सोमवार, 5 नवंबर 2018

चुनावी चवनप्राश –4 ....... (जब तक सूरज चंद रहेगा ! )




देर रात घर आने वाले गब्बू पेलवान सरे शाम घर पहुँच गए । साथ में दो चार पट्ठे भी थे । पेलवानिन ने सुना तो बिखर गयी, -- “आपको टिकट नहीं दे रए !! इनका नास जाए, बिना तनखा का चपड़ासी बना के रखा है क्या !! समझते क्या हैं अपने आप को भूतनी के  !! .... तुम बात करो दूसरी पार्टी से ...., राजधानी में रात दिन मेंढक तुल रहे हैं, अकेले तुमको ही वफादारी का कुत्ता बनाने से क्या मतलब !! भले ही तुमको कुछ नहीं बनना होगा पर हमें तो विधायकिन बनना है । “
आज गब्बू भिया अंदर तक घायल थे, ब्रेड की स्लाइस तरह कई पीस में कटे हुए । बीवी का मॉरल सपोर्ट मिला तो हिम्मत आ गई । चेले से फोन लिया, शुरुवाती संवाद के बाद मुद्दा खुला, उधर से बोले - अगर आप कुछ दिन पहले हमारी पार्टी में आ गए होते तो आपका टिकट पक्का था । अब टिकिट तो बहुत मुश्किल है । लेकिन पार्टी में आपका स्वागत है । मैं बात करता हूं, ...  प्रदेश अध्यक्ष जी अपने दौरे के दौरान आपको पार्टी में समारोह पूर्वक ले लेंगे ।“
“ बिना टिकट आपके यहां आने का क्या मतलब है !! रोड शो की भीड़ तो मैं यहां भी हूं ही । आप जानते हो मेरे पास दो सौ कार्यकर्ता  हैं । चंदा हम लोग बढ़िया करते हैं सालभर, बिना रसीद के । हमारे भंडारों की बड़ी साख है शहर में । वोटरों ने हमारा इतना नमक खा लिया है कि वो अब किसी और को वोट दें यह हमें बर्दाश्त नहीं होगा । पिछले भंडारे में तो हमने नुकती की जगह गुलाब जामुन खिला दिए हैं  !? देखिए भाई साहब, आप ऊपर बात कीजिए । उन्हें कहिए कि गब्बू पेलवान ने कहा है कि  तुम मुझे टिकट दो, मैं तुम्हें सीट दूंगा” ।
“ आप समझने की कोशिश करो भाई साहब । हमारे अध्यक्ष अभी नए नए हैं ।  पहली बार बड़ी मुश्किल से उन्होंने टिकट बांटे हैं, जिसमें बड़ी कुश्तम कुश्ता हुई है । रहा सवाल किसी का टिकट काट कर आपको देने का तो उनको अभी इसका आईडिया नहीं है । पुराने लोगों की बात और थी । उन्हें चुनावी बकरा मंडी का अच्छा अंदाज रहता था ।  बढ़िया माल वे छोड़ते नहीं  थे । लेकिन अब साहब कंप्यूटर देख कर मुंह खोलते हैं । पहले वाले थैली देखकर खोलते थे । ..... थैली वैली अब नहीं चलती है, थैले का इंतजाम किए हो या नहीं ?”
गब्बू भिया ने बिना जवाब दिये फोन बंद कर दिया,- “टिकिट की बात नहीं कर रहे, थैला चिए ....!”
“ भिया बहन जी की पार्टी भी ठीक है, ... उधर बात करके देखो...”
उधर फोन मिलाया - “ हां जी भाई जी, बताइए, बहन जी क्या पॉलिसी है ?”
“ आप आ जाइए पार्टी में, आपका टिकट पक्का है, हो जाएगा । ... बहन जी खुद आपका वेलकम करेंगी और सफ़ेद गुलाब की एक कली भी देंगी । लेकिन आपकी तरफ से क्या तैयारी है ?”
“ पूरी तैयारी है, चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे भी ।“
 वह तो ठीक है, पर पार्टी को क्या देंगे ?”
“ टिकिट दे रहे हो तो पार्टी को भी एक थैली दे देंगे । “
“ थैली नहीं चलती इधर । .... यह बताओ कि गुलाबी नोटों की कितनी माला है पहनाओगे ? एक माला में पाँच हजार नोट होते हैं ।
“ ठीक है सोच कर बताते हैं । “
“ जल्दी सोचिए टिकट आपका पक्का है,  बहुत से लोग माला लिए इंतजार भी कर रहे हैं ।“
 पट्ठा बोला - “लगे हाथ साइकिल छाप पार्टी से भी बात करके देख लो उनका दृष्टिकोण शायद अभी भी कुछ मुलायम हो । “
“अरे एमपी में साइकिल वालों का क्या काम !!  सड़कें भले ही अमेरिका जैसी हों पंचर साइकिल पर कोई डबल सवारी बैठता है क्या ।“  
“ भैया लाल झंडे वाले भी खाली बैठे हैं वे तो छोटी थैली मैं भी मान जाएंगे । “
“ अरे चुप, गरीबों का देश होने के बावजूद जो अपनी सूरत सम्हाल नहीं कर पाए  वो दूसरे के चेहरे का मेकअप क्या करेंगे । इससे तो अच्छा है कि निर्दलीय लड़ा जाए । ..... चलो निर्दलीय लड़ेंगे, वो खिलाएँगे नहीं तो अपन खेल बिगड़ेंगे । “
पट्ठों ने नारा लगाया “जब तक सूरज चंद रहेगा .....”
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