शनिवार, 3 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश --3 (अच्छाई हुआ टिकिट नी मिला)



“देखो यार ऐसा है कि अपुन टिकिट के वास्ते राजनीति करते-ई नी हें । मेरा तो मन-ई नी था । मेने तो मांगा-ई नी था किसी से । वो तो तुम लोग बोले तो सोचा चलो ठीक हे । आपना क्या हे , आपन तो फकीर आदमी हें । झोला उठा के चल देंगे कंई भी ।“ गुलाब सिंग उर्फ गब्बू भिया घर में उदास बैठे हैं । इस बार उम्मीद थी कि मिलेगा । ज़ोर भी खूब लगाया था । लेकिन जिस साँड की दुम पकड़ कर वैतरणी पार कर रहे थे उसी ने मँझधार में लात मार दी । अब बीच धार में कोई दूसरा साँड तो मिलने से रहा ।
पट्ठे भी उदास थे, एक बोला –“ गब्बू भिया आपकी कसम, देख लेना अबकी बार अपन साँड के लिए काम नी करेंगे । बड़ा चुनाव तो उसीको लड़ना हे । उसके झंडे-डंडे कोन उठता हे .... अपन-ई उठाते हें ना गधे कि तरे ! अबकी उसको पता चल जाएगा कि कार-करता क्या चीज होता हे । “
“अरे ठीक हे रे कानिया । तू लोड मत ले । अपने को कायकी कमी हे । अच्छाई हुआ टिकिट नी मिला, मिल जाता तो लोगों के पाऊँ छू छू के कमर दो दिन में तीन तलाक बोल देती । यूं समझ ले कि टिकिट नी मिला तो इज्जत बच गई । इज्जत टिकिट से बड़ी चीज होती हे बेटा ।“ पता नहीं गब्बू भिया ने अपने को तसल्ली दी या कनिया को ।
“क्या बात कर्रे हो भिया !! टिकिट मिलता तो आपको किसी के पाऊँ छूने देते क्या हम ! भिया आपके असिरवाद से इत्ती रंगबाजी तो हेगी कि आपको लेके जिधर से भी निकाल जाएँ लोगबाग अपने दरवज्जे बंद कल्लें फ़्ट्ट से । किसी की हिम्मत नी हे कि आपके सामने टांग खोल के खड़ा हो जाए । भिया थाली में रख के आपके जूतों का जनसम्पर्क करवा दें तो सामने वालों की जमानत जप्त हो जाएगी । आपके पसीने की एक बूंद पे पब्लिक का लोटभर खून कुर्बान करने में देर थोड़ी लगेगी ।“
“ठीक हे यार, चुनाव लड़ना जरूरी हे क्या ! गांधी जी ने कभी चुनाव नी लड़ा तो क्या वो देश के नेता नी हें ? ... अपुन तो अच्छई सोचो ना । पार्टी को भविस के लिए एक नया गांधी चिए होगा । राजनीति में पास की नी सोचना चिए, हमेसा दूर की सोचना चिए ।“  चेले गब्बू भिया के ऊंचे विचार सुन कर लट्टू हो गए । सोचने लगे वो दिन भी क्या होगा जब भिया का फोटू नोटों पे छ्पेगा ।  खुशफहमी में पट्ठों ने नारा लगा दिया “ देश का नेता केसा हो, गब्बू भिया जेसा हो” 
भिया ने फौरन रोका, - “अबे नारा मत लगाओ बे , लोग समझेंगे कि टिकिट मिल गया । फोकट केन हो जाएगी । खाया पिया कुछ नई, गिलास फोड़ा बारा आना । “
“भिया एक बात मान्नी पड़ेगी आपको । अबकी अपन साँड सिंग को सबक जरूर सिखाएँगे । भोत हो गया । सारी जिंदगी उनकी दरी उठाते बिछते रहोगे क्या !! हमेशा पालतू बने रहे, दुम हिलाते रहे और आज टिकिट के टैम पे मिला क्या !! ... सब लोग कसम  खाओ हाथ में जल ले के कि अब साँड का काम नी करेगा कोई ।“  कनिया ने कसम  दिलवा दी । तभी रिंगटोन बज उठी गोली मारो भेजे में ...
गब्बू भिया ने फोन लिया –“ हाँ भिया ..... नहीं भिया ...... ऐसी कोई बात नी हे भिया ...... टिकिट की दोड़ में तो अपन थेई नी ..... । नई मिला तो नई मिला .... । हाँ , करेंगे ना ..... हाँ हाँ , अपने सारे छोरे करेंगे ..... ठीक हे भिया .... बिलकुल भिया .... जेसा आप बोलोगे भिया .... हओ भिया । “
“साँड सिंग का फोन था ..... बोलो क्या करे ?” गब्बू भिया ने कनिया कि तरफ देखते हुए पूछा ।
“जेसा आप बोलो भिया । “  कनिया के साथ सब बोले ।
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