शनिवार, 10 नवंबर 2018

चुनावी च्यवनप्राश – 6 .... ( ढम ढम बाजे ढ़ोल )




पोपसिंग जादो भिया के पट्ठों ने शहर भर के ढोलियों को बयाना दे कर बुक कर लिया । इरादा ये कि अगर टिकिट नहीं मिला तो किसी और को भी बजवाने नहीं देंगे । सारे ढोलियों को अखाड़े के आंगन में बैठे रहने का पैसा देंगे । और अगर मिल गया तो हमारा ही बजेगा किसी और का नहीं बजने देंगे । गनीमत यह रही कि पोपसिंग जादो भिया को टिकिट  मिल गया और जैसा कि तय था खबर के साथ ढोलियों को जोत दिया गया है । ढोलियों की खास मांग पर सबको एक एक अंटा भांग का भी दिया गया है, साथ में यह हिदायत भी कि पहले दौर में सब बजाएँगे और एक घंटे तक हाथ रुकना नहीं चाहिए । पल झपकते ही माहौल जानलेवा बन गया । लगा जैसे आसमान फट पड़ा हो शोर का । सबसे पहले कुत्ते बिल्लियाँ भाग कर दुबक लिए कहीं । माताओं से छोटे बच्चे चिपक लिये । बूढ़े बीमार जो आलरेडी भगवान को याद कर रहे थे, उन्हें लगा कि प्रभु विराट रूप के साथ प्रकट हो रहे हैं । जैसे स्टेशन पर ट्रेन आते ही लोग अपना लगेज थामने लगते हैं, कइयों ने गंगा जल मुंह में डाल लिया है । अभी गगन भेदी माहौल बना ही था कि पोपसिंग जादो भिया की माँ घबरा कर अचेत होने की ओर कूच कर गईं । तत्काल ढ़ोल बंद कराये गए । हवा में सवाल तैर गया “गईं क्या ?!” उछल कूद रही पोप पलटन गियर बदल कर छती कूटने और विलापने को तत्पर होने लगी । लेकिन किसी ने आ कर कहा कि अभी इसकी जरूरत नहीं है । खैर ।
ढ़ोल आज की राजनीति में नेता का घोषणा पत्र है । ढ़ोल में जितनी पोल होती है उतना ज़ोर से बजता है । चुनाव में सुर की नहीं शोर की जरूरत होती है । इसलिए उम्मीदवार जब जनसम्पर्क पर निकलते हैं तो विशेष सावधानी रखते हैं कि कहीं जनसम्पर्क हो न जाए । जनता को संपर्क में नहीं शिकायतों में रुचि होती है । नेता दो मिनिट को भी हाथ लग जाए तो पाँच साल का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं कंबखत । पकड़म पाटी के इस खेल में नौसिखिये नेता अक्सर फंस जाते देखे गए हैं । पोपसिंग भिया के साथ भी इस समय ढोलियों का जरूरी इंतजाम है । खुद उनके कार्यकर्ता लोग आपस में सुन नहीं पा रहे हैं, लेकिन मान रहे हैं कि मजा आ रिया हे । वोटर अलग प्रजाति का नहीं है, उसने कान बंद कर लिए हैं और इस चक्कर में मुंह भी बंद ही है ।  यही ढ़ोल वोटर ने पाँच साल पहले भी सुने थे । पहले पाँच ढोली थे आज बीस हैं । तरक्की तो हुई है । नेता जो कहते हैं वो करते भी हैं । लेकिन लोग समझे तब ना । वो तो अच्छा है कि सामने वाली पार्टी भी ढ़ोल ले कर निकलती है और जनता को कुछ अल्लम गल्लम समझा नहीं पाती है । वरना लोगों को महंगाई, बेरोजगारी, अपराध जैसी रूटीन की और फालतू बातें याद दिलाने में देर लगे क्या !! सरकार ने समझाया है कि चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है । और उत्सव में कुछ सोचा नहीं जाता है, सिर्फ मनाया जाता है ।
जनसम्पर्क में एक भीड़ साथ चल रही है जिनमें से अधिकांश मौका मिलते ही खिसकाना चाहते हैं लेकिन अपने अपने कारणों से फंसे हुए हैं । कुछ लोग कल सामने वाले के जनसम्पर्क में शामिल थे और पोहा जलेबी के साथ एक एक लीटर पेट्रोल को भी याद कर रहे थे । कुछ माने हुए हैं कि मिलेगा । पोपसिंग भिया की जेब उनके कुर्ते में नहीं होती है, उनकी जेबें शहर भर में फैली हुई हैं । यह समय जादू-समय है, बड़ा आदमी इस समय थैली या जेब हो जाता है । आज एक खाली करेगा तो कल दो भरेगा । उम्मीद पर दुनिया के अलावा सिस्टम भी टिका हुआ है ।
काफिला एक जगह थमा तो सारे ढोली सुस्ताने बैठ गए । अंदर नाश्ता बाँट रहा था । कार्यकर्ता एक प्लेट ले कर खाते हुए दूसरी के लिए वितरण स्थल की ओर लक्ष किए थे । कुछ को चाय का प्लास्टिक कप भी हाथ लग गया था । ढोलियों ने मांगा तो उन्हें पानी मिल गया, बाकी के लिए वे संभावना शेष थी ।
“भिया, थोड़ा  नाश्ता  देओ ना हमको भी ।“ एक ढोली ने कहा ।  
“ पहले पार्टी वाले खा लें यार ..... फिर देखता हूँ .... । “
“ नाश्ता मांग रहे हैं भिया वोट नहीं । “
“ हाँ हाँ , देखता हूँ । रुको तो । “  कह कर वो गया तो केलेण्डर का पन्ना हो गया ।
अचानक जनसम्पर्क फिर शुरू हो गया । ढोलियों को लगाना पड़ा । सारे एक सुर में ढ़ोल पीटने लगे, धुक्कड़  धेइई  ... धेइईधान धेइई ,  धुक्कड़ धेइई... धेइईधान धेइई  जनसम्पर्क चल रहा था , ढोली मुस्करा रहे थे । उनके ढ़ोल चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे “भुक्कड़ हैं, बेईमान हैं , भुक्कड़ हैं, बेईमान हैं” । मानो गूंगे का गुड़ था जिसका मजा वे ढोली ही ले रहे थे ।
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