चन्दन सा कुछ लगवा रहे हैं । यहाँ चाय का मतलब कट चाय है और भिया का मतलब तो आप जानते ही हैं । साधारण लोग जिसे लोकतंत्र समझते हैं दरअसल वो भियातन्त्र है । भिया इसलिए लीडर हैं क्योंकि वे सपने दिखाना जानते हैं । लोगों के हाथ में काम नहीं है लेकिन आँखों में सपना है, वो भी भिया बनने का । महापुरुष कह गए हैं कि सपने देखना बंद मत करो । पूरे हो ना हों सपने देखते रहने से टाइम अच्छा पास होता है । पाँच साल कब निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता है । एक जमाना था जब नौजवान लोग भगतसिंग-आज़ाद बनने का सपना देखा करते थे । लेकिन नयी पीढ़ी गलतियाँ ढ़ोने की बजाए सुधारने की हामी हैं । वे मानते हैं कि पुराने लोगों से सीखेंगे तो कुछ हासिल नहीं होगा । जमाना बादल गया है, हासिल करना ही सफलता है । इसलिए राजनीति के इस स्कूल में भिया-दर्शन, भियावाद, भियाचिंतन, भिया-एक्शन, भिया-रिएक्शन, भिया-कलेक्शन सिलेबस में हैं । जिसने समझ लिया, रास्ते उसके लिए खुल्ले हैं । चाय बेचो या शराब, इरादे मजबूत होना चिए  । दुनिया करमचंदों की है शरमचंदों की नहीं ।
  “देखो पेलवान,  क्या हे कि हर किसी को अपना अपना काम ठीक से करना चिए । सास्त्रों  में लिखा है कि काम कोई भी छोटा नहीं होता है । अपन नोकरी के भरोसे बैठे रहते तो आज भी बैठे ही रहते । अपन जग्गा बापू हैं क्या । नाम तो सुनाई होगा ? आज जग्गा बापू का नाम चलता है ऊपर से नीचे तलक तो ऐसई नहीं । “
“ जग्गा बापू !!! आप  तो ......च च !”
“हाँ , चोरी का बिजनेस है अपना । क्या हे कोई काम छोटा नहीं होता है और कोई काम बुरा भी नहीं होता है । भावना अच्छी होना चिए बस । पर लोग होन जो काम कर नहीं पाते हैं उसको बुरा बोलने लगते हैं । अब माल्या लोन लेके भाग गया तो हर कोई उसको गाली दे रहा है । इनमें से किसी को भी हजार करोड़ दे दो फिर देखो ये कहाँ मिलते हैं । ... तुम क्या करते हो ?  जग्गा बापू ने पूछा ।
“ अभी तो असिस्टेंट भीड़ मेनेजर हूँ । पोपसिंग यादो भिया ने बोला है कि चुनाव का टाइम है, भीड़ बनो बनाओ, नारे-वारे भी लगाना । ... पर पता नहीं पेमेंट देंगे या नहीं । “
  “ पढे लिखे हो क्या !?” बापू ने धीरे से पूछा ।
“ हाँ, इंजीनियर हूँ । घरों के नक्शे बना सकता हूँ ....लेकिन....ये करना पड़ रहा है ।“
“ सही रास्ते पर हो । काम कोई छोटा बड़ा या अच्छा बुरा नहीं होता है । पोपसिंग यदो ने ठीक किया, लोकतंत्र से कुछ हासिल करना है तो सबसे पहले भीड़ बनना चिए । सरकार पर भीड़ का कर्ज होता है । इसलिए हर मौके पर वो भीड़ के समर्थन में होती है । भीड़ को छोटा मत समझो, जो काम कानून से नहीं हो सकता है वो भीड़ से हो जाता है । और ये बात भी ध्यान रखो कि बिना भीड़ के नेता नहीं होता है ।“
“ लेकिन चुनाव के बाद क्या करूंगा बापू ?”
“ ये पोपसिंग यदो भिया का हेडेक है तुम्हारा नहीं । तुम बस भीड़ बने रहो । शेर के साथ लगे रहने वाले को हड्डी का टोटा नहीं रहता है । .... चाहो तो मेरे साथ लग जाना । अपने हाथ के नीचे भी चार आदमी काम करते हैं । आजकल पासवर्ड के मार्फत चोरी होती है, तुम पढे लिखे हो तो अपनी कंपनी बड़ी हो जाएगी ।“
“अरे बापू !! में ये नहीं कर पाऊँगा । पकड़े गए तो जिंदगी बर्बाद हो जाएगी । “
“ऐसे कैसे पकड़े जाएंगे !! भिया का काम नई कर रये ! भिया का हाथ है अपने उपर । फिर पुलिस, वो सब जानती है, और मानती भी है । सब एक दूसरे के लिए जरूरी हैं और सारे एक ही हम्माम में खड़े हैं ।“
बापू मानते हैं कि पुलिस डाइरेक्ट जनता की सेवक है और उनके जैसे लोग इंडाइरेक्ट सेवक है । पिछली बार भिया को फंड की जरूरत पड़ी थी तो बापू ने बैंक के तीन एटीएम तोड़े थे । लोकतन्त्र की रक्षा के लिए हर किसी योगदान देना पड़ता है । 
 अभी देखो, भिया ने बोला है कि बापू एक महिना चोरी बंद, बस पार्टी का काम करो । जैसे पुलिस ड्यूटी करती है वैसी अपनी भी है । पहले सरकार बन जाए, विभाग तय हो जाएँ, भिया लोग काम सम्हाल लें उसके बाद व्यवस्था बहाल हो जाएगी ।
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सोमवार, 5 नवंबर 2018

चुनावी चवनप्राश –4 ....... (जब तक सूरज चंद रहेगा ! )




देर रात घर आने वाले गब्बू पेलवान सरे शाम घर पहुँच गए । साथ में दो चार पट्ठे भी थे । पेलवानिन ने सुना तो बिखर गयी, -- “आपको टिकट नहीं दे रए !! इनका नास जाए, बिना तनखा का चपड़ासी बना के रखा है क्या !! समझते क्या हैं अपने आप को भूतनी के  !! .... तुम बात करो दूसरी पार्टी से ...., राजधानी में रात दिन मेंढक तुल रहे हैं, अकेले तुमको ही वफादारी का कुत्ता बनाने से क्या मतलब !! भले ही तुमको कुछ नहीं बनना होगा पर हमें तो विधायकिन बनना है । “
आज गब्बू भिया अंदर तक घायल थे, ब्रेड की स्लाइस तरह कई पीस में कटे हुए । बीवी का मॉरल सपोर्ट मिला तो हिम्मत आ गई । चेले से फोन लिया, शुरुवाती संवाद के बाद मुद्दा खुला, उधर से बोले - अगर आप कुछ दिन पहले हमारी पार्टी में आ गए होते तो आपका टिकट पक्का था । अब टिकिट तो बहुत मुश्किल है । लेकिन पार्टी में आपका स्वागत है । मैं बात करता हूं, ...  प्रदेश अध्यक्ष जी अपने दौरे के दौरान आपको पार्टी में समारोह पूर्वक ले लेंगे ।“
“ बिना टिकट आपके यहां आने का क्या मतलब है !! रोड शो की भीड़ तो मैं यहां भी हूं ही । आप जानते हो मेरे पास दो सौ कार्यकर्ता  हैं । चंदा हम लोग बढ़िया करते हैं सालभर, बिना रसीद के । हमारे भंडारों की बड़ी साख है शहर में । वोटरों ने हमारा इतना नमक खा लिया है कि वो अब किसी और को वोट दें यह हमें बर्दाश्त नहीं होगा । पिछले भंडारे में तो हमने नुकती की जगह गुलाब जामुन खिला दिए हैं  !? देखिए भाई साहब, आप ऊपर बात कीजिए । उन्हें कहिए कि गब्बू पेलवान ने कहा है कि  तुम मुझे टिकट दो, मैं तुम्हें सीट दूंगा” ।
“ आप समझने की कोशिश करो भाई साहब । हमारे अध्यक्ष अभी नए नए हैं ।  पहली बार बड़ी मुश्किल से उन्होंने टिकट बांटे हैं, जिसमें बड़ी कुश्तम कुश्ता हुई है । रहा सवाल किसी का टिकट काट कर आपको देने का तो उनको अभी इसका आईडिया नहीं है । पुराने लोगों की बात और थी । उन्हें चुनावी बकरा मंडी का अच्छा अंदाज रहता था ।  बढ़िया माल वे छोड़ते नहीं  थे । लेकिन अब साहब कंप्यूटर देख कर मुंह खोलते हैं । पहले वाले थैली देखकर खोलते थे । ..... थैली वैली अब नहीं चलती है, थैले का इंतजाम किए हो या नहीं ?”
गब्बू भिया ने बिना जवाब दिये फोन बंद कर दिया,- “टिकिट की बात नहीं कर रहे, थैला चिए ....!”
“ भिया बहन जी की पार्टी भी ठीक है, ... उधर बात करके देखो...”
उधर फोन मिलाया - “ हां जी भाई जी, बताइए, बहन जी क्या पॉलिसी है ?”
“ आप आ जाइए पार्टी में, आपका टिकट पक्का है, हो जाएगा । ... बहन जी खुद आपका वेलकम करेंगी और सफ़ेद गुलाब की एक कली भी देंगी । लेकिन आपकी तरफ से क्या तैयारी है ?”
“ पूरी तैयारी है, चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी ।“
 वह तो ठीक है, पर पार्टी को क्या देंगे ?”
“ टिकिट दे रहे हो तो पार्टी को भी एक थैली दे देंगे । “
“ थैली नहीं चलती इधर । .... यह बताओ कि गुलाबी नोटों की कितनी माला है पहनाओगे ? एक माला में पाँच हजार नोट होते हैं ।
“ ठीक है सोच कर बताते हैं । “
“ जल्दी सोचिए टिकट आपका पक्का है,  बहुत से लोग माला लिए इंतजार भी कर रहे हैं ।“
 पट्ठा बोला - “लगे हाथ साइकिल छाप पार्टी से भी बात करके देख लो उनका दृष्टिकोण शायद अभी भी कुछ मुलायम हो । “
“अरे एमपी में साइकिल वालों का क्या काम !!  सड़कें भले ही अमेरिका जैसी हों पंचर साइकिल पर कोई डबल सवारी बैठता है क्या ।“  
“ भैया लाल झंडे वाले भी खाली बैठे हैं वे तो छोटी थैली मैं भी मान जाएंगे । “
“ अरे चुप, गरीबों का देश होने के बावजूद जो अपनी सूरत सम्हाल नहीं कर पाए  वो दूसरे के चेहरे का मेकअप क्या करेंगे । इससे तो अच्छा है कि निर्दलीय लड़ा जाए । ..... चलो निर्दलीय लड़ेंगे, वो खिलाएँगे नहीं तो अपन खेल बिगड़ेंगे । “
पट्ठों ने नारा लगाया “जब तक सूरज चंद रहेगा .....”
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शनिवार, 3 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश --3 (अच्छाई हुआ टिकिट नी मिला)



“देखो यार ऐसा है कि अपुन टिकिट के वास्ते राजनीति करते-ई नी हें । मेरा तो मन-ई नी था । मेने तो मांगा-ई नी था किसी से । वो तो तुम लोग बोले तो सोचा चलो ठीक हे । आपना क्या हे , आपन तो फकीर आदमी हें । झोला उठा के चल देंगे कंई भी ।“ गुलाब सिंग उर्फ गब्बू भिया घर में उदास बैठे हैं । इस बार उम्मीद थी कि मिलेगा । ज़ोर भी खूब लगाया था । लेकिन जिस साँड की दुम पकड़ कर वैतरणी पार कर रहे थे उसी ने मँझधार में लात मार दी । अब बीच धार में कोई दूसरा साँड तो मिलने से रहा ।
पट्ठे भी उदास थे, एक बोला –“ गब्बू भिया आपकी कसम, देख लेना अबकी बार अपन साँड के लिए काम नी करेंगे । बड़ा चुनाव तो उसीको लड़ना हे । उसके झंडे-डंडे कोन उठता हे .... अपन-ई उठाते हें ना गधे कि तरे ! अबकी उसको पता चल जाएगा कि कार-करता क्या चीज होता हे । “
“अरे ठीक हे रे कानिया । तू लोड मत ले । अपने को कायकी कमी हे । अच्छाई हुआ टिकिट नी मिला, मिल जाता तो लोगों के पाऊँ छू छू के कमर दो दिन में तीन तलाक बोल देती । यूं समझ ले कि टिकिट नी मिला तो इज्जत बच गई । इज्जत टिकिट से बड़ी चीज होती हे बेटा ।“ पता नहीं गब्बू भिया ने अपने को तसल्ली दी या कनिया को ।
“क्या बात कर्रे हो भिया !! टिकिट मिलता तो आपको किसी के पाऊँ छूने देते क्या हम ! भिया आपके असिरवाद से इत्ती रंगबाजी तो हेगी कि आपको लेके जिधर से भी निकाल जाएँ लोगबाग अपने दरवज्जे बंद कल्लें फ़्ट्ट से । किसी की हिम्मत नी हे कि आपके सामने टांग खोल के खड़ा हो जाए । भिया थाली में रख के आपके जूतों का जनसम्पर्क करवा दें तो सामने वालों की जमानत जप्त हो जाएगी । आपके पसीने की एक बूंद पे पब्लिक का लोटभर खून कुर्बान करने में देर थोड़ी लगेगी ।“
“ठीक हे यार, चुनाव लड़ना जरूरी हे क्या ! गांधी जी ने कभी चुनाव नी लड़ा तो क्या वो देश के नेता नी हें ? ... अपुन तो अच्छई सोचो ना । पार्टी को भविस के लिए एक नया गांधी चिए होगा । राजनीति में पास की नी सोचना चिए, हमेसा दूर की सोचना चिए ।“  चेले गब्बू भिया के ऊंचे विचार सुन कर लट्टू हो गए । सोचने लगे वो दिन भी क्या होगा जब भिया का फोटू नोटों पे छ्पेगा ।  खुशफहमी में पट्ठों ने नारा लगा दिया “ देश का नेता केसा हो, गब्बू भिया जेसा हो” 
भिया ने फौरन रोका, - “अबे नारा मत लगाओ बे , लोग समझेंगे कि टिकिट मिल गया । फोकट केन हो जाएगी । खाया पिया कुछ नई, गिलास फोड़ा बारा आना । “
“भिया एक बात मान्नी पड़ेगी आपको । अबकी अपन साँड सिंग को सबक जरूर सिखाएँगे । भोत हो गया । सारी जिंदगी उनकी दरी उठाते बिछते रहोगे क्या !! हमेशा पालतू बने रहे, दुम हिलाते रहे और आज टिकिट के टैम पे मिला क्या !! ... सब लोग कसम  खाओ हाथ में जल ले के कि अब साँड का काम नी करेगा कोई ।“  कनिया ने कसम  दिलवा दी । तभी रिंगटोन बज उठी गोली मारो भेजे में ...
गब्बू भिया ने फोन लिया –“ हाँ भिया ..... नहीं भिया ...... ऐसी कोई बात नी हे भिया ...... टिकिट की दोड़ में तो अपन थेई नी ..... । नई मिला तो नई मिला .... । हाँ , करेंगे ना ..... हाँ हाँ , अपने सारे छोरे करेंगे ..... ठीक हे भिया .... बिलकुल भिया .... जेसा आप बोलोगे भिया .... हओ भिया । “
“साँड सिंग का फोन था ..... बोलो क्या करे ?” गब्बू भिया ने कनिया कि तरफ देखते हुए पूछा ।
“जेसा आप बोलो भिया । “  कनिया के साथ सब बोले ।
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शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 2 ...... (रजवाड़ी रजवाड़ी)



खबर है कि पार्टी के दो बड़े नेता भिड़ पड़े ! कुछ का कहना है कि हाथापाई की नौबत आ गई, कुछ का कहना है कि हो गयी । मीडिया ने बताया है कि एक वानपृस्थ के दरवाजे पर हैं दूसरे सन्यास आश्रम के द्वार पर । दोनों की जवाहर जेकेट में रजवाड़ी च्यवनप्राश और वसंतकुसुमाकर रस की डिब्बी है । दोनों रसायनों के बारे में आयुर्वेद कि चेतावनी है कि तय मात्रा से अधिक लेने पर यह विकार पैदा करती है । रोगी में उन्माद के लक्षण पैदा हो जाना आम बात है । लेकिन फिलहाल यहाँ के दृश्य पर चर्चा करना बेहतर है । मामला यह है कि दोनों महारथी अपने अपने पट्ठों को चुनाव लड़वाना चाहते हैं । क्योंकि पट्ठे हैं तो वे हैं । बाहर लड़ने वालों की भीड़ जमा है । किसी कवि ने बहुत पहले बहुत ठीक कहा है कि ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का । आजकल कंपनियाँ अलबेलों मस्तानों को जॉब नहीं देती हैं । इसलिए मजबूरी भी कोई चीज होती है, वरना हर कोई मोटी चमड़ी का नहीं हो पाता है । हरेक लड़ने का इच्छुक अपने साथ सिविल ड्रेस में पाँच सात बाउंसर लिए खड़ा है । वे दूरदृष्टा और समझदार हैं । मूरखों की तरह नहीं कि प्यास लगे तब कुंवा खोदने कि जुगत करें । जैसे ही जरूरी होगा महाभारत की आदर्श परंपरा को सम्मान दिया जाएगा । प्रेम , युद्ध और टिकिट के झगड़े में सब जायज है ।
पार्टी मुख्यालय के प्रांगण में गांधी जी की प्रतिमा लगी हुई है जिसके हाथ में लाठी भी है । प्रतिमा के कंधे पर बैठे कबूतर ने अभी तक शांति की उम्मीद नहीं छोड़ी है और लग रहा है जैसे वह गुटुर गूँ के साथ वैष्णव जन तो तेने कहिए गा रहा है ।  
“गांधी जी की गाइड लाइन के हिसाब से हमें भी यहाँ लाठी ले कर आना चाहिए था ।“ टिकिटार्थी यानी भिया के साथ आए चेले ने कहा ।
“ऐसा नहीं है रे, गांधीजी के पास जेब नहीं थी इसलिए वो चाकू नहीं रख पाते थे । वरना जो बकरी का दूध पिये और मिलों तक तेजी से पैदल चले उसे लाठी लेने कि क्या जरूरत है !! ..... तुम चिंता मत करो, हम गांधीवादी ही हैं ।“  भिया ने चेले को दीक्षित किया ।
“गांधी जी ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी, टिकिट की लड़ते तो पता चल जाता कि असल लड़ाई क्या होती है । पाँच साल हो गए पार्टी में दुम हिलाते ..... अब इच्छा हो रही है कि भँभोड़ डालूँ दो चार को । “ भिया पिन्नाए ।
“जब तक अंदर से छू का इशारा नहीं मिले शांत खड़े रहो भिया । पीछे मीडिया वाले भी कैमरा ले कर तैयार खड़े हैं । “
तभी अंदर से दो बयान बाहर आए कि “हम नहीं लड़े, खबर झूठी है । पार्टी एकजुट और मजबूत है । “
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गुरुवार, 1 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्रश -- 1 (मार्केट में मामाजी के कज़िन)



इनदिनों अच्छे भले जिम्मेदारों को कनफ़्यूजन हो रहा है । रहा आमजन का सवाल तो भईया ऐसा है कि कन्फ़्यूजन उसके लिए मल्टीविटामिन की तरह है । सुबह शाम एक एक बार कन्फ़्यूजिया नहीं ले तो सेहत बिगड़ने लगती है । सत्तर साल हँसते मुस्कराते ऐसे ही नहीं काट लिए हैं उसने । हफ्ते भर से राजधानी मार्ग पर कारें दौड़ रही हैं , आज कुछ ज्यादा ही । पहले तो लगा कि रैली वैली है और कोई रोड शो के चक्कर में देश का कीमती पेट्रोल फुँकवा रहा है । पूछा तो पता चला कि सारे टिकिटार्थी हैं और राजधानी लपक रहे हैं । एक रेस सी लगी है, मानो जो पहले पहुंचेगा टिकिट उसका ।
हर टिकिटार्थी कार में अपने साथ मामाजी का एक कज़िन ले कर बैठा है । इस समय मामाजी के कज़िनों का मार्केट हाई है । यो समझिए कि राजनीति के बाज़ार में सिक्कों से ज्यादा कज़िन-सिक्के चल रहे हैं ।  जैसे बरसात के मौसम में जुगनू या मेंढक निकल आते हैं वैसे ही जगह जगह मामाजी के कज़िन निकल रहे हैं । सबके कंधों पर कुर्ता जेकेट और नाक पर चश्मा है । बहुत से कज़िन कज़िन कम क्लोन ज्यादा लग रहे हैं । होने से ज्यादा लगना महत्वपूर्ण है । जो जितना लग रहा है उतनी उसकी साख है । साख पर ही आर्थिक गतिविधियां चलती हैं । सब जानते हैं कि आर्थिक गतिविधियां नहीं हों तो कोरी राजनीति तालाब में पड़ी  काई है । प्रकट रूप में जो राजनीतिक गतिविधि है वो अप्रकट रूप में आर्थिक गतिविधि ही है । जो इस रहस्य को समझ लेता है वो राजनीति की पकड़म पाटी में शामिल हो जाता है और जो नहीं समझता वो कभी नोटा को खुजाता, कभी वोटा को सहलाता, चिड़िया उड़ काऊवा उड़ खेलता रहता है ।
ढाबे पर एक बड़ी सी यानी काफी बड़ी सी कार रुकी । कार क्या है  आप यूं मानिए कि मिनी बस की कज़िन है ।  पंद्रह सोलह लोग उतरे ।
“मामाजी पहले फ्रेश हो लो, टाइलेट उधर है । “ एक बोला ।
मामाजी जाने लगे तो दूसरे ने रोका - “ बंसी जरा देख के आ कि टाइलेट साफ है या नहीं ।“ बंसी लपका, तुरंत रिपोर्ट लाया कि टाइलेट साफ है ।
“अब जाइए मामाजी ।“ मामाजी चले गए । आसपास वाले समझ गए कि वही टिकिटार्थी है । अब वो पट्ठों को बता रहा है कि ये मामाजी के खास वाले कज़िन हैं । जब छोटे थे तो मौसी बुआ के लड़कों कि शादी में पंगत को लड्डू चक्की परोसते थे दोनों मिल कर ।  कज़िन मामा ने उनसे कभी किसी के लिए कुछ कहा नहीं पर आज जिंदगी में पहली बार अपने टिकिट के लिए कहेंगे । और देखना मामा तो क्या मामी भी उनकी बात टाल नहीं पाएँगी ।
कज़िन मामा बाहर निकले ।
“मामाजी चाय या काफी कुछ ?”
“चाय काफी बाद में , पहले कचोरी समोसा कुछ ?” दूसरा बोला ।
“पोहा जलेबी भी है । “ तीसरी आवाज ।
“कोक फ्रूटी भी दिख रही है । “
“है तो खमण फफड़ा भी । “
मामाजी सोच रहे हैं , विकल्प ज्यादा हों तो दिक्कत होती है । एक को चुनना आसान है लेकिन बाकी को खारिज करना कठिन ।
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