मंगलवार, 13 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 8 ..... ( चंदा मामा दूर के )



चुनाव में चंदा नहीं होना ऐसा है जैसे पूनम की रात में चाँद न हो । चाँद खिले, तारे हँसे तभी रात मतवारी है, समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है । पोपसिंग जादो भिया के पास अपनी एक चंदा केबिनेट है, जिसके ऑफिस इंचार्ज साले साब हैं । उन्हें सब  चंदा मामा कहते हैं । भाभी जी केबिनेट हेड हैं, वे  सागर की तरह गहरी और विशाल हैं  और अगर ठीक से बांधी जाएँ तो आठ मीटर साड़ी में वन पीस समेटी जा सकती हैं । सारा चंदा अंत में उन्हीं की खाड़ी में जा कर गिरता है । भाभी जी के बन्दरगाह पर सिर्फ पेटियाँ ही उतरती हैं । हिसाब भी केवल पेटियों का रखा जाता है । जो पेटीदार हैं वही सूची में दर्ज है । शहर में पच्चीस पचास पेटियों वाले भी हैं और दो चार पेटियों वाले भी । पच्चीस पचास पेटियों वाले मध्य रात्री में उड़ते हुए आते हैं और सीधे खड़ी के खाड़े में अपनी पेटियाँ डाल कर लौट जाते हैं । चंदा केबिनेट दिनरात धनसंपर्क में व्यस्त रहता है । जिस तरह बूंद बूंद से घड़ा भरता  है उसी तरह थैली थैली से पेटी भी भरती  है । थैली वाले निराश न हों इसलिए राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त दो तीन लोग चंदा मामा के नीचे इस काम में भी लगे हुए  हैं ।
तेरह चुनाव देख चुके तजुर्बेकार बाप ने समझाया कि बेटा जमाना लोकतंत्र का है । पानी में अगर इज्जत से बने रहना है तो बड़े मगरमच्छों को भी छोटे मगरमच्छों से बैर नहीं करना चाहिए । ये सारे छोटेलाल मौसमी होते हैं, आते हैं और जाते हैं । जैसे जिन्न चिराग में रहता है वैसे ही ये लोग पेटी में रहते हैं  । जब भी पेटी रगड़ो ये जो हुकम मेरे आका कहते सेवा में हाजिर हो जाते हैं । कहने को जनता के हैं लेकिन असल में होते हमारे हैं । और कुछ नहीं तो शादी ब्याह में खड़े कर दो तो शान बढ़ जाती है । दे दो, देने में घाटा नहीं है । इनके होने से अपन भी मनमर्जी से काम कर लेते हैं, वरना कानून किसी का सगा होता है !?”
बेटा समझा तो सही , लेकिन अभी भी उसके मन में सवाल थे –“ किस  किस को देंगे बाबूजी ! तमाम लोग खड़े हैं चुनाव में । “
“ हर पार्टी वाले को दो बेटा, कौन कैसे सरकार में आ जाए इसका भरोसा नहीं । हम वणिक बुद्धि के है, थैली दे कर पेटी बनाते हैं और पेटी दे कर खोखे । सिस्टम को समझो बेटा । किसान बीज फैकता है तो फसल मिलती है । तो पेटी फैको,  पेटी की फसल उगाओ । “
“ ठीक है, पेटी में हजार और पाँच सौ के पुराने नोट रख कर दे दूँ ? खप जाएंगे अभी । वो तो सिर्फ पेटियाँ गिनते होंगे ।... इसी बहाने पुराने नोट अगर सरकार फिर से चला दे । “
“ सब जगह बेईमानी कर लेना बेटा, लेकिन यहाँ नहीं । हमारा उनका परंपरागत संबंध है । सदियों से हम उनके काम आए हैं और वो हमारे । हमारा चोली दामन का साथ है , वे हमारी ढँकते हैं और हम उनकी । नए  नोट दो, गुलाबी । समझे ।  
-----


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें